Friday, April 19, 2024

बस्तर का बहिष्कृत भारत-3: धर्मान्तरण बनाम घर वापसी

छत्तीसगढ़ के दक्षिण में स्थित बस्तर संभाग में आज “धर्मान्तरण बनाम घर वापसी” का मुद्दा काफी गरमाया हुआ है। देश भर के हिंदू संगठनों का मानना है कि बड़ी संख्या में दलित, आदिवासी, गरीब और दूर-दराज इलाकों में रहने वाले लोग ईसाई धर्म को अपना रहें हैं। अगर इनकी बात को मानें तो ईसाई मिशनरियों और अन्य लोगों की तरफ से चलाए जा रहे धर्मान्तरण अभियान के जवाब में “घर वापसी अभियान” को फिर तेज करने का निर्णय किया गया है।

इस सवाल को लेकर पूरे बस्तर संभाग में आदिवासियों के बीच एक भयानक और डरावना तनाव और तकरार की स्थिति बनी हुई है। दरअसल भारत को हिंदू राष्ट्र के रूप में औपचारिक घोषणा करने के धुन में लंबे समय से अभियान चलने वाला संघ परिवार एक मनोवैज्ञानिक एवं भावनात्मक रणनीति के तहत, मुसलमान और ईसाई को बाहरी और दुश्मन के रूप में प्रस्तुत करता आया है। इनके अनुसार हिंदू धर्म के ऊपर खतरे की तलवार लटक रही है। इस अभियान को आदिवासी इलाकों में हिंदू धर्म के बजाय आदिवासी संस्कृति के ऊपर एक महासंकट ईसाई विश्वास से पैदा हो रहा है, ऐसा कहकर प्रस्तुत किया जा रहा है। इस तरह के संगठनों का दावा है कि मिशनरी लोगों के द्वारा जोर जबरदस्ती कर, लालच देकर लोगों को ईसाई बनाकर अपने ईसाइयत की वृद्धि कर रहा है जिसको रोकने के लिए “घर वापसी” एक अनिवार्य कदम है।

घर वापसी को विभिन्न रूप से जैसे घर वापसी, रूपांतरण, पुन: रूपांतरण और वापसी के रूप में अनुवादित किया गया है। इसकी जड़ें आर्य समाज और संघ के आंदोलनों में निहित हैं। इसे “पुनर्ग्रहण”, “शुद्धि”, “परावर्तन”, “वापस मुड़ना” आदि शब्दों से जाना जाता है। इन सभी लेबलों से यह अंकित किया जाता है कि लोगों को उनकी “मूल” या “पुरानी” स्थिति में वापस लाने का प्रयास किया जा रहा है जिसे “स्वाभाविक” स्वरूप भी कहा जाता है। इसमें शुद्धीकरण और घर वापसी की अवधारणाओं को अक्सर एक दूसरे से जोड़कर परस्पर संबंधित देखा जा सकता है, जिसकी जड़ें सावरकर, हेडगेवार, दयानंद सरस्वती और अन्य आर्य समाजियों के कार्यों में मिलती है।

बस्तर में जबरन धर्मान्तरण की जमीनी सच्चाई

बस्तर संभाग में इन संगठनों का दावा है कि मिशनरी लोगों को जोर जबरदस्ती कर, पैसा देकर, लालच देकर लोगों को ईसाई बना रही है। इस पर एक तथ्यान्वेषण करना बहुत जरुरी है। इसी से पता चल सकता है कि इनमें से कौन-कौन से कारक यहां कार्यरत हैं।

मनकूराम मांडवी 2009, से यीशु मसीह को मान रहे थे। कोंडागांव जिले के फरसगांव तहसील के कोन्गुडा गांव के रहने वाले मनकूराम बीमारी के दौरान कई जगह अपना ईलाज करवाए, कई बैगा-गुनिया को दिखाया, कई देवी देवताओं के सामने दीप, कलश जलाये, कई प्रकार के ताबीज बंधन बांधे, पर उन्हें स्वास्थ्य लाभ नहीं मिला। इन परिस्थितियों में वे प्रार्थना सभा में जाने लगे। वे कहते हैं कि “मैंने कोई धर्म परिवर्तन नहीं किया, हाँ मैंने मनपरिवर्तन जरूर किया है। जब मेरी छाती में दर्द उठता था और मेरे घुटने में पीड़ा होती थी, तब मैं न चल फिर सकता था और न ही उठ पाता था। मरणासन्न अवस्था में मुझे कहीं चंगाई नहीं मिली सिवाए यीशु मसीह के। ऐसे में मैं यीशु को क्यों छोड़ूं? और यही वजह है कि मैंने स्वयं 2012 में खुद से बपतिस्मा भी ले लिया।”

लेकिन मनकूराम के साथ तीन दफा गांव के लोगों ने मारपीट की ताकि वे यीशु मसीह पर अपनी आस्था छोड़ दें। वे बताते हैं, “चाहे जान भी चली जाए, पर अब मसीहियत से पीछे नहीं हटने वाला हूँ।”

अपनी आपबीती सुनाते आरती देवांगन और योगेश देवांगन

मनीराम नायक, बस्तर जिले के जगदलपुर ब्लाक, के बोधघाट थाना अंतर्गत आने वाले सरगीपाल गांव के रहने वाले हैं। वे लगभग 10 साल से मसीहियत में जी रहे हैं। उनके साथ भी गांव में कई बार कई घटनाए हुई हैं। इनका कहना है कि “हम मसीह को जान लिए हैं तो गुलामी से आजाद हो गए हैं। अब हम उनकी गुलामी करने नहीं जाते, अपना जीवन इज्ज़त के साथ जीते हैं। जातिवादी लोग हमको गुलाम बनाकर रखना चाहते हैं, इसलिए वे लोग धर्मान्तरण के नाम पर हल्ला करते हैं, और घर वापसी का नाटक करते हैं। मेरे साथ भी कई प्रकार का दबाव बनाने का प्रयास हुआ।”

वे आगे बताते हैं कि किस तरह से बाहरी लोग गांव में आकर आदिवासियों को हिंदू राष्ट्र के बहाने भड़काते रहते हैं। आदिवासियों को कहा जाता है कि तुम्हारा धर्म और संस्कृति खतरे में है, क्योंकि गांव के लोग ईसाई बन गए हैं। इनके बहकावे में आकर आदिवासी और बाकी समाज धर्मान्तरण से घर वापसी करने के लिए विश्वासियों को धमकी, मारपीट, जमीन छीनना, घर तोड़ना, प्रार्थना बंद करवाना, मृत लोगों को दफ़नाने न देना, शुद्धीकरण के बहाने दारू, मुर्गा, बकरा ऐंठना, आर्थिक दंड लगाना इत्यादि करते रहते हैं।

जिम्लो कावडे वेक्को, बस्तर जिले के बस्तरनार पंचायत, के किस्केपारा की रहने वाली है। अपनी आपबीती बताते हुए वो कहती हैं कि वो ससुराल में लंबे समय से घरेलू हिंसा की शिकार रहीं हैं। इसका मुख्य कारण यह था कि वो मानसिक रोग से ग्रसित थीं। मायके वाले कई बार उनका इलाज करवाएं। जिम्लो कहती है, “दोनों मायके और ससुराल वाले कई सारे बाबा, बैगा, गुनिया के पास ले गए, कई जगह मंदिर में नारियल-कलश चढ़ाए, कई सारे देवी-देवताओं के व्रत रखवाएं, पर मैं बिल्कुल भी ठीक नहीं हो सकी। ऐसे में मुझे किसी ने 2010 में प्रार्थना के लिए ले गए, जिसके बाद मैं चंगी हो गई। बाद में 2016 में मैं अपनी इच्छा से बपतिस्मा भी ले ली।”

जिम्लो आगे कहती हैं कि उसके ऊपर सर्व आदिवासी समाज के नाम से घर वापसी के लिए कई दफा मारपीट और अन्य दबाव बनाये गए और अंत में पति ने उसे अपनी आस्था के कारण छोड़ दिया। “समाज बैठा और दो बार मेरी घर वापसी हुई। पहला 2016 में और दूसरा 2018 में। पर मैं फिर भी चर्च चली जाती थी। मुझे वहां प्रभु यीशु के बारे में सुनकर शांति मिलती थी। कई बार मुझे मारा पीटा भी गया। दोनों बार समाज के दबाव में मैंने उस समय के लिए ‘हां’ बोल दिया पर अब मैं यीशु मसीह को छोड़कर नहीं जी सकती। उसी ने मुझे नया जीवनदान दिया है। फिर तीसरी बार पिछले वर्ष 2021 में दीवाली के आसपास बैठक हुई, पहले की तरह मैं इस बार भी ‘हां’ कहा पर ऐन वक्त पर वहां से अपने बच्चों के साथ भाग गई।” वो अब अपने बच्चों के लेकर अलग से एक झोपड़ी बनाकर रहती है।

बीजापुर के जैतालूर कॉलेज में रह रहे बलविंद कुडियमी दरअसल अपने गांव से भागकर यहां आकर रह रहे हैं। उनके ईसाई विश्वास के विपरीत उन पर घर वापसी का दबाव दोरला समाज के नाम से बनाया गया। उन्हें बताया गया कि “यीशु को छोड़ दो, और समाज में मिल जाओ।” जब उन्होंने मना किया तो उस पर फर्जी आरोप लगाकर उसे माओवादियों के सामने पेश किया गया क्योंकि वह पुलिस का मुखबिर है। माओवादियों ने उसे खूब पीटा और अधमरे हालत में वह गांव से भागकर अब बीजापुर शहर में रह रहा है। वे कहते हैं कि “मैंने अपनी मर्ज़ी से यीशु मसीह को स्वीकार किया है, क्योंकि वही जीवन है। मुझे मारो पीटो और जान भी ले लो पर अब मैं मसीह को नहीं छोड़ सकता।”

बीजापुर जिले के ही कुर्सन अन्कैय्या, को गांव के ही लोगों ने रास्ते में जाते समय रोककर बोला कि “चर्च जाना छोड़ दो, घर वापसी कर लो, समाज में मिल जाओ।” कुर्सन बताते हैं, “मैंने स्वयं अपनी इच्छा से प्रभु यीशु मसीह को अपनाया। पर वे लोग चाहते थे कि मैं फिर से हिंदू बन जाऊ। बहुत बड़ी भीड़ आई और मुझे मेरे घर से निकालकर फेंक दिया। सभी सामानों को बाहर फेंककर मेरे साथ मारपीट कर मुझे भगा दिया।”

इस मामले को लेकर कुर्सन थाना में भी गया था और एक शिकायत भी दर्ज करवाई थी। पर क्या इसको पुलिस वालों ने इसे एफआईआर (प्राथमिकी), के रूप में परिवर्तित किया है या नहीं, यह उसको नहीं पता। घर और गांव से निकाले जाने के बाद आतंकित कुर्सन एक हफ्ता किसी रिश्तेदार के घर जाकर छुपकर रहे।

परमिला नेताम, अब लंजुदा गांव में रहती हैं। उसे अपने ससुराल और मायके दोनों से निकाल दिया गया है क्योंकि वह यीशु मसीह पर विश्वास करने लगी है। उसका अपना गांव कोंडागांव जिले के फरसगांव अंतर्गत आने वाला मंझिपुरम है। यहीं उसका मायका और ससुराल दोनों है। परमिला बताती हैं, “2020 में पूर्ण रूप से स्वेच्छा से विश्वासी बनीं। तब से दोनों पक्ष के लोगों ने कई सारे प्रताड़ना समाज के नाम से दिए। दो-तीन बार सामाजिक बैठक भी हुई। समाज वाले भी आये। ससुराल, मायका और समाज वाले सभी ने बोला कि या तो यीशु मसीह को छोड़ दो या फिर गांव। मैंने गांव छोड़ दिया।”

नई आशा और उम्मीद के साथ अपने बच्चे को अकेले संभालती परमिला

यहां यह बात स्पष्ट करनी जरूरी हो जाती है कि यहां जो बातें पेश की गयी हैं वो जनता की अपनी आपबीती कहानियां हैं। ये उदाहरण सिर्फ इसलिए दिए गए हैं जिससे विरोधियों के उस आरोप का खंडन किया जा सके जिसमें उनका कहना है कि लोग ईसाई धर्म किसी लालच के चलते स्वीकार करते हैं। लेकिन इन उदाहरणों से कतई यह निष्कर्ष नहीं निकाला जाना चाहिए कि किसी बीमारी या फिर परेशानी का ईलाज किसी धर्म या फिर किसी अन्य अंध आस्था के प्लेटफार्म पर संभव है। उसका निश्चित तौर पर अगर कोई ईलाज होगा तो वह चिकित्सकीय होगा। जिसमें बीमारी की पहचान और उसके मुताबिक दवा उसका अभिन्न हिस्सा हो जाता है।

क्या है घर वापसी की सच्चाई?

ऊपर की पंक्तियों में इस संदर्भ में कुछ बातों को दर्शाया गया है, पर इस प्रक्रिया को बेहतर समझने के लिए इसके तंत्र को समझा जाना ज्यादा जरुरी होगा। इस कारण से ग्राउंड जीरो से मिली कुछ घटनाओं को इसमें दर्शाया गया है।

दंतेवाड़ा जिले के दंतेवाड़ा तहसील के पोंडम गांव, में 6 अप्रैल 2019 को धार्मिक कट्टरपंथियों ने एक नए विश्वासी जोड़े को अपनी आस्था के चलते गांव छोड़ने को कहा। कट्टरपंथियों ने धमकी दी कि यदि वे उनका कहना नहीं मानेंगे तो उन्हें मार दिया जाएगा। दंपति ने हाल ही में ईसाई धर्म स्वीकार किया था और करीब 12 किलोमीटर दूर पास के गांव में आराधना के लिए जाते थे। उन्होंने चरमपंथियों के डर से अपने घर पर कभी कोई प्रार्थना सभा आयोजित नहीं की।

7 नवंबर 2019 को, उत्तर बस्तर (कांकेर) जिले के कांकेर तहसील के पथरीरी गांव में ग्रामीणों ने कामेश्वर दुग्गर और अन्य लोगों को बहुत बुरी तरह से मारा पीटा। अपने ईसाई विश्वास के कारण जब कामेश्वर और उनके साथी हिंदू देवताओं की पूजा करने से मना किये तब सबसे पहले उनको धमकाया गया और जब फिर से इंकार किए तब उनके साथ मारपीट की गई।

13 जनवरी 2020, को कोंडागांव जिले में एक विश्वासी परिवार को चार धार्मिक कट्टरपंथियों द्वारा लगातार उत्पीड़न करने की सूचना सामने आई थी। कट्टरपंथी लोग ईसाई परिवार को मसीह में अपने विश्वास को छोड़ने के लिए दबाव डाल रहे थे। वे मसीही परिवार की जमीन को जबरदस्ती हथियाने और उसे एक सार्वजनिक तालाब में बदलने पर आमादा थे।

30 मार्च 2020, को दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा जिले के कटेकल्याण तहसील में एक विश्वासी परिवार को हिंदू धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया गया। यह घटना शाम के आसपास हुई, जब आयतुराम, मदाराम और सुक्कोरम के नेतृत्व में लगभग 120 लोग संतुराम मरकाम, हंडोराम मरकाम, मनुराम मरकाम और उनकी मां अंगरी मरकाम से मिलने आए और मांग की कि वे अपने ईसाई धर्म को छोड़कर हिंदू धर्म में लौट आएं। जब परिवार ने इंकार किया तब तीनों पुरुषों को बेरहमी से पीटा। कट्टरपंथी लोगों ने एक शुद्धीकरण समारोह आयोजित करने के इरादे से दंड स्वरुप रुपये 5,000, एक बकरी, एक सुअर, एक मुर्गी, कुछ नारियल, और धूप देने की मांग की। ईसाइयों को चेतावनी दी गई है कि यदि वे इसका पालन नहीं करते हैं, तो उन्हें गांव से बहिष्कृत कर दिया जाएगा।

7 अप्रैल 2020 को, सुकमा जिले के गदिरस गांव में 150 ग्रामीणों की भीड़ ने एक महिला, मडावी दुर्गी और उसके पति मडावी भीमा को ईसाई धर्म को त्यागने और घर वापसी करने के लिए परेशान किया और धमकी दी। ग्रामीणों ने इस कर्मकांड हेतु बकरा, नारियल और धन की मांग की। जब दंपति ने साफ़ मना कर दिया तब ग्रामीणों ने दोनों को उनके ही घर में बंद कर गांव छोड़ने का आदेश दिया। डर के मारे वे दोनों भाग निकले और पास के जंगल में शरण लिए।

15 मई 2020, को दंतेवाड़ा जिले में दो विश्वासी – रंगमा नाग और उनके बेटे गौरी शंकर नाग – पर गांव की बैठक के दौरान अपने ईसाई धर्म को छोड़ने के लिए दबाव डाला गया। बैठक सुबह 8 बजे बुलाई गई, जहां ग्रामीणों ने मांग की कि दोनों अपनी ईसाई मान्यताओं को त्याग दें या गांव छोड़कर चले जाएं। करीब 10 बजे गांव के और भी लोग पहुंचे की व्यापक दबाव बनाया जाए। इसके बाद मुखिया ने एक महीने की अवधि की घोषणा कि जिस दौरान वे दोनों अपना निर्णय गांव में बता देंं।

1 जुलाई 2020, को कोंडागांव जिले के मोहनबेड़ा गांव में धार्मिक उग्रवादियों की भीड़ राम वटी और लक्ष्मण वटी के खेत में घुसकर उनके मकई के खेत को नष्ट कर दिया। उग्र भीड़ ने उन्हें धमकी दी कि वे या तो अपना ईसाई धर्म छोड़ दें या गांव छोड़ दें। ऐसा करने से इनकार करने पर हमलावरों ने परिवार के सदस्यों के साथ हाथापाई की और घरों में तोड़फोड़ भी। बाद में पुलिस मौका-ए-वारदात पर पहुंची और पीड़ितों के घर के बाहर खुद को तैनात कर लिया। व्यावहारिक रूप से परिवार वालों को पुलिस ने नजरबंद कर लिया।

2 सितंबर 2020, को बस्तर जिले के लोहंडीगुड़ा तहसील के बदरेगा गांव में धार्मिक चरमपंथियों की एक भीड़ ने जगरा कश्यप (45) और उनके बेटे आशाराम कश्यप (20) को इसलिए मार मारकर अधमरा कर दिया क्योंकि दोनों ने ईसाई धर्म छोड़ हिंदू धर्म में वापस लौट आने से मना कर दिया था।

11 सितंबर 2020, को छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले में कुछ धार्मिक चरमपंथियों ने राज कुमार नाम के एक विश्वासी को अपनी ईसाई मान्यताओं को त्यागने और पवित्र अनुष्ठान करके अपने धर्म में परिवर्तन करने के लिए मजबूर किया। उन्होंने धमकी दी कि अगर वे अपने परिवार के साथ गांव में रहना चाहते हैं तो ईसाई धर्म छोड़ दें या फिर गांव छोड़ दें। आगे उसे और उसके परिवार को धमकी दी कि अगर उसने उन्हें उपकृत नहीं किया तो गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।

26 सितंबर 2020, को दंतेवाड़ा जिले के कोरलापाल ग्राम पंचायत में ईसाइयों के एक समूह को धर्म में वापस लौटने के लिए मजबूर किया। गांव की आमसभा की बैठक में 80 से 90 लोगों की भीड़ ने उन्हें धमकाया और तीन घंटे तक उन पर दबाव बनाया। पीड़ितों ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन किया, लेकिन कोई मदद नहीं मिली। आखिरकार डर और अपने परिवार के सदस्यों की सुरक्षा के लिए कुछ ईसाई परिवारों ने धर्म परिवर्तन के कर्मकांड में भाग लिया। शेष लोगों ने हिस्सा नहीं लिया। इस जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ कोई पुलिस शिकायत या प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई थी।

1 नवंबर 2020, को बीजापुर जिले के जैतालूर गांव में ईसाई धर्म अपनाने वाले कई परिवारों को बलपूर्वक अपने पिछले धर्म में वापस लाया गया। उन्हें डराया धमकाया गया कि यदि वे ईसाई धर्म का पालन करना जारी रखते हैं तो इन परिवारों पर उनकी भूमि और संपत्ति से बेदखल होना पड़ेगा। ऐसा ही एक बलपूर्वक घर वापसी 2 नवंबर 2020 को बीजापुर के चेरामंगी ग्राम पंचायत के वरदाद गांव में भी हुआ।

7 जनवरी 2021, को नारायणपुर जिले के अभूझमाड गांव में दो ईसाई परिवारों को गांव के मुखियाओं ने धमकी दी कि या तो अपना विश्वास छोड़ धर्म परिवर्तन कर ले या गांव छोड़ दें। पीड़ितों में से एक आयातु मंडावी माओवादी बहुल गांव में रहता है और डर के साए में जी रहा है। इस घटना के पहले से ही ईसाई पादरी को गांव में प्रवेश करने से मना किया गया है।

19 दिसंबर 2021, को दंतेवाड़ा जिले के कटेकल्याण के मट्टाडी गांव में एक बैठक आयोजित की गई जिसमें गांव के विश्वासियों को बुलाया गया और धमकी दी गई कि वे अपने विश्वास को त्यागें। इस गांव में हर अगले दिन ग्राम परिषद की बैठक का आयोजन होता रहा, जहां ईसाई धर्म अपनाने वालों को धमकाया जाता था कि वे यीशु मसीह पर विश्वास करना छोड़ दें और घर वापसी कर लें। उन्हें लगातार सामाजिक बहिष्कार और जान से मारने की धमकी दी जाती रही है। पीड़ित लोगों में लक्ष्मण मंडावी, सोमाडु वाको, बुधराम मंडावी, संनु मरकामी, संजू मंडावी, मनोहर मंडावी, सुक्को वाको, अयातु वाको, होपे वाको, बुधरी वाको, आएते मंडावी, बुटकी मंडावी, लक्मे मंडावी, हिड़मे मरकामी शामिल हैं।

क़ानून और धर्म की स्वतंत्र

भारत के संविधान का अनुच्छेद 25 कहता है कि सभी व्यक्ति समान रूप से अंत:करण की स्वतंत्रता और स्वतंत्र रूप से धर्म के आचरण, अभ्यास और प्रचार के अधिकार के हकदार हैं। यह न केवल धार्मिक विश्वास (सिद्धांत) बल्कि धार्मिक प्रथाओं (अनुष्ठानों) को भी कवर करता है। ये अधिकार सभी व्यक्तियों-नागरिकों के अलावा गैर-नागरिकों के लिए भी उपलब्ध हैं। लेकिन बस्तर में इसमें से कुछ भी लागू नहीं है।

बस्तर के स्थानीय पास्टर भूपेन्द्र खोरा कहते है कि आदिवासी तथा अन्य लोग अपनी स्वतंत्र इच्छा से ईसाई धर्म स्वीकारते हैं। कोई भी व्यक्ति छल, बल या लोभ के द्वारा धर्मांतरण नहीं करता। ऐसा करना छत्तीसगढ़ धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध है और मसीही समुदाय कानून का पालन करने वाला है। खोरा ने दावा किया कि “इसके ठीक विपरीत तथाकथित घर वापसी मे आदिवासी व अन्य ईसाइयों पर दबाव डालकर और कई बार हिंसा, सामाजिक बहिष्कार और कई प्रकार से प्रताड़ित करके हिन्दू धर्म स्वीकार करने के लिए विवश किया जा रहा है।”

छत्तीसगढ़ लीगल ऐड सेंटर के संयोजक अधि. सोनसिंग झाली के मुताबिक एक धर्म से दूसरे धर्म मे धर्मांतरण करने पर छत्तीसगढ़ धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम के विभिन्न प्रावधान लागू होते हैं। झाली कहते है, “आदिवासी तथा अन्य किसी धर्म से ईसाई धर्म स्वीकार करने पर अक्सर इस अधिनियम के तहत ईसाइयों के ऊपर झूठे मुकदमे दायर किए जाते हैं, परंतु आज तक किसी भी प्रकरण मे न्यायालय मे कोई आरोप सिद्ध नहीं हो पाया है। परंतु ईसाई धर्म का परिपालन करने वाले आदिवासियों और अन्य लोगों को हिन्दू बनाए जाने पर उसे धर्मांतरण न कह कर घर वापसी कहा जाता है, तथा धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम का कोई प्रावधान इसमें लागू नहीं होता।”

इस संदर्भ में पीयूसीएल के प्रदेश अध्यक्ष डिग्री प्रसाद चौहान का कहना है कि धार्मिक अल्पसंख्यकों को देश के संविधान में समानता के अधिकार के तहत सुरक्षा प्राप्त है। अनुच्छेद-14 एवं अनुच्छेद-16 उन्हें देश के कानूनों के तहत समान सुरक्षा की गारंटी देता है तथा धार्मिक आधारों पर उनके साथ किसी तरह के भेदभाव का निषेध करता है। लेकिन देश के कई राज्यों में धार्मिक स्वतंत्रता कानून उसके नाम के विपरीत व्यक्ति को एक धर्म से दूसरे धर्म में दीक्षित करने पर रोक लगाने हेतु लागू किये गए हैं। यह कानून जितने सरल और हानिरहित लगते हैं, वास्तविकता में उतने हैं नहीं। जहां इस कानून की आड़ में अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित और अपमानित करने की अद्भुत संभावनाएं हैं। वहीं दूसरी ओर, घर वापसी अथवा मूल धर्म मे वापसी जैसे धर्म उन्मादी व कट्टरपंथी कृत्यों को इन कानूनों के दायरे से बाहर रखा गया है।

क्या है बस्तर का पाठ

धर्म परिवर्तन की बहस और घर वापसी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इसने एक नई खतरनाक प्रवृत्ति को जन्म दिया है जो व्यक्तिगत धार्मिक स्वतंत्रता, और भारत के संवैधानिक अधिकारों और धर्मनिरपेक्षता दोनों के लिए खतरा है। केंद्र में भाजपा सरकार की वजह से हिंदू राष्ट्र का एजेंडा मजबूत हुआ है, जिसके अंतर्गत धार्मिक अल्पसंख्यकों के आराधना स्थलों और व्यक्तियों के खिलाफ व्यापक हिंसा के चलते वे बहुत अधिक असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।

बस्तर इसका एक बेहतरीन प्रयोगशाला बन चुका है, जहां ईसाई विश्वासियों पर खतरनाक हमला आज आम बात है। आदिवासियों को आपस में लड़वाने का इससे बेहतर और कोई औजार नहीं हो सकता। बस्तर की एक और विशेषता यह है कि यह खनिज संपदा से भरपूर है जिसपर बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नज़र लंबे समय से है। यह वह भूमि है जहां माओवाद और माओवाद के खात्मे का हिंसा-प्रतिहिंसा का चक्रव्यूह भी जारी है। ऐसे में इस उलझन को बनाये रखने और उसे बढ़ावा देने का सबसे उचित उपाय है – धर्म, संस्कृति, देवी-देवता, इत्यादि।

आदिवासी मूलवासी लोगों का जल, जंगल, जमीन, नदी, नाला, फल-फूल, कंद-मूल व अन्य संपदा के छीने जाने और उसे बहुराष्ट्रीय कंपनियों को दिए जाने में समाज, सरकार, माओवादी, हिंदूवादी, आदिवासिवादी – किसी को भी संस्कृति के नष्ट या विलुप्त होने का खतरा नहीं दिखता। शायद इन सबके अनुसार संस्कृति का खात्मा केवल ईसाई बनाने से ही होता है। ऐसे में धर्मान्तरण और घर वापसी के उलझन को बनाये रखने और उसे बढ़ावा देने का सबसे उचित उपाय है – धर्म, संस्कृति, देवी-देवता, इत्यादि।

2015 में, पी.ई.डब्लू (प्यू) द्वारा किए गए शोध ने बताया कि धर्म से जुड़े उच्चतम सामाजिक शत्रुता के लिए भारत दुनिया में (सीरिया, नाइजीरिया और इराक के बाद) चौथे स्थान पर था। यह स्थिति आज और भी भयानक हो चुकी है। संवैधानिक रूप से, भारतीय राजनीति और धर्म के बीच के संबंध को धर्मनिरपेक्षता द्वारा परिभाषित किया गया है। हालांकि, भारत की धर्मनिरपेक्ष पहचान अपनी बहसों से रहित नहीं है, जिनमें से कम से कम भारतीय सामाजिक ताने-बाने में जाति व्यवस्था से जुड़ी चुनौतियां सबसे ऊपर हैं। बस्तर के संदर्भ से अनगिनत बुनियादी सवाल उठते हैं। कहीं हिंदू राष्ट्र की पूरी परिकल्पना समाज को नई रीति के जातिगत गुलामी की ओर धकेलना तो नहीं?

(बस्तर से डॉ. गोल्डी एम जॉर्ज की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

वामपंथी हिंसा बनाम राजकीय हिंसा

सुरक्षाबलों ने बस्तर में 29 माओवादियों को मुठभेड़ में मारे जाने का दावा किया है। चुनाव से पहले हुई इस घटना में एक जवान घायल हुआ। इस क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय माओवादी वोटिंग का बहिष्कार कर रहे हैं और हमले करते रहे हैं। सरकार आदिवासी समूहों पर माओवादी का लेबल लगा उन पर अत्याचार कर रही है।

शिवसेना और एनसीपी को तोड़ने के बावजूद महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ने वाली हैं

महाराष्ट्र की राजनीति में हालिया उथल-पुथल ने सामाजिक और राजनीतिक संकट को जन्म दिया है। भाजपा ने अपने रणनीतिक आक्रामकता से सहयोगी दलों को सीमित किया और 2014 से महाराष्ट्र में प्रभुत्व स्थापित किया। लोकसभा व राज्य चुनावों में सफलता के बावजूद, रणनीतिक चातुर्य के चलते राज्य में राजनीतिक विभाजन बढ़ा है, जिससे पार्टियों की आंतरिक उलझनें और सामाजिक अस्थिरता अधिक गहरी हो गई है।

Related Articles

वामपंथी हिंसा बनाम राजकीय हिंसा

सुरक्षाबलों ने बस्तर में 29 माओवादियों को मुठभेड़ में मारे जाने का दावा किया है। चुनाव से पहले हुई इस घटना में एक जवान घायल हुआ। इस क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय माओवादी वोटिंग का बहिष्कार कर रहे हैं और हमले करते रहे हैं। सरकार आदिवासी समूहों पर माओवादी का लेबल लगा उन पर अत्याचार कर रही है।

शिवसेना और एनसीपी को तोड़ने के बावजूद महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ने वाली हैं

महाराष्ट्र की राजनीति में हालिया उथल-पुथल ने सामाजिक और राजनीतिक संकट को जन्म दिया है। भाजपा ने अपने रणनीतिक आक्रामकता से सहयोगी दलों को सीमित किया और 2014 से महाराष्ट्र में प्रभुत्व स्थापित किया। लोकसभा व राज्य चुनावों में सफलता के बावजूद, रणनीतिक चातुर्य के चलते राज्य में राजनीतिक विभाजन बढ़ा है, जिससे पार्टियों की आंतरिक उलझनें और सामाजिक अस्थिरता अधिक गहरी हो गई है।