एग्जिट पोल के आंकड़े आने शुरू हो चुके हैं। कल तक कांग्रेस पार्टी की ओर से कहा जा रहा था कि वह एग्जिट पोल के साथ जुड़ी किसी भी टीवी डिबेट में हिस्सा नहीं लेगी, और अपना सारा ध्यान 4 जून को मतगणना और उसके बाद की प्रकिया पर केंद्रित रखेगी। लेकिन आज शाम इंडिया गठबंधन की बैठक में शामिल 26 राजनीतिक दलों की बातचीत के दौरान इस बात पर सहमति बनी कि इंडिया गठबंधन एग्जिट पोल और उसको लेकर होने वाली चर्चा में हिस्सा लेगा।
बता दें कि कल 31 मई को इंडिया गठबंधन के मुख्य घटक दल कांग्रेस पार्टी के प्रचार की कमान संभाल रहे पवन खेड़ा ने एक्स पर जारी अपने बयान में कहा था, “मतदाताओं ने अपना वोट मतपेटी में डाल दिया है और उनका फ़ैसला सुरक्षित है। चार जून को नतीजे आ जाएंगे। उससे पहले हम किसी प्रकार की कयासबाज़ी और टीआरपी की दौड़ में शामिल होने की कोई वजह नहीं देखते।” कांग्रेस पार्टी का कहना है कि 4 जून तक पार्टी टीवी पर किसी प्रकार की बहस में हिस्सा नहीं लेने जा रही है। कांग्रेस का स्पष्ट मानना है कि किसी भी बहस का मक़सद आम लोगों को जागरूक करना होना चाहिए। चार जून के बाद हम बहस में हिस्सा लेंगे।
कांग्रेस के इस फ़ैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए गृह मंत्री अमित शाह का जवाब था, “चुनाव के दौरान विपक्ष दावा करता रहा कि उन्हें बहुमत मिल रहा है। लेकिन वो जानते हैं कि एग्ज़िट पोल में उनकी बुरी तरह हार होने जा रही है। इसीलिए वे एग्ज़िट पोल की पूरी प्रक्रिया को ही ख़ारिज कर रहे हैं।” वहीं दूसरी तरफ बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक्स पर लिखा है कि कांग्रेस का एग्ज़िट पोल में हिस्सा न लेना यह बताता है कि कांग्रेस ने अपनी हार स्वीकार कर ली है। लेकिन आज इंडिया गठबंधन की बैठक से निकला फैसला कल के बयान से विपरीत है, जो बताता है कि इंडिया गठबंधन के बीच मुख्यधारा की राजनीति को लेकर अभी तक एक राय नहीं बन पाई है।
शाम 7 बजे तक जारी चार पोलस्टर ने अपने एग्जिट पोल में जो भविष्यवाणी की है, उसे चुनाव पूर्व पोल ओपिनियन की तर्ज पर पेश कर एक बार फिर से साबित कर दिया है कि भारत में गोदी मीडिया और तमाम चुनावी पूर्वानुमान लगाने वाले पोलस्टर दरअसल नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार की ही वापसी के लिए जमीन को तैयार करने का साधन बने हुए हैं। इनमें से सभी ने एनडीए के पक्ष में 350-390 सीटों पर जीत का दावा किया है। इंडिया गठबंधन के लिए 125 और अधिकतम 161 सीट की बात कही जा रही है। अभी तक इंडिया न्यूज-डी-डायनेमिक्स, जन की बात, रिपब्लिक भारत-मैट्रिज और रिपब्लिक टीवी-पी मार्क जैसे पोलस्टर के पूर्वानुमान जारी हुए हैं। सबसे हास्यास्पद कर्नाटक का एग्जिट पोल है, जिसमें एनडीए के पक्ष में 25-26 सीट पर जीत का दावा किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में भी भाजपा और गठबंधन के लिए 69-72 सीटों पर जीत के दावे किये जा रहे हैं।
क्या एग्जिट पोल के ये अनुमान 4 जून को होने वाली मतगणना को प्रभावित करने के लिए एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किये जा रहे हैं, या वास्तव में मतदाताओं ने तीसरी बार पहले से भी अधिक जनादेश भाजपा और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को देने का फैसला किया है? क्या पहले चरण से आम मतदाताओं के बीच में सत्तारूढ़ दल के प्रति नाराजगी, क्षत्रियों का खुलेआम विद्रोह का ऐलान, आम मतदाता के महंगाई, बेरोजगारी और अग्निवीर पर विक्षोभ असल में एक छलावा था, और उसने इस बार भी जमकर भाजपा के पक्ष में जनादेश दिया है? मोदी मैजिक के हवा हो जाने की बातें झूठ थीं, या जो कुछ अब एग्जिट पोल के नाम पर परोसा जा रहा है वह एक सफेद झूठ है, जिससे माहौल बनाकर असल मतगणना को प्रभावित करने के लिए एक बड़ी साजिश की तैयारी चल रही है?
ये कुछ सवाल हैं, जो देश में हर लोकतांत्रिक एवं अमनपसंद भारतीय के दिल में अगले कुछ दिनों तक भारी बैचेनी पैदा करने के लिए पर्याप्त हैं। प्रसिद्ध पत्रकार रवीश कुमार ने एग्जिट पोल को लेकर कहा है, “गोदी मीडिया पूरे साल भर पत्रकारिता करने के नाम पर कूड़ा परोसता है, लेकिन आज के दिन आप उन्हें पत्रकार समझकर ‘एग्जिट पोल’ देख रहे होगे।”
कांग्रेस ही नहीं, उसके साझीदार दल समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने भी अपनी टिप्पणी में कहा था, “भाजपाई मीडिया के ‘झूठे एग्जिट पोल’’ के बहाने धांधली करना चाहते हैं। आप सभी लोग ‘स्ट्रॉन्ग रूम’ के बाहर चौकन्ना रहें। कुछ ऐसा ही बयान राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव की ओर से भी आया था। फिर इंडिया गठबंधन की बैठक में ऐसा क्या हुआ कि बैठक से निकलकर इंडिया गठबंधन को 24 घंटे पहले दिए गये अपने बयानों को वापस लेना पड़ा?
निश्चित रूपसे आज 1 जून से देश की राजधानी में राजनीतिक सरगर्मियां काफी तेज हो चुकी हैं। शाम 5 बजे से जारी एग्जिट पोल देश के सियासी पारे को अचानक से गर्म करने के लिए काफी हैं। 100 करोड़ नागरिकों के मताधिकार का समय खत्म हो चुका है, और स्ट्रांगरूम में कैद इन मतों को निष्पक्ष ढंग से गिना जाये, इसको लेकर पूरा देश सांस रोके खड़ा है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी भी कन्याकुमारी के अपने 45 घंटे के ध्यान को पूरा कर दिल्ली लौट रहे होंगे, और निश्चित रूप से एग्जिट पोल की भविष्यवाणी अपने अनुरूप पाकर दिल बल्लियों उछल रहा होगा।
‘अच्छे दिन’ और ‘गुजरात मॉडल’ की लहर पर 2014 में सत्ता में पूर्ण बहुमत से आने वाली भाजपा के लिए 2019 में पुलवामा और बालाकोट प्रकरण एक बड़ी नियामत बनकर आया, और मोदी सरकार पहले से भी बड़े बहुमत से सरकार बनाने में सफल रही थी। ऐसी मान्यता है कि भाजपा की जीत में लहर का होना आवश्यक है। लेकिन 2024 में ऐसी कोई लहर नहीं बन सकी। पिछले वर्ष 5 राज्यों में हुए विधान सभा चुनावों में हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में भाजपा की जीत और जी-20 की अध्यक्षता और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण से सत्तारूढ़ भाजपा आश्वस्त थी कि देश में सत्ता विरोधी लहर नहीं है।
लेकिन 19 अप्रैल 2024 को पहले चरण के मतदान के बाद से जैसे-जैसे चरणबद्ध चुनाव आगे बढ़ा, 10 वर्ष की एंटी इनकंबेंसी उत्तरोत्तर मुखर होती चली गई। महंगाई, बेरोजगारी और अग्निवीर के मुद्दे पर समाज के विभिन्न हिस्सों से तीखी प्रतिक्रिया ने मोदी मैजिक की हवा निकाल दी। इससे पहले भी भाजपा के लिए नरेंद्र मोदी उनका सबसे बड़ा ट्रम्प कार्ड थे, लेकिन 2024 आम चुनाव तो सीधे मोदी के नाम पर लड़ा जा रहा था। राजनीतिक पंडितों के लिए अभी इस पहेली का गहन विश्लेषण करना शेष है कि आखिर इतने कम अंतराल में मोदी मैजिक की हवा कैसे निकल गई?
लेकिन यह भी सच है कि अधिकांश मानकर चल रहे हैं कि इस बार हार की सूरत में सत्तारूढ़ दल आसानी से गद्दी नहीं छोड़ने जा रही है। इसके पीछे कुछ मजबूत तर्क हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पति और राजनीतिक अर्थशास्त्री परकला प्रभाकर ने अपने कई बयानों में खुलकर कहा है कि मोदी शासन ने पिछले 10 वर्षों के दौरान जितने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और राजनीतिक कदाचार किया है, सत्ता च्युत होने की सूरत में उसे दोबारा इस मुकाम को हासिल कर पाने में कई दशक लग सकते हैं। विमुद्रीकरण, पीएम केयर्स फण्ड, राफेल विमान खरीद, इजराइल से जासूसी सॉफ्टवेर पैगासस की खरीद सहित इलेक्टोरल बांड्स के जरिये हजारों करोड़ रूपये का भ्रष्टाचार जैसे तमाम मामले हैं, जो भाजपा-आरएसएस के राजनीतिक भविष्य को उसी तरह एक बार फिर रसातल में ले जाने की सामर्थ्य रखते हैं, जैसा महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस और उसके विभिन्न संगठनों को झेलना पड़ा था।
सातों चरण के दौरान सत्ता पक्ष और विशेषकर स्वंय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से अपना चुनावी अभियान चलाया गया, उससे साफ़ था कि भाजपा के पास इस चुनाव में कोई स्पष्ट एजेंडा नहीं है। उसका समूचा चुनावी अभियान कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र को हिंदू विरोधी साबित करने पर खर्च हो गया। आम तौर पर इससे पहले किसी भी सत्तारूढ़ दल ने आसन्न हार के डर से इतना खराब चुनावी अभियान नहीं चलाया है। सभी ने जनादेश के प्रति सम्मान दिखाते हुए भारतीय लोकतंत्र की मर्यादा को अच्छुन्न रखा था। याद कीजिये, आपातकाल के बाद जब समूचे उत्तर भारत से मतदाताओं ने इंदिरा गांधी को पूरी तरह से नकार दिया था, तो उन्होंने बगैर कोई समय गंवाए पद से इस्तीफ़ा देकर अपनी हार को सहर्ष स्वीकार किया था। इंदिरा गांधी को पता था कि उनके खिलाफ राजनीतिक बदले की कार्रवाई की जा सकती है, लेकिन वे जानती थीं कि उन्होंने राजनीतिक ज्यादती की है, लेकिन सायास कोई सांप्रदायिक एजेंडा या ध्रुवीकरण को अंजाम नहीं दिया था।
लेकिन मौजूदा निज़ाम ने न सिर्फ पिछले दस वर्षों से अघोषित आपातकाल लागू कर रखा था, बल्कि देश में विभाजनकारी एजेंडा को आगे बढ़ाते हुए करीब 20 करोड़ की आबादी वाले मुस्लिम समुदाय को दोयम दर्जे का नागरिक बना डाला है। 2019 के बाद कश्मीर और मणिपुर की जनता को जिस विभाजनकारी नीति का शिकार होना पड़ा है, उसकी दूसरी मिसाल देखने को नहीं मिलती है। ब्रूट मेजोरिटी और उग्र हिंदुत्ववाद की सवारी गांठ, इस सरकार ने कॉर्पोरेट परस्त नीतियों को जारी रखते हुए तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को पारित कराने का दुस्साहस किया, जिसके खिलाफ देश के किसानों ने अभूतपूर्व विरोध प्रदर्शन को अंजाम दिया।
पहले और दूसरे चरण के मतदान के बाद चुनाव आयोग को अंतिम मत प्रतिशत की जानकारी साझा करने में क्रमशः 11 और 4 दिन लगे। मतदान प्रतिशत में भी भारी उछाल संदेह को जन्म देती है। नागरिक समाज से जुड़े विभिन्न संगठनों और विपक्षी दलों की ओर से जब इस मुद्दे पर राष्ट्रीय बहस छिड़ी, तब जाकर चुनाव आयोग ने एक दिन में ही दोनों चरण के अंतिम मत प्रतिशत की सूचना जारी की थी। लेकिन इसके बाद भी देश ने देखा कि चुनाव आयोग कुल मतों की संख्या और प्रत्येक बूथ पर अंतिम मत संख्या को सार्वजनिक करने के लिए तैयार नहीं हुआ। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (एडीआर) इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक गया, लेकिन अपने जवाब में चुनाव आयोग ने इन जानकारियों को साझा न करने के पीछे जो वजहें गिनाईं, उसे देख हर कोई हैरान था।
प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया ने भी प्रत्येक चरण के अगले दिन चुनाव आयोग के द्वारा आयोजित की जाने वाली प्रेस कांफ्रेंस की परंपरा का हवाला देते हुए, मौजूदा आयोग से अनुरोध किया था कि वह पांचवे चरण से इस परंपरा का निर्वहन करे। लेकिन चुनाव आयोग ने इस अनुरोध को भी ठुकरा दिया।
ये सारे तथ्य इस बात की ओर इशारा करते हैं ईवीएम मतपेटियों को सुरक्षित रखने से लेकर 4 जून के दिन मतगणना और वोटों की गिनती में हेराफेरी को रोकने के लिए विपक्ष ही नहीं नागरिक समाज भी आज सशंकित है। नागरिक समाज ने तो काफी पहले से इस बारे में अपनी चिंता व्यक्त कर दी थी। देश के विभिन्न हिस्सों से चुनाव आयोग के नाम पोस्ट कार्ड जारी कर आयोग से अपनी रीढ़ मजबूत रखने वरना इस्तीफ़ा देने की मांग के साथ हजारों की संख्या में पत्र प्रेषित किये जा चुके हैं।
पिछले दिनों 120 से अधिक नागरिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने नई दिल्ली में मिलकर निष्पक्ष मतगणना की प्रकिया को सुनिश्चित कराने के लिए एक बैठक आयोजित की थी, जिसमें काउंटिंग एजेंट को किन-किन बातों के प्रति सजग रहना चाहिए से लेकर चुनावी प्रकिया के लिए विभिन्न क़ानूनी पहलुओं से अवगत कराने का काम किया गया।
सिविल सोसाइटी ग्रुप की ओर से आज लोकसभा चुनाव के लिए 4 जून की मतगणना प्रक्रिया की निगरानी करने के लिए ‘नागरिक निगरानी’ की घोषणा की गई है। इन समूहों की ओर से एक संयुक्त बयान जारी कर कहा गया है कि मौजूदा चुनावों में भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) जैसी वैधानिक संस्था की ओर से ‘अनुकरणीय आचरण’ में कमी देखने को मिली है। इससे पहले सिविल सोसाइटी की ओर से इस माह बेंगलुरु और दिल्ली में नागरिक समाज समूहों और राजनीतिक दलों की दो बैठकें की जा चुकी थीं। बयान में आगे कहा गया है कि मतगणना की प्रकिया में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी और मतदान प्रकिया में अधिकारियों या नेताओं के द्वारा किये गये दुर्व्यहार की शिकायत तत्काल दर्ज करने के लिए एक सुव्यवस्थित नागरिक निगरानी का आयोजन किया जाएगा।” मतगणना के दिन ‘सतर्क मतदाता कार्य बल’ गठित करने की योजना भी बनाई गई है। विपक्षी राजनीतिक दलों के साथ मिलकर मतगणना एजेंटों को शामिल कर मतों की व्यवस्थित गणना को सुनिश्चित करने की बात भी समूह के द्वारा की गई है।
ये समूह 4 जून को विपक्षी राजनीतिक दलों के साथ मिलकर काम करने के लिए सतर्क टास्क फोर्स का गठन करेंगे, ताकि मतगणना एजेंटों को एक व्यवस्थित, चरणबद्ध तरीके से मतगणना प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित किया जा सके, जो शासन द्वारा किसी भी तरह की धमकी और धमकाने वाली रणनीति के तहत जल्दबाजी में न की जाए। इसके साथ ही पूरे देश भर में संवेदनशील बूथों पर नागरिकों को संगठित किया जाएगा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मतगणना प्रक्रिया कानून एवं नियमबद्ध ढंग से स्वतंत्र और निष्पक्ष हो। नागरिकों की यह भागीदारी मतगणना केंद्रों के बाहर राज्यवार देखने को मिलेगी।
नागरिक संगठन की ओर से हस्ताक्षर करने वालों में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ की सैयदा हामिद, बेंगलुरु से राजनीतिक-अर्थशास्त्री परकला प्रभाकर, सुधीर वोम्बटकेरे, धनंजय, सीपीआई-एम के हन्नान मोल्लाह और संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के दर्शन पाल सहित कई कार्यकर्ता शामिल हैं।
नागरिक समूह की ओर से कहा गया गया है कि निष्पक्ष मतगणना को सुनिश्चित करने और प्रभावी बनाने के लिए चार हेल्पलाइन नंबर (उत्तर भारत के लिए दो और दक्षिण भारत के लिए दो) स्थापित किए जाएंगे, ताकि जमीनी स्तर से आने वाली शिकायतों को दर्ज किया जा सके और उनका त्वरित जवाब दिया जा सके। इन हेल्पलाइन नंबरों को जल्द ही चालू कर दिया जायेगा और इनका व्यापक प्रचार किया जाएगा।”
एग्जिट पोल के इस तमाशे से अलग 4 जून को वास्तविक मतगणना के दौरान संयुक्त विपक्ष और आम मतदाता जनादेश की सुरक्षा और सम्मान के लिए किस स्तर तक खुद को तैयार कर रहा है, इसी बात पर अब लोकतंत्र और संविधान की आत्मा टिकी है।
(रविंद्र पटवाल लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)