Thursday, April 18, 2024

अडानी पर मेहरबान रहा है सुप्रीम कोर्ट, एक के बाद एक सात फैसले पक्ष में

हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद अडानी समूह के शेयर का गुब्बारा फूट गया है और शेयर लगातार गिरते जा रहे हैं। हिंडनबर्ग रिपोर्ट से जहाँ सेबी, डीआरआई कटघरे में है वहीं ईडी तो मेढक की तरह लम्बे सुप्तावस्था में चला गया है। लेकिन 2020 में उच्चतम न्यायालय से जिस तरह अडानी समूह को एक के बाद एक राहत मिली उससे यह सवाल जरुर उठ रहा है कि क्या राष्ट्रवादी मोड में सुप्रीमकोर्ट ने राहत दिए थे?

जैसा कि अब अडानी समूह ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट के जवाब में कहा है कि यह रिपोर्ट भारत और उसके स्वतंत्र संस्थानों पर हमला है। प्रकारान्तर से यह कहने की कोशिश की गयी है कि यह भारत की संप्रभुता पर हमला है। अब यह भी महज संयोग नहीं है कि अडानी को राहत देने वाले सभी पीठों की अध्यक्षता जस्टिस अरुण मिश्रा ने की थी और उनके साथ अलग-अलग पीठों में जस्टिस सूर्यकान्त, जस्टिस अब्दुल नजीर, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस विनीत सरन, जस्टिस बीआर गवई शामिल थे। यह भी महज संयोग नहीं है कि इन्हें राष्ट्रवादी मोड का न्यायाधीश माना जाता रहा है।

लगता है कि सुप्रीम कोर्ट में अभी भी अदानी का जलवा कायम है:

सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्री से अडानी पावर राजस्थान लिमिटेड के आवेदन की लिस्टिंग पर जवाब मांगा। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (6 जनवरी) को रजिस्ट्री से रिपोर्ट दाखिल करने को कहा कि कैसे 2020 के फैसले में संशोधन की मांग करने वाले अडानी पावर राजस्थान लिमिटेड के आवेदन सुनवाई के लिए अदालत के समक्ष सूचीबद्ध किया गया। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की खंडपीठ ने जयपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (जयपुर डिस्कॉम) द्वारा सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल को संबोधित पत्र का संज्ञान लेने के बाद यह निर्देश दिया कि अडानी पावर के विविध आवेदन को बेंच के समक्ष सूचीबद्ध करने के लिए रजिस्ट्री द्वारा कैसे मंजूरी दी गई।

संक्षिप्त सुनवाई में जयपुर डिस्कॉम की ओर से सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे उपस्थित हुए। यह मुद्दा 31 अगस्त, 2020 को मामले के अंतिम निपटान के बावजूद, जयपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड बनाम अदानी पावर राजस्थान लिमिटेड मामले में अडानी पावर द्वारा दायर आवेदन की लिस्टिंग से संबंधित है। सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल को लिखे पत्र में जयपुर डिस्कॉम ने पूछा कि अडानी पावर पहले से ही निस्तारित मामले में विविध आवेदन कैसे दायर कर सकती है, जब उसने फैसले के खिलाफ कोई समीक्षा याचिका दायर नहीं की है।

31 अगस्त, 2019 को सुप्रीम कोर्ट बेंच ने राजस्थान में “सार्वजनिक क्षेत्र ऊर्जा वितरण कंपनियों (डिस्कॉ़म्स)” के साथ अडानी समूह के एक विवाद में अडानी के पक्ष में फ़ैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट की इस बेंच में जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस एमआर शाह शामिल थे। जस्टिस अरुण मिश्रा के 2 सितंबर को रिटायर होने से महज़ तीन दिन पहले ही यह फ़ैसला सुनाया गया है। इस फ़ैसले के तहत “अडानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड (एपीआरएल)” को 5000 करोड़ रुपये का टैरिफ मुआवज़ा और 3000 करोड़ रुपये का जुर्माने व ब्याज़ का पैसा देने का फैसला हुआ। एपीआरएल के पास बारां जिले के कवई में 1,320 मेगावॉट क्षमता वाला ताप विद्युत गृह है।

इस 8000 रुपये का भार जयपुर, जोधपुर और अजमेर के बिजली उपभोक्ता वहन करेंगे। 2019 की शुरुआत से यह सातवां फैसला था, जो जस्टिस मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठों ने अडानी समूह की कंपनियों के पक्ष में दिया था।

यह फ़ैसला तीन शहरों की ऊर्जा वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) और ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन द्वारा लगाई गई एक याचिका पर आया है। यह याचिका ‘अपीलेट ट्रिब्यूनल फॉर इलेक्ट्रिसिटी द्वारा सितंबर 2019 में दिए गए एक फ़ैसले के खिलाफ़ लगाई गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने एपीआरएल के इस तर्क से सहमति जताई कि ‘कानून में हुए फेरबदल’ से एपीआरएल को नुकसान हुआ है।

इसमें यह दलील भी सामने आई कि इंडोनेशिया से आने वाले कोयले की कीमत को बढ़ा-चढ़ाकर (ओवर इंवॉयसिंग) बताने के आरोप लगाए गए थे। यह आरोप डॉयरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलीजेंस (डीआरआई ) ने अडानी समूह की कंपनियों समेत 40 कंपनियों पर लगाए थे। डीआरआई वित्त मंत्रालय के अधीन एक जांच संस्था है। डीआरआई ने आरोप लगाया कि अडानी समूह, दूसरी निजी कंपनियां और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ने आयातित कोयले की कीमतों को बढ़ा-चढ़ाकर बताया, इसके लिए इंवॉयस और कीमत निर्धारण में छेड़खानी की गई। साथ में यह आरोप भी लगाया गया कि इनसे जो गैरकानूनी मुनाफ़ा हुआ है, उसे विदेशी ‘टैक्स हैवन’ में भेजा जा रहा है।(नोट-ऐसा ही आरोप अब हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में भी लगाया गया है।)

इसके पहले अडानी के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट ने दिए एक के बाद एक 6 फैसले:

पहला केस: सुप्रीम कोर्ट में चलने वाला यह मुकदमा अडानी गैस लि. बनाम यूनियन गवर्नमेंट था। यह केस नेचुरल गैस वितरण नेटवर्क प्रोजेक्ट से संबंधित था। अडानी गैस लि. कंपनी का प्रोजेक्ट उदयपुर और जयपुर में चल रहा था, लेकिन राज्य के साथ हुए कॉन्ट्रैक्ट की शर्तें न मानने पर राजस्थान सरकार ने नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट वापस लेने के साथ इनका कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर दिया। सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट के वक्त जमा 2 करोड़ रुपये भी जब्त कर लिया। साथ ही दोनों शहरों में गैस पाइपलाइन बिछाने की एप्लिकेशन भी रिजेक्ट कर दी। अडानी गैस लि. सुप्रीम कोर्ट चली गई। वहां जस्टिस अरुण मिश्रा और विनीत सरन की बेंच ने राजस्थान सरकार का फैसला पलट दिया। गैस प्रोजेक्ट फिर से अडानी को मिल गया और 2 करोड़ रुपये की जब्ती भी रद्द कर दी गई। (जस्टिस अरुण मिश्र एवं जस्टिस विनीत शरण. (CIVIL APPEAL NO. 1261 OF 2019 [@ SPECIAL LEAVE PETITION [C] NO. 21986 OF 2015] फैसले की तारीख: 29/01/2019)

दूसरा केस: टाटा पावर कंपनी लि. बनाम अडानी इलेक्ट्रिसिटी मुंबई लि. एंड अदर्स का केस था। टाटा पावर मुंबई में इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई का काम करती थी। रिलायंस एनर्जी लि. केवल उपनगरों या कहें कि शहर से बाहर के कुछ इलाकों में बिजली डिस्ट्रीब्यूशन का काम करती थी। टाटा पावर के 108 कस्टमर थे, ये वो कंपनियां थीं जो टाटा से बिजली लेकर शहर में बिजली आपूर्ति करती थीं। बीएसईएस/रिलायंस एनर्जी लि. को टीपीसी को पहले से बकाया राशि के साथ टैरिफ की रकम जोड़कर देनी थी।

महाराष्ट्र इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड को टाटा पावर सारा बकाया दे चुका था। मतलब एक चेन थी। टाटा पावर अपने कस्टमर, जिसमें रिलायंस की कंपनी भी थी, उनसे टैरिफ और बकाया लेती थी, फिर कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक महाराष्ट्र इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड को एक तरह से रेंट देती थी। पर कंपनी के आंतरिक बदलाव की वजह से बीएसईएस एनर्जी लि. 24 फरवरी, 2004 को रिलायंस एनर्जी लि. में तब्दील हो गई। टीपीसी और रिलायंस एनर्जी लि. के लेन-देन को लेकर विवाद की स्थिति पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस अब्दुल नजीर की बेंच ने फैसला अडानी इलेक्ट्रिसिटी मुंबई लिमिटेड के पक्ष में दिया था।
(जस्टिस अरुण मिश्र,जस्टिस एस अब्दुल नजीर , CIVIL APPEAL NO.415 OF 2007 फैसले की तारीख: 02/05/2019)

तीसरा केस: यह केस परसा कांटा कोलरिज लि. बनाम राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन का है। छत्तीसगढ़ के दक्षिण सरगुजा के हसदेव-अरण्य कोल फील्ड्स के परसा ईस्ट और केते बासन में आवंटित कोल ब्लॉक प्रोजेक्ट को लेकर वहां के आदिवासियों में गुस्सा था। इस प्रोजेक्ट में अडानी और राजस्थान सरकार के बीच 74% और 26% की हिस्सेदारी थी। ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इसे रोक दिया था। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भी आदिवासियों की आपत्ति पर नोटिस जारी किया था। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। जस्टिस मिश्रा और जस्टिस शाह की बेंच ने अडानी के पक्ष में फैसला सुना दिया।

इस मामले की सुनवाई पहले से जस्टिस रोहिंटन नरीमन और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की बेंच कर रही थी। पर सुप्रीम कोर्ट के तब के चीफ जस्टिस ने इसे हड़बड़ी में जस्टिस मिश्रा की ग्रीष्मकालीन अवकाश पीठ में सूचीबद्ध कर दिया। बिना पुरानी बेंच को जानकारी दिए इसकी सुनवाई भी हो गई और फैसला भी आ गया। (जस्टिस अरुण मिश्र जस्टिस एम आर शाह (फैसला जस्टिस शाह ने लिखा है) CIVIL APPEAL NO. 9023 OF 2018फैसले की तारीख: 27/5/2019)

चौथा केस: यह मामला अडानी पावर मुंद्रा लिमिटेड और गुजरात इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन के बीच का है। इसे भी ग्रीष्मकालीन अवकाश बेंच में लिस्ट किया गया। 23 मई 2019 को जस्टिस मिश्रा और जस्टिस शाह की बेंच ने सुनवाई की। एक ही सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया गया। फिर अडानी की कंपनी को गुजरात इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन के साथ किए गए बिजली वितरण का कॉन्ट्रैक्ट रद्द करने की मंजूरी दे दी गई। फैसला इस आधार पर दिया गया कि सरकार की कोल खनन कंपनी अडानी पावर लि. को कोल आपूर्ति करने में असमर्थ रही। जबकि अडानी ने बोली लगाने के बाद कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर दिया था। दरअसल, अडानी की कंपनी को लगने लगा था कि सौदा कम मुनाफे का है। लिहाजा अडानी पावर मुंद्रा लि. करार जारी रखना नहीं चाहती थी। (जस्टिस अरुण मिश्र जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस सूर्यकांत (फैसला जस्टिस गवई ने लिखा है) CIVIL APPEAL NO.11133 OF 2011 फैसले की तारीख: 02/07/2019)

पांचवां केस: यह केस पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया बनाम कोरबा वेस्ट पावर कंपनी लि. का है। 22 जुलाई 2020 को जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच ने सरकारी कंपनी पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लि. के खिलाफ अडानी की कंपनी कोरबा वेस्ट पावर कंपनी लिमिटेड के पक्ष में फैसला सुनाया था। इसमें पावर ग्रिड को कोरबा वेस्ट से बकाया लेना था। पावर ग्रिड का आरोप था कि अडानी की कंपनी ने कानूनी दांवपेच चलते हुए करोड़ों का बकाया हजम कर लिया।

छठा केस: जयपुर विद्युत वितरण लि. बनाम अडानी पावर राजस्थान लि. मका था जिसमें सितंबर 2020 में अडानी राजस्थान पावर लिमिटेड (एआरपीएल) के पक्ष में एक और फैसला आया। जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने राजस्थान की बिजली वितरण कंपनियों के समूह की वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें एआरपीएल को कंपनसेटरी टैरिफ देने की बात कही गई है। पीठ ने राजस्थान विद्युत नियामक आयोग और विद्युत अपीलीय पंचाट के उस फैसले को सही ठहराया, जिसमें एआरपीएल को राजस्थान वितरण कंपनियों के साथ हुए पावर परचेज एग्रीमेंट के तहत कंपनसेटरी टैरिफ पाने का हकदार बताया गया था। जानकारों के मुताबिक इस फैसले से अडानी ग्रुप को 5,000 करोड़ रुपये का फायदा हुआ। (जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस एमआर शाह CIVIL APPEAL NOS.8625¬8626 OF 2019 फैसले की तारीख: 31/08/2020)

सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील प्रशांत भूषण के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के इन फैसलों से अडानी की कंपनियों को करीब 20,000 करोड़ रुपये का फायदा हुआ है। वे कहते हैं, ‘ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान दो फैसले इतनी हड़बड़ी में लिए गए कि दूसरे पक्ष के काउंसिलर्स को भी सूचना नहीं दी गई है।’
16 अगस्त 2019 को सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे ने अडानी से जुड़े सभी फैसलों को लेकर तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को खत भी लिखा था। दुष्यंत दवे ने कहा था कि ग्रीष्मावकाश में दो मामलों के निपटारे से अडानी को हजारों करोड़ का लाभ हुआ है।

उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने आरोप लगाया है कि अडानी समूह की कंपनियों से जुड़े दो मामलों को उच्चतम न्यायालय ने गर्मी की छुट्टी के दौरान सूचीबद्ध किया था और उच्चतम न्यायालय की स्थापित प्रैक्टिस और प्रक्रिया का उल्लंघन करते हुए निपटाया था।

दुष्यंत दवे ने तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को 11 पन्नों का पत्र लिखकर दोनों मामलों को उठाया था। पहला मामला पारसा केंटा कोलियरीज लिमिटेड बनाम राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (सिविल अपील 9023/2018) है। यह मामला एसएलपी (सी) 18586/2018 से उत्पन्न हुआ, जिसमें 24 अगस्त, 2018 को जस्टिस रोहिंटन नरीमन और इंदु मल्होत्रा की खंडपीठ द्वारा सुनवाई के लिए मंजूर किया गया था। जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने सिविल अपील नंबर 9023 (परसा केंटा कोलियरीज लिमिटेड बनाम राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड) की 21 मई, 2019 को सुनवाई की। फैसला परसा केंटा के पक्ष में सुनाया गया।

इसी तरह से दूसरे एक गुजरात के मामले में भी किया गया। जिसकी सुनवाई 2017 के बाद से नहीं हुई थी। और इस बीच, किसी भी बेंच के सामने उसे लिस्ट नहीं किया गया था। लेकिन अचानक इसे भी उसी ग्रीष्मकालीन बेंच के सामने पेश कर दिया गया। और उसने सुनवाई कर उस पर फैसला भी सुना दिया। यह मामला अडानी पावर लिमिटेड और गुजरात इलेक्ट्रीसिटी कमीशन एंड अदर्स के बीच था। इसमें दूसरी तरफ से वरिष्ठ वकील एमजी रामचंद्रन थे। इसके पहले 2017 में इस मामले की सुनवाई जस्टिस चेलमेश्वर और जस्टिस सप्रे की बेंच ने की थी।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार औऱ कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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