जब आप न्यायपालिका को सर्वोच्च स्थान पर एक स्वतंत्र निर्णय लेने वाली और राज्य को इसके निर्णय बाध्यकारी मानने के लिए मानते है तो आपके सारे भ्रम यहाँ आकर टूट जाते हैं।
ऊपर से तुर्रा ये कि जिनके टैक्स, पसीने और मेहनत पर ये सफ़ेद हाथी न्याय के नाम पर तमाम तरह की सुविधाएं भकोसते हुए लाभ लेते हैं उनके निर्णयों पर सवाल मत करिए – कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट की सज़ा हो जाएगी।
आज जब देश के करीब 55 करोड़ लोग सड़कों पर हैं, स्वास्थ्य सुविधाएं बर्बाद हो गई हैं उस पर कोर्ट कुछ नहीं बोल रहा और पीएमकेयर फंड पर भी नहीं बोल रहा – मजाक है यह देश, धन्य है व्यवस्था और धन्य है हरिश्चंद्र और विक्रमादित्य के वंशज जो किसके लिए क्या करके, क्या स्थापित कर Precedence इतिहास को देकर जाएंगे यह कहना मुश्किल है।
“होता है तमाशा मिरे आगे हर रोज़”
आज सुप्रीम कोर्ट के चार बड़े फैसले
1-कोरोना महामारी का सांप्रदायिकरण करने वाले मीडिया संस्थानों पर कार्रवाई की मांग वाली याचिका पर अंतरिम आदेश पारित करने से यह कहते हुये इनकार कर दिया कि ” प्रेस को रोक नहीं सकते।”
2-कोरोना के खतरे से निपटने के लिए भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण करने के लिए केंद्र सरकार को किसी भी प्रकार का निर्देश देने से इनकार।
3-PM CARES फंड के गठन की वैधता पर सवाल उठाने वाली जनहित याचिका खारिज।
4- सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व में दिये गये “सभी के लिये निजी अस्पतालों में कोरोना के मुफ्त जांच” के फैसले में बदलाव करते हुये अब इसे केवल “आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना” और “कम आय वर्ग” तक सीमित कर दिया है।
(संदीप नाईक और जावेद अनीस की संयुक्त टिप्पणी।)