नई दिल्ली। राहुल गांधी को आपराधिक मानहानि का दोषी ठहराने वाले न्यायिक मजिस्ट्रेट हरीश हसमुखभाई वर्मा सहित 68 न्यायिक अधिकारियों का प्रमोशन अधर में लटक गया है। 65 प्रतिशत कोटा नियम के तहत सुप्रीम कोर्ट 8 मई को इन अधिकारियों के प्रमोशन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करेगा। गुजरात सरकार के कानूनी विभाग में अवर सचिव रविकुमार मेहता और गुजरात राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सहायक निदेशक सचिन प्रतापराय मेहता ने डिस्ट्रिक्ट जज कैडर के लिए 68 न्यायिक अधिकारियों के चयन को चुनौती देने वाली याचिका दायर की है।
28 मार्च को दायर की गई याचिका में सुप्रीम कोर्ट से इन नियुक्तियों को रद्द करने की अपील की गई है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील पुरविश मलकान ने 10 मार्च को हाईकोर्ट की जारी चयन सूची और राज्य सरकार की तरफ से उनकी नियुक्ति की अधिसूचना को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की मांग की है। साथ में ये भी मांग की गई है कि हाई कोर्ट को योग्यता-सह-वरिष्ठता के सिद्धांत पर एक नई मेरिट सूची तैयार करने का निर्देश दिया जाए।
28 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने न्यायालय में विचाराधीन मामले पर जजों के तबादले के लिए 18 अप्रैल को एक अधिसूचना जारी करने पर हाईकोर्ट से असंतोष जाहिर किया था। अधिसूचना के अनुसार वर्मा को एडिशनल जिला जज के रूप में राजकोट जिला अदालत में स्थानांतरित किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस उल्लंघन को प्रथम दृष्टया “अदालत की प्रक्रिया न मामने वाला” कदम बताया। शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार के सचिव से “प्रमोशन देने में हड़बड़ी दिखाने और कार्यवाही के अंतिम परिणाम के अधीन प्रमोशन देने की अधिसूचना दिनांक 18.04.2023 को जारी करने पर जवाब मांगा।”
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि “यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि, इस तथ्य के बावजूद कि प्रतिवादी, विशेष रूप से राज्य सरकार, वर्तमान कार्यवाही से अवगत थी और तथ्य यह है कि, वर्तमान कार्यवाही में, इस न्यायालय ने नोटिस को 28.04.2023 को वापस करने योग्य बना दिया, राज्य सरकार ने दिनांक 18.04.2023 अर्थात वर्तमान कार्यवाही में इस न्यायालय की तरफ से जारी नोटिस के मिलने के बाद प्रमोशन देने का आदेश जारी किया है।“
“पदोन्नति आदेश दिनांक 18.04.2023 में राज्य सरकार ने भी कहा है कि जो पदोन्नति दी जाती है वह कार्यवाही के परिणाम के अधीन होती है। हम उस हड़बड़ी की सराहना नहीं करते हैं जिसमें राज्य ने 18.04.2023 को पदोन्नति आदेश को मंजूरी दी और पारित किया। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि चयन वर्ष 2022 का था और इसलिए पदोन्नति आदेश पारित करने में कोई हड़बड़ी नहीं होनी चाहिए थी और वह भी तब जब इस मामले को कोर्ट ने जब्त कर लिया था।“
सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रूप से हाई कोर्ट से जवाब मांगा कि क्या संबंधित पद पर प्रमोशन वरिष्ठता-सह-योग्यता या योग्यता-सह-वरिष्ठता के आधार पर दी जानी है और पूरी योग्यता सूची को रिकॉर्ड पर रखना है। इस मामले में याचिकाकर्ताओं का कहना है कि “योग्यता-सह-वरिष्ठता के सिद्धांत को दरकिनार करते हुए कई चयनित उम्मीदवारों की तुलना में अधिक अंक प्राप्त करने के बावजूद, कम अंक वाले उम्मीदवारों की वरिष्ठता-सह-योग्यता के आधार पर नियुक्तियां की जा रही हैं।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि भर्ती नियमों के अनुसार जिला जज के पद को योग्यता-सह-वरिष्ठता के सिद्धांत के आधार पर 65 प्रतिशत आरक्षण रखते हुए और उपयुक्तत परीक्षा पास करके भरा जाना है। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की खंडपीठ ने 13 अप्रैल को उत्तरदाताओं को नोटिस जारी किया था, जिसमें राज्य सरकार और एचसी और 68 चयनित उम्मीदवार शामिल थे। उत्तरदाताओं से 28 अप्रैल तक जवाब देने की उम्मीद है।
(कुमुद प्रसाद जनचौक की सब एडिटर हैं।)
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