सर्वदलीय बैठक में सफेद झूठ बोल गए पीएम मोदी

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भारत और चीन के बीच गलवान घाटी में एलएसी यानी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर महाभारत छिड़ी हुई है। दोनों पक्षों में तनाव कम करने के मकसद से जारी वार्ताओं के बीच 20 भारतीय जवानों की शहादत हुई है और उस पार भी 43 जवान मारे गये हैं (हालांकि पुष्टि नहीं)।

इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सर्वदलीय बैठक में जो बयान दिया है उससे महाभारत के दौरान आचार्य द्रोणाचार्य से युधिष्ठिर की कही गयी बात की याद हो आयी है। युधिष्ठिर ने द्रोण पुत्र अश्वत्थामा की मौत होने का भ्रम फैलाते हुए एक हाथी जिसका नाम अश्वत्थामा था, की मौत की खबर अपने गुरु को दी थी जिसके बाद उन्होंने अपने अस्त्र-शस्त्र त्याग दिए और उनकी हत्या कर दी गयी। युधिष्ठिर ने कहा था- “अश्वत्थामा हत: नरो वा कुंजरो वा”।

सर्वदलीय बैठक के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि हमारी एक इंच जमीन कोई नहीं छीन सकता। न कोई हमारी सीमा में घुसा है और न ही हमारी कोई पोस्ट किसी के कब्जे में है। यह सच है। मगर, इस सच की आड़ में एक बड़ा सच छिपाया जा रहा है, एक नया झूठ फैलाया जा रहा है।

अब इसे ऐसे समझें कि चीन की सेना एलएसी यानी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत के दावे वाले हिस्से में घुसी। मगर, इसे भारतीय सीमा तो नहीं कह सकते!

“हमारी एक इंच जमीन कोई छीन नहीं सकता।“ इस बारे में कुछ यूं समझें कि 5 मई से पहले चीन ने जो कुछ नियंत्रण रेखा में घुसपैठ की है वह हमारी सीमा में तो है नहीं। इस वजह से वह छिना हुआ कैसे माना जाए! 

“न ही हमारी पोस्ट किसी के कब्जे में है”- इसका आशय यह है कि हमलावर चीनी सेना तो हमले के बाद खदेड़ दी गयी हमारे जांबाज बहादुर सैनिकों के द्वारा। ऐसे में पोस्ट भी उनके कब्जे में नहीं है।

सार यह है कि मौत तो हुई है लेकिन वह हाथी है या नर या यूं कहें कि सीमा का अतिक्रमण तो हुआ है मगर वह सीमा है या एलएसी- यही समझना पहेली है। इसी पहेली के चक्कर में आचार्य द्रोण को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। 

आखिर युधिष्ठिर की याद दिलाती इस झूठ समान आधे सत्य से किसकी मौत या हत्या होने वाली है? निश्चित रूप से हिन्दुस्तान की आत्मा ही को चोट पहुंचेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस बयान से देश की जनता को सांत्वना कम मिलेगी और बेचैनी अधिक होगी। प्रधानमंत्री ने सर्वदलीय बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के उठाए सवालों का भी कोई स्पष्ट उतर नहीं दिया। हालांकि सर्वदलीय बैठक में सभी दलों ने अपना समर्थन सरकार के पक्ष में रखा और सहयोग का भरोसा दिलाया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान के बाद कई सवाल उठ रहे हैं-

चीन और भारत के बीच तनाव कम करने की वार्ता क्यों हो रही है?

20 भारतीय जवानों की शहादत और 76 के घायल होने की वारदात क्यों हुई?

खुद इस सर्वदलीय बैठक की आवश्यकता ही क्या थी?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ऐसा कहना ही क्यों पड़ रहा है कि कोई हमारी सीमा में नहीं घुसा, किसी पोस्ट पर किसी का कब्जा नहीं है?

हालांकि प्रधानमंत्री ने सीमा का जिक्र किया है, एलएसी यानी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा की चर्चा नहीं की है। निश्चित रूप से भारत की सीमा में चीन नहीं घुसा है। मगर, एलएसी के जिस हिस्से में चीन की घुसपैठ हुई और 5 जून को जहां संघर्ष हुआ, वह भारतीय एलएसी के दावे वाला क्षेत्र है। क्या इसका खंडन कर पाएंगे पीएम नरेंद्र मोदी? क्या यह भारतीय क्षेत्र में चीन का अतिक्रमण नहीं माना जाएगा? इसे घुसपैठ नहीं कहेंगे? 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सर्वदलीय बैठक के अंत में जो जवाब दिया है उससे इस बैठक की अहमियत ही कम होगी। जिस तरीके से पूरे विपक्ष ने नरेंद्र मोदी सरकार को इस संकट से निबटने के लिए समर्थन दिया, वह हमेशा याद रखा जाएगा। इससे निश्चित रूप से मोदी सरकार को मजबूती मिलेगी। कुछ शिकायतों के साथ कांग्रेस ने और बाकी दलों ने भी संकट की घड़ी में सरकार के साथ एकजुट रहने का एलान किया। ममता बनर्जी ने चीन को तानाशाही देश बताते हुए एक सुर, एक सोच और एक साथ काम करने की जरूरत बतायी।  

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पूछा था कि 

देश को घुसपैठ और एलएसी के आसपास चीनी फोर्सेज के जमा होने के बारे में बताया जाना चाहिए

इस बारे में भी कि सैन्य खुफिया सूचना थी या नहीं

सैटेलाइट की तस्वीरें मिल रही थीं या नहीं? 

चीन की सेना कब हमारी सीमा में दाखिल हुई- 5 मई या उससे पहले?

शहादत की घटना कैसे और किन परिस्थितियों में हुई- इसकी पूरी सच्चाई रखी जाए।

प्रधानमंत्री मोदी ने जो जवाब दिया है वह निश्चित रूप से युधिष्ठर वाली भाषा में जवाब दिया है। इस बीच बीजेपी के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने ट्वीट कर प्रतिक्रिया दी है कि कांग्रेस और वामपंथी दलों को छोड़कर सारे राजनीतिक दल मोदी सरकार के साथ हैं। कांग्रेस पर उन्होंने चुटकी भी ली है। मतलब यह साफ है कि सर्वदलीय बैठक के बाद भी राजनीति जारी रहने वाली है। भारतीय सेना के 10 जवानों को बंधक बनाए जाने और उनकी रिहाई संबंधी खबरों पर भी कोई जवाब नहीं आया है।

शहादत के दौरान जिन जवानों की जानें गयीं या जो घायल हुए उनके पास हथियार थे या वे निहत्थे थे, इस पर तो विदेश मंत्रालय ने स्थिति साफ कर दी थी। मगर, विदेश मंत्री के बयान के बावजूद शहीदों के परिजनों के बयान टीवी चैनलों में आए हैं जो शहीद से बातचीत के आधार पर बता रहे हैं कि उनके पास कोई हथियार नहीं थे। ऐसे में यह सवाल नए सिरे से जिन्दा हो गया है कि सेना के जवान हथियार के साथ थे या निहत्थे थे।

यह कहा जा रहा था कि 1996 की भारत-चीन संधि के मुताबिक बंदूक रखने के बावजूद वास्तविक नियंत्रण रेखा के दोनों ओर 2-2 किमी तक उसका इस्तेमाल वर्जित था। मगर, जब घात लगाकर हमला हो और सामूहिक रूप से जवानों की जानें जा रही हों यानी दुश्मन नियम तोड़ रहा हो, तब भी इस नियम से बंधे रहने का कोई औचित्य नहीं था। पंजाब के मुख्यमंत्री और सेना की पृष्ठभूमि से आए कैप्टन अमरिंदर सिंह ने तो यहां तक कहा है कि उस वक्त निर्देश लेने की स्थिति में जो था, अगर उसने गोली चलाने का आदेश नहीं दिया तो ऐसे अफसर का कोर्ट मार्शल होना चाहिए। इस स्थिति पर भी कोई बात अब तक सामने नहीं आयी है।

सर्वदलीय बैठक में विभिन्न दलों के समर्थन से मोदी सरकार को जो मजबूती मिली थी, उस पर प्रधानमंत्री ने अपने बयान से पानी फेर दिया है। युधिष्ठिर की तरह भ्रमित करने वाले बयान देकर पीएम मोदी ने एक साथ कई सवालों को जन्म दिया है और ये सवाल एक के बाद एक कई अन्य सवालों को भी जन्म देंगे। जाहिर है कि आगे राजनीति हो, इसका आधार तैयार हो चुका है। चीन से बदला लेने की बात क्या पृष्ठभूमि में चली जाएगी? अगर सीमा का उल्लंघन हुआ ही नहीं, कोई पोस्ट किसी के कब्जे में ही नहीं और चीनी सेना हमारी सीमा में है ही नहीं- इसका मतलब यही है कि कार्रवाई के नाम पर दिखावा ही होगा।

(प्रेम कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं। आपको विभिन्न चैनलों के पैनल में बहस करते देखा जा सकता है।)

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