Thursday, April 25, 2024

जजों की मेरिट के आधार पर नियुक्ति के लिए स्थायी कॉलेजियम सचिवालय, सहायता के लिए होगी सुप्रीम कोर्ट में रिसर्च विंग

पिछले कुछ वर्षों से कॉलेजियम प्रणाली लगातार सरकार के निशाने पर रही है और सरकार ने कॉलेजियम के जगह एनजेएसी लाने का प्रस्ताव संसद से पारित भी कराया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया। पिछले अक्टूबर-नवंबर से कानून मंत्री किरण रिजिजू और उनके बाद उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने कॉलेजियम प्रणाली पर हल्ला बोल कर रखा है।

हालांकि चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, पूर्व चीफ जस्टिस यू.यू. ललित सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मदन. बी. लोकुर और दीपक गुप्ता के साथ कपिल सिब्बल, दुष्यंत दवे सरीखे अनेक वरिष्ठ वकीलों ने कॉलेजियम सिस्टम का बचाव किया और कहा कि जब तक इससे बेहतर कोई व्यवस्था नहीं आती तब तक कॉलेजियम सिस्टम ही न्यायपालिका में नियुक्तियों के लिए सर्वश्रेष्ठ है।

इस बीच चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कॉलेजियम सिस्टम में सुधार के लिए एक ऐसा कदम उठाया है, जिससे न्यायपालिका विशेष रूप से सुप्रीम कोर्ट में कमतर प्रतिभा के जजों की नियुक्ति न हो सके और यह भी आरोप न लग सके कि प्रतिभा का अनदेखा करके राजनीतिक पृष्ठभूमि देखकर जजों की नियुक्तियां हो रही हैं।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने स्थाई कॉलेजियम सचिवालय का गठन करके और उसके साथ रिसर्च विंग को जोड़कर कॉलेजियम प्रणाली में ऐसी व्यवस्था कायम करने का प्रयास किया है, जिसका दूरगामी प्रभाव होगा और कम से कम सुप्रीम कोर्ट में कमतर प्रतिभा के न्यायाधीशों का चयन नहीं हो सकेगा, क्योंकि सचिवालय के पास जजों के परफारमेंस का रिकॉर्ड होगा। यही नहीं कॉलेजियम को अब केवल आईबी की रिपोर्ट पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा जो अक्सर पूर्वाग्रह से ग्रस्त होती हैं और उन पर सवाल  उठता रहता है।

इसका खुलासा चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डॉ. जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने 11 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में कॉलेजियम सिस्टम के कामकाज में और अधिक पारदर्शिता लाने के लिए पहले से की गई पहल और अपनी योजनाओं को साझा करते हुए किया। उन्होंने कहा कि सीजेआई के रूप में शपथ लेने के बाद उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि कॉलेजियम के प्रस्तावों में विस्तृत कारण दिए गए हैं, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किया गया।

उन्होंने बताया कि अब सुप्रीम कोर्ट के रिसर्च विंग यानी सेंटर फॉर रिसर्च एंड प्लानिंग (सीआरपी) को निर्देश दिया गया कि कॉलेजियम के निर्णय लेने में अधिक निष्पक्षता लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के परमानेंट सेक्रेटेरिएट की सहायता करें। सीजेआई ने सीआरपी से वरिष्ठता के संदर्भ में हाईकोर्ट के शीर्ष पचास न्यायाधीशों पर उनके द्वारा पारित आदेशों के नंबर, दिए गए निर्णयों के नंबर आदि से संबंधित डेटा एकत्र करने के लिए कहा।

चीफ जस्टिस ने कहा कि ऐसा कभी नहीं किया गया। विचार यह है कि कॉलेजियम जो काम करता है उसमें वस्तुनिष्ठता की भावना को बढ़ावा देना है। इसलिए रिसर्च और योजना केंद्र अब परमानेंट सेक्रेटेरिएट के साथ अपनी गतिविधियों के लिए विलय कर देगा। चीफ जस्टिस ने कहा कि ‘सेंटर फॉर रिसर्च एंड प्लानिंग’ में कुछ असाधारण प्रतिभाशाली युवा हैं।

‘सीआरपी’, जिसकी परिकल्पना तत्कालीन सीजेआई टी.एस. ठाकुर ने की थी,  उसमें अब प्रतिनियुक्ति पर रजिस्ट्री में तैनात दो अधिकारी शामिल हैं। चीफ जस्टिस ने बताया कि उनमें से एक पंजाब एंड हरियाणा न्यायपालिका का ‘न्यायिक अधिकारी’ है, दूसरा उसका पूर्व ‘लॉ क्लर्क’ है, जो एलएलएम के लिए ‘हार्वर्ड लॉ स्कूल’ गया और फिर ‘जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल’ में पढ़ाई की।

इसके पहले 20 फरवरी 23 को सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश, इंदिरा बनर्जी ने कहा कि न्यायाधीशों को संवैधानिक न्यायालयों में नियुक्ति या पदोन्नति के लिए न्यायाधीशों या संभावित न्यायाधीशों को नामांकित करने जैसे प्रशासनिक कर्तव्यों का निर्वहन करते समय भी, भय, पक्षपात, स्नेह या दुर्भावना के बिना अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने की अपनी शपथ को याद रखना चाहिए।

जस्टिस बनर्जी ने याद किया कि जस्टिस रूमा पाल, जो कुछ समय के लिए कॉलेजियम की सदस्य थीं, उन्होंने अपनी सेवानिवृत्ति के कुछ समय बाद ही एक लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि कॉलेजियम में अक्सर यह होता है कि ‘तुम मेरी पीठ खुजलाओ और मैं तुम्हारी पीठ खुजलाऊंगा।”। उन्होंने कहा कि यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है।

जस्टिस बनर्जी ‘कैम्पेन फॉर ज्यूडिशियल एकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स’ (सीजेएआर) द्वारा आयोजित सेमिनार में कहा कि चाहे आप सहमत हों या असहमत कि एक कॉलेजियम होना चाहिए, लेकिन तथ्य यह है कि यह न्यायिक रूप से स्थापित किया गया है, इसलिए हम इससे बंधे हैं।

उन्होंने 2015 में प्रस्तावित ‘राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग’ को शीर्ष अदालत द्वारा खारिज करने का जिक्र करते हुए कहा, इसी तरह, आप ‘एनजेएसी’ के फैसले से सहमत हो सकते हैं या आप असहमत हो सकते हैं, लेकिन तथ्य यह है कि सुप्रीम कोर्ट का न्यायिक निर्णय भूमि का कानून है जो सभी के लिए बाध्यकारी है।

जस्टिस बनर्जी ने कहा कि मैं एक स्थायी सचिवालय या एक अलग विभाग के सुझाव का पूरी तरह से समर्थन करती हूं एक ‘उम्मीदवार बैंक’ या ‘संभावित उम्मीदवारों के नाम वाला एक स्थायी रजिस्टर’ भी होना चाहिए। बैंक में वकीलों के नामों की सिफारिश किसी भी संवैधानिक न्यायालय के न्यायाधीशों, सीनियर एडवोकेट या बार एसोसिएशनों द्वारा की जानी चाहिए। हालांकि, किसी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बार एसोसिएशनों की सिफारिशें वास्तविक हैं और चुनावों में वोट सुरक्षित करने की दृष्टि से बार को खुश करने की चाल नहीं है। हमें इस पहलू से सावधान रहना होगा।

इस बीच सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने अपना बदला रुख भी दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के रूप में उनकी नियुक्ति के लिए तीन न्यायिक अधिकारियों के नामों की सिफारिश के साथ प्रदर्शित कर दिया है। दिल्ली उच्च न्यायपालिका के तीन न्यायाधीश गिरीश कठपालिया, धर्मेश शर्मा और मनोज जैन हैं।

कॉलेजियम के 12 अप्रैल 23 को प्रकाशित बयान में कहा गया है कि जजमेंट इवैल्यूएशन कमेटी ने तीनों जजों द्वारा लिखे गए फैसलों को आउटस्टैंडिंग के रूप में वर्गीकृत किया है। कॉलेजियम ने कहा है कि गिरीश कठपालिया दिल्ली उच्च न्यायिक सेवा के सबसे सीनियर मेंबर हैं और खुफिया ब्यूरो ने बताया है कि उनकी एक अच्छी व्यक्तिगत और पेशेवर छवि है और उनकी ईमानदारी के खिलाफ कुछ भी प्रतिकूल नहीं आया है। बयान में कहा गया है कि हमने पदोन्नति के लिए उनकी उपयुक्तता के संबंध में सलाहकार-न्यायाधीशों की राय पर विचार किया है।

धर्मेश शर्मा के लिए कॉलेजियम ने कहा है कि इंटेलिजेंस ब्यूरो के इनपुट का मूल्यांकन किया गया है और अधिकारी के उनके आचरण और कार्य प्रदर्शन को देखा गया है। बयान में कहा गया है कि निर्णय मूल्यांकन समिति ने उनके द्वारा लिखे गए निर्णयों को ‘उत्कृष्ट’ के रूप में वर्गीकृत किया है। जैन के बारे में बयान में उल्लेख किया गया है कि खुफिया ब्यूरो ने बताया है कि उनकी एक अच्छी व्यक्तिगत और पेशेवर छवि है और उनकी सत्यनिष्ठा के खिलाफ कुछ भी प्रतिकूल नहीं आया है।

इसके मद्देनजर, कॉलेजियम यह सिफारिश करने का प्रस्ताव करता है कि सर्वश्री (1) गिरीश कठपालिया, (2) धर्मेश शर्मा, और (3) न्यायिक अधिकारी मनोज जैन को दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जाए। उनकी पारस्परिक वरिष्ठता मौजूदा व्यवस्था के अनुसार तय की जानी चाहिए।

(जे. पी. सिंह वरिष्ठ पत्रकार एवं कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles