Thursday, March 28, 2024

महात्‍मा गांधी केंद्रीय विश्‍वविद्यालय मोतिहारी में आरक्षण का उड़ता मखौल

महात्‍मा गांधी दलितों को “हरिजन” कहते थे और पूना पैक्‍ट के वक्‍त उन्‍होंने अंबेडकर को भरसक विश्‍वास दिलाने का प्रयास किया था कि वे सवर्ण हिंदुओं को दलितों के साथ भेदभाव नहीं करने देंगे। गांधी जी की तमाम भलमनसाहत के बावजूद अंबेडकर को गांधी जी के नाम पर राजनीति करने वाले मनुवादी लोगों के ऊपर रत्‍ती भर भी विश्‍वास नहीं था।

गांधी के नाम पर चंपारण की जमीन पर स्‍थापित महात्‍मा गांधी केंद्रीय विश्‍वविद्यालय में पिछले दो सालों की ही भांति इस बार भी विभिन्‍न पाठ्यक्रमों की प्रवेश प्रक्रिया में जिस प्रकार आरक्षण नियमों का मखौल उड़ाया जा रहा है, वह अंबेडकर के उस अविश्‍वास को सही साबित कर रहा है। भारत सरकार के नियमानुसार अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, अन्‍य पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लिए क्रमश: 7.5%, 15%, 27% और 10% स्‍थान आरक्षित हैं। शेष 40.5% स्‍थान सामान्‍य वर्ग के लिए रखे गए हैं।

महात्‍मा गांधी केंद्रीय विश्‍वविद्यालय को छोड़कर लगभग शेष सभी केंद्रीय विश्‍वविद्यालय अपने किसी भी पाठ्यक्रम के लिए निर्धारित कुल स्‍थानों पर विभिन्‍न श्रेणियों में इसी प्रकार आरक्षण लागू कर रहे हैं। उदाहरण के लिए हरियाणा केंद्रीय विश्‍वविद्यालय के गणित विषय के अंतर्गत चलने वाले एकीकृत स्‍नातक-परास्‍नातक पाठ्यक्रम के सीट मेट्र‍िक्‍स को लें, तो कुल स्‍थान है 30, जिनमें से नियमानुसार अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, अन्‍य पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लिए क्रमश: 2, 5, 8 और 3 स्‍थान आरक्षित हैं, जबकि शेष बचे 12 स्‍थान सामान्‍य वर्ग के लिए हैं। दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय समेत राजस्‍थान केंद्रीय विश्‍वविद्यालय, केरल केंद्रीय विश्‍वविद्यालय, गुजरात केंद्रीय विश्‍वविद्यालय और महात्‍मा गांधी केंद्रीय विश्‍वविद्यालयों आदि की वेबसाइटों पर उपलब्‍ध सूचनाओं के अनुसार आरक्षण का क्रियान्‍वयन इसी प्रकार किया जा रहा है।

किंतु अगर महात्‍मा गांधी केंद्रीय विश्‍वविद्यालय मोतिहारी (बिहार) की बात करें, तो यहां के कुलपति और उनके इशारे पर बाकी प्रशासन के पदाधिकारी प्रवेश प्रक्रिया में आरक्षण के नियमों के क्रियान्‍वयन में साज‍़ि‍शन धांधली कर रहे हैं। यहां सामान्‍य वर्ग को 40.5 प्रतिशत की जगह 48.8% स्‍थान प्रत्‍येक पाठ्यक्रम में दिए जा रहे हैं। उदाहरण के लिए समाज कार्य विभाग के परास्‍नातक पाठ्यक्रम में कुल स्‍थान 33 हैं जिनमें से 16 स्‍थान सामान्‍य वर्ग के लिए रखे गए हैं। दूसरी ओर अन्‍य पिछड़ा वर्ग के लिए 8 स्‍थान आरक्षित हैं अर्थात 27% के स्‍थान पर 24.24% स्‍थान ही अन्‍य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित किए गए हैं।

आरक्षण में हो रही इन गड़बड़ि‍यों पर पर्दा डालने के लिए दो-तीन विभागों को छोड़ दें तो अंतिम रूप से चयनित विद्यार्थियों की मेधासूचियों तक को इस बार विश्‍वविद्यालय की वेबसाइट पर डाला ही नहीं गया है। इतना ही नहीं, विभागों की प्रवेश समितियों में आरक्षित श्रेणी के सदस्‍यों की कहीं घोषणा नहीं की गई है। प्रवेश समिति के सदस्‍यों के हस्‍ताक्षर के बिना ही अंतिम मेधा सूचियां जारी की गई हैं। कुछ विभागों में तो प्रवेश समिति के सदस्‍यों को किसी भी प्रकार की सूचना दिए बिना ही विभाग के पाठ्यक्रमों में विभागाध्‍यक्ष ने अपने स्‍तर पर प्रवेश तक करा लिया है।

इस बाबत महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी, शिक्षक संघ के महासचिव प्रो. मृत्युन्जय बताते हैं कि जब अनुसूचित जाति-जनजाति प्रकोष्‍ठ, समान अवसर प्रकोष्‍ठ, विद्यार्थी शिकायत निवारण प्रकोष्‍ठ और विशेष कार्य अधिकारी को और विभागाध्‍यक्षों को लिखित में शिकायत की जाती है, तो उन शिकायतों को कचरे में फेंक दिया जाता है।

उन पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती या कोई कार्रवाई अगर की भी जा रही है, तो शिकायतकर्ता को अंधेरे में रखा जाता है। वे बताते हैं कि प्रवेश संयोजक समेत विश्‍वविद्यालय के किसी भी पदाधिकारी ने स्‍नातक और परास्‍नातक पाठ्यक्रमों में आरक्षण के क्रियान्‍वयन को लेकर लिखित में कोई अधिसूचना जारी नहीं की है, किंतु विभागाध्‍यक्ष कहते हैं कि उन्‍हें सक्षम प्राधिकारियों ने सामान्‍य वर्ग को 48.48% स्‍थान देने के लिए कहा है। जब विभागाध्‍यक्षों से प्रवेश समितियों के सदस्‍य शिक्षक इस बाबत लिखित अध्‍यादेश माँगते हैं, तो वे बगले झांकने लगते हैं।

प्रोफेसर मृत्युंजय।

प्रो. मृत्युन्जय बताते हैं कि पिछले साल भी इस मामले को लेकर विश्‍वविद्यालय के कुछ शिक्षकों ने अपनी असहमति विभिन्‍न मंचों पर रखी थी। समान अवसर प्रकोष्‍ठ की एक महत्‍वपूर्ण बैठक तक इस मुद्दे पर दिनांक 8 नवंबर, 2020 को रखी गई थी। प्रकोष्‍ठ का बहुमत था कि आरक्षण कुल स्‍थानों पर लागू होना चाहिए और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को दिए गए 10 प्रतिशत आरक्षण के बाद सामान्‍य वर्ग के स्‍थान पूर्व के 50.5 प्रतिशत से घटकर नियमानुसार 40.5 प्रतिशत हो गए हैं। उस बैठक में और बैठक के बाद भी भेदभाव निषेध अधिकारी जी के समक्ष इस संदर्भ में तमाम विश्‍वविद्यालयों की प्रवेश सूचियाँ पेश की गई थीं।

समान अवसर प्रकोष्‍ठ के दबाव में विश्‍वविद्यालय प्रशासन को शोध पाठ्यक्रमों में कुल स्‍थानों पर नियमानुसार आरक्षण भी देना पड़ा था और उस संदर्भ में एक अधिसूचना भी जारी करनी पड़ी थी, किंतु स्‍नातक और परास्‍नातक पाठ्यक्रमों को लेकर उस वक्‍त भी प्रशासन चुप्‍पी साध गया था। प्रो. मृत्युन्जय कहते हैं कि कुलपति जी आरक्षण के पक्षधर दलित और पिछड़ी जातियों के शिक्षकों से कितनी नफरत करते हैं, इसका एक नमूना देखिए कि इस बार प्रवेश प्रक्रिया आरंभ होने से ठीक पहले उन्‍होंने चुन-चुनकर ऐसे शिक्षकों को समान अवसर प्रकोष्‍ठ और अनुसूचित जाति-जनजाति प्रकोष्‍ठ से हटा दिया ताकि उन प्रकोष्‍ठों को अपनी अंगुलियों पर नचाया जा सके।

सूत्रों पर भरोसा करें तो विश्‍वविद्यालय के कुलपति, अनुभाग अधिकारी (कुलपति सचिवालय), विशेष कार्य अधिकारी और परीक्षा नियंत्रक आदि सभी सवर्ण हैं और प्रथम दृष्‍टया इस पूरे मामले में आरक्षण के घनघोर विरोधी नज़र आते हैं। प्रवेश समन्‍वय समिति में आरक्षण के क्रियान्‍वयन के लिए जिम्‍मेदार किसी पदाधिकारी को नहीं रखा गया है। इस समिति के अध्‍यक्ष प्रो. एस.के.त्रिपाठी हैं, जबकि इसके दो अन्‍य सदस्‍य हैं – प्रो. पवनेश कुमार और प्रो. प्रसून दत्‍त सिंह। दलित और पिछड़े वर्ग के शिक्षकों का आरोप है कि आरक्षण को लेकर इन तीनों के भी अपने पूर्वाग्रह रहे हैं।

ये सभी लोग औपचारिक-अनौपचारिक बातचीत में इस संदर्भ में उच्‍च शिक्षा विभाग द्वारा 17 जनवरी, 2019 को जारी एक कार्यालयी ज्ञापन / ऑफिस मेमोरेंडम (क्रमांक 12-4/2019-U1) का हवाला देते हैं, जबकि यह मेमोरेंडम कहीं नहीं कहता कि आप आरक्षित श्रेणियों के स्‍थान छीनकर सामान्‍य वर्ग या आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग को दें। वास्‍तव में यह मेमोरेंडम तो अन्‍य सभी केंद्रीय विश्‍वविद्यालयों को भी भेजा गया था। यह तो बस इतना कहता है कि आप पहले से विद्यमान आरक्षित श्रेणियों के स्‍थान कम नहीं करेंगे, बल्कि कुल स्‍थानों में दस प्रतिशत की वृद्धि इस प्रकार करें ताकि पूर्व आरक्षित श्रेणियों के स्‍थान कहीं भी नकारात्‍मक ढंग से प्रभावित न हों।

पता चला है कि महात्‍मा गांधी केंद्रीय विश्‍वविद्यालय इस मेमोरेंडम की जानबूझकर गलत व्‍याख्‍या करता है। इसने अपने विभिन्‍न पाठ्यक्रमों में कुल स्‍थान पूर्व के 30 से बढ़ाकर 33 तो कर दिए किंतु उन कुल 33 स्‍थानों पर कभी आरक्षण नहीं दिया। इसकी जगह मनमर्जी से 33 को 30+3 में विभाजित करके 30 स्‍थानों पर ही पूर्ववर्ती श्रेणियों के आरक्षण को लागू किया जबकि 3 स्‍थान अलग से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए सुरक्षित रखे हुए हैं। स्‍पष्‍ट है कि यहाँ कुल विज्ञापित स्‍थानों पर आरक्षण लागू ही नहीं किया जा रहा है। और यह सब एक मनुवादी षड्यंत्र के तहत हो रहा है।

आरक्षण के पक्ष में आवाज़ उठाने वाले कई शिक्षकों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि कुलपति द्वारा और कुछ मनुवादी शिक्षकों द्वारा उन्‍हें हर स्‍तर पर अपमानित-प्रताड़‍ित किया जाता है। यहां तक कि स्‍नातक और परास्‍नातक के पाठ्यक्रमों में साक्षात्‍कार के नाम पर भी विद्यार्थियों के साथ भेदभाव किया जा रहा है। दलित-पिछड़ी जातियों और अल्‍पसंख्‍यक वर्ग के विद्यार्थियों को कम अंक दिए जाते हैं और इस भेदभाव का विरोध करने वाले शिक्षकों को प्रवेश समिति तक से हटा दिया जाता है।

स्‍पष्‍ट है कि महात्‍मा गांधी के नाम पर स्‍थापित यह विश्‍वविद्यालय गांधी विरोधी मनुवादी ताकतों की क्रीड़ास्‍थली में तब्‍दील किया जा रहा है। एक ओर आरक्षण के क्रियान्‍वयन में धांधली की जा रही है तो दूसरी ओर आरक्षण को लेकर आवाज़ उठाने वाले शिक्षकों को आरक्षण से जुड़ी महत्‍वपूर्ण समितियों और प्रकोष्‍ठों से हटा दिया जाता है। सूत्र बताते हैं कि पाठ्यक्रमों तक से दलित-बहुजन साहित्‍यकारों को हटाया गया है। इस पूरे प्रकरण में प्रस्‍तुत साक्ष्‍यों को देखते हुए कहा जा सकता है कि यहाँ दाल में कुछ काला नहीं है अपितु पूरी दाल ही काली है।

(वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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