Wednesday, April 24, 2024

राष्ट्र के नाम संबोधन: दर्शन और उपदेश देकर चले गए प्रधानमंत्री जी

दिल-दिमाग लाख मना करे, लेकिन प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम संबोधन सुनना ही पड़ता है, आखिर वे देश के मालिक जो ठहरे। कहने को भारत में लोकतंत्र है, संसद, कैबिनेट, नौकरशाही, न्याय पालिका और तमाम तथाकथित स्वायत्त लोकतांत्रिक संस्थाएं हैं और अपने को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहने वाली मीडिया भी है, लेकिन सच यह है कि आज पूरा देश एक व्यक्ति की मुट्ठी में है, उस व्यक्ति का नाम है- नरेंद्र दामोदर दास मोदी। पहले उनका अवतरण चाय बेचने वाले के रूप में हुआ, फिर चौकीदार बन गए, बीच में खुद को फकीर कहने लगे और आजकल बीच-बीच में राष्ट्र को संबोधन के नाम पर टीवी पर दर्शन देने और रेडियो पर मन की बात कहने आ जाते हैं और भक्तों को दर्शन लाभ देकर और अपने उपदेश से कृत-कृत करके चले जाते हैं।

इस बार भी प्रधानमंत्री जी ने करीब 15 मिनट तक दर्शन देने की कृपा की, बहुत सारे उपदेश दिए, खुद की पीठ थपथपाई और पहुंचे हुए संत-कुछ-कुछ ईश्वर जैसी मुद्रा में आशीर्वाद देकर चले गए। गरीबों के लिए कितना कुछ उन्होंने किया और क्या करने वाले हैं इसके आंकड़े भी प्रस्तुत किए। ऐसा लगा जैसे दर्शन दे कर भारत की 1 अरब 30 करोड़ जनता को कृत कृत करने आए हों।

कल जब सूचना आई कि प्रधानमंत्री राष्ट्र को संबोधित करने वाले हैं, तो बहुतों का लगा कि शायद वे देश को चीन के साथ सीमा पर तनातनी की स्थिति के संदर्भ में अवगत कराएंगे, लोगों के मन में उठ रहे प्रश्नों एवं आशंकाओं को दूर करेंगे, कोरोना से निपटने और स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली से हो रही मौतों को रोकने के लिए कुछ ठोस उपायों की घोषणा करेंगे और बदहाल अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के उपायों के बारे में कुछ बात करेंगे।

लेकिन पूरा भाषण खोदा पहाड़ निकली चुहिया जैसा। यह समझ में भी नहीं आ पाया कि आखिर प्रधानमंत्री राष्ट्र को संबोधित करने क्यों आए थे, क्या सिर्फ यह बताने आए थे कि आप लोग कोरोना के खिलाफ संघर्ष में लापरवाही कर रहे हैं, जिसका जिक्र बार-बार प्रधानमंत्री ने किया, लेकिन कोरोना मरीजों के साथ सरकार की तरफ से भी कोई लापरवाही हुई या हो रही है, इसका कोई जिक्र प्रधानमंत्री ने नहीं किया। वैसे भी कोई कमी या गलती स्वीकार करना हमारे प्रधानमंत्री की फितरत में शामिल नहीं है। संत-महात्मा, फकीर और भगवान से कहां गलती होती है।

गरीबों की सहायता के लिए किए गए उपायों का जो दावा प्रधानमंत्री ने किया, उसमें अधिकांश तथ्यात्मक तौर पर संदिग्ध लगते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि 80 करोड़ लोगों को प्रति महीने 5 किलो गेंहू या चावल मिल रहा है और साथ में एक किलो दाल भी। पिछले दिनों हुए विभिन्न सर्वे इस तथ्य की पुष्टि नहीं करते। वैसे भी हमारे प्रधानमंत्री को तथ्यात्मक झूठ बोलने में भी कोई हिचक नहीं होती है, क्योंकि वे अक्सर अपने मनोभाव प्रकट करते हैं, तथ्यों पर आधारित बातें बहुत कम करते हैं। यदि कोई साफ झूठ भी बोल देते हैं, तो उनके प्रवक्ता और टीवी के एंकर एवं विशेषज्ञ उसकी कोई व्याख्या कर देते हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि 80 करोड़ लोगों को 5 किलो गेंहू या 5 किलो चावल ( प्रति व्यक्ति) दिया जा रहा है और इस पर अब तक 90 हजार करोड़ से ज्यादा खर्च हो गया है, प्रथम दृष्ट्या यह तथ्यात्मक तौर पर सही नहीं लगता है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के संदर्भ में 1 लाख 17 हजार के जिस पैकेज की बात प्रधानमंत्री ने की उसकी सच्चाई की जांच की जानी अभी बाकी है। उन्होंने कहा कि 31 हजार करोड़ रूपया 20 करोड़ लोगों के जन-धन खाते में गया है यह कितना सच है, इसे पता लगाने की जरूरत है।

प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए अन्य आंकड़ों पर बिना जांच-पड़ताल के भरोसा नहीं किया जा सकता है, क्योंकि ये वही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं, जिन्होंने जीडीपी के 10 प्रतिशत यानि 20 लाख हजार करोड़ के राहत पैकेज की घोषणा की ती। जब इसकी सच्चाई सामने आई तो पता चला कि वास्तव में जीडीपी का सिर्फ 0.97 प्रतिशत यानि सिर्फ 1 लाख 90 हजार करोड़ का ही वास्तविक राहत पैकेज है। कहां 10 प्रतिशत यानि 20 लाख हजार करोड़ और कहां 1 लाख 90 हजार करोड़ यानि 0.9 प्रतिशत। जो प्रधानमंत्री ऐसी बाजीगरी कर सकता हो, उसके आंकड़ों पर क्यों और कैसे भरोसा किया जाए। आंकड़ों की ऐसी बाजीगरी प्रधानमंत्री कई बार कर चुके हैं। इसलिए इस बार भी उनके आंकड़ों पर भरोसा कैसे किया जाए। 

हां प्रधानमंत्री जी अप्रत्यक्ष तौर ही सही बार-बार लोगों की कोरोना के संदर्भ में लापरवाहियों का जिक्र करके कोरोना के फैलने और उसने निपटने में सरकार की और खुद की नाकामियों को छिपा लिया और साथ ही भविष्य में अपनी नाकामियों को छिपाने का रास्ता भी तलाश लिया।

यह देश धन्य है, जिसे ईश्वर तुल्य प्रधानमंत्री प्राप्त हुआ है, जो दर्शन और उपदेश देने टीवी पर आता रहता है और मन की बात कहने रेडियो पर। 

(डॉ. सिद्धार्थ जनचौक के सलाहकार संपादक हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles