SC के बाद पंजाब-हरियाणा HC एक्शन में, कहा- राज्य ‘सामुदायिक सफाया अभियान’ तो नहीं चला रहा?

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पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने सोमवार को नूंह में दंगे के बाद हरियाणा राज्य प्रशासन की बुलडोजर चलाकर कथित अवैध निर्माणों को ध्वस्त करने की एकतरफा कार्रवाई पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने का निर्देश दिया है। कोर्ट की ओर से स्वतः संज्ञान की यह कार्रवाई हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार ही नहीं बल्कि केंद्र सरकार के लिए भी एक स्पष्ट चुनौती नजर आती है। कोर्ट की एक टिप्पणी की ओर देश का ध्यान गया है, जो बेहद असाधारण टिप्पणी कही जा सकती है। कोर्ट ने पूछा है कि क्या यह “सामुदायिक सफाया अभियान” (ethnic cleansing) का हिस्सा तो नहीं है?

31 जुलाई को हिंदू समुदाय की एक शोभायात्रा के नूंह शहर में पहुंचने पर दो समुदायों के बीच हुए संघर्ष, आगजनी के परिणाम स्वरूप नूंह और गुरुग्राम में व्यापक आगजनी और हिंसा की घटना में 6 लोगों की मौत हो गई थी। पिछले 3 वर्षों से यह शोभायात्रा निकलनी शुरू हुई थी, लेकिन इस बार की तैयारी कुछ अलग ही थी, जिसमें नूंह आने और देख लेने की सोशल मीडिया में हिन्दुत्ववादी और मुस्लिम समुदाय के बीच गर्मागर्म चर्चा थी। हरियाणा सरकार के पास ख़ुफ़िया जानकारी न हो इसका सवाल ही नहीं उठता। लेकिन नूंह के एसएसपी का छुट्टी पर चले जाना और शोभायात्रा में पुलिस से अधिक होमगार्ड और एसपीओ की तैनाती संदेह खड़े करती है।

ऐसा माना जाता है कि 6 लोगों की जान जाने और बड़े पैमाने पर वाहनों को आग के हवाले करने, और लूटपाट की घटना के बावजूद हरियाणा के व्यापक हिंदू-मुस्लिम समुदाय और विशेषकर जाट समुदाय ने इस नफरत में हिस्सेदार बनने से इंकार कर दिया, वरना 6 की जगह सैकड़ों लोगों को जानमाल से हाथ धोना पड़ सकता था। हरियाणा राज्य के मुख्यमंत्री ने अपनी प्रतिकिया में इसे सोची-समझी साजिश करार दिया और इसके दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा देने के प्रति आश्वस्त किया।

लेकिन कार्रवाई के नाम पर यूपी के बुलडोजर बाबा राज को अपनाते हुए नूंह में राज्य प्रशासन ने पिछले 4 दिनों से एक-एक कर सिर्फ मुस्लिम अल्पसंख्यकों की दुकानों, आवास, होटल और झुग्गियों को जिस प्रकार से बिना नोटिस दिए ही तोड़ना शुरू कर दिया था, वह भारतीय लोकतंत्र और संविधान की धज्जियां उड़ाने वाला था। बगैर किसी प्रमाण के सिर्फ इस बिना पर कि इस इलाके में हिंसा हुई, मुस्लिमों की संपत्ति को बुल्डोज कर दिया गया। यह कुछ ऐसा था कि जो काम दंगाई न कर सके, उस अधूरे काम को शासन अंजाम तक पहुंचाएगा। फिलहाल बुल्डोज करने की कार्रवाई पर रोक लगने के बावजूद सैकड़ों निर्माण स्थलों को ध्वस्त किया जा चुका है।

समाचार पत्रों में हरियाणा प्रशासन की एकतरफा कार्रवाई की रिपोर्टिंग का संज्ञान आखिरकार उच्च न्यायालय ने लिया है, जो स्वागत योग्य है। जस्टिस जीएस संधावालिया और हरप्रीत कौर जीवन की अदालत ने अपने नोटिस में कहा है, “द टाइम्स ऑफ़ इंडिया और द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि नूंह और गुरुग्राम में इमारतों को ध्वस्त किये जाने का काम जारी है। इस कार्रवाई के बारे में कहा जा रहा है कि जो लोग असामाजिक गतिविधियों में लिप्त थे, ये उनके अवैध निर्माण स्थल हैं।”

अदालत ने नोटिस में आगे कहा कि “खबर से पता चलता है कि अस्पताल के साथ लगे ये भवन व्यावसायिक, आवासीय और रेस्तरां थे, जो लंबे समय से अस्तित्व में थे, जिन्हें बुलडोजर चलाकर ध्वस्त कर दिया गया। खबर में यह भी कहा गया है कि गृहमंत्री ने स्वयं अपने बयान में कहा है कि चूंकि सरकार इस सांप्रदायिक हिंसा की पड़ताल कर रही है, इसलिए इलाज के तौर पर बुलडोजर उसी का हिस्सा है। संदर्भ के लिए इन खबरों को फाइल में संलग्न किया गया है। लार्ड ऐक्टन का कथन है- सत्ता भ्रष्ट बना सकती है, और सर्वाधिकार संपन्न सत्ता पूरी तरह से भ्रष्ट बना देती है।”

नोटिस में आगे कहा गया है, “ऐसी परिस्थितियों में हम राज्य को नोटिस जारी करने के लिए विवश हैं, और जैसा कि हमारे संज्ञान में आया है कि हरियाणा राज्य शक्ति का इस्तेमाल कर रही है, और भवनों को इस आधार पर ध्वस्त कर रही है कि नूंह और गुरुग्राम में कुछ जगहों पर दंगे हुए थे। जाहिरा तौर पर, बगैर ध्वस्तीकरण आदेश और नोटिस के ही विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन किये बगैर ही कानून-व्यवस्था का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह मुद्दा भी उठता है कि कहीं कानून-व्यवस्था की समस्या के नाम पर किसी खास समुदाय के भवनों को ही ध्वस्त तो नहीं किया जा रहा, और राज्य द्वारा यह कोई ‘सामुदायिक सफाया कार्रवाई’ तो नहीं चलाई जा रही है।”

कोर्ट ने कहा कि “हमारा यह स्पष्ट विचार है कि इस देश के प्रत्येक नागरिक को भारत का संविधान सुरक्षा प्रदान करता है, और कानून में उल्लखित प्रक्रिया का पालन किये बगैर इस प्रकार का कोई भी ध्वस्तीकरण नहीं किया जा सकता है। तदनुसार, हम हरियाणा सरकार को निर्देश जारी करते हैं कि वे सत्यापित करें कि पिछले दो सप्ताह में नूंह और गुरुग्राम में ऐसे कितने भवनों को धराशाई किया गया है, और यह भी बताये कि ध्वस्तीकरण से पहले कोई नोटिस जारी की गई थी या नहीं। यदि इस प्रकार का कोई ध्वस्तीकरण आज किया जाना है तो यदि कानूनसम्मत नहीं है तो इस पर रोक लगे।”

इस मामले की सुनवाई 11 अगस्त 2023 को होगी। क्षितिज शर्मा को इसका न्यायमित्र (एमिकस क्यूरी) नियुक्त किया गया है।

हरियाणा सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल बलदेव आर महाजन, अतिरिक्त एडवोकेट जनरल दीपक सब्बरवाल और श्रुति जैन गोयल इस कार्यवाही के दौरान उपस्थित थे, जिन्हें इसकी प्रतिलिप कोर्ट द्वारा सौंपी गई।

सवाल उठता है कि आखिर यह नौबत क्यों आई? पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के इस ऐतिहासिक आदेश का क्या महत्व है? क्या मणिपुर हिंसा पर सर्वोच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ के स्वतः संज्ञान के फैसले के बाद देश की तमाम हाई कोर्ट्स भी संविधान और नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए आगे आयेंगी?

सबसे प्रमुख बात यह है कि इस पूरी हिंसा की घटना को पूर्व नियोजित ढंग से चलाने के सबूत अब सार्वजनिक संज्ञान में मौजूद हैं। गौ रक्षा के नाम पर हरियाणा-राजस्थान सीमा पर असामाजिक तत्व गिरोह बनाकर काम कर रहे हैं और राज्य सरकार द्वारा ऐसे तत्वों को पुलिस सुरक्षा मुहैया कराई जाती है। मोनू मानेसर नाम का शक्स इस इलाके में मशहूर है, जिसे बजरंग दल का पदाधिकारी बताया जाता है। कुल दो घटनाओं में 3 मुस्लिम समुदाय के लोगों की हत्या का अपराधी पिछले कई महीनों से हरियाणा में छुट्टा घूम रहा है और राजस्थान पुलिस को उसकी भनक ही नहीं लग पा रही है।

नूंह हिंसा के पीछे भी प्रमुख उत्प्रेरक के रूप में इसी की भूमिका बताई जा रही है। मजे की बात यह है कि नूंह हिंसा से करीब एक सप्ताह पूर्व दैनिक भास्कर में इसका इंटरव्यू छपा/वीडियो आया था। हिंसा के बाद भी इसके बयान आ रहे हैं। इसी प्रकार फरीदाबाद का बिट्टू बजरंगी शोभा यात्रा से पहले अपमानजनक बयान का वीडियो जारी करता है, और नूंह के मुस्लिम युवाओं और अराजक तत्वों को खुली चुनौती देता है। उसे भी हरियाणा में जमानत मिल जाती है।

चूंकि हिंसा स्थल नूंह था, इसलिए सारी सजा वहां के स्थानीय लोगों को दी जा रही है। इसी को यदि नजीर मान लें तो कल से देशभर में असामाजिक तत्वों को जहां-जहां पर बुलडोजर चलवाना हो, वहां पर हिंसा और आगजनी को अंजाम देकर, राज्य प्रशासन को आगे का काम पूरा करने के लिए आमंत्रित किया जा सकता है। इस अंधेरगर्दी के राज में विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र होने का दम भरने वाले हमारे प्रिय प्रधानमंत्री के पास नूंह से बड़ा सवाल मणिपुर का मुंह बाए खड़ा है।

मणिपुर राज्य की जनता ही नहीं भारत, अमेरिकी राजदूत और यूरोपीय संसद द्वारा पीएम मोदी से चुप्पी तोड़ने की विनती के बाद शायद अब जी-20 की मेजबानी के दौरान ही इसका राज खुले तो खुले। लेकिन देश की सर्वोच्च अदालत के बाद पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट का यह आदेश साफ़ इशारा करता है कि पानी अब नाक तक पहुंच गया है, और अब राज्य की स्वच्छंद निरंकुश तानाशाही वाली कार्रवाई पर समाज की ओर से भी आवाज उत्तरोतर तेज हो।

(रविंद्र पटवाल ‘जनचौक’ की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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