Thursday, April 18, 2024

अस्मिता की राजनीति ने कांग्रेस और नरसिंहराव के बीच की दूरी मिटाई

देश में परवान चढ़ चुकी अस्मिता की राजनीति के चलते आखिरकार दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव और कांग्रेस के बीच की दूरी मिट गई। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने पूर्व प्रधानमंत्री और अपनी पार्टी के अध्यक्ष रहे नरसिंह राव को उनके जन्म शताब्दी वर्ष की शुरुआत के मौके पर शिद्दत से याद करते हुए उनके साहसिक नेतृत्व और योगदान की सराहना की है। तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस कमेटी की ओर से जन्म शताब्दी वर्ष की शुरुआत के मौके पर आयोजित समारोह के लिए भेजे गए संदेश में दोनों नेताओं ने कहा कि प्रधानमंत्री के रूप में नरसिंह राव के साहसिक नेतृत्व में देश ने कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल कीं, जिनसे आधुनिक भारत को नया आकार मिल सका।

यह पहला मौका है जब पीवी नरसिंह राव के बारे में कांग्रेस के प्रथम परिवार ने इस तरह के उद्गार व्यक्त किए हों, अन्यथा इससे पहले तक सिर्फ गांधी परिवार ही नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के वे तमाम नेता भी नरसिंह राव से दूरी बरतते रहे हैं, जो कभी उनके बेहद करीबी और उनकी सरकार में मंत्री हुआ करते थे। माना जाता है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद नरसिंह राव से गांधी परिवार के रिश्ते सहज नहीं रह गए थे। कई कारणों से नरसिंह राव और गांधी परिवार के रिश्तों में खटास आ गई थी। इसीलिए उनके प्रधानमंत्री पद से हटने और पार्टी की कमान सोनिया गांधी के संभाल लेने के बाद कांग्रेस के नेताओं से उनसे दूरी बना ली थी।

पूर्व प्रधानमंत्री से गांधी परिवार की नाराजगी इस हद तक थी कि जब उनका निधन हुआ था तो उनके पार्थिव शरीर को सम्मान स्वरूप न तो कांग्रेस मुख्यालय लाया गया और न ही उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में किया गया। यहां तक कि हैदराबाद में हुए अंतिम संस्कार में भी गांधी परिवार का कोई सदस्य शामिल नहीं हुआ, जबकि स्वाधीनता संग्राम के दौर से लेकर आजीवन कांग्रेसी रहे नरसिंह राव पूरे पांच साल तक देश के प्रधानमंत्री और कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष भी रहे। यही नहीं, उन्होंने इंदिरा गांधी और राजीव गांधी का भी बेहद करीबी और विश्वासपात्र रहते हुए उनकी सरकारों में महत्वपूर्ण मंत्रालयों का दायित्व संभाला।

बहरहाल, नरसिंह राव के जन्म शताब्दी समारोह के मौके पर न सिर्फ सोनिया और राहुल गांधी ने उनको सम्मानपूर्वक याद किया, बल्कि इस मौके पर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के मुख्य आतिथ्य में आयोजित एक वर्चुअल समारोह में पी. चिदंबरम और जयराम रमेश जैसे वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने भी शिरकत की। 

पूर्व प्रधानमंत्री और अपने पूर्व अध्यक्ष के तौर पर नरसिंहराव के प्रति कांग्रेस नेताओं और खासकर गांधी परिवार का पहली बार इस तरह सम्मान प्रदर्शित करना और विभिन्न मोर्चों पर खासकर अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में अर्जित उनकी उपलब्धियों का बखान करना बताता है कि कांग्रेस नेतृत्व ने दक्षिण भारत में अपनी पार्टी के कमजोर हो चुके जनाधार की जमीनी हकीकत को गंभीरता से समझना शुरू कर दिया है। 

दरअसल दक्षिण भारत खासकर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में जिस तरह से क्षेत्रीय पार्टियों ने पीवी नरसिंह राव की विरासत का राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश शुरू कर दी है, उसने कांग्रेस नेतृत्व को अपने पूर्व अध्यक्ष के बारे में अपने उपेक्षापूर्ण रवैये में बदलाव करने के लिए मजबूर किया है। यही वजह है कि नरसिंह राव को उनके निधन के करीब डेढ़ दशक बाद गांधी परिवार ने याद किया है और उनके योगदान की सराहना की है। अन्यथा इससे पहले कभी उनकी जयंती या पुण्यतिथि पर याद करने की औपचारिकता भी नहीं निभाई गई।

कुल मिलाकर मृत्यु के बाद नरसिंह राव पूरी तरह भुला दिए गए थे, लेकिन अब अपने जन्म शताब्दी वर्ष में वे अचानक चर्चा में आ गए हैं। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव यानी केसीआर ने नरसिंह राव के नाम पर अपनी राजनीतिक ज़मीन मज़बूत करने की दिशा में पहल की है। उन्होंने तेलंगाना सरकार की ओर से पूरे साल भर नरसिंह राव की याद में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करने तथा उनके योगदान की याद को चिरस्थायी बनाने के लिए एक स्मारक बनाने का एलान किया है। 

पीवी यानी पामूलापर्ति वेंकट यानी नरसिंहराव उस अविभाजित आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे हैं, जिसमें तेलंगाना भी शामिल था। चूंकि नरसिंहराव का जन्मस्थान तेलंगाना में पड़ता है और वे तेलंगी ब्राह्मण समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, लिहाजा मुख्यमंत्री केसीआर का मकसद नरसिंहराव के जरिए तेलंगी भावनाओं को भुनाना और तेलंगी ब्राह्मणों को रिझाना है। इसी मकसद से भारतीय जनता पार्टी भी आजीवन और पूर्णकालिक कांग्रेसी रहे नरसिंहराव को याद कर तेलंगाना में अपनी जमीन तैयार करना चाहती है। इसी मकसद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी जब कभी तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के दौरे पर जाते हैं तो नरसिंहराव को याद करना नहीं भूलते हैं। 

आंध्र प्रदेश, तेलंगाना सहित दक्षिण के अन्य राज्यों में बुरी तरह कमजोर हो चुकी कांग्रेस को नरसिंहराव के प्रति अपनी विरोधी पार्टियों में उपजे प्रेम ने ही सोचने पर मजबूर किया और कांग्रेस नेतृत्व ने दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री को मरणोपरांत अपनाने का फैसला किया। इस सिलसिले में पहले तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस कमेटी को नरसिंहराव जन्म शताब्दी वर्ष पर बड़े पैमाने पर पूरे वर्ष भर कार्यक्रम आयोजित करने के निर्देश दिए और फिर उसके शुरुआती कार्यक्रम के लिए जारी अपने संदेश में उनके योगदान की भरपूर सराहना की। 

सोनिया गांधी ने कहा है कि पीवी नरसिंहराव का जन्म शताब्दी वर्ष हम सभी के लिए अवसर है कि हम उन्हें एक विद्वान व्यक्ति और साहसी नेता के तौर पर याद करें जिनके नेतृत्व में भारत राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई चुनौतियों का सामना करने में कामयाब रहा। बात कांग्रेस अध्यक्ष ने तेलंगाना कांग्रेस कमेटी के नाम जारी अपने संदेश में कही है। भले ही यह संदेश तेलंगाना के कांग्रेस नेताओं के नाम है, लेकिन इसका मकसद व्यापक तौर पर तेलंगाना और देश की जनता को यह बताना है कि नरसिंहराव कांग्रेसी थे और उनकी उपलब्धियां कांग्रेस की उपलब्धियां हैं, किसी और की नहीं। 

नरसिंहराव के प्रति कांग्रेस नेतृत्व के बदले हुए इस दृष्टिकोण से तेलंगाना और दक्षिण के अन्य सूबों में कांग्रेस को कितना फायदा होगा, यह तो अभी नहीं कहा जा सकता, मगर कांग्रेस को देश भर में अपनी खोई हुई ताकत फिर से पाने और अपने को सर्वसमावेशी दल बनाने के लिए ऐसा ही दृष्टिकोण स्वाधीनता संग्राम के दौर में कांग्रेसी रहे तथा बाद में वैचारिक मतभेदों के चलते कांग्रेस से अलग हुए समाजवादी और वामपंथी नेताओं के प्रति भी बदलना होगा।

(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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