Tuesday, April 23, 2024

सुप्रीम कोर्ट से अडानी-अंबानी को राहत, दस्तावेजों के लिए सेबी के खिलाफ रिलायंस की याचिका मंजूर

उच्चतम न्यायालय से अंबानी और अडानी को राहत मिली है। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को एक शेयर अधिग्रहण मामले में अपनी जांच में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा उपयोग किए गए कुछ दस्तावेजों के लिए रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) को पहुंच प्रदान की। भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस हेमा कोहली की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि सेबी का कर्तव्य निष्पक्ष रूप से कार्य करना है न कि कानून के शासन को दरकिनार करना। बड़ी कंपनियों के खिलाफ मुकदमे की कार्रवाई का अर्थव्‍यवस्‍था पर प्रतिकूल असर पड़ता है। ऐसी कार्रवाई करने से पहले रेगुलेटरों और कोर्टों को हर पहलू को ध्‍यान में रखना चाहिए।

चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस  हेमा कोहली की पीठ ने बुधवार को ही बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले को चुनौती देने वाली अडानी पोर्ट्स द्वारा दायर अपील पर जवाहरलाल नेहरू पोर्ट अथॉरिटी से जवाब मांगा जिसने नवी मुंबई में बंदरगाह के कंटेनर टर्मिनल के उन्नयन के लिए एक निविदा के संबंध में अपनी बोली की अयोग्यता को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए ₹5 लाख की लागत लगाई थी।

पीठ ने कहा कि एक नियामक के रूप में, सेबी निष्पक्ष रूप से कार्य करने के लिए बाध्य है। इसे कानून के शासन का उल्लंघन नहीं करना चाहिए और निष्पक्ष होना चाहिए। हम इस याचिका को स्वीकार करते हैं और सेबी को आरआईएल द्वारा अनुरोधित दस्तावेज प्रदान करने का निर्देश देते हैं।

बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा दस्तावेजों तक पहुंच के उसके अनुरोध को खारिज करने के बाद आरआईएल ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की थी, जिसे विश्वास था कि कंपनी के खिलाफ सभी आरोपों पर हवा साफ हो जाएगी। सेबी ने 1994 और 2000 के बीच आरआईएल के अपने शेयरों के अधिग्रहण में अनियमितताओं का आरोप लगाया था।

एस गुरुमूर्ति ने अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए 2002 में सेबी में शिकायत दर्ज कराई थी।2020 में, सेबी ने आरआईएल के अभियोजन के लिए सिटी सिविल एंड सेशंस कोर्ट में याचिका दायर की। हालांकि, अदालत ने 2002 की शिकायत पर कार्रवाई में देरी का हवाला देते हुए याचिका को खारिज कर दिया। जब आरआईएल ने सेबी के आधार पर तीन दस्तावेजों की तलाश में बंबई उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, तो उस आदेश के खिलाफ एक याचिका दायर की गई जिसे अस्वीकार कर दिया गया था।

1994 का यह मामला रिलायंस इंडस्‍ट्रीज से जुड़ा था। देश की सबसे बड़ी अदालत ने माना कि सेबी ने रिलायंस इंडस्‍ट्रीज के खिलाफ कार्रवाई में उसे अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया। कोर्ट ने कहा कि बड़ी कंपनियों के खिलाफ मुकदमे की कार्रवाई का अर्थव्‍यवस्‍था पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। सेबी ने कंपनी कानून, 1956 के सेक्‍शन 77 (2) के उल्‍लंघन के तहत कंपनी के खिलाफ कार्रवाई की थी। उसका आरोप था कि रिलायंस ने 38 संबंधित फर्मों के जरिये अपने ही शेयर खरीदे। सेबी ने इस मामले में कंपनी और उसके प्रमोटरों के खिलाफ क्रिमिनल कम्‍प्‍लेंट दर्ज की थी।

पीठ ने माना कि रिलायंस इंडस्‍ट्रीज को जरूरी दस्‍तावेज मुहैया नहीं कराए गए। कोर्ट ने कहा कि ऐसा करके सेबी ने कंपनी को अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया। इसके साथ ही क्रिमिनल कम्‍प्‍लेंट की कार्रवाई शुरू कर दी। कोर्ट इससे बिल्‍कुल खुश नहीं है।

सेबी ने आरआईएल के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग करते हुए 2020 में सिटी सिविल एंड सेशंस कोर्ट का रुख किया था। अदालत ने हालांकि 2002 की शिकायत पर कार्रवाई में देरी का हवाला देते हुए याचिका खारिज कर दी थी।उस आदेश के खिलाफ याचिका बॉम्बे हाईकोर्ट में दायर की गई थी, जब आरआईएल ने बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें सेबी द्वारा भरोसा किए गए तीन दस्तावेजों की मांग की गई थी।उच्चतम न्यायालय के समक्ष वर्तमान अपील के कारण उस याचिका को खारिज कर दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने पोर्ट अथॉरिटी से जवाब मांगा

उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले को चुनौती देने वाली अडानी पोर्ट्स द्वारा दायर अपील पर जवाहरलाल नेहरू पोर्ट अथॉरिटी से जवाब मांगा जिसने नवी मुंबई में बंदरगाह के कंटेनर टर्मिनल के उन्नयन के लिए एक निविदा के संबंध में अपनी बोली की अयोग्यता को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए ₹5 लाख की लागत लगाई थी। चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस कृष्ण मुरारी के साथ अडानी पोर्ट्स की याचिका पर नोटिस जारी किया और मामले को अगले सप्ताह सुनवाई के लिए पोस्ट किया।

अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन लिमिटेड (अडानी) की याचिका में 27 जून को दिए गए बॉम्बे हाई कोर्ट के एक फैसले को चुनौती दी गई है। जेएनपीए ने 30 साल की अवधि के लिए अपने कंटेनर टर्मिनल के संचालन और रखरखाव के लिए इच्छुक पार्टियों से आवेदन मांगते हुए एक वैश्विक आमंत्रण जारी किया था।बोली लगाने की प्रक्रिया शुरू होने से पहले, बोर्ड ने कंपनी को एक नोटिस भेजकर कारण बताने को कहा कि उन्हें उक्त निविदा से अयोग्य घोषित क्यों नहीं किया जाना चाहिए।

इस नोटिस का आधार आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय का एक आदेश था, जिसके द्वारा उच्च न्यायालय ने विशाखापत्तनम पोर्ट ट्रस्ट (वीपीटी) द्वारा रियायत समझौते को समाप्त करने को बरकरार रखा था। अडानी ने नोटिस का जवाब दिया, और बोर्ड द्वारा व्यक्तिगत सुनवाई की अनुमति दी गई। इस तरह की सुनवाई के बाद, अडानी ने बोली में ‘पूर्वाग्रह के बिना’ भागीदारी का अनुरोध किया।हालांकि, बोर्ड ने 2 मई को अडानी को एक पत्र संबोधित किया कि चूंकि वीपीटी ने उन्हें टर्मिनेशन लेटर जारी किया है, इसलिए इसे वर्तमान टेंडर प्रक्रिया में भाग लेने से अयोग्य घोषित कर दिया गया है।

इसके बाद अडानी ने उसी को चुनौती देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया, जिसे मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एमएस कार्णिक की पीठ ने खारिज कर दिया।यह भी माना गया कि चूंकि अदानी ने निर्णय के लिए एक अयोग्य मामला लाया, इसलिए वह कार्यवाही की लागत वहन करेगी, जिसका आकलन ₹ 5 लाख होगा।इसके कारण शीर्ष अदालत के समक्ष वर्तमान अपील की गई।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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