Tuesday, March 21, 2023

‘टच’ के अर्थ को ‘स्किन-टू-स्किन’ तक सीमित करने के बांबे हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने किया रद्द

Janchowk
Follow us:

ज़रूर पढ़े

“’टच’ के अर्थ को ‘स्किन-टू-स्किन’ तक सीमित करने से इस पॉक्सो कानून की बेहद संकीर्ण और बेहूदा व्याख्या निकलकर आएगी। इससे इस कानून का उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा, जिसे हमने बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए लागू किया था। पहने हुए कपड़ों या किसी अन्य कपड़े के ऊपर से बच्चे को गलत नीयत से छूना भी पॉक्सो एक्ट में आता है। कोर्ट को सीधे-सरल शब्दों के गूढ़ अर्थ निकालने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। ऐसी संकीर्ण और रूढ़िवादी व्याख्याओं से इस कानून को बनाने का उद्देश्य विफल होगा, जिसकी हम इज़ाज़त नहीं दे सकते। “

उपरोक्त टिप्पणी के साथ आज सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस यूयू ललित, एस रविंद्र भट और बेला त्रिवेदी की बेंच ने बांबे हाईकोर्ट के फैसले को खारिज़ कर दिया है।

गौरतलब है कि एक नाबालिग लड़की के यौन उत्पीड़न के केस की सुनवाई करते हुये बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच की जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने पोक्सो (POCSO) एक्ट का हवाला देते हुए कहा था कि इस कानून के तहत अगर स्किन-टू-स्किन कॉन्टैक्ट नहीं हुआ तो उसे सेक्शुअल हैरेसमेंट नहीं कहेंगे।

लेकिन आज सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस यूयू ललित, एस रविंद्र भट और बेला त्रिवेदी की बेंच ने बॉम्बे हाई कोर्ट के उस आदेश को खारिज़ कर दिया है जिसमें कहा गया था कि किसी नाबालिग के ब्रेस्ट को कपड़े के ऊपर से पकड़ने को यौन उत्पीड़न नहीं माना जाएगा।

इससे पहले 27 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में बाम्बे हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दिया था। इसी फैसले के साथ हाईकोर्ट की न्य़ायाधीश ने नाबालिग यौन उत्पीड़न के आरोपी को बरी कर दिया था। जबकि सेशन कोर्ट ने इस मामले में पॉक्सो एक्ट के तहत आरोपी को तीन साल और IPC की धारा 354 के तहत एक साल की सजा सुनाई थी। ये दोनों सजाएं एकसाथ चलनी थीं।

बता दें कि नागपुर की एक 16 साल की लड़की की ओर से यह केस दायर किया गया था। घटना के समय लड़की की उम्र 12 साल और आरोपी की उम्र 39 साल थी। पीड़िता के मुताबिक, दिसंबर 2016 में आरोपी सतीश उसे खाने का सामान देने के बहाने लड़की को अपने घर ले गया था। उसकी छाती को छूने और निर्वस्त्र करने की कोशिश की थी।

बाम्बे हाईकोर्ट के फैसले की हुयी थी सार्वजनिक निंदा

सेशन कोर्ट से सजा पाने के बाद आरोपी सतीश ने बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील किया था।

इस केस की सुनवाई करते हुये नागपुर बेंच की जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने 12 जनवरी को अपने आदेश में कहा था कि 12 साल की बच्ची से यौन शौषण के ऐसे सबूत नहीं मिले हैं, जिससे साबित हो सके कि उसका टॉप उतारा गया या फिर फिजिकल कॉन्टैक्ट हुआ। इसलिए इसे यौन अपराधों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।

अपने फैसले में जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने सेशन कोर्ट के फैसले में संशोधन करते हुए दोषी को पॉक्सो एक्ट के तहत दी गई सजा से बरी कर दिया था, जबकि IPC की धारा 354 के तहत सुनाई गई एक साल की कैद को बरकरार रखा था।

बाम्बे हाईकोर्ट के इस फैसले में विशेषकर उनकी दलील की बहुत निंदा की गई थी।

     (जनचौक ब्यूरो की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of

guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest News

Kisan Mahapanchayat: मांग नहीं मानी तो फिर से होगा किसान आंदोलन, 30 अप्रैल को मोर्चे की बैठक

नई दिल्ली। मोदी सरकार द्वारा किसानों के साथ किए गए वायदे पूरे न होते देख सोमवार को एक बार...

सम्बंधित ख़बरें