Friday, March 29, 2024

दिल्ली के पहले प्लाज़्मा डोनर बने तबरेज़ खान, कहा- कोरोना से जंग के लिए शरीर भी देने को तैयार

नई दिल्ली। इस समय हमारे देश में कोरोना के इलाज के लिए जो एक तरीका सबसे ज्यादा चर्चा में बना हुआ है वह है प्लाज्मा थेरेपी। प्लाज्मा थेरेपी का दिल्ली सरकार ने ट्रायल शुरू कर दिया है और खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ऐलान किया कि इसके शुरुआती नतीजे उत्साहवर्धक आए हैं। इस थेरेपी की सबसे खास बात यह है कि कोरोना संक्रमण से ठीक हुआ व्यक्ति ही मौजूदा संक्रमित व्यक्ति के लिए प्लाज्मा दान करके उसकी मदद कर सकता है। प्लाज्मा दान करने में कितना समय लगता है? कितनी समस्या होती है या यह कितना आसान है, ऐसे कुछ सवालों का जवाब दिया दिल्ली के पहले प्लाज्मा डोनर तबरेज ने।

दिल्ली के ILBS अस्पताल में प्लाज्मा दान करने वाले तबरेज़ खान 36 साल के हैं। 18 मार्च को सऊदी अरब से आई अपनी बहन के संपर्क में आकर संक्रमित हो गए। 5 अप्रैल को ठीक होकर अस्पताल से डिस्चार्ज हुए और 2 हफ़्ते का क्वारंटाइन पीरियड पूरा होते ही किसी और कोरोना संक्रमित मरीज की जिंदगी बचाने के लिए प्लाज्मा दान करने पहुंच गए। तबरेज़ बताते हैं कि उनके लिए यही देश सेवा है। तबरेज़ के मुताबिक ‘मैंने प्लाज्मा देने का फैसला इसलिए किया क्योंकि मैंने सोचा कि अगर मैं अपने देश के के किसी काम आ जाऊं तो यह मेरी खुशकिस्मती है। एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते अगर मेडिकल काउंसिल मेरी बॉडी का कोई भी हिस्सा लेकर किसी भी तरह का कोई रिसर्च करना चाहे तो मैं उसके लिए भी तैयार हूं।’

नवभारत टाइम्स से बातचीत में उन्होंने कहा कि “मुझे नहीं पता कि मेरा प्लाज्मा किसे चढ़ाया गया है, वो कौन है, उसका क्या मजहब है? मैंने अपने किसी भाई के लिए प्लाज्मा डोनेट (Corona Plasma Therapy) किया है। मुझे खुशी है कि मेरा प्लाज्मा किसी के काम आ सका। यह महामारी पूरे देश को दर्द दे रही है। हम सभी का सिर्फ एक मकसद होना चाहिए कि हम इस बीमारी के खिलाफ जारी जंग जीतें। मुझे खुशी होगी कि कोरोना के रिसर्च या किसी भी ट्रायल में मेरा शरीर काम आ सके तो मैं देश के लिए हमेशा तैयार हूं”।

तबरेज बताते हैं कि प्लाज्मा डोनेट करना बहुत आसान था। कुल मिलाकर अस्पताल में दो घंटे का समय लगा जिसमें ब्लड टेस्टिंग, रिपोर्ट्स विश्लेषण और रक्त निकालकर उसमें से प्लाज्मा अलग करके बाकी रक्त वापस शरीर में डालने की सारी प्रक्रिया शामिल है। यही नहीं हॉस्पिटल ने लाने ले जाने का भी सारा इंतजाम खुद किया।

एनडीटीवी ने एक और प्लाज्मा डोनर से बात की जो अपनी पहचान जाहिर नहीं करना चाहते। यह सज्जन मार्च की शुरुआत में कोरोना संक्रमित हुए और लॉकडाउन से पहले ठीक हो गए। लेकिन ठीक होने के महीने भर बाद प्लाज्मा दान करने पहुंच गए। बताते हैं कि सुई चुभने भर का दर्द है प्लाज्मा डोनेशन और कुछ नहीं और देश के लिए इतना तो किया ही जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘अगर कोई ब्लड डोनेट कर चुका है तो वह जानता होगा कि एक सुई घुसती है आपके हाथ में बस उतना ही दिक्कत है और कुछ नहीं। हम घर बैठे-बैठे कुछ और नहीं कर सकते तो प्लाज्मा डोनेट करके उन लोगों को बचा सकते हैं जो कोरोना वायरस पॉजिटिव हो गए हैं।’

कुछ लोगों के मन में यह डर जरूर होता है कि कहीं प्लाज्मा डोनेशन करने जाएं और कोरोना संक्रमण दोबारा न हो जाए। दक्षिण दिल्ली के जिस ILBS अस्पताल में प्लाज्मा डोनेशन होता है उसके डायरेक्टर और प्लाज्मा थेरेपी ट्रायल का नेतृत्व करने वाले डॉ एसके सरीन बताते हैं, ‘जिस ILBS अस्पताल में प्लाज्मा डोनेशन होता है वहां अभी तक कोरोना का कोई मामला नहीं आया है और हमने ब्लड बैंक भी एक अलग एरिया में बनाया हुआ है जिसके चलते कोरोना के मरीज़ अस्पताल में ना आकर लगभग बाहर से बाहर ही ब्लड डोनेट करके चले जाते हैं इसलिए संक्रमण हो जाने जैसी कोई बात यहां नहीं है।’

(नवभारत टाइम्स और एनडीटीवी के पोर्टल से कुछ इनपुट लिए गए हैं।)

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