Friday, April 19, 2024

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- नये कृषि कानूनों को होल्ड पर डालने की संभावना ढूंढे केंद्र

नये कृषि कानूनों पर फिलहाल रोक लगाने का संकेत देते हुए उच्चतम न्यायालय के चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस रामासुब्रमणियन की पीठ ने केंद्र सरकार से आज पूछा कि नये कृषि कानूनों पर फिलहाल रोक लगाने की क्या संभावनाएं हैं? क्या सरकार उच्चतम न्यायालय को यह भरोसा दिला सकती है कि इस मामले की सुनवाई होने तक वह कानून को अमल में नहीं लाएगी?

चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने एजी केके वेणुगोपाल से पूछा, “क्या केंद्र सरकार यह  कह सकती है कि कानून को लागू करने की कोई कार्यकारी कार्रवाई नहीं की जाएगी, ताकि वार्ता सुगम हो सके। इस पर एजी केके वेणुगोपाल ने जवाब दिया कि केंद्र सरकार से निर्देश लेने के बाद वे इससे उच्चतम न्यायालय को अवगत कराएंगे।

पीठ ने आज किसानों के विरोध में जनहित याचिका में कोई आदेश पारित नहीं किया, क्योंकि मामले में उत्तरदाता के रूप में जोड़े गए आठ किसान यूनियनों की तरफ से  न्यायालय में कोई उपस्थित नहीं था। केवल भारतीय किसान यूनियन (भानु), जिसने कृषि कानूनों को चुनौती देने वाले मामलों में हस्तक्षेप का आवेदन दायर किया है, अधिवक्ता एपी सिंह के माध्यम से अदालत में पेश हुए।

नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के तहत किसानों को सड़कों से हटाने की याचिकाओं पर आज दोबारा सुनवाई हुई। पीठ ने सरकार और किसानों दोनों को सलाह दी। सरकार से कहा कि कृषि कानूनों को होल्ड करने की संभावना तलाशें। वहीं किसानों को नसीहत दी कि विरोध का तरीका बदलें।

पीठ ने कहा कि हम अभी कृषि कानूनों की वैधता पर फैसला नहीं करेंगे। हम किसानों के प्रदर्शन और नागरिकों के बुनियादी हक से जुड़े मुद्दों पर ही फैसला सुनाएंगे। हम कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन करने के बुनियादी हक को मानते हैं और इसे छीनने का कोई सवाल नहीं उठता। बात सिर्फ यही है कि इससे किसी की जान को खतरा नहीं होना चाहिए। किसानों को प्रदर्शन का हक है। हम उसमें दखल नहीं देंगे, लेकिन प्रदर्शन के तरीकों पर हम गौर करेंगे। हम केंद्र से कहेंगे कि जिस तरह से प्रदर्शन किया जा रहा है, उसमें थोड़ी तब्दीली लाएं, ताकि इससे आवाजाही करने के नागरिकों के अधिकार पर असर न पड़े। पीठ ने कहा कि हम प्रदर्शन के अधिकार में कटौती नहीं कर सकते हैं। केवल एक चीज जिस पर हम गौर कर सकते हैं, वह यह है कि इससे किसी के जीवन को नुकसान नहीं होना चाहिए।

पीठ ने कहा कि प्रदर्शन करना तब तक संवैधानिक है, जब तक कि उससे किसी की प्रॉपर्टी को नुकसान न पहुंचे या किसी की जान को खतरा न हो। केंद्र सरकार और किसानों को बातचीत करनी चाहिए। हम इस पर विचार कर रहे हैं कि एक निष्पक्ष और स्वतंत्र कमेटी बनाई जाए, ताकि दोनों पक्ष उसमें अपनी बात रख सकें। यह कमेटी जिस फैसले पर पहुंचेगी, उसे माना जाना चाहिए। तब तक प्रदर्शन जारी रखा जा सकता है। इस कमेटी में पी साईनाथ, भारतीय किसान यूनियन जैसे लोगों को मेंबर बनाया जा सकता है। यह कमेटी जो सुझाव देगी उसका पालन किया जाना चाहिए। तब तक प्रदर्शन जारी रखा जा सकता है लेकिन यह अहिंसक होना चाहिए।

पीठ ने कहा कि दिल्ली को अगर आप ब्लॉक करते हैं तो शहर के लोगों तक खाने का सामान नहीं पहुंचेगा। बातचीत से आपका मकसद पूरा हो सकता है। धरने पर बैठे रहने से मदद नहीं मिलेगी। हम भी भारतीय हैं। हम किसानों की हालत से वाकिफ हैं। आपके मकसद से हमदर्दी रखते हैं। आपको सिर्फ अपने विरोध का तरीका बदलना है। हम भरोसा देते हैं कि आपकी बात सुनी जाएगी।

पीठ ने अटॉर्नी जनरल से पूछा कि क्या सरकार अदालत को यह आश्वासन दे सकती है कि जब तक इस मामले पर कोर्ट सुनवाई न करे, केंद्र कानून को लागू न करें। पीठ  ने केंद्र सरकार से इस कानून को होल्ड पर डालने की संभावनाएं तलाशने को भी कहा है। पीठ ने फिलहाल इस मामले की सुनवाई टाल दी। कोर्ट ने कहा कि वह किसानों से बात करने के बाद ही अपना फैसला सुनाएगा। आज अदालत में किसी किसान संगठन के न होने की वजह से कमेटी बनाने को लेकर फैसला नहीं हो सका।

पीठ ने कहा कि इस मामले की सुनवाई दूसरी पीठ करेगी। चूंकि उच्चतम न्यायालय  में छुट्टी है, इसलिए अब मामले की सुनवाई अवकाश पीठ करेगी। चीफ जस्टिस ने कहा कि प्रदर्शन कर रहे सभी किसान संगठनों के पास नोटिस जाना चाहिए।

पंजाब सरकार की ओर से पेश वकील पी चिदंबरम ने कहा कि कई किसान पंजाब से हैं। अगर किसानों और सरकार के बीच बातचीत के लिए कुछ लोगों को जिम्मेदारी दी जाती है तो पंजाब सरकार को इस पर एतराज नहीं है। किसानों और केंद्र सरकार को फैसला करना है कि कमेटी में कौन रहेगा।

पीठ की टिप्पणियां सुनने के बाद अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि इन प्रदर्शनकारियों में से कोई भी मास्क नहीं पहनता। ये समूह में बड़ी तादाद में बैठते हैं। चिंता कोरोना की है। ये लोग गांव में जाएंगे और वहां कोरोना फैलाएंगे। किसान दूसरों के बुनियादी हक का हनन नहीं कर सकते।

उच्चतम न्यायालय में किसान आंदोलन को लेकर कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों को तुरंत हटाने की मांग की गई है। इनमें कहा गया है कि इन किसानों ने दिल्ली-एनसीआर की सीमाएं अवरुद्ध कर रखी हैं, जिसकी वजह से आने जाने वालों को बहुत परेशानी हो रही है और इतने बड़े जमावड़े की वजह से कोविड-19 के मामलों में वृद्धि का भी खतरा उत्पन्न हो रहा है। न्यायालय ने इन याचिकाओं पर केंद्र और अन्य को भी नोटिस जारी किए हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

वामपंथी हिंसा बनाम राजकीय हिंसा

सुरक्षाबलों ने बस्तर में 29 माओवादियों को मुठभेड़ में मारे जाने का दावा किया है। चुनाव से पहले हुई इस घटना में एक जवान घायल हुआ। इस क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय माओवादी वोटिंग का बहिष्कार कर रहे हैं और हमले करते रहे हैं। सरकार आदिवासी समूहों पर माओवादी का लेबल लगा उन पर अत्याचार कर रही है।

शिवसेना और एनसीपी को तोड़ने के बावजूद महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ने वाली हैं

महाराष्ट्र की राजनीति में हालिया उथल-पुथल ने सामाजिक और राजनीतिक संकट को जन्म दिया है। भाजपा ने अपने रणनीतिक आक्रामकता से सहयोगी दलों को सीमित किया और 2014 से महाराष्ट्र में प्रभुत्व स्थापित किया। लोकसभा व राज्य चुनावों में सफलता के बावजूद, रणनीतिक चातुर्य के चलते राज्य में राजनीतिक विभाजन बढ़ा है, जिससे पार्टियों की आंतरिक उलझनें और सामाजिक अस्थिरता अधिक गहरी हो गई है।

Related Articles

वामपंथी हिंसा बनाम राजकीय हिंसा

सुरक्षाबलों ने बस्तर में 29 माओवादियों को मुठभेड़ में मारे जाने का दावा किया है। चुनाव से पहले हुई इस घटना में एक जवान घायल हुआ। इस क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय माओवादी वोटिंग का बहिष्कार कर रहे हैं और हमले करते रहे हैं। सरकार आदिवासी समूहों पर माओवादी का लेबल लगा उन पर अत्याचार कर रही है।

शिवसेना और एनसीपी को तोड़ने के बावजूद महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ने वाली हैं

महाराष्ट्र की राजनीति में हालिया उथल-पुथल ने सामाजिक और राजनीतिक संकट को जन्म दिया है। भाजपा ने अपने रणनीतिक आक्रामकता से सहयोगी दलों को सीमित किया और 2014 से महाराष्ट्र में प्रभुत्व स्थापित किया। लोकसभा व राज्य चुनावों में सफलता के बावजूद, रणनीतिक चातुर्य के चलते राज्य में राजनीतिक विभाजन बढ़ा है, जिससे पार्टियों की आंतरिक उलझनें और सामाजिक अस्थिरता अधिक गहरी हो गई है।