Friday, April 19, 2024

तन्मय के तीर

(लोकतंत्र को कीलतंत्र में बदलने वाली मोदी सरकार दरअसल अपने पितृ पुरुषों के बताए आदर्शों पर ही चल रही है। उन्हें न तो कभी अहिंसा रास आयी और न ही उन्होंने कभी गांधी को पसंद किया। जीवन भर उन्होंने शक्ति को ही सत्ता का प्रमुख स्रोत माना और हथियारों की पूजा की। अनायास नहीं ‘वीर भोग्या वंसुधरा’ उनका प्रमुख सूत्र वाक्य हुआ करता था। यह बात किसी को भूलनी नहीं चाहिए कि संघ ने हमेशा बुद्धि की जगह शारीरिक बल को प्राथमिकता दी। वह घर हो या कि परदेस चीजों को नापने और उसको तय करने का उसका वही पैमाना रहा है। लेकिन शायद वह भूल गया कि लोकतंत्र के भीतर यह सिद्धांत काम नहीं करता है।

एकबारगी अगर जनता खड़ी हो गयी तो फिर सत्ता की कितनी भी बड़ी ताकत हो उसे झुकना ही पड़ता है। वैसे भी लोकतंत्र में सत्ता का निर्माण जनता ही करती है। ऐसे में अपने द्वारा पैदा की गयी किसी चीज को खत्म करने का न केवल अधिकार बल्कि क्षमता भी उसी में है। लेकिन शायद यह बुनियादी बात मोदी सरकार को समझ में नहीं आ रही है। अब जब कि किसान गांधी के रास्ते पर चल रहे हैं तो सत्ता ने उनके साथ कील-कांटों और बैरिकेड्स के गोडसे खड़े कर दिए हैं। तब एक बार फिर वह पूरे आंदोलन को ताकत के बल पर दबाने की कोशिश कर रही है। लेकिन जनता कोई व्यक्ति नहीं बल्कि व्यक्तियों का समूह है। और ताकत के मामले में भी वह हर चीज पर भारी है। ऐसे में कहा जाए तो संघ के ताकत के दायरे में भी वह उसे परास्त करने की क्षमता रखती है। तन्मय त्यागी का नया कार्टून पेश है-संपादक)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

वामपंथी हिंसा बनाम राजकीय हिंसा

सुरक्षाबलों ने बस्तर में 29 माओवादियों को मुठभेड़ में मारे जाने का दावा किया है। चुनाव से पहले हुई इस घटना में एक जवान घायल हुआ। इस क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय माओवादी वोटिंग का बहिष्कार कर रहे हैं और हमले करते रहे हैं। सरकार आदिवासी समूहों पर माओवादी का लेबल लगा उन पर अत्याचार कर रही है।

शिवसेना और एनसीपी को तोड़ने के बावजूद महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ने वाली हैं

महाराष्ट्र की राजनीति में हालिया उथल-पुथल ने सामाजिक और राजनीतिक संकट को जन्म दिया है। भाजपा ने अपने रणनीतिक आक्रामकता से सहयोगी दलों को सीमित किया और 2014 से महाराष्ट्र में प्रभुत्व स्थापित किया। लोकसभा व राज्य चुनावों में सफलता के बावजूद, रणनीतिक चातुर्य के चलते राज्य में राजनीतिक विभाजन बढ़ा है, जिससे पार्टियों की आंतरिक उलझनें और सामाजिक अस्थिरता अधिक गहरी हो गई है।

Related Articles

वामपंथी हिंसा बनाम राजकीय हिंसा

सुरक्षाबलों ने बस्तर में 29 माओवादियों को मुठभेड़ में मारे जाने का दावा किया है। चुनाव से पहले हुई इस घटना में एक जवान घायल हुआ। इस क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय माओवादी वोटिंग का बहिष्कार कर रहे हैं और हमले करते रहे हैं। सरकार आदिवासी समूहों पर माओवादी का लेबल लगा उन पर अत्याचार कर रही है।

शिवसेना और एनसीपी को तोड़ने के बावजूद महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ने वाली हैं

महाराष्ट्र की राजनीति में हालिया उथल-पुथल ने सामाजिक और राजनीतिक संकट को जन्म दिया है। भाजपा ने अपने रणनीतिक आक्रामकता से सहयोगी दलों को सीमित किया और 2014 से महाराष्ट्र में प्रभुत्व स्थापित किया। लोकसभा व राज्य चुनावों में सफलता के बावजूद, रणनीतिक चातुर्य के चलते राज्य में राजनीतिक विभाजन बढ़ा है, जिससे पार्टियों की आंतरिक उलझनें और सामाजिक अस्थिरता अधिक गहरी हो गई है।