Thursday, April 25, 2024

भारत के लोकतंत्र को खोखला किया जा रहा है: सोनिया गांधी

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मोदी सरकार की मौजूदा नीतियों पर जमकर हमला बोला है। उन्होंने नीतियों को दमनकारी करार देते हुए उन्हें आम लोगों के हितों के खिलाफ बताया है। उन्होंने कहा है कि सरकार लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने के साथ ही आंदोलनों को अपराधीकृत कर रही है। ऐसे में किसी भी नागरिक का अधिकार सुरक्षित नहीं है। जिसका नतीजा यह है कि लोकतंत्र लगातार सिकुड़ता जा रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष ने इस पूरे माहौल पर गहरी चिंता जाहिर की है। ये बातें उन्होंने एक बयान में कही है। 

उन्होंने असहमति को अपराध बनाती मोदी सरकार की नीतियों पर दो टूक कहा- “दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र चौराहे पर है। और अब यह स्पष्ट है कि अर्थव्यवस्था गहरे संकट में है। लेकिन जो सबसे ज़्यादा चिंता की बात है वो ये कि शासन की लोकतांत्रिक व्यवस्था के सभी स्तंभों पर हमले हो रहे हैं। और केंद्र सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों और नागरिक समाज के नेताओं को निशाना बनाने के लिए संस्थानों का दुरुपयोग कर रही है। उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की आज़ादी के मौलिक अधिकार को दमन और भय के माध्यम से व्यवस्थित रूप से निलंबित कर दिया गया है।

असहमति की जानबूझकर ‘आतंकवाद’ या ‘राष्ट्र विरोधी गतिविधि’ के रूप में निशानदेही की जा रही है। कई संस्थाएं जिनका मकसद बड़े पैमाने पर नागरिकों और समाज के अधिकारों को बनाए रखने के लिए है, उन्हें विकृत कर दिया गया है। भारतीय राज्य अब असली मुद्दे से लोगों का ध्यान हटाकर हर जगह राष्ट्रीय सुरक्षा’ के काल्पनिक खतरे का हल्ला मचाता है।”

राजनीतिक विरोधियों को ठिकाने लगाने के लिए किया जा रहा है मशीनरी का दुरुपयोग

मोदी सरकार द्वारा राजनीतिक विरोधियों का दमन करने में किए जा रहे तमाम संस्थाओं के इस्तेमाल पर उन्होंने कहा,“ बेशक, इन खतरों में से कुछ वास्तविक हैं और उनसे दृढ़ता से निपटा जाना चाहिए, लेकिन मोदी सरकार और सत्तारूढ़ भाजपा हर राजनीतिक विरोध के पीछे भयावह साजिशों का फॉर्मूला फिट कर देती है। वास्तव में किसी भी और हर चीज के पीछे वो अपना विरोध में देख लेते हैं। ये व्यवस्था असहमत लोगों के खिलाफ़ जांच एजेंसियों को लगा देती है और मीडिया के कुछ वर्गों और ऑनलाइन ट्रोल फैक्टरियों को उसके पीछे लगा देती है। भारत द्वारा अथक परिश्रम से अर्जित लोकतंत्र को खोखला किया जा रहा है। मोदी सरकार अतिश्योक्तियों की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ती है।

राज्य का प्रत्येक अंग जिसको संभवतः राजनीतिक विरोधियों को ठिकाने लगाने में इस्तेमाल किया जा सकता है – पहले से ही इस काम पर लगा दिया गया है – पुलिस, प्रवर्तन निदेशालय, केंद्रीय जांच ब्यूरो, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और यहां तक ​​कि नारकोटिक्स ब्यूरो भी। ये एजेंसियां ​​अब केवल प्रधानमंत्री और गृहमंत्री कार्यालय की धुन पर नाचती हैं। राज्य सत्ता का इस्तेमाल हमेशा संवैधानिक मानदंडों का पालन करने और स्थापित लोकतांत्रिक दस्तूर के सम्मान के लिए किया जाना चाहिए। इनमें से दो सबसे महत्वपूर्ण हैं: ऐसी शक्ति का उपयोग हमेशा सभी नागरिकों के हित में किया जाना चाहिए, बिना किसी प्रकार के भेदभाव के; और राजनीतिक मशीनरी को चुनिंदा राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। स्वतंत्र भारत की किसी भी पूर्व सरकार की तुलना में मोदी सरकार ने इन मूल सिद्धांतों का लगातार उल्लंघन किया है।”

सरकार से असहमत लोगों को आतंकवादी और राष्ट्र विरोधी बना देने का पैटर्न

राजनीतिक विरोधियों को राष्ट्र का दुश्मन बना देने के मोदी सरकार के पैटर्न को रेखांकित करते हुए सोनिया गांधी कहती हैं, “अपने पहले कार्यकाल में, मोदी सरकार ने अपने राजनीतिक विरोधियों को भारतीय राज्य के दुश्मन के रूप में नामित करना शुरू किया। अपने इस स्व-सेवी कदम के तहत उन्होंने हमारे दंड संहिता के सबसे भयावह कानून को उन लोगों पर लागू करना शुरू किया जो भाजपा और उसकी राजनीति से सार्वजनिक रूप से असहमत थे। यह साल 2016 में भारत के अग्रणी विश्वविद्यालयों में से एक जेएनयू में युवा छात्र नेताओं के खिलाफ राजद्रोह के आरोप लागू करने के साथ शुरू हुआ। और उसके बाद तो ये भयावह सिलसिला जारी ही रहा। कई प्रसिद्ध एक्टिविस्टों, विद्वानों और बुद्धिजीवियों को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया। कोई शक नहीं कि उन लोगों ने सत्ता में स्थित सरकार के विपरीत पोजीशन लिया है। लेकिन यही असली लोकतंत्र है।”

सरकार विरोधी आंदोलनों में महिलाओं की मुख्य भूमिका 

कांग्रेस अध्यक्ष ने आगे मोदी सरकार के दमन के खिलाफ़ महिलाओं के संघर्ष और पुरुष वर्चस्ववादी समाज में स्त्रियों की बदलती भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा, “भाजपा विरोधी प्रदर्शनों को भारत विरोधी षड्यंत्र के रूप में लेबल करने का सबसे निंदनीय प्रयास मोदी सरकार द्वारा नागरिकता (संशोधन) अधिनियम और प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (CAA-NRC) के खिलाफ असाधारण विरोध-प्रदर्शनों के जवाब में देखा गया है। मुख्य रूप से महिलाओं के नेतृत्व में सीएए-एनआरसी के विरोध प्रदर्शन ने दिखाया कि कैसे एक वास्तविक सामाजिक आंदोलन शांति, समावेशिता और एकजुटता के मजबूत संदेश के साथ सांप्रदायिक और भेदभावपूर्ण राजनीति का जवाब दे सकता है। शाहीन बाग और देश भर के अन्य अनगिनत स्थलों पर हुए विरोध प्रदर्शनों ने दिखाया कि किस तरह महिलाओं के लिए केंद्र स्थान (सेंटर स्टेज) को छुड़वाकर प्रभावी पुरुष सत्ता संरचनाओं को एक सहायक भूमिका निभाने के लिए राजी किया जा सकता है।”

आज जिस तरह से सांप्रदायिक दंगों और बलात्कारियों के समर्थन में तिरंगा रैली निकाली जा रही है उसकी तुलना में सीएए-एनआरसी विरोधी धरनों में इनके गौरवमयी इस्तेमाल को विशेष रूप से रेखांकित करते हुए सोनिया गांधी ने कहा, “यह संविधान और इसकी प्रस्तावना, राष्ट्रीय ध्वज और हमारे स्वतंत्रता संग्राम सहित राष्ट्रीय प्रतीकों के अपने गौरवपूर्ण उपयोग के लिए भी उल्लेखनीय था।”

सरकार रोकने की इच्छा रखती तो न होते दिल्ली दंगे

फरवरी में हुए दिल्ली दंगों पर मोदी सरकार की भूमिका को स्पष्ट करते हुए सोनिया गांधी ने कहा, “इस आंदोलन को राजनीतिक स्पेक्ट्रम से परे नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं और संगठनों का व्यापक समर्थन मिला, जो इस विभाजनकारी सीएए-एनआरसी का विरोध कर रहे थे। लेकिन मोदी सरकार ने इस आंदोलन को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। इसके बजाय, उसने इसे कमजोर करने के लिए दिल्ली के चुनावों में एक विभाजनकारी मुद्दा बना दिया। भाजपा नेताओं – जिनमें वित्त राज्य मंत्री और गृह मंत्री शामिल हैं – ने एक अनिवार्य गांधीवादी सत्याग्रह पर हमला करने के लिए अपमानजनक बयानबाजी और हिंसक छवियों का इस्तेमाल किया था। अन्य भाजपा दिल्ली के नेताओं ने सार्वजनिक रूप से प्रदर्शनकारियों पर हमला करने की धमकी दी। सत्ताधारी पार्टी ने उन परिस्थितियों का निर्माण किया जिसमें पूर्वोत्तर दिल्ली में हिंसा भड़की। फरवरी में हुआ ये दंगा कभी नहीं हुआ होता यदि सरकार उसे रोकने की इच्छाशक्ति दिखाई होती।”

सरकार प्रतिशोध ले रही है

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दिल्ली दंगों की जांच को मोदी सरकार का प्रतिशोध करार देते हुए कहा है कि “इसके (दंगों के बाद) बाद के महीनों में, मोदी सरकार ने अपने प्रतिशोध को चरम तक पहुंचाया, यह दावा करते हुए कि विरोध प्रदर्शन भारतीय राज्य के खिलाफ एक साजिश थी। और इसके परिणामस्वरूप पूरी तरह पक्षपातपूर्ण जांच की गई, लगभग 700 एफआईआर दर्ज किए गए, सैकड़ों लोगों से पूछताछ किए जाने, और गैरकानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम (यूएपीए) के तहत दर्जनों को हिरासत में लिया गया । प्रमुख नागरिक समाज के नेताओं, जिनमें से कुछ दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं, को दिल्ली हिंसा के मास्टरमाइंड और दंगा भड़काने वाले के रूप में नामित किया जा रहा है।

भाजपा का इन असंतुष्टों और नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं के साथ मतभेद हो सकते हैं। दरअसल, इन्हीं कार्यकर्ताओं ने अक्सर कांग्रेस सरकारों के खिलाफ भी विरोध किया है। लेकिन उन्हें सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देने वाले राष्ट्र विरोधी षड्यंत्रकारियों के रूप में चित्रित करना लोकतंत्र के लिए हानिकारक और बेहद खतरनाक है।”

उन्होंने आगे कहा, “ये बेहद घिनौना है कि प्रख्यात अर्थशास्त्रियों, शिक्षाविदों, सामाजिक प्रचारकों और यहां तक ​​कि बहुत वरिष्ठ राजनीतिक नेताओं जिनमें एक पूर्व केंद्रीय मंत्री भी शामिल हैं, को दिल्ली पुलिस द्वारा जांच में तथाकथित डिस्क्लोजर स्टेटमेंट के माध्यम से दुर्भावनापूर्वक लक्षित किया गया है। यह सब केवल यह दर्शाता है कि भाजपा परिणामों की परवाह किए बिना अपनी सत्तावादी रणनीति को आगे बढ़ाने के लिए मन बना चुकी है।”

हाथरस केस यूपी सरकार की क्रूरता का पर्याय है

हाथरस दलित लड़की के गैंगरेप और क्रूरतापूर्ण हत्या पर यूपी सरकार के बर्बर रवैये पर टिप्पणी करते हुए सोनिया गांधी ने कहा, “हाथरस में दलित लड़की के बलात्कार, गैरकानूनी दाह संस्कार और न्याय के लिए रोने वाले उसके परिवार की धमकी देने के विरोध में उत्तर प्रदेश सरकार की क्रूर प्रतिक्रिया इनकी असहिष्णु और अलोकतांत्रिक मानसिकता का प्रमाण है। संप्रग सरकार ने निर्भया मामले को जिस तरह से संभाला था यह उसके बिल्कुल विपरीत था।”

अवाम ही राष्ट्र है, पर जिन्होंने वोट नहीं दिया सरकार उनके साथ दोयम दर्जे का बर्ताव कर रही

आखिर में जनता के मौलिक अधिकारों और राष्ट्र में जनता और सरकार की भूमिका को रेखांकित करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, “आजादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बुनियादी सिद्धांतों को इस तरीके से कमजोर करना राजनीति और समाज को जहरीला बना देता है। भाजपा भी हर दूसरे राजनीतिक दल की तरह, भारतीय संविधान के ढांचे के भीतर किसी भी विचारधारा का प्रचार करने की हकदार है। लेकिन हमारा संविधान भी प्रत्येक भारतीय को यह विश्वास दिलाता है कि मौलिक अधिकार वोट के अधिकार के साथ खत्म नहीं होते हैं – इनमें अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार, विरोध का अधिकार और सार्वजनिक और शांतिपूर्वक असहमति शामिल है। सच्चे नागरिक समाज के नेताओं को दुष्ट साजिशकर्ता और आतंकवादी के रूप में चित्रित करना, दरअसल आम लोगों के साथ संवाद के पुलों को जलाना है, जिनकी ओर से वे बोलते हैं।”

इसके आगे उन्होंने कहा, “नागरिकों का नागरिक होना इससे नहीं समाप्त हो जाता है, कि उन्होंने जिस पार्टी को वोट दिया था वो पार्टी चुनाव हार गई है। प्रधानमंत्री बार-बार 130 करोड़ भारतीयों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं। लेकिन उनकी सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी राजनीतिक विरोधियों, असंतुष्टों और जिन्होंने सत्ताधारी पार्टी को वोट नहीं दिया उन लोगों के साथ बिना लोकतांत्रिक अधिकार वाले दोयम दर्जे के नागरिकों की तरह व्यवहार कर रही है। भारत के लोग केवल एक मतदाता नहीं हैं। वे, और केवल वे, राष्ट्र हैं। सरकारें उन सबकी सेवा करने के लिए बनती हैं, न कि इस या उस हिस्से को तिरस्कृत करने के लिए।”

“यह राष्ट्र तभी फले-फूलेगा जब लोकतंत्र हमारे संविधान और स्वतंत्रता आंदोलन के अनुरूप इसका अक्षरशः और अंतरात्मा से पालन करेगा।”

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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