Friday, April 19, 2024

माहवारी (पीरियड) के दौरान वेतन सहित छुट्टी देने वाला स्पेन यूरोप का पहला देश बना 

स्पेन यूरोप का पहला ऐसा देश बन गया है, जहां पीरियड के दिनों में महिलाओं को वेतन के साथ छुट्टी दी जाएगी। इस संबंध में वहां 16 फरवरी को कानून पारित कर दिया गया है। यह छुट्टी तीन से पांच दिनों के लिए मिलेगी। इसके साथ शैक्षणिक संस्थाओं, जेलों और सामाजिक केंद्रों पर महिलाओं के लिए सैनिटरी पैड और पीरियड के दौरान इस्तेमाल होने वाले साफ-सफाई की अन्य चीजें मुफ्त में उपलब्ध कराई जाएंगी।

स्पेन में यह प्रावधान महिलाओं को कार्यस्थल पर बेहतर स्थिति मुहैया कराये जाने और लैंगिक समता स्थापित करने लिए किया गया है। माहवारी महिलाओं के लिए शारीरिक और मानसिक दोनों रूपों में काफी तकलीफदेह होती है। इस दौरान रक्तस्राव के चलते महिलाएं बेहद कमजोरी महसूस करती हैं, उन्हें पीड़ादायक दर्द से गुजरना पड़ता है। पेट में ऐंठन होती है। कुछ महिलाओं में रक्त स्राव का स्तर भी ज्यादा होता है, जिससे चलते उनकी तकलीफ और बढ़ जाती है। कुछ महिलाओं को चक्कर और  उल्टी आती है।

मानसिक तौर पर भी यह दौर महिलाओं को लिए बेहद तनाव से भरा होता। कभी-कभी माहवारी से एक दो दिन पहले से ही उन्हें दर्द शुरू हो जाता है। माहवारी के दौरान महिलाओं को आराम की सख्त जरूरत महसूस होती है। कई महिलाओं को इस दर्द से आराम के लिए दवाएं भी लेनी पड़ती हैं। 

कार्यस्थल पर महिलाओं को कई सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जिसमें से एक बड़ी समस्या माहवारी की भी है। ब्रिटिश मेडिकल एसोशिएशन के जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक साल में 23.2 दिन ऐसे होते हैं, जब महिलाओं की कार्यक्षमता बहुत घट जाती है। यह समय महिलाओं की माहवारी के होते हैं। इससे जुड़ी तकलीफों के चलते महिलाएं ठीक से काम नहीं कर पाती हैं।

जापान इस दिशा में कदम उठाने वाला दुनिया के पहले देशों में शामिल है। जहां माहवारी के दौरान महिलाओं के वेतन सहित छुट्टी देने के लिए कानून बनाया गया। इस कानून में कहा गया है कि “ जो महिला माहवारी के दौरान काम करती है, उनके लिए अपने कार्यस्थल से छुट्टी के लिए कहना मुश्किल होता है। कोई भी कार्यस्थल महिलाओं से माहवारी के दिनों में काम करने के लिए नहीं कह सकता है।”

इस संदर्भ में जाम्बिया में बना कानून कहता है कि “ एक महिला कर्मचारी को महीने में एक दिन ( माहवारी के दिन) छुट्टी लेने का अधिकार है। इसके लिए उसे अपने कार्यस्थल पर मेडिकल प्रमाण-पत्र दिखाने या कारण बताने की कोई जरूरत नहीं।”

दुनिया में रूस ऐसा पहला देश था, जहां माहवारी के दौरान महिलाओं को छुट्टी देने की बात 1917 की रूसी क्रांति के बाद सबसे पहले शुरू हुई। 1920 में रूस में महिलाओं को माहवारी के दौरान छुट्टी देने का कानून बनाया गया। बाद में ताइवान और इंडोनेशिया ने भी इसका अनुसरण किया और अपने यहां माहवारी के दौरान महिलाओं को छुट्टी देने का कानून बनाया। 

भारत में बिहार में सबसे पहले 1992 में लालू यादव की सरकार ने उच्च शिक्षण संस्थाओं ( विश्वविद्यालय और महाविद्यालयों) में छात्राओं के लिए माहवारी की छुट्टी देने का प्रावधान किया था। पिछले महीने केरल की सरकार ने उच्च शिक्षण संस्थाओं में छात्राओं के लिए इसी तरह का प्रावधान किया है।

भारत में 2017 में अरूणाचल प्रदेश से कांग्रेस के सांसद निनांग इरिंग ने लोकसभा में माहवारी के दौरान छुट्टी के संबंध में एक बिल पेश किया था। जिसमें माहवारी के दिनों में सरकारी क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं और आठवीं कक्षा और उससे ऊपर की छात्राओं के लिए चार दिनों की छुट्टी का कानून बनाने की मांग की गई थी। लेकिन यह बिल पास नहीं हुआ। भारत में माहवारी के दौरान छुट्टी के संदर्भ में कोई देशव्यापी कानून नहीं है।

माहवारी एक ऐसी जैविक क्रिया है, जिसके बिना कोई महिला बच्चे को जन्म नहीं दे सकती है। जब माहवारी बंद हो जाती है, तो महिला की बच्चे को जन्म देने की जैविक क्षमता भी खत्म हो जाती है।

जो माहवारी एक महिला को बच्चे को जन्म देने लायक बनाती है, जिससे मानव प्रजाति पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ती है, वही माहवारी महिलाओं को सम्मान और उच्च दर्जा दिलाने की जगह दुनिया भर में उनके अपमान का कारण बन गई।

भारत में महिलाओं को माहवारी के दिनों में ‘अछूत’ तक माना जाता रहा है और अब भी बहुत जगहों पर यह परंपरा जारी है। माहवारी के बाद महिलाएं अपवित्र हो जाती हैं, इसी सोच के चलते देश के कुछ नामी-गिरामी मंदिरों में उन महिलाओं का प्रवेश वर्जित है, जिनकी माहवारी शुरू हो गई है।

केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 साल से लेकर 50 साल की महिलाओं का प्रवेश वर्जित है, क्योंकि माना जाता है कि यही वह उम्र है, जब महिलाओं को माहवारी आती है।

इस मंदिर में प्रवेश के संदर्भ में माहवारी की उम्र से गुजर रही महिलाओं को इतना अपवित्र माना जाता है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद भी 10 वर्ष से 50 वर्ष की उम्र की महिलाओं को इस मंदिर में प्रवेश नहीं मिल पाया। जिन महिलाओं ने कोशिश की उन्हें रोक दिया गया। पुरूषों की कौन कहे, केरल जैसे उन्नत समाज की महिलाओं का भी एक हिस्सा सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ सड़कों पर उतर आया।

दूसरे उत्पीडि़ति तबकों की तरह महिलाओं के मामले में भी दुनिया अभी भी सभ्य, मानवीय और आजाद ख्यालों वाली नहीं हुई है। 

(कुमुद प्रसाद की रिपोर्ट)

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