Tuesday, April 23, 2024

गुजरात दंगे में स्वतंत्र जांच की 11 याचिकाओं की सुनवाई बंद, शिंदे गुट का विवादास्पद दावा

जहां एक ओर नये चीफ जस्टिस यू यू ललित के पदभार सम्भालते ही सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को गुजरात दंगों सहित तीन बड़े मामलों की सुनवाई बंद कर दी, जिससे सोशल एक्टिविस्टों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों में नये चीफ जस्टिस के अगले लगभग ढाई महीने के कार्यकाल में संवैधानिक प्रतिबद्धता और कानून के शासन को लेकर संदेह उत्पन्न हो गया है वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ शिंदे खेमे के मुख्य सचेतक भरत गोगावाले के इस दावे पर कि शिंदे गुट के दलबदलू विधायकों पर सुप्रीम कोर्ट जल्द ही अयोग्यता पर अपना आदेश नहीं देगा और 2024 तक वे फिर से चुने जाएंगे और सत्ता में होंगे, गम्भीर राजनीतिक विवाद उत्पन्न हो गया है। राकांपा नेता शरद पवार ने कहा है कि हो सकता है उनके (गोगावले) न्यायपालिका के साथ कुछ संबंध हों।  

सुप्रीम कोर्ट की अलग-अलग पीठों ने सुनवाई के दौरान कई मामलों को बंद करने का फैसला ल‍िया है। इसमें पहला मामला वर्ष 2002 गुजरात दंगा मामला है तो दूसरा 2009 में वकील प्रशांत भूषण के ख‍िलाफ अवमानना का मामला है। वहीं तीसरा मामला बाबरी ढांचा गिराने पर शुरू हुई अवमानना कार्यवाही का मामला है ज‍िसे भी सुप्रीम कोर्ट ने बंद कर द‍िया है।

चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस एस. रवींद्र भट्ट और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने 2002 के गुजरात दंगों के मामलों में स्वतंत्र जांच के लिए क़रीब 20 वर्ष पहले दायर 11 याचिकाओं को बंद करते हुए कहा कि अब इन याचिकाओं में निर्णय के लिए कुछ नहीं बचा है।

इनमें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) द्वारा मामलों को गुजरात पुलिस से सीबीआई को ट्रांसफर करने और इस समय जेल में बंद सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ के सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) संगठन की रिट याचिका भी शामिल है, जिसमें दंगों की जांच किसी अदालत की निगरानी में कराने समेत अन्य मांगों के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

पीठ ने अदालत द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल (एसआईटी) के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और सीजेपी की ओर से अपर्णा भट्ट समेत अनेक याचिकाकर्ताओं के वकीलों की दलीलों पर विचार किया और कहा कि अब इन याचिकाओं में निर्णय के लिए कुछ नहीं बचा है।

पीठ ने एसआईटी के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी की इस दलील पर संज्ञान लिया कि एसआईटी ने जिन नौ मामलों की जांच की थी, उनमें से एक ‘नरोदा गांव’ दंगा मामले में सुनवाई निचली अदालत में अंतिम स्तर पर है, वहीं अन्य मामलों में निचली अदालतों ने फैसले सुनाए हैं और वे अपील स्तर पर गुजरात उच्च न्यायालय या शीर्ष अदालत में लंबित हैं। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने एसआईटी के बयान को स्वीकार किया था।

पीठ ने कहा कि चूंकि सभी मामले अब अप्रांसगिक हो गये हैं, इसलिए इस अदालत की राय है कि इस अदालत को इन याचिकाओं पर अब विचार करने की जरूरत नहीं है। इसलिए मामलों का निस्तारण किया जाता है।

हालांकि पीठ ने निर्देश दिया कि शेष मामले (यानी नरोदा मामले) के संबंध में मुकदमे को ‘कानून के अनुसार’ अपने निष्कर्ष पर ले जाया जाए और एसआईटी को ‘निश्चित रूप से इसके अनुसार उचित कदम उठाने का अधिकार हो।

याचिकाकर्ताओं के वकीलों में से एक अधिवक्ता अपर्णा भट्ट ने अदालत को बताया कि वह वर्तमान मामले में सुरक्षा की मांग करने वाली याचिकाकर्ता सीजेपी की प्रमुख सीतलवाड़ से बात करने में असमर्थ रहीं क्योंकि वह गुजरात पुलिस की हिरासत में हैं। इसके जवाब में पीठ ने सीतलवाड़ को उचित अपील और संबंधित प्राधिकारी को आवेदन करने की स्वतंत्रता दी। पीठ ने कहा कि जब वे इस तरह का आवेदन करेंगी तब उससे कानून के अनुसार निपटा जाएगा।

गौरतलब है कि सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को 2002 के गुजरात दंगों के मामलों में ‘निर्दोष लोगों को फंसाने’ के लिए कथित तौर पर सबूत गढ़ने के लिए बीते जून महीने में गिरफ़्तार किया गया था।सीतलवाड़, पूर्व पुलिस अधिकारी आरबी श्रीकुमार और संजीव भट्ट के खिलाफ एफआईआर सुप्रीम कोर्ट द्वारा बीते 24 जून को गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य को 2002 के दंगा मामले में विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा दी गई क्लीनचिट को चुनौती देने वाली जकिया जाफरी की याचिका को खारिज किए जाने के एक दिन बाद 25 जून को दर्ज हुई थी। एफआईआर में तीनों पर झूठे सबूत गढ़कर कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने की साजिश रचने का आरोप लगाया गया, ताकि कई लोगों को ऐसे अपराध में फंसाया जा सके जो मौत की सजा के साथ दंडनीय हो।सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण के खिलाफ 2009 अवमानना केस को बंद कर द‍िया है। वर्ष 2009 में तहलका पत्रिका को दिए गए इंटरव्यू के बाद से प्रशांत भूषण के ख‍िलाफ अवमानना के मामले की सुनवाई शुरू हुई थी। इस इंटरव्‍यू के दौरान प्रशांत ने कहा था कि भारत के 16 पूर्व चीफ जस्टिस भ्रष्ट हैं।

जस्टिस  इंदिरा बनर्जी, जस्टिस  सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जस्टिस  एम एम सुंदरेश की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल द्वारा प्रशांत भूषण और तरुण तेजपाल के माफी मांगने की जानकारी दिए जाने के बाद मामले में कार्यवाही बंद कर दी। पीठ ने कहा कि अवमाननाकर्ताओं द्वारा की गई क्षमा याचना को देखते हुए हम अवमानना के लिए दर्ज मामले पर आगे बढ़ना जरूरी नहीं समझते हैं। अवमानना की कार्यवाही समाप्त की जाती है।

सुप्रीमकोर्ट ने नवंबर 2009 में एक समाचार पत्रिका को दिए साक्षात्कार में उच्चतम न्यायालय के कुछ मौजूदा और पूर्व न्यायाधीशों पर कथित रूप से आरोप लगाने के लिए प्रशांत भूषण और तरुण तेजपाल को अवमानना नोटिस जारी किया था। तरुण तेजपाल उस समय संबंधित पत्रिका के संपादक थे। भूषण ने 2009 के अवमानना मामले के जवाब में उच्चतम न्यायालय से कहा था कि न्यायाधीशों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाने से अदालत की अवमानना का मामला नहीं बनता और केवल भ्रष्टाचार के आरोप लगाने से अदालत की अवमानना नहीं हो सकती।

बाबरी ढांचा गिराने पर शुरू अवमानना कार्यवाही को भी सुप्रीम कोर्ट ने बंद कर द‍िया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा क‍ि अवमानना याचिका को पहले सूचीबद्ध किया जाना चाहिए था। कोर्ट ने कहा क‍ि हिंदुओं और मुसलमानों के बीच अयोध्या भूमि विवाद को तय करने वाले सुप्रीम कोर्ट के 9 नवंबर, 2019 के फैसले के साथ यह मुद्दा नहीं टिकता, इसलिए अवमानना कार्रवाई बंद की जाती है।

सुप्रीम कोर्ट के तीन सदस्‍य पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा क‍ि अब इस मामले में कुछ नहीं बचा है। इस मामले में ही बीजेपी के द‍िवंगत नेता और यूपी के पूर्व मुख्‍यमंत्री कल्‍याण स‍िंह को एक द‍िन की सजा काटी थी।

गौरतलब है क‍ि 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद ढहा दी थी। इसके तुरंत बाद कल्याण सिंह ने यूपी के सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। अगले दिन यानी 7 दिसंबर 1992 को केंद्र की नरसिम्हा राव सरकार ने यूपी की सरकार को बर्खास्त कर दिया था।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के खेमे के एक वरिष्ठ नेता के इस दावे से विवाद खड़ा हो गया है कि बागी विधायकों की अयोग्यता के मामले में सुप्रीम कोर्ट अगले चार-पांच साल के लिए फैसला नहीं करेगा। दरअसल शिंदे खेमे के मुख्य सचेतक भरत गोगावाले ने दावा किया है कि सुप्रीम कोर्ट जल्द ही अयोग्यता पर अपना आदेश नहीं देगा और 2024 तक वे फिर से चुने जाएंगे और सत्ता में होंगे।

भरत गोगावाले ने दावा किया है कि बहुत से लोगों को उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट मामले की सुनवाई करेगा, शिंदे समूह के विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा और फिर हमारी सरकार गिर जाएगी। हालांकि, मैं आपको बता रहा हूं कि हमारा मुद्दा वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में सुना जा रहा है। अब इस (फैसले में) चार से पांच साल लगेंगे। हम दूसरा चुनाव (2024 के विधानसभा चुनाव) जीतेंगे और फिर से सत्ता में आएंगे।”

गोगावले ने कहा कि वह पहले से भविष्यवाणी कर रहे थे कि उद्धव ठाकरे समूह द्वारा लड़े जा रहे धनुष और तीर का शिवसेना का चुनाव चिन्ह भी उनके समूह को दिया जाएगा।

गोगावले ने रविवार को टिप्पणी की और इस पर किसी और ने नहीं बल्कि राकांपा प्रमुख शरद पवार ने गोगावले की टिप्पणी की निंदा की और सवाल किया कि गोगावाले ने किस आधार पर टिप्पणी की थी।पवार ने सोमवार को कहा कि ऐसा लगता है कि उनका (गोगावले) न्यायपालिका के साथ बहुत अच्छा संवाद हो सकता है, मैंने न्यायपालिका से इस तरह की निकटता के बारे में कभी नहीं सुना। हालांकि इससे पता चलता है कि उनके न्यायपालिका के साथ कुछ संबंध हो सकते हैं। पवार ने कहा कि उनकी राय में मामले को दो से तीन सुनवाई में निपटाया जा सकता है और इसमें महीनों या साल नहीं लगने चाहिए।

शिंदे खेमे के मंत्री दीपक केसरकर ने गोगावले के बयान पर यह कहकर डैमेज कंट्रोल की कोशिश की और दावा कया कि गोगावाले का बयान गलत है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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