उच्चतम न्यायालय के जस्टिस संजय किशन कौल गुजरात हाईकोर्ट बार एसोसियेशन के अध्यक्ष यतिन ओझा के अवमानना मामले में रजिस्ट्री को इधर क्लीनचिट दे रहे थे, और कह रहे थे कि रजिस्ट्री बहुत कठिन काम कर रही है और रजिस्ट्री को बिना किसी ठोस कारणों के अनावश्यक रूप से दोषी ठहराया जाता है उधर भगोड़े कारोबारी विजय माल्या की रिव्यू पिटीशन के मामले की उच्चतम न्यायालय में सुनवाई के दौरान पता चला कि, केस से जुड़े कुछ अहम डॉक्यूमेंट गायब हो गए हैं। दस्तावेज गायब होने के कारण उच्चतम न्यायालय ने इसकी सुनवाई 20 अगस्त तक के लिए टाल दी है।
जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस अशोक भूषण की पीठ अब सुनवाई 20 अगस्त को करेगी। पीठ ने इंटरवेशन एप्लिकेशन पर जवाब मांगा था, जिसे केस के फाइल से गायब पाया गया। ऐसे में पक्षों ने नई कॉपी दाखिल करने के लिए कोर्ट से समय मांगा। इसके बाद कोर्ट ने अगली तारीख तय कर दी।
दरअसल, यह रिव्यू पिटीशन विजय माल्या के कोर्ट के अवमानना मामले से जुड़ी है। माल्या ने कोर्ट के 14 जुलाई 2017 के उस फैसले के खिलाफ याचिका दायर की थी, जिसमें माल्या को बैंकों को 9000 करोड़ रुपये का बकाया चुकाने के आदेश का पालन न करने का दोषी ठहराया गया था। हालांकि, माल्या ने अपने बच्चों को चार करोड़ डॉलर ट्रांसफर किए थे।
इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने 19 जून को पिछले तीन साल से माल्या की रिव्यू पिटीशन को लिस्ट न करने के संबंध में अपनी रजिस्ट्री से स्पष्टीकरण मांगा था। पीठ ने रजिस्ट्री से कहा था है कि वह पिछले तीन साल से पिटीशन से जुड़ी फाइल से डील कर रहे अधिकारियों के नाम के साथ पूरी डीटेल दे। पीठ ने कहा था कि रिव्यू पिटीशन पर सुनवाई से पहले रजिस्ट्री हमें ये बताए कि पिछले तीन साल से मामले को कोर्ट में लिस्ट क्यों नहीं किया गया।
तीन साल पहले माल्या ने पुनर्विचार याचिका दायर की थी, जो सुनवाई के लिए अब लिस्ट हुई। माल्या 2017 में सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का दोषी ठहराया गया था। माल्या ने उच्चतम न्यायालय के आदेश के खिलाफ जाकर अपनी संपत्ति अपने परिवार के नाम ट्रांसफर कर दी थी। पीठ ने पिछली सुनवाई में अपनी ही रजिस्ट्री से स्पष्टीकरण मांगा था कि मई 2017 के आदेश के खिलाफ माल्या की अपील अदालत के सामने लिस्ट क्यों नहीं की गई है? कोर्ट ने रजिस्ट्री से उन अधिकारियों के नाम भी पूछे थे जो फाइल निपटाते हैं।
माल्या दो मार्च, 2016 को भारत से गुपचुप तरीके से भाग गया था। ब्रिटेन की पुलिस स्कॉटलैंड यार्ड ने उसे 18 अप्रैल, 2017 को गिरफ्तार कर लिया था। हालांकि, लंदन की अदालत ने उसे कुछ ही घंटों में जमानत पर रिहा कर दिया। सरकार माल्या के भारत में प्रत्यर्पण की कोशिश कर रही है। माल्या पर भारत के 17 बैंकों का नौ हजार करोड़ रुपये बकाया है।
जस्टिस संजय किशन कौल ने छह अगस्त को यतिन ओझा मामले में टिप्पणी की कि हम देखते हैं, सामान्य तौर पर, यह अच्छे कारणों के लिए रजिस्ट्री को दोष देने के लिए एक व्यापक अभ्यास बन गया है। गलती करना मानवीय है, क्योंकि कई याचिकाएं त्रुटि के साथ दायर की जाती हैं, और त्रुटि एक साथ वर्षों तक ठीक नहीं होती हैं।
त्रुटि को हटाने के लिए न्यायालय के समक्ष हाल के वर्षों में बड़ी संख्या में ऐसे मामले सूचीबद्ध किए गए थे, जो वर्षों से लंबित थे। ऐसी स्थिति में, जब महामारी चल रही है, तो इस न्यायालय की रजिस्ट्री के खिलाफ निराधार और लापरवाह आरोप लगाए जाते हैं, जो न्यायिक प्रणाली का हिस्सा और पार्सल है। हम इस तथ्य की न्यायिक सूचना लेते हैं कि इस तरह की बुराई विभिन्न उच्च न्यायालयों में भी फैल रही है, और रजिस्ट्री को बिना किसी अच्छे कारणों के लिए अनावश्यक रूप से दोषी ठहराया जाता है।

इसके पहले जुलाई 2019 में तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने आदेश पारित किया था कि उच्चतम न्यायालय की रजिस्ट्री में गड़बड़ी की जांच अब सीबीआई के अफसर करेंगे। तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के इस फैसले के मताबिक सीबीआई के एसएसपी, एसपी और इंस्पेक्टर स्तर के अधिकारी डेप्यूटेशन पर सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री में एडिशनल, डिप्टी रजिस्ट्रार और ब्रांच अफसर के पद पर तैनात किए जाएंगे। इनकी मदद दिल्ली पुलिस भी करेगी। अब तक ये आदेश लागू हुआ या नहीं यह शोध का विषय है।
दरअसल रजिस्ट्री या कोर्ट स्टॉफ की कारगुजारियां लगातार उजागर होती रही हैं। बिना पीठ के निर्देश के मुकदमों की मनमाने ढंग से लिस्टिंग की कई जजों और पीठ की ओर से मिली शिकायतों के बाद तत्कालीन चीफ जस्टिस ने ये फैसला किया था। ऐसे कई वाकिए हुए, जिनमें वकील, उद्योगपति और कोर्ट स्टॉफ के बीच साठगांठ से मुकदमों की मनमानी लिस्टिंग और आदेश टाइप करने में गड़बड़ी की बार-बार शिकायतों के बाद ये फैसला किया गया था।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उसके आदेश में फॉरेंसिक ऑडिटर का नाम बदल दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले फरवरी 19 में अपने दो कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया था। यह मामला एरिक्सन मामले में उद्योगपति अनिल अंबानी को कोर्ट में हाजिर होने को लेकर था। इसमें कोर्ट के आदेश में इस तरह छेड़छाड़ की गई, जिससे ऐसा लगा कि अनिल अंबानी को कोर्ट में खुद हाजिर होने से छूट दी गई है। बाद में आदेश में छेड़छाड़ को लेकर मामला दर्ज किया गया।
आम्रपाली मामले में सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने कहा था कि यह दुर्भाग्यपूर्ण, हैरान और चकित करने वाला है कि इस अदालत के आदेशों में हेराफेरी और उन्हें प्रभावित करने की कोशिशें हो रही हैं। यह उच्चतम न्यायालय के लिहाज से काफी निराशाजनक है। इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। इससे कुछ दिन पहले भी इसी तरह का मामला जस्टिस आरएफ नरीमन की अदालत में हुआ और अब फिर से यह हुआ।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)
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