Tuesday, April 23, 2024

‘द वायर’ के संपादकों के घर दिल्ली पुलिस के छापे, जब्त किया मोबाइल-लैपटॉप

दिल्ली पुलिस ने सोमवार को न्यूज पोर्टल द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन व एम के वेणु के घरों की तलाशी ली। यह तलाशी बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय की एफ़आईआर के बाद ली गई है। मालवीय ने द वायर की एक रिपोर्ट को लेकर कुछ दिन पहले ही एफ़आईआर दर्ज कराई है। टेक कंपनी मेटा से जुड़ी उस रिपोर्ट को द वायर ने अपनी वेबसाइट से हटा लिया है। उस रिपोर्ट पर कई सवाल खड़े हुए थे।यह तलाशी क्राइम ब्रांच द्वारा नई दिल्ली स्थित सिद्धार्थ वरदराजन, एमके वेणु, डिप्टी एडिटर और एग्जीक्यूटिव न्यूज़ प्रोड्यूसर जाह्नवी सेन और मुंबई में रहने वाले सिद्धार्थ भाटिया के घर पर की गई।

दिल्ली स्थित सिद्धार्थ वरदराजन के घर पर पुलिस की टीम सोमवार शाम करीब 4:10 बजे पहुंची और करीब तीन घंटे बाद 7 बजे वहां से वापस गई। तलाशी के बाद पुलिस ने सिद्धार्थ के दो मोबाइल फोन, एक लैपटॉप और एक आईपैड को जब्त कर लिया, साथ ही उनकी निजी और कंपनी ईमेल आईडी का पासवर्ड भी पुलिस ने ले लिया। पुलिस ने कहा है कि वे उनके उपकरणों की जाँच करेंगे और सबूत जुटाएँगे। पुलिस ने यह भी कहा कि किसी को हिरासत में नहीं लिया गया है। दिल्ली पुलिस ने यह तलाशी आईपीसी की धारा 91 के तहत की, जिसके तहत दस्तावेज और अन्य सामान प्रस्तुत करने का समन भेजा जाता है ।

तलाशी को लेकर वरदराजन ने बताया कि पत्रकारिता में एक प्रकाशन संस्था से कोई गलती हुई जिसे उसने स्वीकारा है, वापस लिया है और उसके लिए माफी भी मांगी है । उसे अपराध में बदलने की कोशिश पूरे भारतीय मीडिया के लिए एक चेतावनी होनी चाहिए। वरदराजन ने चिंता जताते हुए कहा कि जब्त इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की हैश वैल्यू को उनके साथ साझा नहीं किया गया । उन्होंने कहा, कि हमने पुलिस से इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के हैश वैल्यू को साझा करने के लिए कहा है, लेकिन उन्होंने अभी तक हमें हैश वैल्यू नहीं दी है। पुलिस ने कहा कि वह बाद में देंगे । हमारे उपकरण वापस करने के बारे में भी कुछ नहीं बताया।

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 के मुताबिक जब्त किए गए इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के हैश वैल्यू को फोरेंसिक विश्लेषण के लिए भेजे जाने से पहले लिया जाना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उसके साथ कोई छेड़छाड़ न हो । किसी इंसान की उंगलियों के निशानों की तरह ही हर उपकरण की हैश वैल्यू भी अलग-अलग होती है । डिजिटल उपकरण में कोई दस्तावेज या फाइल डालने या निकलने या छेड़छाड़ से यह वैल्यू बदलती है, जिससे उपकरण के साथ हुई छेड़छाड़ का पता चल जाता है ।

इससे पहले बीते सप्ताह द वायर ने मेटा को कटघरे में खड़ा करने वाली अपनी रिपोर्ट्स को वापस ले लिया था । साथ ही रिपोर्ट्स में हुई भूल के लिए माफी भी मांगी थी । द वायर द्वारा रिपोर्ट्स को वापस लिए जाने के एक दिन बाद अमित मालवीय की शिकायत पर दिल्ली पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी), 468, 469(फर्जीवाड़ा), 471(ठगी), 500(मानहानि), 120 बी(आपराधिक साजिश) और धारा 34(आपराधिक गतिविधि) के तहत केस दर्ज कर लिया ।मालवीय ने अपनी शिकायत में कहा था कि द वायर ने फर्जी दस्तावेजों के जरिए उनकी छवि और प्रतिष्ठा को धूमिल करने की कोशिश की है ।

एक ओर दिल्ली पुलिस ने द वायर और उसके संपादकों के खिलाफ मामला दर्ज किया है । दूसरी तरफ द वायर ने इस विवाद के केंद्र में रहे अपने रिसर्चर देवेश कुमार के खिलाफ भी पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है ।देवेश के खिलाफ पुलिस में शिकायत देने के बाद भी अभी तक एफआईआर दर्ज नहीं हुई है, जबकि मालवीय की शिकायत पर एक दिन में ही एफआईआर दर्ज हो गई ।

 दरअसल द वायर ने बीजेपी के आईटी सेल के हेड अमित मालवीय को लेकर रिपोर्ट प्रकाशित की थी। उस रिपोर्ट के अनुसार इंस्टाग्राम एकाउंट की कुछ पोस्ट को बिना किसी वेरिफिकेशन के केवल इस वजह से हटाने का दावा किया गया कि इसे अमित मालवीय ने रिपोर्ट किया था। ‘द वायर’ की रिपोर्ट में कहा गया था कि मेटा के विवादित क्रॉसचेक प्रोग्राम के तहत मालवीय को विशेषाधिकार प्राप्त था। मालवीय को यह अधिकार था कि अगर कोई बात या सामग्री बीजेपी या सरकार विरोधी है तो शिकायत कर उसे वो हटवा सकते थे। साथ ही उन्हें यह भी अधिकार प्राप्त था कि अमित मालवीय इंस्टाग्राम पर नियम विरुद्ध कुछ भी प्रकाशित करें। हालाँकि मेटा ने द वायर के इन आरोपों का खंडन किया था। इन घटनाक्रमों के बाद ही द वायर ने उन सभी रिपोर्टों को हटा लिया था।

शिकायत के अनुसार, देवेश अप्रैल 2021 और जुलाई 2022 के बीच द वायर के साथ एक सलाहकार के रूप में कार्यरत थे । द वायर ने आरोप लगाया कि उन्होंने सिंगापुर स्थित एक वरिष्ठ इंस्टाग्राम कार्यकारी से एक ईमेल “गढ़ा” जिससे उनके सहयोगियों को विश्वास हो गया कि यह एक वैध स्रोत था। पहली मेटा स्टोरी, जो मालवीय के बारे में थी, 10 अक्टूबर को द वायर की डिप्टी एडिटर जाह्नवी सेन की बायलाइन के तहत प्रकाशित हुई थी। 11 अक्टूबर को अगली कहानी सेन और सिद्धार्थ वरदराजन ने लिखी थी। दो स्रोत थे – ए और बी। स्रोत ए ने द वायर को घटना के बाद की रिपोर्ट दी; स्रोत बी ने उन्हें मेटा के संचार निदेशक एंडी स्टोन से एक ईमेल दिया।

न्यूजलांड्री से जुड़ी कंपनी डिजिपब ने द वायर की छापेमारी की निंदा की है और कहा है कि दिल्ली और मुंबई में द वायर के कार्यालय और उसके संपादकों के घर, डिजीपब न्यूज इंडिया फाउंडेशन ने मानहानि की एक निजी शिकायत के आधार पर मनमानी कार्रवाई, में दुर्भावनापूर्ण इरादों की बू आती है। एक बयान में कंपनी ने कहा है कि गोपनीय और संवेदनशील डेटा को जब्त करने और उसकी नकल करने के लिए इन खोजों के बहाने के रूप में इस्तेमाल के खतरे को खारिज नहीं किया जा सकता है।

फाउंडेशन ने कहा है कि एक पत्रकार या एक मीडिया संगठन जो झूठी रिपोर्ट प्रकाशित करता है, उसे उसके साथियों और नागरिक समाज द्वारा जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। लेकिन पुलिस के लिए मीडिया हाउस के कार्यालय और उसके संपादकों के घरों की तत्काल और मनमानी तलाशी लेना, पूरी तरह से सत्ताधारी पार्टी के एक प्रवक्ता द्वारा दायर मानहानि की एक निजी शिकायत के आधार पर, दुर्भावनापूर्ण इरादों की बू आती है।

फाउंडेशन ने कहा है कि किसी भी निष्पक्ष जांच को कानून के शासन का पालन करना चाहिए, यह भारत में पत्रकारिता की पहले से ही खराब स्थिति को खराब करने का एक उपकरण नहीं बन सकता है, जो कि मीडिया की स्वतंत्रता और लोकतंत्र के वैश्विक सूचकांकों में लगातार गिरावट आई है। हमने हाल के ऐसे कई उदाहरण देखे हैं जहां पुलिस द्वारा आपराधिक मुकदमा चलाने और उत्पीड़न ने पत्रकारों को अपना काम करने से धमकाया और रोका है।

कंपनी ने कहा कि वह ऐसे छापों  की वह कड़ी निंदा करती है जो मुख्य रूप से भारत में पत्रकारिता के पेशे के खिलाफ अपराधीकरण और एक ठंडा प्रभाव पैदा करने के उद्देश्य से काम करता है।

6 अक्टूबर 2022 को द वायर ने सूचना दी कि कई व्यंग्यपूर्ण इंस्टाग्राम कहानियां “क्रिंगेटोपिया के सुपरह्यूमन” को 19 सितंबर को मंच के सामुदायिक दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने के लिए हटा दिया गया था। यह अकाउंट काफी अकादमिक भाषा में सामाजिक और राजनीतिक व्यंग्य करता है, लेकिन इसके पोस्ट अक्सर हिंदुत्व समूहों और नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना करते हैं, कुछ मीम्स में हिंदुत्व की तुलना नाज़ीवाद से की जाती है।

 द वायर द्वारा प्रकाशित कहानी विशेष रूप से एक इंस्टाग्राम स्टोरी पर केंद्रित है, जिसमें एक अयोध्या निवासी को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ की मूर्ति की पूजा करते हुए एक वीडियो का मजाक उड़ाया गया था।द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, इस इंस्टाग्राम स्टोरी को, अन्य पोस्ट के अलावा, अपलोड होने के कुछ ही मिनटों के भीतर हटा लिया गया था, यह सवाल उठाते हुए कि क्या मॉडरेशन के ये उदाहरण एल्गोरिदम की करतूत थी, या इसमें मानवीय हस्तक्षेप शामिल था।

(जनचौक ब्यूरो की रिपोर्ट।)

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