Friday, April 19, 2024

प्रोफेसर जीएन साईबाबा को बरी करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की बेंच आज विशेष सुनवाई करेगी

90 फीसद विकलांग प्रोफेसर जीएन साईबाबा और पांच अन्य को बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा बरी करने के आदेश से केंद्र सरकार विशेष रूप से गृह मंत्रालय पूरी तरह से बौखला गया है, क्योंकि इससे, यूएपीए कानून की बुनियाद हिल गयी है और कानून का शासन राष्ट्रवाद पर भारी पड़ गया है। फैसला आते ही सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता उच्चतम न्यायालय में पहुंच गये और प्रोफेसर जीएन साईबाबा और अन्य को बरी करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ स्टे के लिए मौखिक गुहार लगाई, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने इनकार कर दिया।  

भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शुक्रवार शाम सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष मामले का तत्काल उल्लेख किया (यह उल्लेख जस्टिस चंद्रचूड़ के समक्ष किया गया था क्योंकि सीजेआई यूयू ललित की पीठ सुनवाई खत्म करके उठी चुकी थी)। हालांकि एसजी ने स्टे के लिए मौखिक गुहार लगाई, लेकिन पीठ ने इनकार कर दिया। पीठ ने हालांकि राज्य को तत्काल सूची की मांग करने की अनुमति दी।

उच्चतम न्यायालय ने सालिसिटर जनरल के बार-बार अनुरोध पर हालांकि राज्य को तत्काल सूची की मांग करने की अनुमति दी। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट के अनुसार, याचिका शुक्रवार को दोपहर 3.59 बजे दायर की गई। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ यूएपीए मामले में प्रोफेसर जीएन साईबाबा और अन्य को बरी किए जाने को चुनौती देने वाली महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर सुनवाई के लिए शनिवार (कल) सुबह 11 बजे विशेष सिटिंग करेगी।

मेहता ने पीठ से कहा कि चूंकि बरी किया जाना देश के खिलाफ एक बहुत ही गंभीर अपराध’ से संबंधित है, इसलिए शीर्ष अदालत को आदेश पर रोक लगानी चाहिए और मामले को सोमवार को सूचीबद्ध करना चाहिए। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि उन्हें अपने पक्ष में बरी करने का आदेश मिला है। भले ही हम इसे सोमवार को देखें और मान लें कि हम नोटिस जारी करें । तब भी हम आदेश पर रोक नहीं लगा सकते हैं ।

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि बरी करना योग्यता के आधार पर नहीं था, लेकिन इस आधार पर कि अभियोजन पक्ष ने जरूरी मंजूरी नहीं ली थी। उन्होंने कहा, कि हम योग्यता के आधार पर नहीं हारे हैं, मंजूरी के अभाव में ऐसा हुआ है। इसे लेकर कोई पूर्वाग्रह नहीं होगा क्योंकि वह पहले से ही जेल में थे। उन्होंने यह भी जोड़ा कि अदालतें बरी करने के आदेश देती हैं, इसमें कुछ असाधारण नहीं है, लेकिन शीर्ष अदालत ने उनके अनुरोध को ठुकरा दिया।

बॉम्बे हाईकोर्ट (नागपुर पीठ) ने शुक्रवार को बरी करने का फैसला सुनाया, जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर साईं बाबा और पांच अन्य (उनमें से एक की अपील लंबित रहने के दौरान मृत्यु हो गई) द्वारा यूएपीए मामले में कथित माओवादी संबंधों को लेकर दायर की गई अपीलों को अनुमति दी गई।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस आधार पर अपीलों को अनुमति दी कि यूएपीए की धारा 45(1) के अनुसार मुकदमा बिना वैध मंजूरी के चलाया था और आजीवन कारावास की सज़ा भी सुना दी थी। बजाय इसके कि सज़ा सुनाने वाले सत्र न्यायाधीश को बिना आवश्यक कानूनी मंजूरी के मुकदमा चलाने वाले के लिए कानून का घोर उल्लंघन करने के आरोप में सेवा से बर्खास्त कर देती सरकार ,महाराष्ट्र सरकार उच्चतम न्यायालय में सीधे स्टे के लिए पहुँच गयी।

अदालत ने 101 पृष्ठों में दिए फैसले में कहा कि मामले में आरोपी के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के सख्त प्रावधानों के तहत मुकदमा चलाने का मंजूरी आदेश ‘कानून की दृष्टि से गलत और अमान्य’ था। कोर्ट ने साईबाबा को जेल से तत्काल रिहा करने का आदेश दिया है।

मार्च 2017 में, महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की एक सत्र अदालत ने साईबाबा और एक पत्रकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्र सहित अन्य को माओवादियों से कथित संबंध और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने की गतिविधियों में शामिल होने के लिए दोषी ठहराया था। अदालत ने साईबाबा और अन्य को सख्त गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के विभिन्न प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया था ।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपी साईबाबा, महेश तिर्की, हेम केशवदत्त मिश्रा, प्रशांत राही और विजय नान तिर्की को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया। एक आरोपी पांडु पोरा नरोटे की अगस्त 2022 में जेल में मौत हो गई थी। पोलियो के बाद पक्षाघात के कारण 90% विकलांग और व्हील चेयर से बंधे साईबाबा ने पहले चिकित्सा आधार पर सजा को निलंबित करने के लिए आवेदन दायर किया था। उन्होंने कहा कि वह गुर्दे और रीढ़ की हड्डी की समस्याओं सहित कई बीमारियों से पीड़ित हैं।2019 में, हाईकोर्ट ने सजा को निलंबित करने के उनके आवेदन को खारिज कर दिया था।

उन्हें मार्च 2017 में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में सत्र न्यायालय द्वारा यूएपीए की धारा 13, 18, 20, 38 और 39 और भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी के तहत रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट (आरडीएफ) के साथ कथित जुड़ाव के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, जिसमें कथित तौर पर गैरकानूनी माओवादी संगठन से संबद्ध होने का आरोप लगाया गया था। आरोपियों को 2014 में गिरफ्तार किया गया था।

सत्र अदालत ने साईबाबा और अन्य को कड़े गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के विभिन्न प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया था।

इससे पहले, साईबाबा ने एक सीसीटीवी कैमरा लगाने के विरोध में अपनी जेल की कोठरी के अंदर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर जाने की धमकी दी थी, जो कथित तौर पर शौचालय और स्नान क्षेत्र के फुटेज को कैप्चर करता है। उनकी पत्नी और भाई ने महाराष्ट्र के गृह मंत्री को पत्र लिखकर सीसीटीवी कैमरे को हटाने की मांग की थी। साईबाबा को जेल में सजा काटते पांच साल से भी ऊपर हो गए हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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