तमिलनाडु में 100 दिन में 200 गैर ब्राह्मण पुजारियों की नियुक्ति करेगी स्टालिन सरकार

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तमिलनाडु की 38 दिन पुरानी एमके स्टालिन सरकार ने 100 दिन में 200 गैर-ब्राह्मण पुजारियों की नियुक्ति की घोषणा की है। कुछ दिनों में 70-100 गैर-ब्राह्मण पुजारियों की पहली लिस्ट जारी होगी।

इसके लिये जल्द ही 100 दिन का “शैव अर्चक’ कोर्स शुरू होगा, जिसे करने के बाद कोई भी व्यक्ति पुजारी बन सकता है। नियुक्तियां तमिलनाडु हिंदू रिलीजियस एंड चैरिटेबल इंडॉमेंट डिपार्टमेंट (एचआर एंड सीई) के अधीन आने वाले 36,000 मंदिरों में होंगी।

वहीं तमिलनाडु के धर्मार्थ मामलों के मंत्री पीके शेखर बाबू ने बताया है कि मंत्रालय के अधीन आने वाले मंदिरों में पूजा तमिल में होगी।

गैर ब्राह्मण पुजारी की नियुक्ति के लिये 5 दशक का संघर्ष

गौरतलब है कि गैर-ब्राह्मण पुजारी की लड़ाई का तमिलनाडु में एक लंबा इतिहास है। सबसे पहले 1970 में पेरियार ने इस मुद्दे को उठाया तो द्रमुक सरकार ने नियुक्ति के आदेश दिए। फिर साल 1972 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के आदेश पर रोक लगा दी थी। इस बाबत साल 1982 में, तत्कालीन मुख्यमंत्री एमजी रामचंद्रन ने जस्टिस महाराजन आयोग का गठन किया। आयोग ने सभी जातियों के व्यक्तियों को प्रशिक्षण के बाद पुजारी नियुक्त करने की सिफारिश की। 25 साल बाद डीएमके सरकार ने 2006 में फिर गैर ब्राह्मण पुजारियों की नियुक्ति के आदेश दिए और 2007 में एक साल का कोर्स शुरू किया गया, जिसे 206 लोगों ने किया।

इसके बाद सत्ता में आयी अन्नाद्रमुक सरकार ने साल 2011 में इस कोर्स को बंद कर दिया। इसके बाद साल 2018 में अन्नाद्रमुक सरकार ने मदुरै जिले के तल्लाकुलम में अय्यप्पन मंदिर में पहले गैर-ब्राह्मण पुजारी मरीचामी की नियुक्ति की। फिर दो साल बाद, त्यागराजन को नागमलाई पुदुक्कोट्टई के सिद्धि विनायक मंदिर में नियुक्त किया गया। जहां उन्हें त्योहार के समय 10,000 रुपए प्रति माह और अन्य समय में 4,000 रुपए मासिक वेतन मिलता है।

भाजपा उतरी विरोध में

गैर ब्राह्मण जातियों को पुजारी बनाने के तमिलनाडु सरकार के फैसले के विरोध में ब्राह्मणवादी भाजपा मैदान में उतर आयी है। भाजपा ने कहा है कि द्रमुक पार्टी की नींव हिंदू विरोध के मूल विचार पर पड़ी है। क्या सरकार किसी मस्जिद या चर्च को नियंत्रण में लेगी?

वरिष्ठ भाजपा नेता नारायणन तिरुपति ने ब्राह्मणवादी परंपरा की दुहाई देते हुये बयान दिया है कि तमिलनाडु के मंदिरों में हजारों साल पुरानी परंपरा है। मंदिरों में पहले से गैर-ब्राह्मण पुजारी हैं। प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष केटी राघवन ने कहा, सरकार चाहती है कि मंत्र तमिल में बोले जाएं। यह कैसे हो सकता है? डीएमके राजनीतिक लाभ के लिए हिंदुओं में मतभेद पैदा कर रही है। ब्राह्मण पुजारी संघ के प्रतिनिधि एन. श्रीनिवासन कहते हैं कि 100 दिन का कोर्स करके कोई कैसे पुजारी बन सकता है? यह सदियों पुरानी परंपरा का अपमान है। तमिल विद्वान वी. नटराजन कहते हैं, गैर-ब्राह्मण पुजारी राज्य के धार्मिक ताने-बाने का अभिन्न अंग हैं। अब ये लोग शैव और वैष्णव संप्रदाय के पुराने मंदिरों में प्रतिनिधित्व चाहते हैं।

दशकों से इन मंदिरों के पुजारी ब्राह्मण हैं। अन्य जातियों के लिए खोलने के कई परिणाम होंगे। भारतीय जनता पार्टी के विरोध पर प्रतिक्रिया देते हुये डीएमके सांसद कनिमोझी ने कहा है कि खुद को हिंदुओं की रक्षक बताने वाली भाजपा एक ही वर्ग के साथ ही क्यों खड़ी है?

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