पटियाला जेल में बंद पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की रिहाई 26 जनवरी को तय मानी जा रही है।अचानक उनसे मिलने वाले कांग्रेसियों की तादाद में इजाफा हो रहा है। साफ संकेत मिल रहे हैं कि सलाखों से बाहर आने के बाद सिद्धू नए सिरे से नई सियासी पारी शुरू करेंगे।
जिक्रेखास है कि जेल में हाल-चाल लेने के बहाने उनसे मिलने वालों में ज्यादातर कांग्रेस के वे नेता हैं, जो किसी न किसी वजह से मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वडिंग से खफा हैं और उन्हें दरकिनार करने के बहाने ढूंढ़ रहे हैं। बीते दिनों कांग्रेस ने शहरी तथा ग्रामीण इकाइयों के अध्यक्ष नियुक्त किए थे और उसमें कभी नवजोत सिंह सिद्धू खेमे में शुमार रहे स्थानीय नेताओं को पूरी तरह हाशिए पर डाल दिया गया। कुछ के लिए सिद्धू ने जेल से सिफारिश की थी लेकिन उसे अनदेखा कर दिया गया और ऐसा ही सुलूक उनकी पत्नी नवजोत कौर सिद्धू की सिफारिशों की बाबत किया गया। हाशिए पर डाले गए स्थानीय कांग्रेसी नेता घोर असंतुष्ट तो हैं लेकिन ‘फायदेमंद पेशकश’ के बावजूद भाजपा या आम आदमी पार्टी में नहीं जा रहे। (अपवाद बहुत थोड़े हैं) बल्कि सिद्धू की रिहाई का इंतजार कर रहे हैं।
बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा था। इसकी एक वजह तत्कालीन मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और तब पार्टी की प्रदेश इकाई को संभाल रहे नवजोत सिंह सिद्धू के बीच की अदावत थी। दोनों के बीच की कड़वाहट जगजाहिर थी। सिद्धू मुख्यमंत्री पर हावी होने के लिए किसी भी हद तक चले जाते थे। उनकी पार्टी लाइन से इतर ‘बयान वीरता’ अथवा बड़बोलेपन खामियाजा भी पार्टी के लिए खासा नागवार साबित हुआ। नतीजतन कांग्रेस बुरी तरह हार गई और उसका ‘दलित मुख्यमंत्री’ बनाने का पैंतरा भी नाकामयाब हो गया।
कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी हरीश चौधरी ने हार के लिए सीधे तौर पर नवजोत सिंह सिद्धू की बयानबाजियों और मुख्यमंत्री विरोधी कारगुजारियों को जिम्मेदार ठहराते हुए पार्टी आलाकमान को उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए बकायदा चिट्ठी लिखी थी। अनुशासनहीनता के आरोपों का जवाब आलाकमान मांगता या उन्हें ‘दरबार’ में तलब करता, इससे पहले ही सिद्धू को एक साल की जेल हो गई। अगले महीने राहुल गांधी की बहुचर्चित पदयात्रा पंजाब दाखिल हो रही है और इस सिलसिले में हरीश चौधरी लगातार सूबे के नेताओं से खुद पंजाब आकर मिल रहे हैं। वह मीडिया से जब भी मुखातिब होते हैं तो इस बात पर जरूर जोर देते हैं कि “अब यहां अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं की जाएगी। जो भी पार्टी नीतियों और प्रदेशाध्यक्ष की अवहेलना करेगा, उसके खिलाफ तत्काल कार्रवाई की जाएगी।”
अलग से बताने की जरूरत नहीं है कि हरीश चौधरी का साफ इशारा नवजोत सिंह सिद्धू की ओर होता है। जेल में बैठे- बैठे वह किस तरह सियासी खेल, खेल रहे हैं–इस पर हरीश चौधरी और अमरिंदर सिंह राजा वडिंग की पैनी नजर है। सिद्धू के मन की थाह लेने के लिए कुछ वडिंग समर्थक नेता भी, उनका हितचिंतक होने के दावे के नाटक के साथ उनसे मिल रहे हैं। कुछ दिन पहले कभी नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ रहे कद्दावर कांग्रेसी नेता मनप्रीत सिंह बादल भी जेल जाकर सिद्धू से मिले थे। हालांकि मनप्रीत बादल के बारे में कहा जाता है कि फिलहाल वह किसी खेमे में नहीं हैं। खुद भी चुनाव हारने के बाद वह विदेश चले गए थे और हाल ही में लौटे हैं। सिद्धू से मिलना उनकी सुर्खियां बटोरने वाली अब तक की सबसे बड़ी घटना है।
मनप्रीत सिंह बादल उसी मालवा से हैं जिससे अमरिंदर सिंह राजा वडिंग आते हैं। गिद्दड़बाहा वह विधानसभा सीट है जो कभी बादल परिवार का गढ़ समझी जाती थी और मनप्रीत भी वहां से चुनाव लड़ते और जीतते रहे हैं। अब यहां से प्रदेशाध्यक्ष विधायक हैं और उन्होंने गिद्दड़बाहा में अपनी राजनीतिक जमीन काफी पुख्ता कर ली है लेकिन जहां वह एक तरफ सिद्धू की प्रस्तावित रिहाई से बेचैन हैं वहीं मनप्रीत सिंह बादल से भी। हार के बावजूद मनप्रीत का गिद्दड़बाहा में अच्छा खासा रसूख है और पंजाब में उन्हें कमोबेश धड़ेबंदी से दूर ही माना जाता है। आम नेताओं की अपेक्षा उनकी छवि ज्यादा साफ-सुथरी है। अमरिंदर राजा वडिंग की बेचैनी का सबब यह है कि कहीं सिद्धू खेमा मजबूत न हो जाए तथा नवजोत सिंह सिद्धू प्रदेश कांग्रेस प्रधान की कुर्सी पर बैठने की नाकामयाब कोशिश में मनप्रीत सिंह बादल के पक्ष में मुहिम न छेड़ दें। यह सारा कुछ सिद्धू पर टिका है कि रिहाई के बाद वह किस ‘एक्शन मोड’ में आते हैं।
नवजोत सिंह सिद्धू के करीबी कुछ नेताओं का कहना है कि वह जेल से बाहर आने के बाद कोई न कोई बखेड़ा जरूर खड़ा करेंगे। उधर, हरीश चौधरी दो-टूक कहते हैं कि अब पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव जीतने के मिशन पर है और इसमें जो भी आड़े आएगा, उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। सिद्धू के मामले में यह इतना आसान नहीं है। वह कांग्रेस आलाकमान के करीब हैं। यह खबर खूब वायरल हुई थी कि प्रियंका गांधी ने खत लिख कर सिद्धू से उनका हालचाल जाना था और कहा था कि वह रिहाई के बाद पार्टी को सशक्त करने के लिए अहम भूमिका निभाएं! यह खत मीडिया की सुर्खियां तो बना लेकिन इसकी पुष्टि कम से कम दिल्ली से तो नहीं की गई। फिर माजरा क्या था? फिलवक्त तो यह पहेली ही है।
पंजाब कांग्रेस का एक प्रभावशाली धड़ा इन खबरों को भी अपने तौर पर खूब वायरल कर रहा है कि राज्य के मुख्यमंत्री भगवंत मान से नवजोत सिंह सिद्धू के तब के रिश्ते हैं, जब मान कॉमेडियन के तौर पर अपना फन दिखाया करते थे और नवजोत उनके जज होते थे। ज्यादा अरसा नहीं हुआ, भगवंत मान बतौर कॉमेडियन और सिने कलाकार मुंबई में जड़ें जमाना चाहते थे (राजनीति में आने से ऐन पहले) और सिद्धू इसके लिए उनकी सहायता को सदा तत्पर रहते थे। मीडिया अब खुलकर कुछ नहीं कहता–लिखता है, इसलिए इन चर्चाओं पर मुख्यमंत्री से कभी सवाल नहीं हुए कि इन अफवाहों में कितनी सच्चाई है की जेल में सिद्धू को ‘कुछ राहत’ खराब स्वास्थ्य की आड़ में दी गई। जेल प्रशासन उनके प्रति बहुत ज्यादा नरम रहा। जेल व्यवस्था राज्य सरकार के अधीन आती है। समय से पहले सिद्धू की रिहाई की फाइल कब की पास हो चुकी थी। बेशक वह तय सजा से थोड़ा पहले ही रिलीज किए जा रहे हैं।
खैर, यह कोई बड़ा मामला नहीं है। कुछ ‘बड़ा’ होगा तो तब जब रिहाई के बाद नवजोत सिंह सिद्धू राजनीति में सार्वजनिक तौर पर दोबारा सक्रिय होंगे। उन्हें अच्छी तरह जानने वाले जानते हैं कि जेल के बिताए दिनों ने उनका स्वभाव और आदतें नहीं बदली होंगीं। अगर यह सही है तो वह बाहर आकर कांग्रेस के लिए न्यूनतम या अधिकतम, मुश्किलें ही खड़ी करेंगे! फिलवक्त तो आलम यह है कि उनकी रिहाई को उनके प्रबल समर्थक बकायदा जशन के तौर पर सेलिब्रेट करना चाहते हैं। यकीनन उसी दिन ही नवजोत सिंह सिद्धू के अगले कदम का खुलासा हो जाएगा।
(पंजाब से वरिष्ठ पत्रकार अमरीक की विशेष रिपोर्ट)