Saturday, April 20, 2024

पेगासस जासूसी कांड की जांच याचिका पर 5 अगस्त को सुनवाई करेगा सुप्रीमकोर्ट

पेगासस-जासूसी के मामले में मोदी सरकार के गले में ऐसी हड्डी अटक गयी है जिसे न निगलते बन रहा है,न उगलते। इस मुद्दे पर मोदी सरकार पॉलिसी पैरालिसिस का शिकार बन गयी है। संसद का काम-काज लगभग ठप है। पेगासस स्पाइवेयर से कथित जासूसी मामले की जाँच की मांग वाली याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय में चीफ जस्टिस एन वी रमना और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ पाँच अगस्त को सुनवाई करेगी ।

द हिन्दू के एन राम और शशि कुमार पिछले हफ़्ते दायर याचिका में पेगासस मामले की जाँच सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा या सेवानिवृत्त जज से कराए जाने की मांग की थी। आरोप है कि पेगासस स्पाइवेयर से विपक्षी नेताओं, कुछ मंत्रियों, क़रीब 40 पत्रकारों सहित दूसरे लोगों की जासूसी के लिए निशाना बनाया गया है। पेगासस मामले में अब तक कम से कम चार याचिकाएँ दायर की जा चुकी हैं। उससे पहले पिछले हफ़्ते ही सीपीएम के एक सांसद और इससे भी पहले एक वकील ने अदालत में याचिका दायर कर ऐसी ही मांग की थी।

एन राम और शशि कुमार की याचिका में कहा गया है कि दुनिया भर के कई प्रमुख प्रकाशनों से जुड़ी वैश्विक जाँच से पता चला है कि भारत में 142 से अधिक व्यक्तियों को पेगासस स्पाइवेयर का उपयोग करके निगरानी के संभावित लक्ष्य के रूप में पहचाना गया था। उसमें यह भी कहा गया कि उस स्पाइवेयर के संभावित टारगेट किए गए कुछ मोबाइल फ़ोन की फ़ोरेंसिक जाँच में भी पेगासस के हमले के निशान मिले हैं।

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि लीक हुए डेटाबेस में सामने आए नामों में से कुछ के फोन का फॉरेंसिक एनालिसिस हुआ है और उनमें पेगासस के ट्रेस मिले हैं। याचिका में सवाल उठाया गया कि क्या पत्रकारों, डॉक्टरों, वकीलों, विपक्षी नेताओं, केंद्रीय मंत्रियों, सिविल सोसाइटी एक्टिविस्टों के फोन में पेगासस डालकर टार्गेटेड सर्विलांस किया गया था। याचिका में पूछा गया कि क्या ऐसी हैकिंग एजेंसियों और संस्थानों द्वारा ‘बोलने की आजादी और विरोध जताने के हक’ को दबाने की कोशिश है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि पत्रकारों को टारगेट करना प्रेस की आजादी पर हमला है, और बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी में शामिल जानने के अधिकार में भी हस्तक्षेप करता है। याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार को निर्देश दिए जाएं कि वो बताए उसने या उसकी किसी एजेंसी ने पेगासस स्पाइवेयर के इस्तेमाल से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर ऐसी सर्विलांस की है या नहीं।

इस मामले की जाँच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में कराए जाने को लेकर केरल के सीपीएम सांसद जॉन ब्रिटास याचिका दायर कर चुके हैं। सांसद ने द वायर की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि उन नंबरों में से एक नंबर सर्वोच्च न्यायालय के एक मौजूदा न्यायाधीश के नाम पर पंजीकृत है और यह न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप करने के बराबर है और यह अभूतपूर्व व चौंकाने वाला है।

सांसद की याचिका में कहा गया है कि सरकार ने न तो स्वीकार किया है और न ही इनकार किया है कि स्पाइवेयर उसकी एजेंसियों द्वारा खरीदा और इस्तेमाल किया गया था। बता दें कि सरकार ने एक बयान में कहा है कि उसकी एजेंसियों द्वारा कोई अनधिकृत रूप से इन्टरसेप्ट नहीं किया गया है और विशिष्ट लोगों पर सरकारी निगरानी के आरोपों का कोई ठोस आधार नहीं है।

पिछले हफ़्ते ही एक वरिष्ठ वकील एमएल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में कथित पेगासस जासूसी मामले की जाँच के लिए याचिका दायर की थी। मीडिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए एमएल शर्मा द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि पेगासस जासूसी गंभीर चिंता का विषय है और भारतीय लोकतंत्र, न्यायपालिका और देश की सुरक्षा पर गंभीर हमला है। निगरानी का व्यापक और ग़ैर-जवाबदेह उपयोग नैतिक रूप से भ्रष्ट है।

पेरिस स्थित नॉनप्रॉफिट मीडिया फॉरबिडन स्टोरीज और एमनेस्टी इंटरनेशनल के पास लीक हुए नंबरों की लिस्ट थी, जिसे बाद में उन्होंने द वाशिंगटन पोस्ट, द गार्जियन, ले मोंडे और द वायर समेत दुनियाभर के करीब 16 मीडिया संस्थानों के साथ शेयर किया, जिसके बाद इस मामले की जांच शुरू हुई। इस जांच को ‘पेगासस प्रोजेक्ट’ नाम दिया गया है।

‘द गार्डियन’, ‘वाशिंगटन पोस्ट’, ‘द वायर’ सहित दुनिया भर के 17 मीडिया संस्थानों ने पेगासस स्पाइवेयर के बारे में खुलासा किया है। एक लीक हुए डेटाबेस के अनुसार इजरायली निगरानी प्रौद्योगिकी फर्म एनएसओ के कई सरकारी ग्राहकों द्वारा हज़ारों टेलीफोन नंबरों को सूचीबद्ध किया गया था। ‘द वायर’ के अनुसार इसमें 300 से अधिक सत्यापित भारतीय मोबाइल टेलीफोन नंबर शामिल हैं। जो नंबर पेगासस के निशाने पर थे वे विपक्ष के नेता, मंत्री, पत्रकार, क़ानूनी पेशे से जुड़े, व्यवसायी, सरकारी अधिकारी, वैज्ञानिक, अधिकार कार्यकर्ता और अन्य से जुड़े हैं।

पेगासस से जासूसी मामले में कई देशों की सरकारों ने जाँच के आदेश दिए हैं। इसमें फ्रांस के अलावा अल्जीरिया, इजरायल और मेक्सिको जैसे देश शामिल हैं। मेक्सिको के अटॉर्नी जनरल ने हाल ही में कहा था कि एनएसओ ने जिस व्यक्ति थॉमस ज़ेरोन के साथ क़रार किया था, वह भाग कर इज़रायल चला गया और उसकी जाँच की जा रही है।

जिस इजरायल की कंपनी पर आरोप लगे हैं वहाँ भी जाँच के आदेश दिए गए हैं। इस मामले में बुधवार को ही इजरायली सरकारी अधिकारियों ने एनएसओ ग्रुप के कार्यालयों पर छापे मारे हैं। फ्रांस की सरकारी एजेंसी द्वारा इसकी पुष्टि किए जाने से पहले एक रिपोर्ट में कहा गया था कि लीक हुए डेटाबेस के इन नंबरों से जुड़े कुछ फ़ोन पर किए गए गै़र सरकारी फोरेंसिक जाँच से पता चला कि 37 फोन में पेगासस स्पाइवेयर से निशाना बनाए जाने के साफ़ संकेत मिले थे। इनमें से 10 भारतीय हैं।

संसद का मानसून सत्र धुलने के आसार

पेगासस जासूसी के मुद्दे पर संसद का मॉनसून सत्र बिना किसी काम के हंगामे में धुलने की ओर बढ़ रहा है।अपने बचाव में लगी सरकार पर विपक्ष एक साथ पूरी मजबूती से पेगासस के मुद्दे पर दबाव बना रहा है।पीएम रहते नरेंद्र मोदी के सात सालों में ऐसा पहली बार हुआ है जब विपक्ष ने दोनों सदनों में काम नहीं होने दिया है, यहां तक कि लोकसभा में भी जहां भाजपा के पास भारी बहुमत है।

पेगासस जासूसी के मुद्दे पर जब तक कोई सहमति नहीं हो जाती, मौजूदा सत्र बिना किसी बहस, चर्चा या महत्वपूर्ण विधेयक के ऐसे ही हो-हंगामे में खत्म हो सकता है।ये सत्ताधारी सरकार के खिलाफ एक राजनीतिक काला धब्बा है और इससे पीएम मोदी के तीन अन्य प्रधानमंत्रियों पी वी नरसिम्हा राव, आई के गुजराल और मनमोहन सिंह की बराबरी में आने का खतरा है, जिन्हें इसी तरह की बदनामी का सामना करना पड़ा था।

दरअसल संसद में ये गतिरोध सरकार का ये बताने से लगातार इनकार करने के कारण उत्पन्न हुआ है कि उसने इजरायल की टेक्नोलॉजी कंपनी एनएसओ से विवादित पेगासस स्पाईवेयर खरीदा या नहीं। सवालों से बचना एक नकारात्मक रणनीति है और ये शक पैदा करता है।

मोदी सरकार बड़े विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, सिविल सोसाइटी के कार्यकर्ताओं और यहां तक कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों तक के फोन टैप करने के लिए पेगासस स्पाइवेयर के इस्तेमाल के खुलासे की जांच का आदेश देने से बचने की लगातार कोशिश कर रही है। पेगासस खुलासे की जद में आए चार अन्य देशों फ्रांस, इजरायल, हंगरी और मोरक्को के उलट है जिन्होंने तुरंत मामले की जांच के आदेश दिए हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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