Friday, March 29, 2024

सुप्रीम कोर्ट से पास आउट राफेल घोटाले का पूरा किस्सा

फ्रांस की एक पब्लिकेशन ‘मीडियापार्ट’ ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि राफेल बनाने वाली फ्रांसीसी कंपनी डसॉल्ट (Dassault) को भारत में एक बिचौलिये को एक मिलियन यूरो बतौर ‘गिफ्ट’ देने पड़े थे।

मीडियापार्ट ने रिपोर्ट में बताया है कि 2016 में जब राफेल लड़ाकू विमान पर भारत-फ्रांस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, उसके बाद डसॉल्ट ने भारत में एक बिचौलिया को यह राशि दी थी। और साल 2017 में डसॉल्ट समूह के खाते से 5,08,925 यूरो ‘उपहार के रूप में’ बिचौलिये को हस्तांतरित किए गए। मीडियापार्ट की रिपोर्ट में देफ्सिस सल्युसंस (Defsys Solutions) का मालिकाना रखने वाले परिवार से जुड़े सुषेण गुप्ता का नाम भी आया है जो रक्षा सौदों में बिचौलिए रहे और दैसो के एजेंट भी। सुषेण गुप्ता को 2019 में अगस्ता-वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर खरीद घोटाले की जांच के सिलसिले में प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार किया था।

मीडियापार्ट की रिपोर्ट के मुताबिक इस बात का खुलासा तब हुआ जब फ्रांसीसी भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसी एएफए ने डसॉल्ट के खातों का ऑडिट किया। मीडियापार्ट की रिपोर्ट के अनुसार, खुलासा होने पर,  डसॉल्ट ने स्पष्ट रूप से कहा था कि इन फंडों का उपयोग राफेल लड़ाकू विमान के 50 बड़े ‘मॉडल’ बनाने के लिए किया गया था, लेकिन इस तरह के कोई मॉडल नहीं बनाए गए थे।

मीडियापार्ट की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ऑडिट में यह सामने आने के बाद भी एजेंसी ने कोई कार्रवाई नहीं की, जो फ्रांसीसी राजनेताओं और न्याय प्रणाली की मिलीभगत को भी दर्शाता है। फ्रांस में 2018 में, एक एजेंसी Parquet National Financier (PNF) ने कहा था कि इस सौदे में गड़बड़ी थी, गौरतलब है कि तभी डसॉल्ट के खातों का ऑडिट किया गया और इन बातों का खुलासा हुआ।

एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि डसॉल्ट समूह द्वारा ‘उपहारित राशि’ का बचाव किया गया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि यह भारतीय कंपनी डिफिस सॉल्यूशंस के चालान से दिखाया गया था कि उन्होंने तैयार किए गए 50 मॉडलों की आधी राशि दी थी। प्रत्येक मॉडल की कीमत 20 हजार यूरो से अधिक थी।

हालांकि, डसॉल्ट ग्रुप के पास सभी आरोपों का कोई जवाब नहीं था और उसने ऑडिट एजेंसी को कोई जवाब नहीं दिया। इसके अलावा डसॉल्ट यह भी नहीं बता पाई कि उसने यह उपहार राशि किसको और क्यों दी थी।

मीडिया प्रकाशन मीडियापार्ट के रिपोर्टर यान फिलिप ने तमाम मीडिया संस्थानों को बताया है कि भारत और फ्रांस के बीच राफेल सौदे की तीन हिस्सों में जांच की जा रही है, जिसमें यह केवल पहला हिस्सा है। जबकि सबसे बड़ा खुलासा तीसरे भाग में किया जाएगा।

126 राफेल डील कैंसिल करके 36 राफेल की डील की गई

रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) ने 29 जून 2007 में 126 मीडियम मल्टीरोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) के अधिग्रहण की जरूरत को मंजूरी दी थी। इसमें से 18 विमान असल निर्माता से खरीदा जाएगा और बाकी के 108 का निर्माण लाइसेंस के तहत भारत में HAL बनाएगा। ये सभी 108 विमान का निर्माण हस्ताक्षर से 11 वर्षों के अंदर पूरा किया जाएगा। इसको लेकर 6 विक्रेताओं ने अप्रैल 2008 में प्रस्ताव प्रस्तुत किए। इसके बाद नवंबर 2011 में सार्वजनिक बोली लगनी शुरु हुई और फिर 2012 में कम बोली लगाने वाले फ्रांस की दसॉल्ट एविएशन को चुन लिया गया। आगे की यह प्रक्रिया चलती रही लेकिन 2014 में सरकार बदल गई। केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार बनते ही यूपीए-2 शासनकाल में तय हुए 126 राफेल विमानों के सौदे को 36 में तब्दील किया गया। जबकि यूपीए-2 में हुए डील की मुताबिक पहले 18 विमान बनकर भारत में आता और बाकी के 108 भारतीय एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के लाइसेंस के अतंर्गत बनने थे। लेकिन नए डील और नई प्रक्रिया के मुताबिक मोदी सरकार में 36 विमान बनकर भारत आएगा, जो कि पूरी तरह से लोडेड होगा।

नई डील से पहले 10 अप्रैल, 2015 को भारत-फ्रांस ने एक संयुक्त बयान जारी किया जिसके मुताबिक उड़ने की हालत में 36 विमानों को अंतर सरकारी समझौते के तहत अधिग्रहित किया जाएगा। इस तरह नये समझौते को डीएसी ने मंजूरी दे दी। इसी बीच 126 विमानों के आरपीएफ को जून 2015 में पूरी तरह से वापस ले लिया गया था। इसे कैबिनेट की सुरक्षा समिति दल हरी झंडी दे दी। इसके बाद 23 सितंबर 2016 को जो भी समझौता हुआ उसमें विमान के साथ हथियार, तकनीकी समझौते और ऑफसेट कांट्रैक्टर के लिए हस्ताक्षर किए गए थे। बता दें कि सेना के एक स्कॉर्डन में 18 विमान होते हैं। मोदी सरकार ने सेना की आवश्कता को देखते हुए दो स्कॉर्डन खरीदने का फैसला लिया।

आपको बता दें कि साल 2016 में भारत की मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार ने फ्रांस से 136 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के यूपीए-2 सरकार के समझौते को तोड़कर 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने का नया सौदा किया था। नये सौदे के मुताबिक इनमें से एक दर्जन विमान भारत को मिल चुके हैं और साल 2022 के आखिर तक सभी विमान मिल जाएंगे।

पुरानी फायदे की डील तोड़कर नई घाटे की डील करने पर देश में ख़ूब हंगामा हुआ था। लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले और बाद में रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सारे मामले के सलटा दिया था।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले से निम्न सवालों के संतोषजनक जवाब इस देश की अवाम को कभी नहीं मिला –

1. प्रति राफेल विमान 526 करोड़ की जगह 1600 करोड़ रुपए में क्यों खरीदा गया?

2. राफेल की रखरखाव के लिए HAL की जगह अनिल अंबानी की कंपनी को क्यों चुना गया?

3. 126 रफाल की जगह 36 हीं क्यों खरीदा जा रहा है?

4. तकनीकि ट्रांसफर और मेक इन इंडिया को नई डील में क्यों खत्म कर दिया गया?

5. खरीद प्रक्रिया में पार्दर्शिता नहीं है?

सुप्रीमकोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा?

14 दिसंबर 2018 को राफेल मामले में फैसला पढ़ते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा, ‘कोर्ट का ये काम नहीं है कि वो निर्धारित की गई राफेल कीमत की तुलना करे। जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा, हमने मामले का अध्ययन किया, रक्षा अधिकारियों के साथ बातचीत की, हम निर्णय लेने की प्रक्रिया से संतुष्ट हैं।’ कोर्ट ने ये भी कहा कि हम इस फैसले की जांच नहीं कर सकते कि 126 राफेल की जगह 36 राफेल की डील क्यों की गई। हम सरकार से ये नहीं कह सकते कि आप 126 राफेल खरीदें। कोर्ट ने कहा कि, ‘हम पहले और वर्तमान राफले सौदे के बीच की कीमतों की तुलना करने के लिए न्यायिक समीक्षा की शक्तियों का उपयोग नहीं कर सकते हैं।’  पीठ ने कहा कि लड़ाकू विमानों की ज़रूरत है और देश इन विमानों के बगैर नहीं रह सकता है। कोर्ट ने कहा, ‘खरीद, कीमत और ऑफसेट साझेदार के मामले में हस्तक्षेप के लिए उसके पास कोई ठोस साक्ष्य नहीं है।’

सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील में कोर्ट की अगुवाई में जांच की मांग वाली सभी याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा था कि हमें रक्षा सौदे में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला। सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि दसॉल्ट एविएशन को अपना ऑफसेट पार्टनर चुनना था हालांकि रक्षा सौदे में लिखा है कि बिना सरकार की सहमति के कोई फैसला नहीं लिया जा सकता है।

मोदी सरकार के गलत हलफनामे पर दिया था सुप्रीम कोर्ट ने फैसला

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जब केंद्र सरकार पर ये आरोप लगने लगे कि उसने सुप्रीम कोर्ट को गलत जानकारी दी है, तो सरकार की तरफ से अगले ही दिन उसमें सुधार के लिए कोर्ट में हलफनामा सौंपा गया। हलफनामे में कहा गया है कि पहले सौंपे गए एफिडेविट में टाइपिंग में गलती हुई थी, जिसकी कोर्ट ने गलत व्याख्या की है। सरकार ने नए हलफनामे में कहा कि सीएजी की रिपोर्ट अभी तक पीएसी ने नहीं देखी है। बता दें कि सरकार ने पहले सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि राफेल लड़ाकू विमान की कीमत निर्धारण और उससे जुड़े अन्य विवरण की रिपोर्ट नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने लोक लेखा समिति (पीएसी) को सौंपी थी, जिसकी समीक्षा पीएसी द्वारा की गई है। उसकी रिपोर्ट भी बाद में कोर्ट को सौंपी गई है। सुप्रीमकोर्ट में मोदी सरकार के झूठे हलफ़नामे पर सवाल खड़े होने के बाद 15 दिसंबर, 2018 को सौंपे गए हलफनामे में सरकार ने कहा है कि उसने केवल रिपोर्ट और रिपोर्ट दर्ज़ करने की प्रक्रिया का हवाला दिया है।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में एक जगह सीएजी रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा था कि राफेल डील पर सीएजी ने अपनी रिपोर्ट सब्मिट कर दी है जिसकी समीक्षा संसद की लोक लेखा समिति (पीएसी) कर चुकी है। कोर्ट की इस फाइंडिंग्स के बाद पीएसी चेयरमैन और कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने शुक्रवार को आरोप लगाया कि सीएजी ने पीएसी को कभी रिपोर्ट नहीं सौंपी। सरकार सुप्रीम कोर्ट में झूठ बोल रही है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी प्रेस कॉन्फ्रेन्स कर कहा कि मोदी सरकार राफेल डील पर झूठ बोल रही है और जब कभी इसकी जांच होगी तो उनके और अनिल अंबानी के नाम सामने आएंगे। सीएजी रिपोर्ट पर चौतरफा घिरने के बाद सरकार की तरफ से कोर्ट में संशोधित हलफनामा दायर किया था।

हालांकि, कोर्ट ने राफेल खरीद मामले में भ्रष्टाचार हुआ या नहीं, इस पर कोई टिप्पणी नहीं की। कोर्ट ने सिर्फ तीन पहलुओं पर सुनवाई की और मामले से जुड़ी सभी याचिकाओं को एक साथ खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में रक्षा खरीद प्रक्रिया पर कहा, “36 राफेल लड़ाकू विमान की खरीद प्रक्रिया 23 सितंबर, 2016 को पूरी हो गई थी। तब किसी भी पक्ष ने उस पर कोई सवाल खड़े नहीं किए। जब फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद का साक्षात्कार छपा तब इस मामले में याचिकाएं डाली गईं जो ओलांद के बयान का लाभ लेने की कोशिश नज़र आती है।

सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिकायें भी खारिज की 

17 नवंबर 2019 को रिटायर होने से 3 दिन पहले 14 नवंबर को रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने राफेल मामले में दायर की गईं सभी पुनर्विचार याचिकाओं पर फैसला पढ़ते हुए कहा था कि हमें ऐसा नहीं लगता है कि इस मामले में कोई FIR दर्ज होनी चाहिए या फिर किसी तरह की जांच की जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इस बात को नज़रअंदाज नहीं कर सकते हैं कि अभी इस मामले में एक कॉन्ट्रैक्ट चल रहा है। इसके साथ ही सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार द्वारा हलफनामे में हुई भूल को स्वीकार किया है। इस मामले में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने फैसला सुनाया था।

उच्चतम न्यायालय ने 14 राफेल लड़ाकू विमान के सौदे को बरकरार रखते हुए अपने 14 दिसंबर, 2018 को दिए फैसले के खिलाफ़ दाखिल समीक्षा याचिकाओं को खारिज़ कर दिया। केंद्र सरकार को राहत देते हुए मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा कि इसकी अलग से जांच करने की ज़रूरत नहीं है। अदालत ने केंद्र की दलीलों को तर्कसंगत और पर्याप्त बताते हुए माना कि केस के मेरिट को देखते हुए इसमें दोबारा जांच के आदेश देने की ज़रूरत नहीं है।

पुनर्विचार याचिका में क्या था?

कोर्ट में दायर याचिका में डील में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए थे। साथ ही ‘लीक’ दस्तावेजों के हवाले से आरोप लगाया गया था कि डील में PMO ने रक्षा मंत्रालय को बगैर भरोसे में लिए अपनी ओर से बातचीत की थी। कोर्ट में विमान डील की कीमत को लेकर भी याचिका डाली गई थी।

याचिकाकर्ताओं की तरफ से कहा गया था कि अदालत का फैसला गलत तथ्यों के आधार पर है क्योंकि केंद्र सरकार ने सीलबंद लिफाफे में अदलात के सामने गलत तथ्य पेश किए थे। यहां तक की सरकार ने खुद ही फैसले के अगले दिन 15 दिसंबर 2018 को अपनी गलती सुधारते हुए दोबारा आवेदन दाखिल किया था।


बता दें कि पिछले साल अदालत ने 59,000 करोड़ के राफेल सौदे में हुई कथित अनियमितताओं की अदालत की निगरानी में जांच वाली मांग को खारिज कर दिया था। राफेल डील मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 14 दिसंबर, 2018 को दिए अपने फैसले में भारत की केंद्र सरकार को क्लीन चिट दे दी थी। हालांकि इस फैसले की समीक्षा के लिए अदालत में कई याचिकाएं दायर की गईं  और 10 मई, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। 

फ्रांस से 36 राफेल फाइटर जेट के भारत के सौदे को चुनौती देने वाली जिन याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की, उनमें पूर्व मंत्री अरुण शौरी, यशवंत सिन्हा, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण और आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह की याचिकाएं शामिल थीं। सभी याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से उसके पिछले साल के फैसले की समीक्षा करने की अपील की थी। 

मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि रक्षा सौदे की न्यायिक जांच नहीं हो सकती

6 मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट में राफेल डील पर पुनर्विचार याचिका की सुनवाई के दौरान चौकीदार नरेंद्र मोदी की ओर से उनके अटार्नी जनरल ने कोर्ट में नए कागज पेश करते हुए कहा कि आप इन दस्तावेजों के आधार पर राफेल केस की सुनवाई करें।

कोर्ट ने नए दस्तावेजों के आधार पर जब सुनवाई करने से इन्कार कर दिया तो चौकीदार के अटार्नी जनरल ने कहा- “जिस कागज के आधार पर आप सुनवाई कर रहें हो वो चोरी के हैं। और इन दस्तावेजों को रक्षा मंत्रालय से चुराया गया है।” अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि जिन दस्तावेजों को अखबार ने छापा है वह रक्षा मंत्रालय से चोरी हुए थे। हम इसकी आंतरिक जांच कर रहे हैं। आप चोरी के सबूत पर सुनवाई नहीं कर सकते। गौरतलब है कि अटार्नी जनरल वेणुगोपाल ने कोर्ट को बताया था कि राफेल से जुड़े प्रमुख दस्तावेज रक्षा मंत्रालय से चोरी कर लिये गये हैं। अखबार को उनका सोर्स बताना चाहिए और इस याचिका को रद्द करना चाहिए क्योंकि ये चोरी किए गए कागजों पर आधारित है।

अटार्नी जनरल की दलील पर जस्टिस केएम जोसेफ ने सुनवाई के दौरान कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा था कि –“क्या आप कह रहे हैं कि भ्रष्टाचार की जांच सिर्फ इसलिए ना हो कि सोर्स असंवैधानिक है। हमें सबूतों की जांच करनी होगी। चोरी किए गए सबूत भी महत्वपूर्ण हैं, इसकी जांच होना जरूरी है। गलत तरीके से हासिल दस्तावेजों पर भी एविंडेंस एक्ट के तहत सुनवाई हो सकती है। अगर सबूत पुख्ता हैं और भ्रष्टाचार हुआ है तो जांच ज़रूर होनी चाहिए।”

सुनवाई के दौरान AG केके वेणुगोपाल ने कहा कि जिन गोपनीय कागजों को अख़बार ने छापा है उसको लेकर कार्रवाई होनी चाहिए। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि कुछ डॉक्यूमेंट को रक्षा मंत्रालय से चोरी किया गया और आगे बढ़ाए गए। ये केस काफी अहम है। अखबार ने कुछ गोपनीय जानकारी सार्वजनिक कर दी हैं। दूसरे देशों से सरकार के रिश्ते RTI के एक्ट से भी बाहर हैं, लेकिन अखबार ने सभी बातों को सार्वजनिक किया जो कि एक गुनाह है।

इस पर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने AG केके वेणुगोपाल से पूछा कि अगर सचमुच मामला इतना गंभीर है तो आप बताओ की इस दस्तावेज के चोरी पर अब तक आपकी सरकार ने क्या कदम उठाए हैं? अगर आपको लगता है कि राफेल के कागज चोरी हुए हैं और अखबारों ने चोरी किए हुए कागजों पर लेख लिखे हैं तो सरकार ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की।

इस बात पर चौकीदार के अटार्नी जनरल ने पूरी बेशर्मी से कहा कि गर हम FIR करते तो कई याचिकाकर्ताओं के नाम भी आ जाता। 

सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से पूछा कि क्या रक्षा मंत्रालय प्रमुख राफेल के चोरी हुए दस्तावेज पर हलफनामा दे सकता है कि जो दस्तावेज न्यूज पेपर और न्यूज एजेंसी ने इस्तेमाल किए हैं, वो चोरी किए गए हैं। इस पर अटॉर्नी जनरल ने सहमति जताते हुए कल (7 मार्च गुरुवार) तक हलफनामा पेश करने की बात कही।

फिर चौकीदार के अटार्नी जनरल वेणुगोपाल ने कोर्ट को गुमराह करने की कोशिश करते हुए कहा कि क्या मिग की जगह देश के पास राफेल नहीं होना चाहिए। फिर चौकीदार के अटार्नी जनरल ने कोर्ट से कहा कि गर राफेल पर सीबीआई जांच होगी तो राफेल डील डैमेज होगा। ये देशहित में नहीं होगा।

इसके अलावा अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट को नसीहत दिया था कि –“कोर्ट के बयान का विपक्ष राजनीतिक इस्तेमाल कर सकता है। कोर्ट को इस तरह की कवायद के लिए पक्षकार क्यों बनना चाहिए। इसलिए मैं कोर्ट से अपील करता हूं कि कोर्ट को इस मामले में संयम बरतना चाहिए। जबकि रक्षा खरीद की न्यायिक जांच नहीं हो सकती है।” केके वेणुगोपाल ने सरकार की ओर से कहा था कि राफेल सौदे पर अगर न्यायिक समीक्षा होती है तो भविष्य की खरीद पर असर पड़ सकता है। विदेशी कंपनियों को इस बारे में विचार करना पड़ेगा। उन्होंने समझाया कि अभी हमें संसद, मीडिया और कोर्ट की कार्रवाई को पार करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि मीडिया की तरफ से कोर्ट को प्रभावित किया जा रहा है। वेणुगोपाल ने कोर्ट को प्रभावित करने के लिए कहा था कि 22 पायलट हर महीने राफेल उड़ाने की ट्रेनिंग लेने के लिए फ्रांस जाने वाले थे। लेकिन सारी प्रक्रिया ठप हो गई है, इससे देश को भारी नुकसान हुआ है।

आपको बता दें कि वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण, बीजेपी के बागी नेता यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी, आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह और वकील एम एल शर्मा ने पुनर्विचार याचिका में अदालत से राफेल आदेश की समीक्षा करने के लिए अपील किया था जिसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा ‘कोई ज़रूरत नहीं’ कहकर खारिज कर दिया था।

(सुशील मानव जनचौक के विशेष संवाददाता हैं। )

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