उच्चतम न्यायालय ने कोरोना के मरीजों के इलाज में लापरवाही और लाशों के साथ हो रहे सलूक के मामले में शुक्रवार को सख्त रुख अपनाया। न्यायालय ने दिल्ली सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि अगर लाशें कचरे के ढेर में मिल रही हैं तो इंसानों के साथ जानवरों से भी बदतर सलूक किया जा रहा है। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कोविड-19 स्थिति के प्रबंधन को लेकर कड़ी फटकार लगते हुए दिल्ली, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु की सरकारों को नोटिस जारी किया। न्यायालय ने राज्यों के चीफ सेक्रेटरीज से कहा है कि वे पेशेंट मैनेजमेंट सिस्टम का जायजा लें और इस पर एक रिपोर्ट सौंपें।
जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस संजय कृष्ण कौल और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने कहा कि मीडिया रिपोर्टों ने दिल्ली और कुछ अन्य राज्यों में कोरोना रोगियों की देखभाल के मामलों में अत्यंत खेदजनक स्थिति दिखाई पड़ रही है। इस मामले पर अब अगले बुधवार यानी 17 जून को सुनवाई होगी।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि दिल्ली में कुछ दिक्कत है क्योंकि टेस्टिंग अब 7000 से कम होकर सिर्फ 5000 तक पहुंच गई है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा कि आपने टेस्टिंग क्यों घटा दी है? मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों ने टेस्टिंग बढ़ा दी है और आज 15-17000 टेस्ट रोज कर रहे हैं। लेकिन दिल्ली में सिर्फ 5000 टेस्टिंग हो रही है। शवों के साथ किस तरह का व्यवहार किया जा रहा है, हालात बहुत खराब हैं। दिल्ली सरकार और यहां के अस्पताल जिस तरह से कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज कर रहे हैं और शवों के साथ जैसा व्यवहार किया जा रहा है वह काफी भयानक और डरावना है। कोर्ट ने दिल्ली सरकार के वकील से कहा कि अस्पतालों में हर जगह बॉडी फैली हुई है और लोगों का उसी जगह पर इलाज भी किया जा रहा है। पीठ ने दिल्ली के एलएनजेपी हॉस्पिटल को भी नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
उच्चतम न्यायालय की कुछ टिप्पणियों पर गौर करें:
– लाशें किस तरह से रखी जा रही हैं? ये क्या हो रहा है? अगर लाशों के साथ ऐसा सलूक हो रहा है, अगर लाशें कचरे के ढेर में मिल रही हैं तो यह इंसानों के साथ जानवरों से भी बदतर सलूक है।
-अस्पतालों में लोगों की विकट परिस्थितियों को देखें, शव वार्ड में पड़े हुए हैं, शव कचरे में पाए जाते हैं। मीडिया ने इन विकट परिस्थितियों को उजागर किया है। लोगों से जानवरों से भी बदतर व्यवहार किया जा रहा है।
-केंद्र की गाइडलाइंस को नहीं अपनाया जा रहा। दिल्ली में तो डरा देने वाली स्थिति है। हालात ऐसे हैं कि तरस आता है। देश की राजधानी में जिस तरीके से कोरोना से निपटा जा रहा है, उसमें दिक्कतें हैं।
– दिल्ली के अस्पतालों में शवों पर ठीक से ध्यान नहीं दिया जा रहा। यहां तक कि मरीज की मौत के बारे में परिवार के लोगों को भी नहीं बताया जा रहा। कुछ मामलों में तो परिवार के लोगों को अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं होने दिया जा रहा।
– दिल्ली में चेन्नई और मुंबई के मुकाबले कम टेस्ट हो रहे हैं। मई के मुकाबले में टेस्टिंग कम हुई है। जब कोरोना के मरीज बढ़ रहे हैं, तब टेस्टिंग कम हो रही है। दिल्ली में आखिर इतने कम टेस्ट क्यों हो रहे हैं?
– तकनीकी वजहों से किसी को भी आप टेस्टिंग से दूर नहीं रख सकते। आप तौर-तरीकों को आसान बनाइए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग कोरोना का टेस्ट करा सकें। टेस्टिंग कराना राज्य की जिम्मेदारी है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग अपना हेल्थ स्टेटस जान सकें।
-जब केंद्र की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि दिल्ली में एक मामला ऐसा भी सामने आया, जब लाशों को कोरोना का इलाज करा रहे मरीजों के पास ही रख दिया गया। इस पर जस्टिस एमआर शाह ने सॉलिसिटर जनरल से पूछा कि तो फिर आपने क्या किया?
– मीडिया रिपोर्ट्स बता रही हैं कि सरकारी अस्पतालों में बेड खाली हैं, जबकि कोराेना के मरीज अस्पतालों में भर्ती होने के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं।
दरअसल, कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और पूर्व कानून मंत्री अश्विनी कुमार की लिखी एक चिट्ठी पर उच्चतम न्यायालय ने इस मामले को खुद नोटिस में लिया था। पूर्व कानून मंत्री और वकील अश्विनी कुमार ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एसए बोबडे को चिट्ठी लिखी थी। इसमें उन्होंने कहा था कि देश के लोगों को इस बात का हक है कि वे अपने परिवार के लोगों का इज्जत के साथ अंतिम संस्कार कर सकें। इस चिट्ठी के बाद चीफ जस्टिस ने यह केस जस्टिस अशोक भूषण की पीठ को भेज दिया था।
यूपी सरकार से मांगा स्पष्टीकरण
क्वारंटाइन नियमों को लेकर उच्चतम न्ययालय ने नोएडा के कलेक्टर को कड़ी फटकार लगाई है। दरअसल, नोएडा में कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए स्थानीय प्रशासन ने होम-क्वारंटाइन की जगह इंस्टीट्यूशनल क्वारंटाइन का आदेश दिया था। इसके तहत कोरोना पॉजिटिव पाए जाने पर पूरे इलाके को ही सील कर दिया जाता है। उत्तर प्रदेश सरकार ने सुनवाई के दौरान बताया कि गाजियाबाद और नोएडा में सिर्फ जरूरी सेवाओं, मीडिया और वकीलों को ही प्रवेश दिया जाएगा, क्योंकि दिल्ली में इन शहरों के मुकाबले कोरोना के मामले 40 फीसद तक ज्यादा हैं। उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को इस नीति को लेकर हलफनामा दाखिल करने को कहा है। साथ ही कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि जिलाधिकारी का आदेश केंद्र के दिशा-निर्देशों से अलग नहीं हो सकता है।
इंडस्ट्री और वर्कर्स आपस में विवाद सुलझाएं
अगर लॉकडाउन के दौरान प्राइवेट कंपनियां अपने वर्कर्स को पूरी सैलरी देने में नाकाम रही हैं, तो उन पर अभी सख्त कार्रवाई नहीं होगी। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को यह निर्देश देते हुए आपस में विवाद सुलझाने पर जोर दिया है। इस मामले में अगली सुनवाई जुलाई के आखिरी हफ्ते में होगी। सुनवाई की तारीख तय नहीं है। गृह मंत्रालय ने 29 मार्च को एक आदेश जारी किया था। इसमें कहा गया था कि जब देशभर में लॉकडाउन चल रहा है, तब सभी इम्प्लॉयर्स अपने वर्कर्स को तय तारीख पर सैलरी दें और इसमें कोई कटौती न करें। गृह मंत्रालय का यह ऑर्डर लॉकडाउन के 54 दिनों के लिए था। जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस संजय कृष्ण कौल और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने सरकार से कहा कि अगर कंपनियों और वर्कर्स के बीच विवाद न सुलझे तो लेबर डिपार्टमेंट को सैटलमेंट में मदद करनी होगी। राज्य सरकारों को भी सैटलमेंट में मदद करनी होगी और इसकी रिपोर्ट लेबर कमिश्नर को सौंपनी होगी। केंद्र और राज्य सरकारें इस मुद्दे पर टुकड़ों-टुकड़ों में ध्यान न दें। केंद्र सरकार 4 हफ्ते में एफिडेविट पेश कर गृह मंत्रालय के 29 मार्च के ऑर्डर पर अपना जवाब दाखिल करे।
फ्लाइट टिकट रद्द होने के मामलों में मिले क्रेडिट की सुविधा
लॉकडाउन अवधि की फ्लाइट्स के लिए बुक की गई हवाई टिकटों के फुल रिफंड को लेकर दायर जनहित याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय ने नागरिक उड्डयन मंत्रालय से जवाब मांगा। साथ ही कोर्ट ने कहा कि केंद्र और एयरलाइन कंपनियां साथ बैठकर टिकट का पैसा वापस करने के विभिन्न तरीकों पर सहमति बनाए बनाएं। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि एयरलाइन कंपनियों की ओर से रिफंड के रूप में दी गई क्रेडिट सुविधा कम अवधि और समान रूट पर ही क्यों लागू होनी चाहिए? कोर्ट ने सुझाव दिया कि जिन यात्रियों की फ्लाइट टिकट कैंसिल हुई हैं, उन्हें क्रेडिट सुविधा का लाभ कम से कम दो साल तक के लिए मिलना चाहिए। इसके अलावा यात्री को किसी भी रूट पर टिकट बुक करने के लिए क्रेडिट सुविधा मिलनी चाहिए।
मोरैटोरियम पर ब्याज / लोन की ईएमआई
उच्चतम न्यायालय ने लोन की ईएमआई के मामले में कुछ नरम रुख अपनाया। इसमें बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय को निर्देश दिया कि तीन दिन के भीतर इस मामले में निर्णय लें। इसकी अगली सुनवाई 17 जून को होगी। कोरोना संकट और लॉकडाउन की वजह से टर्म लोन की ईएमआई चुकाने पर छह महीने की मोहलत लोगों को मिली है। लेकिन, इस दौरान ब्याज माफ हो या नहीं इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में मामला चल रहा है। इसी सुनवाई में कोर्ट ने कहा कि तीन दिन के अंदर रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय इसका निर्णय लें। इस बारे में क्या बात हुई, इसके बारे में केंद्र सरकार को तीन दिन के भीतर अपना जवाब देने के लिए कोर्ट ने कहा है।
डॉक्टरों के मसले पर कोर्ट की नाराजगी
उच्चतम न्यायालय ने डॉक्टरों और हेल्थ वर्कर्स को समय पर सैलरी नहीं मिलने के मामले में आज तल्ख टिप्पणी की कि कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहे सैनिकों को असंतुष्ट रखते हुए हम यह जंग नहीं जीत सकते। कोर्ट ने यह भी कहा कि, हम देख रहे हैं कि दिल्ली के डॉक्टर भी प्रोटेस्ट कर रहे हैं। उन्हें तीन महीने से सैलरी नहीं मिली है। ऐसी चीजें तो आप को खुद देखनी चाहिए। डॉक्टरों को कोर्ट तक आने की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए थी। कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार को मेडिकल प्रोफेशनल्स के मुद्दे पर और विचार करना चाहिए।कोर्ट ने आदेश दिया कि डॉक्टरों ने जो बातें उठाई हैं उन पर फौरन कार्रवाई की जानी चाहिए।
(वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)