Saturday, April 20, 2024

स्पेशल रिपोर्ट: विभागाध्यक्ष बनने से रोकने के लिए जम्मू यूनिवर्सिटी में कर दी गयी दलित प्रोफेसर की संस्थानिक हत्या?

“सब सच है क्योंकि, कहानी ही झूठी है” – आखिर क्या है इन पंक्तियों के मायने जिन्हें अपनी सांस्थानिक हत्या से महज चंद सेकेंड पहले जम्मू यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफ़ेसर चंद्रशेखर ने अपने कमरे के बोर्ड पर लिखा था। आखिर इस एक पंक्ति के जरिये प्रो. चंद्रशेख़र क्या बताना चाहते थे दुनिया को। अपने चाहने वालों को, अपने छात्रों-सहकर्मियों को, अपने परिवार को।

7 सितंबर को मनोविज्ञान विषय के प्रो चंद्रशेखर जम्मू यूनिवर्सिटी के अपने कमरे में मृत मिले। सामने बोर्ड पर उनकी हैंडराइटिंग में लिखा था- ‘ सब सच है क्योंकि, कहानी ही झूठी है’ और जेब में टर्मिनेशन का लेटर पड़ा था, जिस पर रजिस्ट्रार साहेब के खंजरनुमा हस्ताक्षर चमक रहे थे। चंद्रशेखर अपने निजी परिवार में जीवन साथी डॉ. नीता व दो छोटे-छोटे बच्चों (एक बेटा, क बेटी) को छोड़ गये हैं। जबकि उनके ग़ाज़ियाबाद जिला के मुरादनगर के ज़लालपुर रोड स्थित पैतृक निवास पर पिता व छोटे भाई का परिवार है। चंद्रशेखर दलित जाति से आते थे। वो जम्मू विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफ़ेसर थे। उनकी बीवी-बच्चे उनके साथ ही रहते थे।

उनकी जीवनसंगिनी डॉ नीता ने जनचौक को फोन पर बताया है कि अपने प्रमोशन को लेकर वो बहुत खुश थे। साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि उनके प्रमोशन से विभाग के कुछ लोग खुश नहीं हैं। और 30 सितंबर को विभागाध्यक्ष बनने वाले थे।

वो तीन दिन पहले ही मेरठ से आये थे। उन्हें बोला गया कि आपको किसी काम से मेरठ जाना है। और फिर रास्ते में उन्हें मेसेज आया कि मेरठ नहीं जाना है। फिर उन्होंने वापसी का टिकट कराया और शनिवार को ही वापस लौट गये।

प्रो की विद्वता, बौद्धिकता और ख्याति से जलती थीं विभागाध्यक्ष

डॉ नीता कहती हैं उन्हें दलित होने के चलते विभागाध्यक्ष आरती बक्शी द्वारा इतना प्रताड़ित कर दिया गया कि अब वो नहीं रहे। जीवनसाथी डॉ नीता आरोप लगाती हैं कि यूनिवर्सिटी मैनेजमेंट किसी और को विभागाध्यक्ष बनाना चाहता था। इसलिये एक साजिश की गई उनके ख़िलाफ़। सेक्सुअल हैरेसमेंट का आरोप लगाया गया और जांच में उनका पक्ष तक नहीं सुना गया। न ही उन्हें सफाई का कोई मौका दिया गया और टर्मिनेट कर दिया गया।

क्या उन्होंने अपने ऊपर लगे सेक्सुअल हैरेसमेंट के आरोप के बाबत आपको कुछ बताया था। इस सवाल पर जीवनसाथी डॉ. नीता बताती हैं कि यूं तो वो यूनिवर्सिटी में अपने साथ होने वाली हर छोटी-छोटी बात साझा करते थे लेकिन ये बात उन्होंने नहीं बतायी, शायद समय ही नहीं मिला। उनका प्रमोशन होने के बाद उन पर ये आरोप लगाये गये। ये बातें मुझे दो दिन बाद पता चलीं कि यूनिवर्सिटी प्रशासन ने लेटर लिखकर उन पर आरोप लगाये हैं। उन्होंने जब साल 2017 में यूनिवर्सिटी ज्वाइन किया था प्रोफ़ेसर आरती बक्शी तब से विभागाध्यक्ष हैं। और वो मेरे पति का उत्पीड़न करती आ रही हैं। शुरुआत में ही चंद्रशेखर ने मुझे कहा कि अब नहीं सहा जाता मैं रिजाइन कर दूंगा। और उन्होंने खान सर को अपना इस्तीफा दे दिया था। लेकिन खान सर ने यह कहते हुए उनका इस्तीफ़ा फाड़कर फेंक दिया कि ये सब तो चलता रहता है, कहीं और सेलेक्शन हो जाये तो मूव ऑन कर जाना।

डॉ नीता आगे बताती हैं दो-तीन दिन से वो बहुत सीरियस लग रहे थे। मैंने पूछा तो उन्होंने कहा कि ज़िंदग़ी में सब चलता रहता है, ठीक हो जाएगा। 5 सितंबर को शिक्षक दिवस था वो यूनिवर्सिटी से लौटे तो मैं पिक्स देख रही थी, कुछ परेशान थे। 7 सितंबर को सुबह नाश्ता करके, लंच लेकर यूनिवर्सिटी गये। डॉ नीता ने 10.30 बजे फोन किया तो उन्होंने बताया कि बेटी का बर्थ सर्टिफिकेट बनवा रहे हैं। शाम को साढ़े चार, पांच बजे जीवनसंगिनी ने दोबारा कॉल किया तो उन्होंने उठाया नहीं।

शाम 7 बजे दो अध्यापक डॉ नीता के घर आये और उन्हें साथ लेकर गये, ये कहकर कि प्रो चंद्रशेखर की तबियत खराब है। वो बच्चों को घर छोड़कर उनके साथ चली गईं। बाद में डॉ नीता को पता चला कि प्रो चंद्रशेखर नहीं रहे। वहां उनके विभाग से कोई नहीं था। अकेले पड़े थे वो। फिर काफी समय के बाद उन लोगों ने उन्हें बताया कि चंद्रशेखर ने सुसाइड किया है। डॉ नीता सवाल उठाती हैं कि एक ज़िंदादिल इंसान ऐसे कैसे कर सकता है।

जातीय उत्पीड़न किया जा रहा था

डॉ नीता आरोप लगाती हैं कि डिपार्टमेंट में चंद्रशेखर का लगातार विभागाध्यक्ष आरती बक्शी द्वारा जातीय उत्पीड़न किया जा रहा था। वो पहले घर आकर उन्हें बताया करते थे। जबकि कुछ मामले खुद उनकी आंखों देखी हैं।

चाय पानी के लिये विभाग में स्टाफ में अन्य सहकर्मियों के लिये शीशे के गिलास और चंद्रशेखर जी के लिये डिस्पोजल गिलास रखा जाता था। यूनिवर्सिटी में एड्स का कोई प्रोजेक्ट चल रहा था, कार्यक्रम था, डॉ नीता ने देखा कि उस कार्यक्रम में सभी बैठे हुए थे, आरती मैम थीं, खान सर थे, और भी कई लोग थे बस चंद्रशेखर अकेले के बैठने के लिये सीट नहीं थी। ये जातिवादी चीजें थीं। जातीय उत्पीड़न के एक दूसरे मामले का जिक्र करते हुये वो बताती हैं कि उनका प्रमोशन होना था तो अपनी सीनियारटी को लेकर मैम (विभागाध्यक्ष) से हस्ताक्षर करवाने थे। मैंने किसी काम से उन्हें कॉल किया तो बताने लगे कि मैम का इंतज़ार कर रहा हूं काफी देर से। तो विभागाध्यक्ष ने उनसे आईडेंटीफिकेशन दिखाने को कहा। चंद्रशेखर साल 2004 में यूनिवर्सिटी ज्वाइन किये थे। एक ही विभाग में 17 साल काम करने के बावजूद ये हाल था। घंटों प्रतीक्षा कराने और पहचान पत्र दिखाने के बाद ही उन्होंने साइन किया।

अनहोनी की आशंका

डॉ नीता बताती हैं कि चंद्रशेखर ने ऐसे कई छात्रों को पीएचडी करवाया है जिन्हें अन्य प्रोफ़ेसरों ने मना कर दिया या छोड़कर चले गये। 15-17 सालों में उन पर कभी कोई आरोप नहीं लगा। 22 सितंबर 2022 को विभागाध्यक्ष आरती बक्शी को रिटायर होना है और सीनियर मोस्ट होने के नाते चंद्रशेखर को विभागाध्यक्ष बनना था। डॉ नीता अपनी आशंकाओं का जिक्र कर कहती हैं कि वो लगातार अपने पति चंद्रशेखर को कह रही थीं कि आप बहुत संभलकर चलना। ताकि किसी भी तरह की कोई समस्या न हो। यहां तक कि मैंने उनको यह भी बोला था कि आप छुट्टी ले लो। घर पर रहो। मत जाओ डिपार्टमेंट। जब मैम रिटायर हो जाएंगी तब जाना। लेकिन उस दिन विभागाध्यक्ष मैम आरती बक्शी का बर्थडे था।

सेलिब्रेशन हुआ है। और उसी दिन उन्होंने बोर्ड पर “सब सच है, क्योंकि कहानी झूठी है” लिखा और मृत पाये गये। लेकिन सवाल है कि उन्हें रस्सी कहां से मिली, डिपार्टमेंट में। आखिर उस 30 मिनट में क्या हुआ डिपार्टमेंट में। वो बर्थडे सेलीब्रेट करके ऊपर गये उसी वक्त उनको टर्मिनेशन लेटर दिया गया, और वो मृत मिले। जबकि वो 22 सितंबर को रिटायर हो रही विभागाध्यक्ष के सम्मान में फेयरवेल पार्टी देना चाहते थे, इस बाबत उन्होंने मैम से बात की थी तो उन्होंने मना करते हुए कहा था, मत करो, मैं क्या मुंह लेकर आउंगी।

घटना वाले दिन छात्रों के सामने विभागाध्यक्ष ने उन्हें बेइज़्ज़त किया

जूटा के उपाध्यक्ष प्रो राकेश अत्रि भावुक होकर कहते हैं बहुत बढ़िया इन्सान थे वो। 15 साल से यूनिवर्सिटी में थे वो छात्रों के बीच बहुत लोकप्रिय थे। लोग उन्हें तंग करते थे लोकिन वो चुपचाप सह जाते थे। किस तरह तंग करते थे लोग पूछने पर डॉ राकेश अत्रि बताते हैं कि मान लीजिये डिपार्टमेंट में कोई कार्यक्रम है तो सब बैठ जाते थे और उन्हें बैठने के लिये कुर्सी नहीं दी जाती थी। एक बार वो अपने किसी डॉक्यूमेंट पर साइन कराने गये तो एचओडी ने उनसे कहा पहले अपना आई कार्ड निकालो।

प्रो. अत्रि घटना वाले दिन को यादकर कहते हैं- जिस दिन का ये वाकया है उस दिन एचओडी का बर्थडे सेलीब्रेट हो रहा था। ये वहां बैठे हुए थे। उसी दौरान उनका टर्मिनेशन लेटर आया सारे बच्चों के सामने अपमानित करते हुये उनसे कहा गया कि अब तुम जाओ अपने फादर के साथ…….।

उनकी विभागाध्यक्ष हमेशा छात्रों के सामने उनको बेइज़्ज़त करती थीं। एक कॉलोनियल गैंग बना रखा है। जिसमें एचओडी हैं, रजिस्ट्रार हैं, इन सबकी एक गैंग। ये गैंग जब चाहे जिसका प्रमोशन कर देता है, जब चाहे जिसका प्रमोशन रोक देता है। इसके ख़िलाफ़ कमीशन को लेटर लिखा है, उसने अपोलोजाइज भी किया कि ग़लती हो गई है।

टाइमिंग सब कुछ खुद कहती है

डॉ राकेश अत्रि आगे कहते हैं कि टाइमिंग की बात है। 30 सितंबर को उन्हें एचओडी बनना था और 1 को 25 छात्र जाकर शिक़ायत करते हैं। और यूनिवर्सिटी के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि किसी शिक़ायत के आने के बाद 2-3 वर्किंग दिन में फैसला दे दिया गया हो। इसी यूनिवर्सिटी के कई मामलों में फैसले और जांच वर्षों से लंबित हैं।

कंप्लेन लेकर जब कोई आता है। फिर आप नोटिस भेजकर बुलाते हो। फिर आप मौका देते हो वो एक दूसरे को क्रॉस क्वेश्चन कर सकें कि सच में हुआ है कि नहीं हुआ है। उसके बाद एक तरीका है कि आपकी इन्क्वॉयरी शुरु होती है। पर इन्होंने तो कुछ भी नहीं किया। उन्हें बोलने तक का मौका नहीं दिया। 2-3 दिन में सब कुछ कर कराके उनको सस्पेंशन ऑर्डर दे दिया।

जियोलॉजी डिपार्टमेंट के प्रोफ़ेसर युद्धवीर सिंह डॉ चंद्रशेखर को अच्छा दोस्त, अच्छा कलीग और अच्छा मनुष्य बताते हैं। कहते हैं वो मेरे डिपार्टमेंट से नहीं थे पर जब कभी मुलाकात होती थी तो बात होती थी। हम अध्यापकों का स्टैंड है हम उनके लिये फाइट कर रहे हैं। मैं अभी कुछ नहीं कहना चाहता हूँ।

डोगरी डिपार्टमेंट के प्रो संदीप दूबे कहते हैं – मेरे साथ के क्वार्टर में नीचे रहते थे। मामले की जांच हो रही है। जूटा अध्यक्ष ने वीसी से बात की है एक जांच कमेटी पुलिस की वो देखेगी मामले को। उन पर जो आरोप लगे तो वो एकतरफा थे। हँसमुख इंसान थे। बोलते कम थे। इंसान अच्छे थे। 

कुछ लोग हैं जिन्होंने जो चाहा, जैसा चाहा वैसा फैसला ले लिया 

जूटा के वाइस प्रेसीडेंट मनोज भट्ट फोन पर अपनी बात रखते हुए जनचौक से कहते हैं – 10-12 लोग हैं जो जम्मू यूनिवर्सिटी की इस शोषणकारी व्यवस्था को चला रहे हैं। इन्होंने आपस में एक गैंग बना लिया है। 5 महीना पहले ही वीसी बदले हैं नये वीसी आये हैं पर वो व्यवस्था नहीं बदली। ये लोग वीसी को भी ग़लत सूचनायें देकर ग़ुमराह कर देते हैं। ये लोग किसी को वीसी से मिलने नहीं देते ताकि इन्हीं की हुकूमत बनी रहे। तो ये जो चाहते हैं जैसा चाहते हैं करते हैं। यूनिवर्सिटी में सारी समस्या की जड़ यही गैंग है।

वो आगे कहते हैं कि चंद्रशेखर जैसे कुछ लोग जो किसी राजनीति में नहीं पड़ते और छात्रों के हित में अच्छा काम कर रहे हैं उन्हें ये गैंग के लोग मिलकर प्रताड़ित करते रहते हैं। खुद उन्हें भी प्रताड़ित किया गया है इन लोगों द्वारा। न ये यूजीसी का कोई क़ानून मानते हैं, न यूनिवर्सिटी के। इस गैंग के लोग ऊंचे पदों पर हैं। तो कोई काम लेकर जाएगा तो एक व्यक्ति दूसरे के पास फाइल भेजेगा, दूसरा तीसरे के पास तीसरा चौथे के पास बस घूमता रह जाएगा। रजिस्ट्रार वीसी के साथ है। उसको आप कोई भी कंप्लेन दे दो वो मानने को तैयार नहीं होता, जब तक उसके जानने वाले कुछ न हो, बाकियों के लिये तो कोई क़ानून ही नहीं है।

मेरा मानना है कि उनके साथ सही व पूरा प्रोसेस फॉलो नहीं किया गया। वो बेचारे इधर उधर दौड़ रहे होंगे कि उनकी सुनवाई हो पर उनकी सुनवाई तो हुई ही नहीं। सुनवाई करेगा कौन। यही लोग जो सीनियर पोजीशन पर बैठे हैं और गैंग चला रहे हैं। ये लोग इतने बड़े दादा हो गये हैं कि आप सोच नहीं सकते। अभी तक पुलिस को औपचारिक लिखित कंप्लेन तक नहीं दी गई है। खाली फोन कर बताया गया। ये सरासर दादागीरी है। इनका यही तरीका है कि भले कुछ तर्कसंगत हो न हो, न्यायसंगत हो न हो पर मैं तो करुंगा।

आत्मपीड़ा साझा करते हुए वो बताते हैं कि पिछले पांच सालों में वो भी इन चीजों से गुज़रे हैं। जब कहीं सुनवाई नहीं हुई, आप अकेले पड़ जाते हैं। मैं जानता हूं दर्द क्या होती है। इन लोगों ने मुझे चुनाव लड़ने के लिये बाध्य कर दिया। ये इतना अकेला छोड़ देते हैं कि कोई डिप्रेसन में चला गया, कोई सुसाइड कर ले, कोई यूनिवर्सिटी छोड़कर चला जाये।   

16 लड़कियों को पता ही नहीं कि उन्होंने सेक्सुअल हैरेसमेंट का आरोप लगाया है 

जम्मू यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र व चंद्रशेखर के मित्र कुनाल आंतरिक सूत्रों के हवाले से जनचौक को बताते हैं कि जिन 22-25 लड़कियों ने चंद्रशेखर पर सेक्सुअल हैरसमेंट का आरोप लगाया है उनमें से 16 लड़कियां कह रही हैं उन्हें नहीं पता कि उनका नाम भी है शिक़ायतकर्ताओं की सूची में। दरअसल कुछ लोगों द्वारा उनको एचओडी बनने से रोकने के लिये ये साजिश रची गई और विभागाध्यक्ष ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके कुछ लड़कियों को राजी किया और हैरसेमेंट का झूठा आरोप लगवाया गया। उनका यूनिवर्सिटी में फांसी लगाना और बिना पुलिस के बुलाये उनकी बॉडी नीचे उतार देना कई झोल हैं। 

चंद्रशेखर के मित्र कुनाल कहते हैं कि जो व्यक्ति मेंटल हेल्थ पर लेक्चर देता है, रिसोर्स पर्सन बनकर पुलिस एकैडमी और यूनिवर्सिटी, कॉलेज में जाता था। जिसकी साइकोलॉजी की कई किताबें आई हैं। जो मेंटल हेल्थ पर सबसे ज़्यादा वर्कशॉप करवाता था कि हमें मानसिक रूप से कैसे स्वस्थ रहना है। अगर वही प्रोफ़ेसर सुसाइड कर लेता है तो कुछ तो गड़बड़ है।

जम्मू यूनिवर्सिटी टीचर एसोसिएशन (JUTA) का स्टैंड

प्रोफेसर चंद्रशेखर मामले में जम्मू यूनिवर्सिटी टीचर एसोसिएशन ने प्रेस नोट जारी करते हुये कहा है कि उन्हें विभागाध्यक्ष बनने से रोकने के लिये यूनिवर्सिटी प्रशासन ने उनकी सांस्थानिक हत्या (institutionally murdered) किया है। वहीं जूटा उपाध्यक्ष ने कहा है कि सोमवार को जूटा सदस्यों की बैठक होगी और आम सहमति से आगे की रणनीति तय होगी। बता दें कि पंकज श्रीवास्तव जूटा के अध्यक्ष और मनोज भट्ट उपाध्यक्ष हैं।

जूटा ने अपनी प्रेस रिलीज में कहा है कि प्रो चंद्रशेखर उत्कृष्ट शिक्षाविद् थे और यूनिवर्सिटी का सबसे जाना माना चेहरा थे। उन्होंने मानव मनोविज्ञान के विभिन्न पहलुओं पर कई किताबें लिखी हैं और जाने माने जर्नल्स में उनके शोध आलेख प्रकाशित हुये हैं। अपनी उच्च विद्वता के कारण डॉ चंद्र शेखर को अक्सर कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और सेमिनारों में व्याख्यान देने के लिये आमंत्रित किया जाता था। कोविड-19 के दौरान लोगों को कोविड संबंधित तनाव से लड़ने में मदद के लिये उन्होंने स्वेच्छा से व्याख्यान दिया। यूनिवर्सिटी के सहकर्मी और छात्र समुदाय में डॉ चंद्रशेखर को बहुत ही मिलनसार जिंदादिल, स्वागत योग्य माना जाता था।

जूटा ने उठाया GSCASH, रजिस्ट्रार,DSW की भूमिका पर सवाल      

जूटा ने आगे कहा है कि इसी माह की 30 तारीख को वे मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष का कार्यभार ग्रहण करने वाले थे। हालांकि, कुछ लोगों ने उन्हें उनके एचओडी बनने से रोकने की साजिश रची और विभाग ने झूठे आरोप लगाकर उन्हें यौन उत्पीड़न के मामले में फंसाया है। उनके ख़िलाफ़ 1 सितंबर को लगभग 25-30 छात्र जिनमें पुरुष और महिला दोनों छात्र शामिल हैं, वर्तमान एचओडी प्रो. आरती बख्शी द्वारा उकसाए जाने पर कुलपति कार्यालय में डॉ. चंद्रशेखर के ख़िलाफ़ डॉ चंद्रशेखर के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न की शिक़ायत दर्ज़ कराई। बिना कोई कोई स्पष्टीकरण प्रपत्र मांगे कुलपति कार्यालय ने डॉ. चंद्रशेखर ने मामले को यूनिवर्सिटी के GSCASH समिति को सौंप दिया, यौन उत्पीड़न से संबंधित मामलों को देखने के लिए। GSCASH समिति विश्वविद्यालय का नेतृत्व प्रोफेसर अलका शर्मा कर रही हैं, जो कि विश्वविद्यालय के प्रबंधन अध्ययन स्कूल की निदेशक भी हैं।

उल्लेखनीय है कि प्रो. अलका शर्मा के साथ GSCASH समिति के अन्य सदस्य कुछ अक्षम शिक्षकों का समूह है। GSCASH समिति के अन्य सदस्य, जिनकी शैक्षणिक साख बहुत कम है लेकिन विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित पदों पर तैनात हैं, जैसे कि विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार, और छात्र कल्याण के डीन। प्रो. अलका शर्मा ने पहले अपने विभाग के एक संकाय सदस्य के ख़िलाफ़ भी साजिश रची थी जो उससे वरिष्ठ था लेकिन वो बच गये क्योंकि उसकी साजिश को समय पर बढ़ावा नहीं दिया जा सका।

जूटा ने प्रेस रिलीज में आगे कहा है कि चूंकि 1 सितंबर, 2022 गुरुवार को डॉ. चंद्रशेखर के ख़िलाफ़ शिक़ायत प्राप्त हुई थी। और GSCASH समिति ने 5 सितंबर, 2022 सोमवार को रजिस्ट्रार को रिपोर्ट सौंपी। 5 सितंबर को विश्वविद्यालय का शिक्षक-सह-स्थापना दिवस था। जम्मू विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (JUTA) द्वारा आयोजित शिक्षक दिवस समारोह में डॉ. चंद्रशेखर उदास लग रहा था और उसने अपने कुछ दोस्तों के साथ इस मामले पर चर्चा की। जैसा कि शनिवार और रविवार शिक्षक और स्थापना दिवस के अवकाश और सोमवार को विश्वविद्यालय में समारोह हो रहा था।

इसका मतलब है कि GSCASH समिति ने केवल एक दिन यानि 2 सितंबर (शुक्रवार) तथ्य-खोज और सिफारिशें देने के लिए काम किया है। जबकि इसी तरह के अन्य मामलों में,GSCASH समिति ने अपनी सिफारिशें देने में महीनों और वर्षों का समय लिया। इसी तरह का एक मामला प्रो. सीमा नरगोत्रा ​​द्वारा एक प्रभावशाली प्रो. कुलवंत सिंह के ख़िलाफ़ कई महीने पहले दायर किया गया था, लेकिन GSCASH ने उस मामले पर एक शब्द नहीं कहा है।

GSCASH का एक अतीत है कि यूनिवर्सिटी छात्रों के विरोध प्रदर्शन के बावजूद कई प्रभावशाली शिक्षकों और अधिकारी के ख़िलाफ़ GSCASH समिति को अपनी सिफारिशें देने में महीनों और वर्षों का समय लगा था। लेकिन चंद्रशेखर के मामले में समिति ने 4-5 दिनों के भीतर जिसमें महज एक वर्किंग दिवस मिला में अपना फैसला सुना दिया ताकि डॉ. चंद्रशेखर को विभाग का एचओडी बनने से रोका जा सके। उल्लेखनीय है कि इस दौरान GSCASH समिति डॉ. चंद्र शेखर को एक बार भी उनसे स्पष्टीकरण मांगने के लिए बुलाने की जहमत नहीं उठाई।

रजिस्ट्रार कार्यालय ने उन्हें सीधे कारण बताओ नोटिस दिया और उसका जवाब मांगते हुए उसके निलंबन का आदेश पारित किया और उसे संलग्न कर दिया। यह स्पष्ट है कि GSCASH समिति डॉ. चंद्र शेखर को झूठे केस में फंसाने के लिए अपने आकाओं के निर्देशों पर काम कर रही थी। विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. अरविन्द जसरोतिया द्वारा GSCASH की बैठक की कार्यवृत्त को देखे बिना डॉ. चंद्रशेखर के ख़िलाफ़ निलंबन आदेश जारी किया। जबकि रजिस्ट्रार का कार्य है कि GSCASH की सिफारिशों की बारीकियों को देखना और सुनिश्चित करना कि जांच करते समय उचित प्रक्रियाओं का पालन किया गया है, लेकिन रजिस्ट्रार ने ऐसा कुछ नहीं किया। यह स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि रजिस्ट्रार भी साजिश का हिस्सा था। 7 सितंबर 2022 की दोपहर में चंद्रशेखर को निलंबन आदेश थमा दिया गया जैसा कि डॉ. चंद्रशेखर ने पहले ही साफ किया था, वह दुःख / सदमे को सहन नहीं कर सके, अपने विभाग में गये, और बोर्ड पर लिखा “सब सच है, क्योंकि कहानी ही झूठी है” और उसी भयावह शाम को अपने कमरे में फांसी लगा ली।

जूटा ने आगे कहा है कि दुर्भाग्य से, मीडिया को ब्रीफ करते हुए और दोषियों को बचाने के लिए डीन, डीएसडब्ल्यू ने बताया कि डॉ. चंद्र शेखर को निलंबित और संलग्न किया गया था क्योंकि प्रथम दृष्टया उन्हें दोषी पाया गया था। DSW की यह करतूत साजिश में उनकी और उनके प्रियजनों की संलिप्तता की पुष्टि है। GSCASH समिति के कामकाज के रूप में, रजिस्ट्रार और DSW संदेह के घेरे में हैं और ऐसा लगता है कि सबका रवैया पक्षपातपूर्ण रहा है और आपराधिक साजिश के साथ एक संगठित अपराध है। इसलिए, जूटा ने मांग की है कि प्रो. आरती बख्शी (मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष), प्रो. अलका शर्मा (संयोजक, जीएससीएएसएच), और समिति के अन्य सदस्य, प्रो. अरविंद जसरोटिया (रजिस्ट्रार) और प्रो. प्रकाश अंताल (डीन ऑफ स्टूडेंट्स वेलफेयर) को तत्काल विश्वविद्यालय से निलंबित किया जाए। और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम और धारा 302 आईपीसी के तहत एक प्राथमिकी दर्ज की जानी चाहिए और जांच होनी चाहिए। सच्चाई को सामने लाने के लिए जल्द से जल्द सीबीआई को सौंप दिया जाए और दोषियों को दंडित किया जाए और सेवा से हटा दिया।


यूनिवर्सिटी में छात्र आंदोलनरत

जम्मू यूनिवर्सिटी के छात्र अपने चहेते प्रोफ़ेसर की सांस्थानिक हत्या पर आक्रोशित हैं और उनको न्याय दिलाने के लिये लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, और कैंडिल मार्च निकाल रहे हैं। छात्रों का आरोप है कि उनकी हत्या की गई है। प्रशासन और प्रबंधन और विभागाध्यक्ष ने मिलकर किया है। छात्र कहते हैं कि आतंकवादियों को सफाई देने का मौका मिलता है लेकिन उन्हें सफाई तक का मौका नहीं दिया गया। 7 सदस्यों की कमेटी गठित की गई। और केवल 3 सदस्यों ने मिल बैठकर एक कार्यकारी दिवस में फैसला दे दिया।

वीसी द्वारा अभी तक कोई बयान नहीं दिया गया। शोध छात्र हर्षवर्धन इस यूनिवर्सिटी में 7-8 साल से पढ़ रहे हैं। उन्होंने एम, एमफिल यहीं से किया और अब यहीं से पीएचडी कर रहे हैं। हर्षवर्धन बताते हैं कि छात्रों को यहां बहुत ज़्यादा उत्पीड़न किया जाता है। प्रेशराइज किया जाता है। कुछ छोड़कर चले गये कुछ सुसाइड कर लिये।

हर्षवर्धन छात्र उत्पीड़न का हाल सुनाते हुए बताते हैं कि – प्रोफेसर कहते हैं कि उनके बच्चों को छोड़कर आओ, उन्हें छोड़कर आओ, रेलवे स्टेशन से लेकर आओ। और जो बच्चा समझौता नहीं करता उसकी पीएचडी आठ से दस साल चलती है।

आंदोलनकारी छात्र कहते हैं कि जम्मू यूनिवर्सिटी में एक बहुत बड़ा नेक्सस चल रहा है। और बहुत सालों से यहां उत्पीड़न हो रहा है। चूंकि उनके एक प्रोफ़ेसर ने आत्महत्या कर लिया तब ये मामला उठ रहा है। यहां असिस्टेंट से एसोसिएट और फिर एसोसिएट से प्रोफेसर बनने के लिये पांच साल तक पानी गर्म करके पिलाना पड़ता है। यहां रिक्रूटमेंट योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि इस आधार पर होता है कि बच्चे ने अपने प्रोफ़ेसर, एचओडी, रजिस्ट्रार के साथ कितना समय बिताया है।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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