नई दिल्ली/ आगरा। आगरा कॉलेज के शिक्षक 25 मई से आंदोलन की राह पर हैं। वे कॉलेज परिसर में ही अनिश्चितकालीन धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। शिक्षकों का आरोप है कि कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अनुराग शुक्ल द्वारा ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियां पैदा कर दी गई हैं जिसकी वजह से शिक्षकों और स्टाफ को धरना प्रदर्शन करना पड़ रहा है। आज यानि मंगलवार को शिक्षकों को धरना देते 20 दिन हो गया है। लेकिन प्राचार्य अपनी हठधर्मिता छोड़ने को तैयार नहीं है। शिक्षकों ने प्राचार्य पर अपने प्रबंध समिति के सचिव पद का दुरुपयोग कर शिक्षकों के मध्य गुटबंदी को बढ़ावा देने, नियमानुसार परीक्षा कार्य न कराने, आकस्मिक अवकाश और ग्रीष्मकालीन अवकाश न देने और वित्तीय अनियमितता करने के आरोप लगाए हैं।
ऐसा नहीं है कि बीस दिनों में शिक्षकों और प्राचार्य के बीच मामले को हल करने के लिए बातचीत नहीं हुई। शिक्षकों और प्राचार्य के बीच मतभेद के मुद्दों पर कई बार बातचीत भी हुई। डॉ आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा के प्रो वीसी, कुल सचिव डॉ विनोद कुमार सिंह और परीक्षा नियंत्रक डॉ ओमप्रकाश ने धरनारत शिक्षकों और प्राचार्य के बीच मध्यस्थता करते हुए बातचीत कराई। लेकिन दोनों पक्षों में कोई समझौता नहीं हो सका। शिक्षकों का कहना है कि प्राचार्य अपना रवैया छोड़ने को तैयार नहीं हुए। जिससे बातचीत किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकी। जिसके चलते 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक के तापमान में शिक्षकों को धरना देना पड़ रहा है। शिक्षकों से बातचीत करके इस गतिरोध को तोड़ने की कौन कहे प्राचार्य डॉ. अनुराग शुक्ल ने धरना स्थल से शिक्षकों द्वारा लगाए गए पोस्टर और कूलर को हटवा दिया और शौचालय पर ताला लगवा दिया। अब वह धरनास्थल पर तीन सीसीटीवी कैमरे लगवा कर वहां आने-जाने वाले शिक्षकों की निगरानी कर रहे हैं।
देश के ऐतिहासिक कॉलेजों में शुमार आगरा कॉलेज इस समय विवादों के केंद्र में है। कॉलेज का एक गौरवमयी इतिहास रहा है। 1823 में स्थापित इस कॉलेज के नाम अकादमिक जगत के साथ ही समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अभूतपूर्व उपलब्धियां रही हैं। प्रसिद्ध वकील सर तेज बहादुर सप्रू, पूर्व उप-राष्ट्रपति गोपाल स्वरूप पाठक, पूर्व उप-प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नंदा, चौधरी चरण सिंह और जस्टिस एसके धर जैसी शख्सियतों ने आगरा कॉलेज से शिक्षा लेकर देश भर में इसका मान बढ़ाया। लेकिन अब कॉलेज प्राचार्य ही कॉलेज की गौरवगाथा को धूमिल करने में लगे हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि कॉलेज के प्राचार्य और शिक्षकों के बीच ऐसा क्या विवाद है कि 20 दिनों से धरना चल रहा है। दरअसल इसके पीछे शिक्षकों के साथ परीक्षा ड्यूटी, अवकाश देने में मनमानी, वरिष्ठ शिक्षकों की उपेक्षा, कॉलेज फंड और संसाधनों की फिजूलखर्ची शामिल है। लेकिन इन सबके बीच प्राचार्य ने परीक्षा ड्यूटी से अनुपस्थित रहे शिक्षकों को नोटिस भेजकर मामले को और उलझा दिया। उच्च शिक्षा मंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार, को भेजे गए पत्र में उन्होंने परीक्षाकार्य न करने वाले शिक्षकों के वेतन का जिक्र करते हुए शिकायत किया है। शिक्षकों ने प्राचार्य के इस कृत्य को गैर-कानूनी बताया है।
लेकिन प्राचार्य अनुराग शुक्ल कहते हैं कि कोई शिक्षक कितान वेतन पाता है, इसका जिक्र करके हमने कोई गलत नहीं किया है। यह हर कोई जानता है कि किसका कितना वेतन हैं। हर कोई काम का पैसा पाता है। लेकिन उक्त शिक्षक अपनी ड्यूटी से नदारद रहे। जोकि गलत है।
कॉलेज शिक्षकों के बीच फूट डालने की राजनीति ने माहौल को बिगाड़ दिया है। दरअसल, 25 फरवरी, 2023 को आगरा कॉलेज शिक्षक संघ का चुनाव हुआ। आगरा कॉलेज का शिक्षक संघ ‘स्टाफ क्लब’ के नाम से जाना जाता है। स्टाफ क्लब के चुनाव में पहले प्राचार्य ने कुछ प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार किया। नए शिक्षकों पर अपने प्रत्याशियों के पक्ष में वोट डालने के लिए दबाव डाला। लेकिन जब प्राचार्य समर्थित सभी प्रत्याशी हार गए तो वह स्टाफ क्लब को सबक सिखाने की ठान ली। उन्होंने एक शिक्षक पर दबाव डाल कर स्टाफ क्लब का केनरा बैंक का खाता बंद करा दिया। और 18 अप्रैल, 2023 को रजिस्ट्रार फर्म सोसायटी एंड चिट्स को पत्र लिखकर हारे हुए प्रत्याशियों के पक्ष में प्रमाणपत्र / अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी कर दिया। जबकि 25 फरवरी को हुए चुनाव में जीते हुए प्रत्याशियों को प्राचार्य ने बधाई दी थी। यानि आगरा कॉलेज के प्राचार्य ने एक नया शिक्षक संघ तैयार कर दिया।
प्राचार्य के इस कदम पर बीसवीं सदी के प्रसिद्ध जर्मन कवि, नाटककार और नाट्य निर्देशक बर्तोल्त ब्रेख़्त की 1953 में लिखी गई एक सर्वकालिक कविता की पंक्तियां याद आती है : ‘सत्रह जून के विप्लव के बाद /लेखक संघ के मंत्री ने /स्तालिनाली शहर में पर्चे बांटे/ कि जनता सरकार का विश्वास खो चुकी है /और तभी पा सकती है यदि दोगुनी मेहनत करे/ ऐसे मौक़े पर क्या यह आसान नहीं होगा /सरकार के हित में / कि वह जनता को भंग कर कोई दूसरी चुन ले !’
आगरा कॉलेज में आजकल ऐसा ही हो रहा है। प्राचार्य डॉ अनुराग शुक्ल ने अपने अनुकूल नया शिक्षक संघ चुन लिया है। यह सब वह अपने राजनीतिक आका को खुश करने के लिए कर रहे हैं।
डॉ. भीमराव आंबेडकर से संबद्ध और शहर के सबसे पुराने महाविद्यालय के इतिहास में पहली बार किसी प्राचार्य के खिलाफ शिक्षकों ने मोर्चा खोला है। शिक्षकों का आरोप है कि प्राचार्य की ओर से स्टाफ क्लब के नाम पर एक ऐसे एनजीओ का पंजीकरण कराया गया है। जिसके संविधान में बाहरी लोगों को भी पांच लाख रुपये देकर सदस्य बनाने का प्रावधान रखा गया है। इस समानांतर स्टॉफ क्लब को भवन हस्तांतरित करना भी शंका पैदा करता है।
महाविद्यालय की दीवारों पर प्राचार्य के खिलाफ उनकी योग्यता और वित्तीय अनियमितताओं के आरोप वाले पोस्टर चिपकाए गए हैं। शिक्षकों का आरोप हैं कि प्रबंध समिति के मना करने के बावजूद प्राचार्य ने 160 अलमारी को खरीदा, जिसकी कॉलेज को आवश्यकता नहीं थी। और अलमारियों को हर विभाग में भेज दिया गया, जहां वह धूल फांक रही हैं।
फुफुक्ता के अध्यक्ष डॉ वीरेंद्र सिंह चौहान कहते हैं कि आगरा कॉलेज में प्राचार्य द्वारा शिक्षकों के साथ गैर जिम्मेदाराना व्यवहार की वजह से पहली बार कॉलेज में 200 वर्ष के इतिहास में शिक्षक समुदाय और स्टाफ क्लब को धरना देना पड़ रहा है। उन्होंने स्टाफ के संघर्ष को समर्थन देते हुए प्राचार्य को तानाशाही का रवैया छोड़ने का आग्रह और प्राचार्य अनुराग शुक्ल पर महाविद्यालय में गुटबाजी को बढ़ावा न देने और सामंजस्य स्थापित करते हुए स्टाफ क्लब की मांगों पर विचार करने के लिए कहा।
प्रदर्शन में शामिल स्टाफ क्लब के सचिव डॉ वीके सिंह ने कहा कि प्रदेश के सबसे बड़े महाविद्यालय में यदि प्राचार्य द्वारा तानाशाही की जाएगी तो इसका प्रतिकूल असर प्रदेश के महाविद्यालय में शिक्षकों की स्थिति पर पड़ेगा।
आगरा कॉलेज के प्रबंध समिति का मैनेजर आगरा का कमिश्नर होता है। स्टॉफ क्लब के सचिव प्रो. विजय कुमार सिंह और शिक्षकों ने आगरा कमिश्नर से प्राचार्य को प्रबंध समिति सचिव पद से बर्खास्त करने की मांग की है। प्राचार्य के रूप में दी जा रही सुविधाएं जैसे कि ड्राइवर, गनर, रसोईया, मनोरंजन भत्ता एवं सुरक्षा कर्मी आदि को भी समाप्त करने की मांग की। संगठन ने कहा कि इस संबंध में मंडलायुक्त आगरा एवं उच्च शिक्षा मंत्री को ज्ञापन सौंपा जाएगा।
आगरा कॉलेज के प्राचार्य अनुराग शुक्ल ने शिक्षकों द्वारा लगाए गए सभी आरोपों को खारिज किया है। जनचौक से बात करते हुए उन्होंने कहा कि वरिष्ठ शिक्षकों का अपमान करना मेरे संस्कार में नहीं है। जहां तक शिक्षकों के बीच फूट डालने या बहकाने का आरोप है, शिक्षक सबसे प्रबुद्ध वर्ग है, उसे कोई बहका नहीं सकता है। स्टाफ क्लब के शिक्षकों ने शिक्षक संघ के चुनाव में कुछ शिक्षकों के साथ पक्षपात और दुर्व्यहार किया, जिसके कारण उन्होंने दूसरा शिक्षक संघ बना लिया। धरनारत शिक्षक मुझे बदनाम करने के लिए निराधार आरोप लगा रहे हैं।
(प्रदीप सिंह जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)