नई दिल्ली/ चंडीगढ़। पीटीआई के खिलाफ सरकार के हमले का सिलसिला नये चरण में पहुंच गया है। प्रसार भारती ने आज अपने बोर्ड की बैठक में खर्चों को तर्कसंगत बनाने के नाम पर पीटीआई के साथ हुए अपने सेवा करार को रद्द कर दिया। दिलचस्प बात यह है कि इस फैसले में यूएनआई को भी जोड़ दिया गया है। और उससे भी प्रसार भारती ने अपना करार वापस ले लिया है।
हालांकि, प्रसार भारती एक स्वायत्त संस्था है, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि केंद्र सरकार इस निर्णय के पीछे थी। क्योंकि वह कुछ महीने पहले पीटीआई के चीन महावाणिज्य दूत के साथ किये एक साक्षात्कार को लेकर खफा थी।
इस फैसले का पीटीआई और यूएनआई में तगड़ा विरोध शुरू हो गया है। यूएनआई की कुछ इकाइयां इसके खिलाफ खुलकर सामने आ गयी हैं। चंडीगढ़ इकाई ने इसके खिलाफ प्रस्ताव पारित किया है।
जिसमें कहा गया है कि स्वतंत्र समाचार एजेंसियां भारत जैसे लोकतंत्र के लिए आवश्यक हैं और सैकड़ों लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों, पोर्टल समेत समाचार संगठनों का अस्तित्व भी एजेंसियों पर टिका है क्योंकि यह मामूली फीस पर समाचार व तस्वीरें मुहैया कराती रही हैं।
विडंबना यह भी है कि एक तरफ केंद्र सरकार “मेक इन इंडिया“ का प्रचार करती है, दूसरी तरफ भारतीय समाचार एजेंसियों को कमज़ोर कर रही है। भारतवासी और दुनिया में भारत को भारतीय नज़रिये से देखा जाए, यह सुनिश्चित करने के लिए ही पीटीआई और यूएनआई जैसी समाचार एजेंसियों को देश की आजादी के बाद से ही, किसी राजनीतिक दल की सरकार हो, समर्थन देती रही है।
इस संदर्भ में प्रसार भारती का निर्णय दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय है। प्रस्ताव में कहा गया है कि यूएनआई एप्लाईज यूनियन, चंडीगढ़ सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से अनुरोध करना चाहेगी कि वह प्रसार भारती को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने का सुझाव दे और समाचार एजेंसियों को समर्थन जारी रखे। संगठन के महासचिव महेश राजपूत ने कहा कि यह ऐसा समय है जब पीटीआई और यूनएनआई जैसी समाचार एजेंसियों को सरकार की मदद की सर्वाधिक दरकार है क्योंकि मीडिया और देश की अर्थव्यवस्था का कोविड-19 के कारण बुरा हाल है। कितने समाचार संस्थानों ने अपने संस्करण, ब्यूरो बंद किये हैं और हजारों पत्रकार व गैर पत्रकार कर्मचारियों को नौकरी से हटाया है।
उन्होंने कहा कि कोविड-19 लॉकडाऊन के कारण मीडिया उद्योग का राजस्व प्रभावित होने का असर समाचार एजेंसियों पर भी पड़ा है। सरकार को चाहिए था कि ऐसी मुश्किल घड़ी में हस्तक्षेप कर मीडिया संस्थानों के मालिकों को कर्मचारियों को निकालने से रोकती, मीडिया उद्योग के लिए राहत पैकेज की घोषणा करती। लेकिन इसके बजाय, सरकार ने मीडियाकर्मियों के हितों की रक्षा करने वाले वर्किंग जर्नलिस्ट्स एंड अदर न्यूजपेपर एप्लाईज (कंडीशंस ऑफ सर्विस) एंड मिस्लेनियस प्रोवीजंस एक्ट, 1955 और अन्य कानूनों को निरस्त कर दिया और चार श्रम संहिताएं ले आई। उससे पूर्व उस समय भी केंद्र सरकार मूक दर्शक बनी रही जब समाचार संस्थानों ने मजीठिया वेज बोर्ड अवार्ड लागू करने से मना कर दिया जबकि सुप्रीम कोर्ट 2014 में इसके पक्ष में निर्णय दे चुका था।
संगठन ने प्रसार भारती से पीटीआई और यूएनआई की सेवाएं न लेने के अपने अताकर्तिक फैसले पर पुनर्विचार करने और इसे वापस लेने की अपील की है।