Tuesday, April 16, 2024

गुजरात बिजली मामले में अडानी के पक्ष में जस्टिस अरुण मिश्रा के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट में 30 सितम्बर को सुनवाई

जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा अडानी पावर के पक्ष में दिए गये विवादास्पद फैसले पर उच्चतम न्यायालय सुधारात्मक याचिका पर सुनवाई करेगा। यह मामला मेसर्स अडानी पावर (मुंद्रा) लिमिटेड बनाम गुजरात विद्युत नियामक आयोग (जीयूवीएल) एवं अन्य का है। इस मामले में, जस्टिस अरुण मिश्रा और एमआर शाह की अवकाश पीठ के समक्ष 23 मई, 2019 को एक प्रारंभिक सुनवाई आवेदन का उल्लेख किया गया था। उल्लेख करने पर, खंडपीठ ने निर्देश दिया कि मामले को अगले दिन, यानी 24 मई को सूचीबद्ध किया जाए। 24 मई को जस्टिस अरुण मिश्रा, बीआर गवई और सूर्यकांत की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई की और फैसला सुरक्षित रख लिया और बाद में अडानी पावर (मुंद्रा) लिमिटेड के पक्ष में सुना दिया।

यह मामला इससे पहले 1 फरवरी, 2017 को जस्टिस जास्ती चेलमेश्वर और एएम सप्रे की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया था, जब इसे इस आदेश के साथ स्थगित कर दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि अगले सप्ताह मामलों को सूचीबद्ध करें। इसके बाद किसी भी खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध नहीं किया गया।

वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को पत्र लिखकर इसका प्रतिवाद किया था और कहा था कि यह मामला, 29 अप्रैल, 2019 और 7 मार्च, 2019 को जारी परिपत्रों के दायरे में नहीं आने के कारण, इस पर जल्दी सुनवाई के लिए आवेदन पर विचार नहीं किया जाना चाहिए था। पत्र में कहा गया है कि प्रतिवादी एओआर के कार्यालय के जूनियर अधिवक्ता ने पीठ से मामले की सुनवाई नहीं करने का अनुरोध किया, लेकिन पीठ ने अनुरोध पर ध्यान नहीं दिया और मामले को सीधा सुना। अपील को पीठ ने अंततः मंजूर कर लिया।

उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार 17 अगस्त को अडानी समूह द्वारा बिजली खरीद समझौते को समाप्त करने के मामले में गुजरात ऊर्जा विकास लिमिटेड (जीयूवीएल) की सुधारात्मक याचिका क्यूरेटिव पेटिशन पर नोटिस जारी किया है। चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस खानविलकर, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की संविधान पीठ में गुरुवार को बंद कमरे में सुनवाई करते हुए कहा कि उसके विचार से सुधारात्मक याचिका में कानून के व्यापक प्रश्न उठाए गए हैं जिन पर विचार किया जाना जरूरी है।

इसके साथ ही संविधान पीठ में अडानी पावर को नोटिस जारी करते हुए कहा है कि इस मामले में 30 सितंबर को खुली अदालत में सुनवाई होगी। अडानी पावर ने जीयूवीएल के साथ विद्युत खरीद करार कहते हुए तो दिया था कि गुजरात मिनरल डेवलपमेंट कारपोरेशन (जीएमडीसी) उसे कोयला आपूर्ति करने में विफल रहा है इसके खिलाफ जीवीएल ने गुजरात राज्य विद्युत नियामक आयोग का दरवाजा खटखटाया था जिसमें करार रद्द किए जाने को अवैध ठहराया था इसके खिलाफ अडानी ने अपीलीय न्यायाधिकरण का दरवाजा खटखटाया और उसने भी आयोग के निर्णय को जायज ठहराया था इसके बाद अडानी समूह ने उच्चतम न्यायालय का रुख किया था और वहां से उसे राहत मिली थी। उच्चतम न्यायालय के 2 जुलाई 2019 के इस फैसले के खिलाफ जीओवी ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी जिसे गत 3 सितंबर को खारिज कर दिया गया। अंततः यूवियल ने सुधारात्मक याचिका दायर की है जिसे बंद कमरे में हुई सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने नोटिस जारी किया है।

जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा अडानी पावर के पक्ष में दिए गये विवादास्पद फैसले पर उच्चतम न्यायालय सुधारात्मक याचिका पर सुनवाई करेगा।यह मामला मेसर्स अडानी पावर (मुंद्रा) लिमिटेड बनाम गुजरात विद्युत नियामक आयोग एवं अन्य का है।

इस मामले में, जस्टिस अरुण मिश्रा और एमआर शाह की अवकाश पीठ के समक्ष 23 मई, 2019 को एक प्रारंभिक सुनवाई आवेदन का उल्लेख किया गया था। उल्लेख करने पर, खंडपीठ ने निर्देश दिया कि मामले को अगले दिन, यानी 24 मई को सूचीबद्ध किया जाए। 24 मई को जस्टिस अरुण मिश्रा, बीआर गवई और सूर्यकांत की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई की और फैसला सुरक्षित रख लिया और बाद में अडानी पावर (मुंद्रा) लिमिटेड के पक्ष में सुना दिया।

वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को पत्र लिखकर इसका प्रतिवाद किया था और कहा था कि यह मामला, 29 अप्रैल, 2019 और 7 मार्च, 2019 को जारी परिपत्रों के दायरे में नहीं आने के कारण, इस पर जल्दी सुनवाई के लिए आवेदन पर विचार नहीं किया जाना चाहिए था। पत्र में कहा गया है कि प्रतिवादी एओआर के कार्यालय के जूनियर अधिवक्ता ने पीठ से मामले की सुनवाई नहीं करने का अनुरोध किया, लेकिन पीठ ने अनुरोध पर ध्यान नहीं दिया और मामले को सीधा सुना। अपील को पीठ ने अंततः मंजूर कर लिया।

उच्चतम न्यायालय ने अडानी समूह द्वारा बिजली खरीद समझौते को समाप्त करने के मामले में गुजरात ऊर्जा विकास लिमिटेड (जीयूवीएल) की सुधारात्मक याचिका क्यूरेटिव पेटिशन पर नोटिस जारी किया है। चीफ जस्टिस एनवी रमना जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस खानविलकर जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की संविधान पीठ में गुरुवार को बंद कमरे में सुनवाई करते हुए कहा कि उसके विचार से सुधारात्मक याचिका में कानून के व्यापक प्रश्न उठाए गए हैं जिन पर विचार किया जाना जरूरी है।

संविधान पीठ ने गुजरात ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड (जीयूवीएल) द्वारा दायर एक क्यूरेटिव याचिका में उच्चतम न्यायालय के 2019 के फैसले के खिलाफ नोटिस जारी किया, जिसमें अडानी पावर (मुंद्रा) लिमिटेड [गुजरात] द्वारा बिजली खरीद समझौते (पीपीए) की समाप्ति को बरकरार रखा गया था। संविधान पीठ ने कहा कि हमने क्यूरेटिव पेटिशन और संबंधित दस्तावेजों को देखा है। हमारी प्रथम दृष्टया राय में, इस क्यूरेटिव पेटिशन में कानून के महत्वपूर्ण सवाल उठाए गए हैं, जिन पर विचार करने की आवश्यकता है।

जुलाई 2019 में सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि अडानी पावर मुंद्रा लिमिटेड द्वारा गुजरात ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड (जीयूवीएनएल) को 2009 में बिजली खरीद समझौते को समाप्त करने का नोटिस कानूनी और वैध था। पीठ ने उस फैसले के माध्यम से अडानी पावर को जीयूवीएनएल को कंपनी द्वारा आपूर्ति की गई बिजली के लिए प्रतिपूरक टैरिफ के निर्धारण के लिए केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (सीईआरसी) से संपर्क करने की अनुमति दी थी। सीईआरसी को तीन महीने की अवधि के भीतर इस मुद्दे पर निर्णय लेने का निर्देश दिया गया था।

वर्ष 2007 में, अडानी पावर ने छत्तीसगढ़ के कोरबा में स्थित अपनी बिजली परियोजना से एक निश्चित दर पर 1,000 मेगावाट बिजली की आपूर्ति के लिए जीयूवीएनएल के साथ एक पीपीए पर हस्ताक्षर किए थे। हालांकि, अडानी ने बाद में जीयूवीएनएल को सूचित किया कि बिजली की आपूर्ति कोरबा के बजाय मुंद्रा स्थित उसके संयंत्र से होगी। इसलिए, दोनों संस्थाओं के बीच एक और पीपीए पर हस्ताक्षर किए गए और गुजरात खनिज विकास निगम (जीएमडीसी) द्वारा अडानी को आश्वासन दिया गया कि वह अडानी को कोयले की आपूर्ति करेगा।

अडानी का आरोप था कि जीएमडीसी ने अडानी को आश्वासन के अनुसार कोयले की आपूर्ति नहीं की और अडानी द्वारा गुजरात सरकार, जीएमडीसी और जीयूवीएनएल को इस संबंध में कई बार याद दिलाने के बावजूद स्थिति जस की तस बनी रही। इसके बाद, अडानी ने पीपीए को समाप्त कर दिया और परिसमाप्त नुकसान के भुगतान की शर्त को पूरा किया जैसा कि पीपीए में निर्धारित किया गया था।

टर्मिनेशन नोटिस को गुजरात इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन (जीईआरसी) के समक्ष चुनौती दी गई थी, जिसमें कहा गया था कि अडानी पावर ने पीपीए को अवैध रूप से समाप्त कर दिया था। इस फैसले को अपीलेट ट्रिब्यूनल फॉर इलेक्ट्रिसिटी ने बरकरार रखा, जिसके बाद उच्चतम न्यायालय में अपील की गई। संविधान पीठ इस मामले में 30 सितंबर को खुली अदालत में सुनवाई करेगी ।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

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