Friday, March 29, 2024

मैकेंजी एंड कंपनी का रिसर्च: अमेरिका को पछाड़कर चीन बना दुनिया का सबसे अमीर देश

मैकेंजी एंड कंपनी के रिसर्च विंग द्वारा लिखी गई एक हालिया शोध रिपोर्ट के मुताबिक, चीन दुनिया का सबसे अमीर देश बनने के मामले में अमेरिका को पछाड़कर आगे निकल गया है। 15 नवंबर को जारी की गई अपनी 196 पेज की रिपोर्ट “The rise and rise of the global balance sheet: How productively we are using our wealth?” में मैकेंजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक संपत्ति पिछले दो दशकों में तीन गुना हो गई है, जो वर्ष 2000 के 156 ट्रिलियन डॉलर से बढ़कर 2020 में 514 ट्रिलियन डॉलर हो चुकी है।

इसके द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, वैश्विक संपत्ति में हुई कुल वृद्धि में अकेले चीन ने एक तिहाई की वृद्धि की है। चीन की राष्ट्रीय संपत्ति वर्ष 2000 में जहाँ $7 ट्रिलियन थी वह 2020 में बढ़कर $120 ट्रिलियन हो गई। डेटा देश के विश्व व्यापार संगठन (WTO) का सदस्य बनने से एक वर्ष पहले की अवधि को ट्रैक करता है, जिसने इसकी अर्थव्यवस्था के उभार को रफ्तार देने का काम किया था।

रिपोर्ट में 10 देशों की राष्ट्रीय बैलेंस शीट का विश्लेषण किया गया है, जो दुनिया की कुल आय का 60 प्रतिशत से अधिक है। रिपोर्ट में चीन और अमेरिका के अलावा अन्य देशों में जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, जापान, स्वीडन, मैक्सिको, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं।

जहां तक ​​अमेरिका का प्रश्न है, तो दो दशकों में देश की कुल संपत्ति में दुगुना इजाफा होकर लगभग 90 ट्रिलियन डॉलर हो चुका है। अमेरिका और चीन जो कि वर्तमान में दुनिया की दो सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्थाएं हैं, के यहाँ  दो-तिहाई से अधिक धन मात्र 10 प्रतिशत सबसे धनाड्य परिवारों के पास केंद्रित है। रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक नेट वर्थ संपत्ति का लगभग 68 प्रतिशत रियल एस्टेट में निवेश किया गया है।

प्रॉपर्टी की कीमतों में लगातार वृद्धि के चलते नेट वर्थ मूल्य में वृद्धि हुई है, जिससे नेट वर्थ मौजूदा दौर में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि से आगे निकल गया है। ऐसा माना जा रहा है कि रियल-एस्टेट की कीमतों में इस अबाध वृद्धि से वित्तीय संकट का खतरा बढ़ सकता है, जैसा कि 2008 में यूएस हाउसिंग बबल फटने के बाद देखने को मिला था।

अध्ययन के अनुसार, दुनिया भर की कुल संपत्ति 2000 के 156 ट्रिलियन डॉलर से बढ़कर 2020 में 514 ट्रिलियन डॉलर हो गई। अध्ययन में पाया गया है कि संपत्ति की कीमतें आय के सापेक्ष उनके दीर्घकालिक औसत से लगभग 50 प्रतिशत अधिक हैं। इसके कारण इस वेल्थ बूम की स्थिरता पर सवाल खड़े होते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि चीन के शीर्ष 10 प्रतिशत परिवारों ने 2015 में देश की 67 प्रतिशत संपत्ति पर अपना अधिकार बना रखा है, जो वर्ष 2000 के 48% से 19% अधिक है। दूसरी तरफ, हाशिये के 50% लोगों का हिस्सा जो 2015 में लगभग 6% था, वह 2000 के 14% से काफी नीचे था।

शायद यही वह वजह है जो चीनी राष्ट्रपति शी जिन पिंग को हाल के दिनों में ऑनलाइन कोचिंग, शिक्षण स्टार्ट अप, सहित रियल एस्टेट प्रमुख एवरग्रेंड ग्रुप के उपर लिए गए कड़े कदमों को उठाने के लिए मजबूर करता है.

यह एक रोचक समय है. सीएनबीसी ने फरवरी 2021 के अपने एक लेख में बैंक ऑफ अमेरिका के एक अर्थशास्त्री के हवाले से बताया था कि चीन के पास 2035 तक अपनी अर्थव्यवस्था के आकार को दोगुना करने और दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में अमेरिका को पीछे छोड़ने का अच्छा मौका है।

जैसा कि चीन एक उन्नत राष्ट्र बनना चाहता है, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने नवंबर में कहा था कि 2035 तक देश के सकल घरेलू उत्पाद और प्रति व्यक्ति आय को दोगुना करना काफी हद तक संभव है।

चीन के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को दोगुना करने के लिए अगले 15 वर्षों तक उसे 4.7% की औसत वार्षिक वृद्धि दर की ही आवश्यकता है – जिसे कुछ पर्यवेक्षकों के अनुसार हासिल कर पाना मुश्किल हो सकता है। लेकिन बोफा ग्लोबल रिसर्च में एशिया अर्थशास्त्र के प्रमुख हेलेन कियाओ ने कहा कि कुछ सुधार उपायों से चीन को वहां पहुंचने में मदद मिल सकती है।

“हमें लगता है कि चीन इसे हासिल कर पाने में सक्षम रहेगा,” उनके द्वारा सीएनबीसी के “स्ट्रीट साइन्स एशिया” को बताया गया था।

क़ियाओ ने अपनी भविष्यवाणी में कहा था कि चीन, अपने सकल घरेलू उत्पाद को दोगुना करने के अलावा, 2027 से 2028 के आसपास दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में अमेरिका को पीछे छोड़ देगा।

चीन वैश्विक स्तर पर उन कुछ अर्थव्यवस्थाओं में से एक रहा जिसने 2020 में कोविड -19 महामारी से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद अपनी वृद्धि दर को बरकरार रखा था। आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले साल चीनी अर्थव्यवस्था में 2.3% की वृद्धि हुई थी, जबकि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने इस वर्ष चीन के लिए 8.1% की वृद्धि का अनुमान लगाया है।

इस बीच, अमेरिकी अर्थव्यवस्था 2020 में 3.5% तक सिकुड़ी है, और आईएमएफ ने इस वर्ष के लिए अमेरिकी अर्थव्यवस्था के बारे में अनुमान लगाया है कि यह इस साल 5.1% बढ़ सकती है।

क्यूओ के अनुसार इसके बावजूद, चीन की 2035 के लक्ष्य की यात्रा जोखिम मुक्त नहीं है। उन्होंने कहा कि भले ही चीन वादे के अनुसार सुधारों को पूरा करता है, ऐसे कई कारक हैं जिन पर देश नियंत्रण नहीं कर सकता है।

अर्थशास्त्री ने चीन के आर्थिक विकास के लिए संभावित खतरे के रूप में वाशिंगटन और बीजिंग के बीच और तनाव का हवाला दिया।

लेकिन इस बीच में कई ऐसे कारक हैं जो स्पष्ट तौर पर अमेरिकी अर्थव्यवस्था के साथ-साथ यूरोपीय संघ के देशों की लड़खड़ाहट को इंगित करते हैं, जबकि चीन में ऊर्जा संकट के अलावा ऐसे कोई चिन्ह नजर नहीं आ रहे हैं, जो उसके लिए किसी परेशानी का कारण बनते हों।

उल्टा यदि वह यदि धन के पुनर्वितरण और राज्य द्वारा पूंजी के अधिकाधिक नियोजित विकास पर केंद्रित बनाये रखने में सफल रखता है तो वह अपने 2035 के संपन्न देशों की श्रेणी में पहुँचने के लक्ष्य को उससे पहले ही छू सकता है. जिसका अर्थ होता है, दुनिया में कुलमिलाकर अभी तक विकसित देशों की जितनी आबादी है, उसके बराबर लोग अकेले चीन में समृद्ध हो चुके होंगे. इसके साथ ही, फिर यह पूछने की जरूरत ही खत्म हो जायेगी कि दुनिया की महाशक्ति कौन है?

पड़ोसी देश भारत में अंग्रेजी समाचार पत्रों ने ही इस मैकेंजी की रिपोर्ट को कवर करने का काम किया है, हिंदी प्रदेश के पाठकों के लिए शायद दीपक तले अँधेरा किये रखने में ही भलाई नजर आती हो।

(लेखक टप्पणीकार हैं और जनचौक से जुड़े हैं।)

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