Friday, March 31, 2023

संस्थाओं को आपस में लड़ा कर देश को गृहयुद्ध में झोंक रहे हैं मोदी

महेंद्र मिश्र
Follow us:

ज़रूर पढ़े

अभी एक हफ्ता भी नहीं बीता होगा जब यूपी के बलिया से एक तस्वीर आयी थी। एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें खुले खेत में दो पक्षों के बीच लाठी-डंडों और असलहों से मार-पीट हो रही थी। और आखिर में एक शख्स की गोली से एक दूसरे व्यक्ति की मौत हो जाती है। कुछ इसी तरह का नजारा अगर कुछ दिनों में पुलिस और सुरक्षा बलों के बीच देखने को मिले तो किसी को अचरज नहीं होना चाहिए। राजधानी में हुए इसके एक ट्रेलर को पूरा देश देख चुका है। जब सीबीआई के हेडक्वार्टर को केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवानों से घेरवा लिया गया था।

और तत्कालीन सीबीआई चीफ को जबरन छुट्टी पर जाने के लिए मजबूर कर दिया गया था। अब उसी सीबीआई को महाराष्ट्र राज्य की पुलिस के खिलाफ इस्तेमाल किया जा रहा है। वह भी एक शख्स को बचाने के लिए जिसके खिलाफ छेड़छाड़ कर अपने चैनल के टीआरपी को बढ़ाने का आरोप लग रहा है। जबकि इस मामले में महाराष्ट्र पुलिस द्वारा की जा रही जांच एक स्तर तक आगे बढ़ चुकी है और रिपब्लिक टीवी के हेड अर्णब गोस्वामी के सिर पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है। 

दरअसल अर्णब ने अपने बचाव से संबंधित सारी कोशिशें कर डाली हैं। सबसे पहले वह सुप्रीम कोर्ट गए जहां इससे पहले पालघर समेत दूसरे मामलों में उन्हें राहत मिल चुकी है। लेकिन इस बार सुप्रीम कोर्ट ने उन पर मेहरबानी नहीं दिखायी। और उसने कह दिया कि मुंबई स्थित आपके दफ्तर से चंद कदम की ही दूरी पर बॉम्बे हाईकोर्ट है लिहाजा आप वहां जाएं। मुंबई से दिल्ली आने की भला क्या जरूरत है? उसके बाद अर्णब ने गिरफ्तारी पर रोक और अग्रिम जमानत के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट ने उन्हें कोई राहत नहीं दी। इधर, टीआरपी घोटाले में जांच जहां तक पहुंच गयी है उसमें किसी भी वक्त महाराष्ट्र पुलिस गोस्वामी की गिरफ्तारी कर सकती है।

इस मामले में पहले ही अब तक छह लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। और अर्णब के चैनल से जुड़े कुछ बड़े लोगों से पुलिस पूछताछ भी कर चुकी है। पूछताछ का अगला नंबर अर्णब का है। माना जा रहा है कि पुलिस पूछताछ के लिए बुलाएगी और फिर उन्हें वहीं गिरफ्तार कर लेगी। लिहाजा अर्णब के सामने आयी इस मुसीबत से बचने के सारे रास्ते बंद हो गए थे। ऐसे में अर्णब जिन्होंने पत्रकारिता को चौराहे की पान की दुकान में तब्दील कर देने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी है और जिसके लिए उन्होंने ये सारे धतकरम किए हैं बचाने की जिम्मेदारी अब उसकी थी। लिहाजा केंद्र सक्रिय हो गया। देखते ही देखते लखनऊ के हजरतगंज थाने में एक एफआईआर दर्ज हो गयी। रिपोर्ट अज्ञात लोगों के खिलाफ टीवी में टीआरपी से छेड़छाड़ करने के आरोप में दर्ज हुई। और दर्ज कराने वाला शख्स किसी मीडिया से जुड़ी एडवरटाइजिंग कंपनी चलाता है।

और अभी एफआईआर दर्ज नहीं हुई थी कि यूपी सरकार ने मामले की जांच सीबीआई से कराने की संस्तुति दे दी। न तो किसी ने इसकी मांग की थी और न ही कोई इसमें सीधे शरीक था। लिहाजा यह काम कौन किसके इशारे पर कर रहा था सब कुछ एक रहस्य सरीखा था। जिसका सिर्फ कयास लगाया जा सकता है। लेकिन यह इतना भी कठिन नहीं है कि उसे नहीं जाना जा सके। और अभी सूबे से संस्तुति नहीं आयी थी कि सीबीआई ने उस पर एफआईआर दर्ज कर ली। वह सीबीआई जिसकी एक दौर में साख हुआ करती थी और किसी मामले को लेने का मतलब हुआ करता था कि वह हंस के माफिक दूध का दूध और पानी का पानी कर देगी। लेकिन आज उसे एक सरकार अपने इशारे पर नचा रही है और वह बगैर कोई ना-नुकुर किए नाच रही है।

यह सारा खेल केंद्र ने अर्णब गोस्वामी को बचाने के लिए किया था। जिसका लक्ष्य मामले को सीबीआई को सौंपकर उसे महाराष्ट्र पुलिस के हाथ से छीन लेना था। लेकिन महाराष्ट्र सरकार और उसके मुखिया उद्धव ठाकरे तथा भारतीय राजनीति के कद्दावर नेता शरद पवार तो भांग खाए नहीं हैं कि उन्हें होश ही न हो या फिर जो कुछ हो रहा है उसे देख नहीं पा रहे हों। लिहाजा उन्होंने तत्काल कदम उठाते हुए बीती रात से पहले सीबीआई को अपने राज्य में दी गयी जांच के अधिकार की अनुमति को वापस ले लिया। महाराष्ट्र पहला राज्य नहीं है इसके पहले कई राज्य सीबीआई के रवैये को देखते हुए ऐसा कर चुके हैं। ऐसा हो जाने के बाद सीबीआई के लिए इस मामले को हाथ में लेना मुश्किल हो जाएगा जब तक कि कोर्ट उसके लिए कोई आदेश न दे।

इस तरह से केंद्र की इस मामले में की गयी सारी कवायदों पर पानी फिर गया। और वह बैठी की बैठी रह गयी।

यह पहली बार नहीं हो रहा है जब केंद्र ने ऐसा किया हो। इसके पहले जैसा कि ऊपर बताया गया है सीबीआई चीफ को जबरन छुट्टी भेजने के मामले में आधी रात को हेडक्वार्टर घेरा गया था। और उससे भी पहले सारदा चिटफंड मामले में पश्चिम बंगाल की राज्य सरकार को बगैर विश्वास में लिए सीबीआई उसके एक पुलिस कमिश्नर को गिरफ्तार करने पहुंच गयी थी। जिसमें सीबीआई और बंगाल की पुलिस बिल्कुल आमने-सामने खड़ी हो गयी थीं और फिर बाद में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद मामला ठीक हुआ था।

दरअसल यह केवल पुलिस फोर्स या फिर कुछ संस्थाओं तक ही सीमित नहीं है। केंद्र के दूसरे के अधिकारों पर अतिक्रमण या फिर तानाशाही का रवैया तमाम दूसरे क्षेत्रों और संस्थाओं में भी बेहद नंगे रूप में दिख रहा है। हाल में कृषि से संबंधित संसद में पारित तीन बिलों के साथ भी यही हुआ। अवलन तो कृषि राज्य का मामला है और उससे संबंधित कोई भी कानून उनकी असेंबलियों में बनने चाहिए। लेकिन वहां बनने की बात तो दूर केंद्र ने जब उस पर कानून बनाना शुरू किया तो उसने न राज्य सरकारों से पूछना जरूरी समझा और न ही किसी किसान संगठन से उस पर राय लेना उसे जरूरी लगा। सब कुछ अपने मनमाने तरीके से पास करवाया और पूरे देश पर थोप दिया। जिसका नतीजा यह है कि विधानसभाएं अब उसके खिलाफ प्रस्ताव पारित कर रही हैं और उसे खारिज कर रही हैं। इसके साथ ही संविधान के मुताबिक उस पर अपना कानून बना रही हैं। पंजाब कर चुका है और राजस्थान करने की तैयारी में है। और किसान हैं कि इसके खिलाफ सड़कों पर हैं।

अगर किसी को लगता है कि यह सब कुछ बेमकसद है और इत्तफाकन हो जा रहा है तो उसे फिर से अपने मत पर विचार करने की जरूरत है। दरअसल यह सब कुछ संघ की बड़ी योजना का हिस्सा है। जिसमें इस देश को वह हिंदू राष्ट्र घोषित कर उसे पुरानी वर्ण व्यवस्था के आधार पर चलाना चाहता है। और यह तभी संभव है जब कि संवैधानिक आधार पर खड़ी सारी संस्थाएं अपना वजूद खो दें और बिल्कुल छिन्न-भिन्न हो जाएं। और यह काम तभी पूरा हो सकता है जब उनकी साख को खत्म करने के साथ ही उन्हें आपस में लड़ा दिया जाए। और इस कड़ी में देश की जनता का संविधान, संसद और उसकी सारी संस्थाओं से भरोसा उठ जाए और इस तरह से वे एक प्रक्रिया में अप्रासंगिक हो जाएंगी।

जिसके बाद सामाजिक स्तर पर वर्ण व्यवस्था के तहत पूरा समाज और देश चलने लगेगा। संघ की कोशिश कुछ इन्हीं मंसूबों को लागू करने की है। यह उसका लक्ष्य है। और इसी के साथ संघ की भूमिका पूरी हो जाएगी है। लिहाजा एक लाइन में कहा जाए तो संघ ने इस देश से लोकतंत्र को खत्म करने का संकल्प लिया हुआ है। वह संविधान में दिए गए एक व्यक्ति एक वोट के अधिकार को नहीं मानता है। क्योंकि उसका मानना है कि लोग बराबर नहीं होेते हैं। और जातीय आधार पर देश में किया गया विभाजन ही सर्वश्रेष्ठ है। लिहाजा वह एक बार फिर उसे ही वापस लाने के लिए तत्पर है। 

(महेंद्र मिश्र जनचौक के संपादक हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of

guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest News

मनरेगा को मारने की मोदी सरकार की साजिशों के खिलाफ खेग्रामस करेगा देशव्यापी आंदोलन, 600 रु दैनिक मजदूरी की मांग

पटना 30 मार्च 2023। अखिल भारतीय खेत एवं ग्रामीण मजदूर सभा (खेग्रामस) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के उपरांत...

सम्बंधित ख़बरें