Thursday, April 18, 2024

धर्म संसद में नफरती भाषण की जांच के लिये SIT गठित, हरियाणा और यूपी के पूर्व नौकरशाहों ने मुख्यमंत्री को लिखा पत्र

हरिद्वार में आयोजित तीन दिवसीय हेट कान्क्लेव (धर्मसंसद) में ‘नफ़रत फैलाने वाले भाषण’’ की जांच के लिए रविवार को एसआईटी गठित की गई। गढ़वाल के पुलिस उपमहानिरीक्षक (डीआईजी) के एस नागन्याल ने मीडिया को बताया कि मामले की जांच के लिए पांच सदस्यीय विशेष जांच टीम (एसआईटी) गठित की गई है।

पत्रकारों ने जब उनसे पूछा कि क्या इस मामले से जुड़े कुछ लोगों की गिरफ्तारी भी होगी तो नागन्याल ने बताया कि निश्चित तौर पर अगर जांच में पुख्ता सबूत मिलते हैं, तो गिरफ्तारी होगी।

अधिकारी ने कहा, ‘‘हमने एसआईटी का गठन किया है। वह जांच करेगी। अगर इसमें शामिल लोगों के खिलाफ पुख्ता सबूत मिलते हैं, तो उचित कार्रवाई की जाएगी।’’ उन्होंने बताया कि इस मामले में पांच लोगों के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज़ की गई है जिनमें वसीम रिजवी, जिन्होंने पिछले महीने हिंदू धर्म अपनाने के बाद जितेंद्र नरायण त्यागी नाम रख लिया है, साधवी अन्नपूर्णा धर्मदास,संत सिंधु सागर और धर्म संसद के आयोजक एवं गाजियाबाद के डासना मंदिर के मुख्य पुजारी यति नरसिम्हानंद शामिल हैं।

उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड की भाजपा सरकार पर हरिद्वार में 16 से 19 दिसंबर के बीच आयोजित ‘धर्म संसद’ में मुस्लिमों के ख़िलाफ़ कथित नफ़रत फैलाने वाले भाषण देने वालों पर कार्रवाई करने को लेकर विभिन्न धड़ों का दबाव है।

पूर्व नौकरशाहों ने मुख्यमंत्री को लिखा पत्र

उत्तर प्रदेश व हरियाणा के सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारियों के एक समूह ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखकर हाल ही में हरिद्वार में धर्म संसद पर उनकी सरकार की प्रतिक्रिया की निंदा की है, जहां मुसलमानों के जनसंहार के लिए खुले आह्वान किए गए थे। उन्होंने भीड़ की हिंसा की रोकथाम पर जुलाई 2018 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने और कार्यक्रम के आयोजकों और वक्ताओं की तत्काल गिरफ्तारी का भी आह्वान किया है।

विकास नारायण राय, पूर्व डीजीपी, हरियाणा

एसआर दारापुरी, पूर्व आईजीपी, उत्तर प्रदेश

विभूति नारायण राय, पूर्व डीजीपी, उत्तर प्रदेश

विजय शंकर सिंह, सेवानिवृत्त आईपीएस, उत्तर प्रदेश सहित सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखकर कहा कि ‘धर्म संसद’ विभिन्न धर्मों के शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की उत्तराखंड की लंबी परंपरा पर काला धब्बा है।

मुस्लिम समुदाय के लोगों ने भी शुक्रवार को देहरादून और हरिद्वार में मार्च निकाल कर ‘धर्म संसद’ में नफ़रत फैलाने वाला भाषण देने के आरोपियों की तुरंत गिरफ्तारी की मांग की।

पत्र में नौकरशाहों ने लिखा है कि हम भारत के विभिन्न राज्यों के संबंधित नागरिक और सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी हैं। हम पूर्व नौसेना प्रमुख, एडमिरल अरुण प्रकाश की भावनाओं से सहमत हैं। जिसमें उनके समेत पूर्व सेनाध्यक्ष, जनरल वेद मलिक; डॉ विक्रम सिंह, पूर्व डीजीपी, उत्तर प्रदेश; डॉ एनसी अस्थाना, पूर्व डीजीपी, केरल और एडीजी, सीआरपीएफ ने उत्तराखंड के हरिद्वार में धर्म संसद के बहाने फैलायी गयी नफरत पर गहरी पीड़ा जाहिर करते हुए उसकी कड़ी निंदा की है।

नौकरशाहों ने पत्र में लिखा है कि “विश्वास करें कि ये घटनाएं (और आपकी सरकार की प्रतिक्रिया) भारतीयों के जीवन और सुरक्षा के लिए ख़तरा हैं, शांति और लोकतांत्रिक मूल्यों की एक लंबी परंपरा वाले राज्य के इतिहास पर एक काला निशान और हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक सीधा ख़तरा है”।

उन्होंने कहा कि धर्म संसद में शामिल लोगों ने खुले तौर पर भारत के 20 लाख मुस्लिम नागरिकों के जनसंहार का आह्वान किया और इस समुदाय के गांवों को “शुद्ध” करने की धमकी दी। घटना के बाद से, इन वक्ताओं ने बार-बार राष्ट्रीय टेलीविजन पर अपने बयानों को दोहराया है।

उन्होंने पत्र में आगे कहा है कि यह डर और दहशत फैलाने का खुला प्रयास है। लेकिन इस आपराधिक गतिविधि के लिए आज तक किसी को गिरफ्तार भी नहीं किया गया है। तथ्य यह है कि इस सभा की अनुमति दी गई थी, आपकी सरकार की कानून और व्यवस्था मशीनरी की ओर से एक बड़ी विफलता थी। अंतरराष्ट्रीय आक्रोश के बाद अब भी तीन लोगों के ख़िलाफ़ एक ही धारा के तहत प्राथमिकी दर्ज़ की गई है। यह स्पष्ट है कि आपकी सरकार इन व्यक्तियों की रक्षा कर रही है।

नौकरशाहों ने पत्र में लिखा है कि यह भी नहीं कहा जा सकता कि ये केवल भाषण थे। 2017 में वर्तमान सरकार के सत्ता में आने के बाद से हिंसक घटनाओं की एक श्रृंखला हुई है जहां भीड़ ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के निवासियों, दुकानों और पूजा स्थलों को निशाना बनाया, साथ ही एक मामले में, एक विपक्षी दल के कार्यालय को भी निशाना बनाया। 4 अक्टूबर को नागरिक समाज समूहों ने एक संयुक्त पत्र में 2017 और 2018 के दौरान हुई सतपुली, मसूरी, अरघर (देहरादून), कीर्तिनगर, हरिद्वार, रायवाला, कोटद्वार, चंबा, अगस्त्यमुनि, डोईवाला, घनसाली, रामनगर समेत 13 ऐसी घटनाओं का उल्लेख किया। देहरादून में सीपीएम के कार्यालय पर हमला किया गया। हाल ही में, 3 अक्टूबर 2021 को रुड़की के एक चर्च में दिन के उजाले में तोड़फोड़ की गई और चार लोगों को पीटा गया और गंभीर रूप से घायल कर दिया गया।

उत्तराखंड में इस तरह की हिंसा पहले कभी नहीं देखी गई। फिर भी आपकी सरकार ने हिंसा में लिप्त संगठनों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की है। दरअसल, सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी के अनुसार, दो महीने बाद भी रुड़की हमले के लिए किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया है।

पत्र में आगे नौकरशाहों ने मुख्यमंत्री से कहा है कि हम आगे ध्यान दिलाते हैं कि 4 अक्टूबर को, आपकी सरकार ने राज्य में “हिंसा की घटनाओं” के नाम पर मजिस्ट्रेटों को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत शक्तियों के विस्तार को उचित ठहराया। लेकिन वास्तव में हिंसा भड़काने वालों के ख़िलाफ़ धर्म संसद की तरह कोई गंभीर कार्रवाई नहीं की जा रही है। इसके बजाय, ये कठोर आदेश केवल आपकी सरकार के ख़िलाफ़ असहमति जताने वालों में भय पैदा करने के उद्देश्य से प्रतीत होते हैं।

कुल मिलाकर, यह एक स्पष्ट संदेश भेजने के उद्देश्य से प्रतीत होता है कि धार्मिक अल्पसंख्यक, और वास्तव में कोई भी जो आपकी पार्टी की विचारधारा के साथ नहीं है, अपनी संपत्ति, अपनी स्वतंत्रता या अपने जीवन के लिए कानून के शासन की सुरक्षा की उम्मीद नहीं कर सकता है।

नौकरशाहों ने हेट कान्क्लेव को लोकतंत्र पर ख़तरा बताते हुए कहा है कि – “यह हमारे लोकतंत्र की नींव पर हमला है। ऐसी गतिविधियों को सहन करना और प्रोत्साहित करना भी एक राष्ट्र के रूप में हमारी सुरक्षा के लिए सीधा ख़तरा है।

मुख्य मांगें –

1- धर्म संसद के आयोजकों और कानून की सभी लागू धाराओं के तहत हिंसा के लिए खुले आह्वान में शामिल वक्ताओं को तुरंत गिरफ्तार कर उन्हें जेल भेजें।

2- सार्वजनिक रूप से तुरंत बताएं कि उत्तराखंड में ऐसी गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

3- नफ़रत, हिंसा को बढ़ावा देने वाले किसी भी संगठन या हिंसा में लिप्त लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई शुरू करें।

4- भीड़ हिंसा की रोकथाम के संबंध में जुलाई 2018 के माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों को लागू करें।

(जनचौक के विशेष संवदादाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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