दिल्ली चुनाव से ज्यादा महत्वपूर्ण है चीनी घुसपैठ और विदेशी निवेश के तेजी से पलायन को रोकना

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल दिल्ली के झुग्गीवासियों के लिए 1600 से अधिक फ्लैट्स की सौगात देकर भाजपा के पक्ष में धमाकेदार चुनावी शुरुआत करने की कोशिश की है, और इस बार उनका इरादा हर हाल में अरविंद केजरीवाल को दिल्ली से अपदस्थ करने का है।

लेकिन अमेरिका में मित्र अडानी के पर कसता शिकंजा, विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर की मार्फत अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के शपथग्रहण समारोह का निमंत्रण पाने की जी-तोड़ कोशिश के बावजूद उन्हें विफलता ही हाथ लगी है।

दूसरी ओर, भारत-चीन सीमा विवाद पर पहले तो इसे हल कर लेने का दावा किया गया, और अब विदेश मंत्रालय के द्वारा यह कहा जा रहा है कि चीन ने भारत की सीमा के भीतर दो गांव बसा लिए हैं, ऐसे कई अनुत्तरित प्रश्न बीजेपी और पीएम मोदी की प्रतिष्ठा पर भारी बट्टा भी लगाते जा रहे हैं।

ऐसे में, भले ही गोदी मीडिया अभी भी देश में मोदी की फ़िजा को रंगीन बनाने में जुटी हो, और काफी हद तक आम भारतीय के सामने पूरी तस्वीर कभी सामने न आने दे, लेकिन दिन-ब-दिन केंद्र सरकार की 56 इंची इमेज तार-तार होने से वह रोक पाने में असमर्थ है।

अडानी समूह की मुसीबतें अब नियंत्रण के बाहर हैं

जिस अडानी समूह को अभी तक अजेय दिखाने की जीतोड़ कोशिश चल रही थी, और दो-दो बार अडानी समूह के शेयर्स को डूबने के बाद भी उबारने में मिलाजुला प्रयास सफल रहा, वही समूह अब अपने सबसे पहले उद्यम अडानी-विल्मर में अपनी हिस्सेदारी को पूरी तरह से खत्म करने और उसके एवज में कुछ हजार करोड़ रूपये नकदी बटोरने के लिए मजबूर है।

जिस गौतम अडानी को जमे-जमाए उद्योगों को अपने नाम कर लेने की खब्त सवार थी, उसे अपने सबसे पुराने उद्योग को बेचने के लिए आज मजबूर होना पड़ा है, यह किसी अचंभे से कम नहीं है। लेकिन वास्तविकता तो यही है।

आज अडानी समूह करीब 2.40 लाख करोड़ रुपये के कर्ज में डूबा हुआ है। आये दिन समूह को रिन्यूएबल एनर्जी सेक्टर में निवेश के लिए घोषणा करना एक आवश्यक शर्त है, जबकि पश्चिमी देशों के निवेशकों से बांड के बदले में जो धन जुटाया गया था, उसे सरेंडर किये जाने के बाद उन्हें रकम चुकाने के लिए समूह बाध्य है।

कल तक भारतीय बैंकों से जब चाहो पैसा मिल जाता था, अब वे भी अडानी समूह से आंख चुराते देखे जा सकते हैं।

इसके पीछे की एक ठोस वजह यह है कि अमेरिकी अदालत में अडानी समूह के मालिक गौतम अडानी और भतीजे सागर अडानी के खिलाफ दीवानी और फौजदारी के ठोस मुकदमे हैं, जिसमें अब और इजाफ़ा हो चुका है। इसका सीधा संबंध भारतीय सौर उर्जा से जुड़ी विभिन्न परियोजनाओं से है।

इन सभी परियोजनाओं के लिए भी कहीं न कहीं भारतीय बैंकों का पैसा निश्चित रूप से लगा होगा। ऐसे में भविष्य में यदि अडानी समूह के खिलाफ अमेरिकी अदालत में सजा मुकर्रर हो जाती है, और नतीजतन इन पांच राज्यों की सरकारों के लिए सौर ऊर्जा करार को तोड़ने की नौबत आ जाती है, तो इन बैंकों की आर्थिक सेहत पर भी इसका बुरा असर निश्चित तौर पर पड़ना तय है। ऐसे में और ज्यादा ऋण देना बैंक मैनेजमेंट के लिए संभव नहीं है।

न कोई घुसा था, न कोई घुसा हुआ है

लद्दाख के गलवान क्षेत्र में चीनी सेना के साथ मुठभेड़ में 20 भारतीय जवानों की मौत और भारतीय सीमा के भीतर चीन की सेना के घुस आने के सवाल पर पीएम मोदी का यह सार्वजनिक बयान आज भी अधिकांश भारतीयों को याद होगा।

चूंकि स्वंय देश के प्रधानमंत्री ने आगे बढ़कर घोषणा की थी कि चीन ने हमारी एक इंच जमीन पर कब्जा नहीं किया है, इसलिए भारतीय सेना के अधिकारियों को भी तब खामोश हो जाना पड़ा था।

क्या इसके पीछे की वजह यह नहीं थी कि यदि मोदी सरकार यह स्वीकार कर लेती कि चीन भारतीय सीमा में घुसा हुआ है, जो कि आर्थिक और सामरिक दोनों ही स्तर पर भारत से काफी शक्तिशाली हो चुका है, के साथ मोदी सरकार पंगा नहीं लेना चाहती थी?

दूसरा, इसे स्वीकार करने का मतलब होता एक-एक इंच वापस लेने के लिए अपने ही द्वारा खड़ा किये गये 56 इंची सीने की बेइज्जती से दो-चार होना। हालांकि, इसके बाद भारत-चीन रिश्ते में खटास होती चली गई। भारत ने चीन के बहिष्कार के नाम पर कुछ एप्प को प्रतिबंधित कर दिया, और कुछ कंपनियों पर भी यह प्रतिबंध लागू कर दिए गये।

लेकिन हाल के दिनों, भारतीय बिग कॉर्पोरेट के दबाव के चलते एक बार फिर से सरकार ने चीन के साथ संबंधों में गर्माहट लाने की पहल कर एकबारगी सबको चौंका दिया था।

सारी दुनिया इस तथ्य से वाकिफ है कि चीन पिछले एक दशक से न सिर्फ दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब बना हुआ है, बल्कि हाल के वर्षों में इलेक्ट्रिक वाहन तकनीक, 5 जी, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, सोलर पैनल सहित इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में वह पश्चिमी देशों के पसीने छुड़ा रहा है।

अडानी समूह को भारत में यदि सोलर एनर्जी के क्षेत्र में एकाधिकार और भारी मुनाफा कमाना है तो चीन से बड़ी मात्रा में आयात के जरिये ही इसे संभव किया जा सकता है।

इसी प्रकार, रिलायंस जिसे रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से रूस से तेल की खरीद और रिफाइनिंग के साथ ही यूरोपीय देशों में बिक्री से मोटा मुनाफा कमाने का मौका लगा था, को अपने अन्य क्षेत्रों में खास मुनाफा नहीं हो रहा है।

रिलायंस रिटेल को आगे बढ़ाने और भारतीय रिटेल बाजार पर एकाधिकार स्थापित करने के लिए उसने चीनी टॉप ब्रांड को भारतीय बाजार में बड़े पैमाने पर उतारकर अपने लिए एकाधिकारी पोजीशन को स्थापित करने का मन बनाया हुआ है। ये दो प्रमुख कारण हैं, जिसके तहत भारतीय विदेश नीति चीन के पक्ष में बैठाई जा रही है।

लेकिन कल विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने चीन के द्वारा भारतीय सीमा के भीतर दो गांव बसा लेने की बात कह एक बड़े विवाद को जन्म दे दिया है, जिसके केंद्र में कोई और नहीं स्वंय पीएम नरेंद्र मोदी हैं।

शुक्रवार को भारतीय प्रवक्ता ने कहा कि उसने होटन प्रांत में दो नए काउंटी बनाने को लेकर चीन के समक्ष “गंभीर विरोध” दर्ज कराया है और कहा है कि इस तरह के कदम क्षेत्र में बीजिंग के “अवैध और जबरन” कब्जे को वैधता नहीं देने जा रहे हैं।

इसके साथ ही विदेश मंत्रालय ने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र पर विश्व का सबसे बड़ा बांध बनाने की चीन की योजना पर अपनी चिंता से भी चीन को अवगत कराया है। यह मुद्दा भी बेहद गंभीर है, क्योंकि चीन की सीमा के भीतर ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने का सीधा असर भारत और बांग्लादेश के करोड़ों लोगों की आजीविका और यहां की पारस्थितिकी तंत्र पर पड़ना अवश्यम्भावी है।

इस मुद्दे पर सोशल मीडिया में काफी कुछ कहा जा रहा है, जिसे मोदी के प्रति अंधभक्ति की हद तक श्रद्धा रखने वाले राष्ट्रवादियों का भरोसा टूटने का खतरा पैदा हो गया है। शायद यही कारण है कि आज जब विदेश मंत्रालय का बयान आया तो मामले को काफी हद तक डायल्यूट करने का प्रयास दिख रहा है।

एलएसी के मुद्दे पर रक्षा मामलों के विशेषज्ञ अजय शुक्ल ने 19 जून 2020 को अपने सोशल मीडिया हैंडल से सिलसिलेवार जो कुछ सवाल पीएम मोदी से पूछे थे, वो इस प्रकार से थे। “क्या मैंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आज टीवी पर चीन-भारत सीमा का फिर से निर्धारण करते देखा है? मोदी ने कहा है कि किसी ने भी भारतीय क्षेत्र में प्रवेश नहीं किया।

क्या उन्होंने चीन को गलवान नदी घाटी और पैंगोंग त्सो में फिंगर्स 4-8 सौंप दिया है, दोनों LAC के हमारे पक्ष में हैं, और जहां अब चीनी सैनिक बैठे हैं। अगर, जैसा कि नरेंद्र मोदी ने आज कहा, किसी ने भी भारतीय क्षेत्र में प्रवेश नहीं किया, तो इतना हंगामा किस बात पर हो रहा है? फिर सैन्य स्तर पर वार्ता क्यों, कूटनीतिक वार्ता क्यों, सैन्य वापसी क्यों, 20 सैनिकों की मौत क्यों?

चीनी घुसपैठियों को भारतीय क्षेत्र से खदेड़ते हुए 20 भारतीय सैनिकों ने अपनी जान दे दी। लेकिन मोदी कहते हैं कि कोई भी भारतीय क्षेत्र में नहीं घुसा। तो फिर ये सैनिक कहां मारे गए? क्या मोदी यह कह रहे हैं, जैसा कि चीन कह रहा है कि वे चीन में घुस आए? क्या प्रधानमंत्री जानबूझकर झूठ बोल रहे थे? या उन्हें गलत जानकारी दी गई थी? या फिर सरकार को लगता है कि इस पोस्ट-ट्रुथ वाली दुनिया में वह कुछ भी कह सकती है और बच के निकल सकती है?

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का यह बयान इस बात का सबूत है कि नरेंद्र मोदी ने सर्वदलीय बैठक में और राष्ट्र से झूठ बोला था, जब उन्होंने कहा था कि किसी ने भी भारतीय क्षेत्र में प्रवेश नहीं किया है।”

डोनाल्ड ट्रम्प की पहली प्राथमिकता अपने देश में अंधराष्ट्रवाद को बढ़ाना

हरियाणा और महाराष्ट्र राज्य विधानसभा चुनावों में बीजेपी की जीत के पीछे कोई इस मुगालते में नहीं है कि इसके पीछे मोदी मैजिक काम कर रहा था। इसमें काफी हद तक चुनावी मैनेजमेंट, आरएसएस की सक्रिय भूमिका, वोटर लिस्ट में बड़ी संख्या में हेरफेर और अंततः चुनाव आयोग के द्वारा अंतिम समय में वोट प्रतिशत में 7-10% तक बढ़ोत्तरी को जिम्मेदार माना जा रहा है।

यह प्रयोग दिल्ली विधानसभा में भी हो पाता, इसके पहले ही आम आदमी पार्टी ने हंगामा मचाना शुरू कर बीजेपी और चुनाव आयोग को मुश्किल में डाल दिया है।

ट्रम्प की ताजपोशी में यदि पीएम मोदी को जाने का सुअवसर मिल जाता तो, वे इसे ही अपनी वैश्विक अपरिहार्यता से जोड़कर देश और विशेषकर दिल्ली के मतदाताओं को समझाने में सफल रहते कि मोदी आज भी देश के लिए अपरिहार्य है।

लेकिन अब भाजपा को उन्हीं आप पार्टी के उपायों का सहारा लेने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है, जिसे पिछले 10 वर्षों से आईटी सेल दिल्ली की जनता को फ्री की रेवड़ी, भिखारी बनाने की प्रवृति बताकर घृणा अभियान चलाया करते थे।

लेकिन देश के प्रधानमंत्री के लिए दिल्ली जैसे अदने से राज्य (जिसे पूर्ण राज्य का दर्जा तक हासिल नहीं) को जीतने के लिए जी-जान लगाने से बेहतर होता कि वे अमेरिकी अदालत और एफबीआई के द्वारा अडानी मुद्दे पर भारतीय जांच एजेंसियों को जांच की सिफारिश का निर्देश देकर विश्व जनमत को यह संदेश देते कि भारतीय बाजार में विदेशी निवेश को किसी प्रकार की आंच नहीं आने दी जायेगी।

इसी प्रकार चीन के साथ सीमा विवाद और ब्रह्मपुत्र नदी विवाद को भी मात्र विदेश मंत्रालय की प्रेस ब्रीफिंग से कुछ नहीं होने वाला।

यदि देश के सामने पहले गलत तस्वीर पेश की गई है, तो उसके लिए देश से माफ़ी मांगकर चीन से उन क्षेत्रों को वापस करने की पुरजोर तरीके से मांग की जानी चाहिए। वर्ना संयुक्त राष्ट्र जैसे विश्व पटल पर देश को अपना पक्ष रखना चाहिए।

देश प्रधानमंत्री से हर राज्य और नगर निगम में अपनी पार्टी के लिए जीत की गारंटी नहीं चाहता, यह बात आखिर मोदी जी को अपने तीसरे कार्यकाल में समझ लेनी चाहिए।

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

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