Thursday, March 28, 2024

आरजेडी से नाता तोड़ धरती से विदा हो गए रघुवंश बाबू

रविवार की सुबह ने राजनीतिक हलकों को शोक संतप्त कर दिया। दिल्ली एम्स से खबर निकली की पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश बाबू नहीं रहे। उनका निधन हो गया। शनिवार को तबियत बिगड़ने पर उन्हें जीवन रक्षा प्रणाली पर रखा गया था। हाल ही में उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल से इस्तीफा दिया था। डॉक्टर सिंह के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने शोक व्यक्त किया है।

पूर्व केंद्रीय मंत्री के निधन पर दुख जताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ने कहा, ‘रघुवंश प्रसाद सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे। उनके निधन ने बिहार के साथ-साथ देश के राजनीतिक क्षेत्र में एक शून्य छोड़ दिया है।’ वहीं लालू यादव ने कहा कि ‘प्रिय रघुवंश बाबू! ये आपने क्या किया? मैंने परसों ही आपसे कहा था आप कहीं नहीं जा रहे है। लेकिन आप इतनी दूर चले गए। नि:शब्द हूं। दुःखी हूं। बहुत याद आएंगे।’

घर-घर के ब्रह्म बाबा थे रघुवंश बाबू

बिहार की वैशाली लोकसभा सीट से सांसद रहे रघुवंश प्रसाद का जन्म छह जून 1946 को वैशाली के ही शाहपुर में हुआ था। उन्होंने बिहार विश्वविद्यालय से गणित में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की थी। अपनी युवावस्था में उन्होंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुए आंदोलनों में भाग लिया था। 1973 में उन्हें संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का सचिव बनाया गया था। 1977 से लेकर 1990 तक वे बिहार विधान परिषद के सदस्य रहे थे। 1977 से 1979 तक उन्होंने बिहार के ऊर्जा मंत्री का पदभार संभाला था। इसके बाद उन्हें लोकदल का अध्यक्ष बनाया गया।

1985 से 1990 के दौरान वे लोक लेखांकन समिति के भी अध्यक्ष रहे। 1990 में उन्होंने बिहार विधानसभा के सहायक स्पीकर का पदभार सम्भाला। 1996 में पहली बार वे लोकसभा के सदस्य बने। 1998 में वे दूसरी बार और 1999 में तीसरी बार लोकसभा पहुंचे। इस कार्यकाल के दौरान वे गृह मामलों की समिति के सदस्य रहे। 2004 में डॉक्टर सिंह चौथी बार लोकसभा के लिए चुने गए। 23 मई 2004 से 2009 तक वे ग्रामीण विकास के केंद्रीय मंत्री रहे। 2009 के लोकसभा चुनाव में लगातार पांचवीं बार उन्होंने जीत दर्ज की। हालांकि 10 सितंबर को उन्होंने राजद से इस्तीफा दे दिया था।

लालू के संकट मोचक

राजद मुखिया लालू प्रसाद के बुरे दिनों के साथी थे रघुवंश प्रसाद। देश की राजनीति बदलती गई, नेता पाला बदलते गए, पार्टियों की अदला बदली कर नेता अपने रसूख को बढ़ाते रहे लेकिन रघुवंश बाबू डिगे नहीं। लालू के साथ हमेशा बने रहे। कई अवसरों पर रघुवंश बाबू को लोगों ने लालू से विलग होने की सलाह दी, वे नहीं माने। कहते थे असली साथी वही है जो किसी के बुरे दिनों में भी साथ खड़ा रहे। लालू प्रसाद चारा घोटाला में फंसते गए, उनकी परेशानी बढ़ती गई लेकिन रघुवंश प्रसाद हमेशा कहते रहे कि लालू को फंसाया गया है। लालू निर्दोष हैं। रघुवंश बाबू के इस बर्ताव से कई बार उन्हें विपक्ष का कोप भाजन भी बनना पड़ा, कई दफ़ा राजनीतिक हमलों के वे शिकार भी हुए। लेकिन उन्होंने लालू का साथ नहीं छोड़ा। अपने दामन को कलंकित होने से भी बचाया और लालू की दोस्ती को भी सम्मानित किया।

ठेठ गवईं नेता थे रघुवंश प्रसाद

मनमोहन सिंह की सरकार में रघुवंश बाबू ग्रामीण विकास मंत्री थे। उन्होंने ग्रामीण विकास के लिए कई काम किये। एक बार वे अपने मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों की बैठक में अपने घर पर थे। सारे बड़े अधिकारी मौजूद थे। उन्होंने अधिकारियों से पूछा कि आप लोग कितने सालों से इस मंत्रालय में काम कर रहे हैं। सब चुप थे। उन्होंने सवाल किया कि क्या आप लोगों ने गांव को देखा है। गांव के खेत को देखा है और क्या कीचड़, कादो-माटी से आपका परिचय है। आरी-डंडी को जानते हैं? सब मौन थे। उन्होंने कहा कि पहले आप लोग गांव जाइये। गांव की तस्वीर को समझिये तब मंत्रालय में बैठिये।

लालू और रघुवंश की खांटी दोस्ती

मरने से पहले रघुवंश प्रसाद राजद छोड़ गए। लालू को छोड़ गए। हालांकि लालू ने ऐसा नहीं होने का इरादा जताया लेकिन धुन के पक्के रघुवंश बाबू नहीं माने। याद रहे रघुवंश बाबू की मौत के पीछे की एक कहानी लालू और राजद से बिखराव भी हो सकती है। वे राजद और लालू को धोखा देने वालों में नहीं थे। भारी मन से उन्होंने लालू का साथ छोड़ा और चल बसे। लालू ने उनके निधन पर जो बयान दिया है उसमें दर्द है, टीस है और अपने जिगरी दोस्त के चले जाने का गम भी।

(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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