Friday, April 19, 2024

लोकसभा चुनावों में पराजय के डर से महाराष्ट्र में मुसलमानों के खिलाफ आरएसएस-भाजपा का घृणा अभियान 

महाराष्ट्र,  पश्चिम बंगाल और बिहार ऐसे राज्य हैं, जहां भाजपा को 2024 के लोकसभा चुनावों में अपनी सीटों को खोने का डर सता रहा है। इन तीनों राज्यों में  क्रमश: 48, 42 और 40 सीटें हैं। महाराष्ट्र में भाजपा को 23 सीटें मिलीं थीं और उसकी सहयोगी पार्टी शिवसेना को 18 सीटें मिली थीं। दोनों दलों को मिलाकर 41 सीटें मिली थीं। महाराष्ट्र में भाजपा की सहयोगी शिवसेना उसका साथ कब का छोड़ चुकी है। महाराष्ट्र भाजपा और शिवसेना ( उद्धव ठाकरे) के बीच भविष्य में गठबंधन की करीब कोई संभावना नहीं है। खासकर एकनाथ शिंदे के माध्यम से शिवसेना को तोड़ने और उद्धव ठाकरे की सरकार गिराने के बाद।

ज्यादातर राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भले ही एकनाथ शिंदे ने शिवसेना को तोड़कर भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना लिया हो और मुख्यमंत्री बन गए हों, लेकिन शिवसेना के वोटरों को तोड़ नहीं सकते हैं और न ही शिवसेना का वोट भाजपा को दिला सकते हैं। ऐसे में भाजपा के लिए यह बहुत मुश्किल होगा कि वह 48 सीटों में पहले की तरह 23 सीटों पर जीत हासिल कर पाए। राजनीतिक विश्लेषक कह रहे हैं कि भाजपा इस बार महाराष्ट्र में 15 सीटों के आसपास सिमट जाएगी। उसके सहयोगी एकनाथ शिंदे मुश्किल से भाजपा के सहयोग से कुछ सीटें हासिल कर सकते हैं। महा विकास अघाड़ी यहां 30 से अधिक सीटें जीत सकती है। इसका सीधा फायदा केंद्र में दावेदारी के लिए कांग्रेस को होगा। उप चुनाव का नतीजा भी महा विकास अघाड़ी की भाजपा पर बढ़त की ओर संकेत कर रहा है।

हाल में हुए उपचुनावों में महाराष्ट्र में भाजपा के परंपरागत गढ़ कस्बा पेठ पर कांग्रेस की जीत भाजपा और एकनाथ शिंदे गुट के कमजोर पड़ने का संकेत दे चुकी है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपने गढ़ पुणे की इस सीट को बरकरार रखने में विफल रही। उसके उम्मीदवार हेमंत रसाने को हार का सामना करना पड़ा। कस्बा पेठ सीट पर भाजपा 28 साल से जीत दर्ज करती आई थी। इस सीट को जीतने के लिए भाजपा ने, विशेषकर महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस ने अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगा दी थी। यह सीट भाजपा और महा विकास अघाड़ी के लिए चुनौती बन गयी थी। यहां से कांग्रेस प्रत्याशी की जीत से भाजपा को धक्का लगा। 

उत्तर प्रदेश के बाद सबसे अधिक लोकसभा सदस्य वाले राज्य महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी की बढ़ती लोकप्रियता का मुकाबला करने में आरएसएस-भाजपा खुद को अक्षम पा रहे हैं। बीएमसी के चुनावों को भाजपा-शिंदे गुट की सरकार द्वारा लगातार टालना भी इसका एक सबूत है। ऐसी स्थिति में आरएसएस-भाजपा अपने सबसे बुनियादी फार्मूले को महाराष्ट्र में आजमा रहे हैं। वह फार्मूला है, मुसलमानों के खिलाफ बड़े पैमाने पर घृणा और नफरत का प्रचार करना। इस काम के लिए उन्होंने अपने आनुषांगिक संगठनों को उतारा है।

महाराष्ट्र में हिंदू संगठनों ने अल्पसंख्यकों के खिलाफ आक्रामक घृणा अभियान शुरू किया है। अल्पसंख्यकों को निशाने पर लेकर उनके खिलाफ एक के बाद एक रैलियां की जा रही हैं। पिछले साल नवंबर से पूरे महाराष्ट्र के लगभग सभी 36 जिलों में ‘हिंदू जन आक्रोश मोर्चा’ की कम से कम 50 रैलियां आयोजित की गईं। सभी रैलियों में एक तय पैटर्न के मुताबिक हाथों में भगवा झंडा लिए और महाराष्ट्र की टोपियां पहने लोगों के एक ग्रुप ने समुद्र शहर के बीचों-बीच एक संक्षिप्त मार्च निकाला और उसके बाद एक छोटी रैली की। 

जहां अस्थायी मंच पर वक्ताओं ने अल्पसंख्यकों पर जुबानी हमले किये और ‘लव जिहाद’, ‘लैंड जिहाद’, ‘जबरन धर्मांतरण’ और मुस्लिम समुदाय के आर्थिक बहिष्कार पर चर्चा की। बीजेपी ने भले ही इन रैलियों से यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया कि ये रैलियां हिंदुत्व और संघ संगठनों से बनी संस्था सकल हिंदू समाज द्वारा की जा रही हैं, लेकिन इनमें से लगभग सभी कार्यक्रमों में स्थानीय बीजेपी नेता मौजूद थे।

हालांकि, भाषण बड़े पैमाने पर दक्षिणपंथी कट्टरपंथियों द्वारा दिए जाते हैं। इनमें निलंबित बीजेपी नेता और तेलंगाना विधायक टी. राजा सिंह, कालीचरण महाराज और काजल हिंदुस्तानी शामिल हैं। इनमें से टी. राजा सिंह और कालीचरण महाराज दोनों अभद्र भाषा को लेकर कानूनी मामलों का सामना कर रहे हैं।

टी. राजा सिंह को इस्लाम और पैगंबर मोहम्मद पर उनकी टिप्पणी के लिए पिछले साल अगस्त में बीजेपी ने निलंबित कर दिया था। वह महाराष्ट्र में इस तरह की रैलियों में एक जाना-माना चेहरा हैं। कालीचरण महाराज उर्फ अभिजीत धनंजय सारंग महाराष्ट्र के अकोला के रहने वाले हैं।

एक ‘हिंदू राष्ट्र’ के इस प्रस्तावक को दिसंबर, 2021 में रायपुर में एक धर्म संसद में भड़काऊ भाषण देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। जहां उन्होंने कथित तौर पर नाथूराम गोडसे की तारीफ की थी। वहीं काजल हिंदुस्तानी उर्फ काजल शिंगला गुजरात स्थित हिंदुत्व कार्यकर्ता हैं।

12 मार्च को मुंबई के मीरा रोड में ऐसी ही एक रैली आयोजित की गई जिसमें ‘इस्लामी आक्रामकता’, ‘लव जिहाद’ और ‘लैंड जिहाद’ के खिलाफ भाषण दिए गए और कुछ वक्ताओं ने लोगों से मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार करने का आह्वान किया। रैली में काजल हिंदुस्तानी ने कहा कि ‘इस्लामी आक्रामकता के तीन प्रमुख पहलू हैं। पहला है लव जिहाद, दूसरा है लैंड जिहाद और अंत में धर्मांतरण की समस्या है…इनके लिए…राम के नेतृत्व वाला समाधान है। जहां आपको राजनीतिक नेता, सुप्रीम कोर्ट या यहां तक कि मीडिया भी नहीं रोकेगा। वह समाधान उनका आर्थिक बहिष्कार है।‘

भाषणों से पहले 2 किलोमीटर के मार्च को मीरा भायंदर से निर्दलीय विधायक गीता जैन ने झंडी दिखाकर रवाना किया, जो महाराष्ट्र सरकार का समर्थन कर रही हैं। इस कार्यक्रम में बीजेपी विधायक नितेश राणे के साथ स्थानीय बीजेपी नेताओं और विहिप और बजरंग दल जैसे संगठनों के सदस्यों ने भाग लिया।

ज्यादातर रैलियों में महाराष्ट्र पुलिस के जवानों को भाषण रिकॉर्ड करते तो देखा गया, लेकिन अभी तक किसी भी वक्ता के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं किया गया है। टी. राजा सिंह को लातूर (फरवरी) और अहमदनगर (मार्च) में नफरत फैलाने वाले भाषणों के लिए महाराष्ट्र पुलिस द्वारा दो बार बुक किया गया है, लेकिन वे रैलियां ‘हिंदू जन आक्रोश मोर्चा’ के बैनर तले नहीं हुई थीं। 

महाराष्ट्र पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ‘सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के अनुसार, हम इन रैलियों में कही जाने वाली हर बात की वीडियो रिकॉर्डिंग कर रहे हैं। फिर हम उन्हें अच्छी तरह से सुनते हैं, उपयुक्त व्यक्तियों से कानूनी सलाह लेते हैं और उसके बाद कानूनी कार्रवाई की जाती है।‘ 

सुप्रीम कोर्ट के 3 फरवरी के निर्देश के बावजूद कि हिंदू जन आक्रोश मोर्चा को केवल तभी अनुमति दी जाएगी जब ‘कोई घृणास्पद भाषण’ न हो, इन रैलियों के भाषणों में मुसलमानों को ‘देशभक्तिहीन’ कहा गया। ‘जिनका मुख्य उद्देश्य हिंदू लड़कियों से शादी करके उनसे इस्लाम धर्म कबूल करवाकर उन्हें उनके धर्म से दूर करना है।’

कब कब हुई रैलियां

20 नवंबर, 2022: श्रद्धा वाकर की उसके साथी आफताब पूनावाला द्वारा की गई हत्या पर परभणी में आयोजित पहले हिंदू जन आक्रोश मोर्चा की रैली में कहा गया कि रैली हिंदू समाज में ‘लव जिहाद’ के खतरों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए की गई थी। रैली में स्थानीय बीजेपी पदाधिकारी और शिवसेना के उद्धव बालासाहेब ठाकरे गुट के विधायक राहुल पाटिल भी मौजूद थे।

29 जनवरी, 2023: मुंबई में एक रैली में, मुसलमानों को मस्जिदों की उपस्थिति, वक्फ बोर्ड को कथित रूप से राज्य को बढ़ावा देने और हलाल मांस जैसे मुद्दों पर खुली धमकी दी गई। कामगार मैदान में भीड़ को संबोधित करते हुए, तेलंगाना के विधायक टी.राजा सिंह ने हिंदुओं से मुस्लिमों की दुकान के सामानों का बहिष्कार करने का आह्वान  करते हुए कहा कि ‘यही समय है कि हिंदू समुदाय इनके वर्चस्व के खिलाफ खड़ा हो।

लोगों के दिलो-दिमाग में गुस्सा है…हमारी बहनें और बेटियां दूसरे समुदाय के नापाक मंसूबों का शिकार हो रही हैं।’ रैली में बीजेपी विधायक आशीष शेलार और प्रवीण दारेकर और सांसद गोपाल शेट्टी और मनोज कोटक शामिल थे।

27 फरवरी: वाशी, नवी मुंबई में भी एक रैली में, मुस्लिम विरोधी बयानबाजी हुई। रैली में काजल हिन्दुस्तानी ने कहा कि ‘अरे अब्दुल, हमारी बात सुनो, इन हिंदू भाइयों ने आज से तुम्हारा बहिष्कार करने का फैसला किया है।‘ इस रैली में बीजेपी विधायक गणेश नाइक भी मौजूद थे।

12 मार्च: मीरा रोड में आयोजित एक रैली में काजल हिंदुस्तानी ने दावा किया कि मुस्लिम विक्रेताओं ने सब्जियों और फलों में जहर मिला दिया है। ‘आज, शांति नगर, पूनम गार्डन, जेसल पार्क में लगभग सभी विक्रेताओं पर जिहादी विक्रेताओं का कब्जा है। थोड़ा ज्यादा पैसा खर्च करें और उनसे सामान खरीदना बंद करें। यह तय करें कि पैसा एक हिंदू के घर जाए।‘ रैली में भायंदर से निर्दलीय विधायक गीता जैन और बीजेपी विधायक नितेश राणे मौजूद थे।

इन विरोध प्रदर्शनों में बीजेपी नेताओं और मंत्रियों की भागीदारी के बारे में पूछे जाने पर महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने जनवरी में कहा था कि ‘कुछ रैलियों में हमारी पार्टी के कार्यकर्ता या नेता मौजूद रहे हैं क्योंकि वे भी हिंदू हैं। यदि हिन्दुओं की समस्याओं को लेकर रैली का आयोजन किया जा रहा है तो स्वाभाविक है कि ये नेता भाग ले सकते हैं। लेकिन यह (बीजेपी) का एजेंडा नहीं है।’

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए एकनाथ शिंदे ने हिंदुत्व को मुख्य कारण बताया गया था। अब भाजपा और शिंदे गुट यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि नई सरकार हिंदुओं को न्याय दे रही। वह पिछली सरकार से भी ज्यादा हिंदुओं की बात सुनती है और हिंदुओं के लिए काम करती है।

लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि ‘उसे (उद्धव को) हमेशा बाला साहेब ठाकरे के बेटे होने का फायदा मिलेगा, लेकिन उनके लिए दुविधा यह होगी कि उनके नेता न तो इन रैलियों में भाग ले सकते हैं और न ही उनकी निंदा कर सकते हैं। हर राज्य में ये मुद्दे हैं। लव जिहाद पूरे देश में एक आम बात है। महाराष्ट्र अब जो देख रहा है, वह यह जांचने का एक प्रयोग है कि क्या ये लामबंदी वोटों में दिखाई देगी।’

इन रैलियों में नफरत फैलाने वाले भाषणों के बारे में पूछे जाने पर, 12 मार्च को मीरा रोड कार्यक्रम में मौजूद बीजेपी के कंकवली विधायक नितेश राणे ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि वह मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार के आह्वान से सहमत हैं। 

राणे ने कहा, ‘उनके द्वारा सारा पैसा हिंदू समुदाय के खिलाफ इस्तेमाल किया जाता है। यदि उस पैसे का उपयोग समुदाय की समृद्धि के लिए किया जाता है, तो किसी को कोई समस्या नहीं होगी। लेकिन वे हिंदुओं के खिलाफ आतंकवाद, लव जिहाद और दूसरी चीजों के नाम पर पैसे का इस्तेमाल करते हैं। तो जाहिर है, हमें उनकी आर्थिक समृद्धि को रोकने के लिए आह्वान करना पड़ा।’

इनमें से कई रैलियों में देखे गए बीजेपी विधायक प्रवीण दारेकर ने कहा कि ‘हिंदू लड़कियों को बहला-फुसलाकर उनका धर्मांतरण किया जा रहा है…यह बड़ी संख्या में हो रहा है…एक समुदाय विशेष के भू-माफिया हैं जो जमीन हड़प कर धार्मिक स्थल बना लेते हैं। हिंदू समाज इस सब के खिलाफ एक साथ आया है।’

मोर्चा रैलियों के अलावा, पूरे महाराष्ट्र में इसी तरह की रैलियां हुई हैं, जिसमें हिंदू जनजागृति समिति, गोवा स्थित एक संगठन द्वारा आयोजित ‘हिंदू राष्ट्र जागृति सभा’ भी शामिल है, जिसका उद्देश्य ‘हिंदू राष्ट्र’ की स्थापना करना है। 

इन रैलियों में भी भड़काऊ भाषण दिए जाते हैं। हालांकि दोनों सभाओं के आयोजक अलग-अलग हैं, लेकिन उन सभाओं में वक्ता एक ही होते हैं – जैसे टी. राजा सिंह, कालीचरण महाराज और काजल हिंदुस्तानी, अन्य।

हिंदू जन आक्रोश मोर्चा की रैलियों के बारे में कुछ भी बोलने से विपक्षी दल खुद को बचा रहे हैं। हालांकि कांग्रेस के एक प्रमुख नेता ने अपना नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि “इन रैलियों का आयोजन लोगों का ध्यान महंगाई, कीमतों में वृद्धि और बेरोजगारी जैसे मुख्य  मुद्दों से भटकाने के लिए किया जा रहा है।

हमें दक्षिणपंथी ताकतों द्वारा तय किए गए एजेंडे पर क्यों चलना चाहिए? हमने इन रैलियों पर प्रतिक्रिया नहीं देने का फैसला किया है क्योंकि हम अर्थव्यवस्था से जुड़े मुद्दों से ध्यान नहीं हटाना चाहते हैं।’

( कुमुद प्रसाद जनचौक में कॉपी एडिटर हैं।)

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