दूर नहीं हुए चीन से संबंध पर संदेह 

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नरेंद्र मोदी सरकार चीन से भारत के संबंध पर बहस के लिए तो राजी नहीं हुई, लेकिन विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस बारे में संसद में बयान दिया। (https://www.mea.gov.in/Speeches-Statements.htm?dtl/38665/Statement+by+External+Affairs+Minister+Dr+S+Jaishankar+in+Lok+Sabha)

इसमें उन्होंने लगभग वही बातें दोहराई, जो पहले कई दूसरे मंचों पर वे कह चुके हैं। फिर भी संसद में दिए बयान का अपना वजन होता है। इस वक्तव्य से अब देशवासियों के सामने यह साफ है कि 2020 में बनी परिस्थितियों पर नरेंद्र मोदी सरकार की समझ और रुख क्या है।

इसके सार को समेटते हुए अंग्रेजी के एक अखबार ने सटीक हेडिंग दी है, जिसका अर्थ है कि अब ध्यान चीन को पीछे लौटाने से हट कर सीमापार चीनी सेना के जमाव पर केंद्रित हो गया है। 

मतलब यह कि भारत ने दो टूक एलान कर दिया है कि अब भारत की कोई जमीन चीनी सेना के कब्जे में नहीं है। मुद्दा सिर्फ यह बचा है कि चीन ने सीमापार अपनी तरफ सेना का भारी जमाव कर रखा है। यह 1993 में बनी सहमति का उल्लंघन है, जब दोनों देशों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सेना का जमाव ना करने का वादा किया था। 

https://www.telegraphindia.com/india/focus-shifts-to-chinas-retreat-from-border-and-troop-amassment-says-jaishankar/cid/2068002

संक्षेप में जयशंकर के बयान का कुल सार यह हैः

  • दोनों देशों के संबंध में सुधार हुआ है।
  • सीमा पर आमने-सामने तैनात सेनाओं को वहां से हटाने का काम पूरा हो चुका है।
  • अब अगली प्राथमिकता यह सुनिश्चित करना है कि चीन ने सीमापार अपनी सेना का जो भारी जमाव कर रखा है, उसे वह हटाए। 

विदेश मंत्री ने चीन से रिश्तों के बारे में भारत की तरफ से तय किए तीन सिद्धांतों को दोहरायाः 

  • दोनों पक्ष वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का सम्मान एवं पालन करें 
  • दोनों में से कोई भी देश एकतरफा ढंग से यथास्थिति को बदलने का प्रयास ना करे और, 
  • अतीत में हुए समझौतों एवं बनी सहमतियों का दोनों पक्ष पूरा आदर करें। 

मगर विदेश मंत्री ने यह नहीं बताया कि भारत की चीन से अब तक जो वार्ताएं हुई हैं, उनमें इन सिद्धांतों पर चीन की क्या प्रतिक्रिया रही है। उन्होंने नेहरू सरकार के समय भारत ने जो जमीन चीन के हाथों गंवाई, उसका विस्तार से जिक्र किया।

लेकिन इस सवाल पर सफाई नहीं दी कि क्या अप्रैल 2020 में चीनी सेनाएं ने लद्दाख में उन इलाकों में घुसी थीं, जिन पर तब तक भारत का नियंत्रण था? चूंकि उन्होंने इसका उल्लेख नहीं किया, इसलिए यह भी नहीं बताया कि क्या एलएसी पर अप्रैल 2020 के पहले की स्थिति बहाल हो गई है? 

वैसे आरंभ से ही मोदी सरकार का रुख यह रहा है कि 2020 में चीन ने कोई घुसपैठ नहीं की। 19 जून 2020 को ही सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एलान कर दिया था कि ‘ना कोई घुसा है और ना ही कोई हमारी चौकी पर कब्जा किए बैठा है।’ चीन से किसी इलाके को मांगने की बात पर वहीं विराम लग गया था। 

इसके बावजूद मीडिया रिपोर्टों में, और यहां तक पुलिस महानिदेशकों की बैठक में लद्दाख पुलिस की तरफ रखी गई रिपोर्ट में भी, दावा किया गया कि चीन ने अप्रैल 2020 के बाद भारतीय इलाके में बड़ी घुसपैठ की।

दो हजार से चार हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर चीन के कब्जा करने की चर्चा तब से रही है।

बाद में ऐसी खबरें भी छायी रहीं कि जिन खास बिंदुओं पर चीनी सेना घुस आई थी, वहां वो अब भी बनी हुई है, जबकि पहले भारत के नियंत्रण में रहे इलाके पर पांच किलोमीटर तक का बफर जोन बनाने पर चीन ने भारत को राजी कराया।

इन खबरों के लिहाज से देपसांग और देमचोक ऐसी पहली जगहें हैं, जहां से चीनी सेना पीछे लौटी है। मगर वह वापसी भी सशर्त है। समझौता हुआ है कि दोनों देशों के सुरक्षा बल एक दूसरे को पूर्व सूचना देकर वहां तक गश्त लगा सकेंगे। यानी चीनी फौज ने भी वहां तक गश्त लगाने का अधिकार बनाए रखा है। 

इस चर्चाओं से संबंधित किसी सवाल का जवाब विदेश मंत्री के बयान से नहीं मिला। शायद इन पहलुओं पर देश में मौजूद संदेह को दूर करने में अधिक सफलता मिलती, अगर केंद्र इस मुद्दे पर पूरी बहस के लिए राजी हो जाता। जिन मुद्दों पर बहस के लिए विपक्ष ने संसद की कार्यवाही रोक रखी थी, उनमें एक यह भी था।

चूंकि बहस नहीं हुई, इसलिए भारत-चीन संबंध पर सरकार की समझ एवं उसका पक्ष तो सामने आया, लेकिन इस मुद्दे पर जो दूसरी समझ रही है, उसकी अभिव्यक्ति संसद में नहीं हुई। इस तरह देशवासी यह तो समझने की अब बेहतर स्थिति में हैं कि चीन के मामले में नरेंद्र मोदी सरकार का क्या रुख है, मगर उनके एक बड़े हिस्से के मन में जो सवाल और संदेह हैं, उनका निवारण नहीं हुआ है। 

गौरतलब है कि कई रक्षा विश्लेषकों की राय में लद्दाख सेक्टर में सेना का जमाव करने से पहले चीन ने ऐसी व्यूह रचना की, जिससे पहले यह वादा भारत तोड़े। दोकलाम में भारत इस जाल में फंस गया, जब उसने चीन के इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण को रोकने के लिए अपनी सेना भेज दी। उससे मिले तर्क का इस्तेमाल 2020 में चीन ने किया।

(https://www.youtube.com/watch?v=lwkVMlT5W1M)

कुछ अन्य परिस्थितियां ऐसी निर्मित हुईं, जिन्हें चीन को नई घुसपैठ के लिए तर्क बनाया। (https://www.youtube.com/watch?v=0SQ1y4xQAhA)। क्या इनसे संबंधित बातों में सच्चाई है? क्या चीन ने भारत से हुई वार्ताओं के दौरान ऐसी बातें कही हैं? चीन ने 2020 में आकर अचानक आक्रामक रुख क्यों अपना लिया, इस बारे में क्या कोई सफाई चीन ने भारत सरकार को दी है? 

अगर ऐसी चर्चा रही है, तो उसका सटीक जवाब देना भारत सरकार की जिम्मेदारी बनती है। वरना, भारत-चीन संबंध पर भारतीय जनमत के एक बड़े हिस्से में संदेह बना रहेगा। 

भारत-चीन संबंधों में सुधार होना सकारात्मक घटनाक्रम है। चीन से आर्थिक संबंध की जरूरत देश के बड़े हिस्से में महसूस की गई है। इसके अलावा आज की तेजी से बदल रही भू-राजनीतिक परिस्थितियों के बीच भी चीन से टकराव भारत के हित में नहीं है। फिर भी यह सवाल महत्त्वपूर्ण है कि संबंधों में सुधार किस कीमत पर हो रहा है? 

विदेश मंत्री के बयान जयशंकर के ताजा बयान से ऐसे प्रश्नों के उत्तर नहीं मिले हैं। इसलिए इस बयान के बावजूद चीन संबंधी प्रतिकूल चर्चाओं पर विराम नहीं लगेगा। इस रूप में विदेश मंत्री की इस पहल का बहुत सार्थक परिणाम नहीं होगा।  

(सत्येंद्र रंजन वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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