देश भर के किसानों के व्यापक विरोध और विपक्षी दलों की अपील के बावजूद राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने विवादित और किसान विरोधी तीनों कृषि विधेयकों को मंजूरी देते हुए उन पर हस्ताक्षर करके तीन बिलों को कानूनी रूप दे दिया है। कृषि बिल के अलावा राष्ट्रपति ने जम्मू-कश्मीर के आधिकारिक भाषा बिल, 2020 पर भी अपनी सहमति दे दी है। किसानों के व्यापक विरोध के बावजूद इन कृषि बिलों पर हस्ताक्षर करके राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सिद्ध कर दिया कि वो जनता के नहीं बल्कि सरकार के राष्ट्रपति हैं और उनका काम बिना किसी किंतु-परंतु के सरकार द्वारा पारित विधेयकों पर हस्ताक्षर भर करना है।
इस बीच, एनडीए सहयोगी शिरोमणि अकाली दल के मुखिया सुखबीर सिंह बादल ने इसे किसानों के लिए ‘काला दिन’ कहा है। और एनडीए से अलग होने की घोषणा कर दी है। अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल ने सभी राजनीतिक दलों और संगठनों से अनुरोध करते हुए कहा, “मैं सभी राजनीतिक दलों और संगठनों से आह्वान करता हूं कि वे देश के किसानों, कृषि श्रमिकों और कृषि उपज व्यापारियों के हितों की रक्षा करें। अकाली दल अपने आदर्शों से नहीं हटेगा। किसानों के कल्याण के लिए हमने बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए से नाता तोड़ दिया है। ”
बता दें कि कृषि विधेयकों को लेकर शिरोमणि अकाली दल के नेताओं ने भी दिल्ली में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात की थी। शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व में दिल्ली पहुंचे नेताओं ने राष्ट्रपति से अनुरोध किया कि वो राज्य सभा में पास हुए कृषि विधेयकों पर हस्ताक्षर न करें। वहीं मोदी सरकार में कृषि मंत्री रहीं हरसिमरत कौर ने सरकार से इस्तीफा तक दे दिया था।
विपक्ष ने राष्ट्रपति का सामूहिक विवेक जगाने का प्रयास किया था
वहीं बुधवार 23 सितंबर को नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद की अगुवाई में 18 विपक्षी दलों के प्रतिनिधियों ने राष्ट्रपति से मुलाकात की थी। उन्होंने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात के बाद गुलाम नबी आजाद ने प्रेस कान्फ्रेंस में कहा था कि “सब राजनीतिक दलों से बात करके ही यह बिल लाना चाहिए था। लेकिन दुर्भाग्य से ये बिल न सेलेक्ट कमेटी को भेजा गया और न ही स्टैंडिंग कमेटी को भेजा गया। पांच अलग-अलग प्रस्ताव दिए गए थे। किसान बिलों को लेकर विपक्ष के जरिए लगातार प्रदर्शन किया जा रहा है। किसान अपना खून-पसीना एक करके अनाज पैदा करते हैं। किसान देश की रीढ़ की हड्डी हैं।

राज्य सभा में बिना बहस और मॉर्शल खड़े करके पास कराए गए कृषि विधेयकों को लेकर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकारत करके उनसे अपनी बुद्धि विवेक और संवैधानिक ताक़तों का इस्तेमाल करते हुए कृषि विधेयकों को वापस सदन के पास लौटाने की अपील की थी।
बता दें कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हस्ताक्षर के बाद 5 जून को मोदी सरकार द्वारा अध्यादेश के जरिए लाए गए तीन कृषि बिल कानून बन चुके हैं। बता दें कि आपदा को अवसर में बदलते हुए कोरोना काल में 5 जून को मोदी सरकार ने तीन कृषि अध्यादेश लागू किए थे।
जिन्हें संसद के मॉनसून सत्र में लाए गए कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक 2020, कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक-2020 को पहले संसद के दोनों सदनों में साम दाम दंड का इस्तेमाल करके पास करवाया और अब इस पर राष्ट्रपति की मुहर भी लग चुकी है।