Thursday, April 18, 2024

ग्राउंड रिपोर्ट: हरियाणा के ककराणा में दलितों के मंदिर में प्रवेश को लेकर बवाल

हरियाणा के रोहतक जिले का एक गांव ककराणा, जो रोहतक की दक्षिण दिशा में 11 किलोमीटर की दूरी पर कलानौर तहसील का हिस्सा है। ककराणा गांव की, देश की राजधानी नई दिल्ली से दूरी महज 70 किलोमीटर और नेशनल हाईवे 9 से यह 6 किलोमीटर दूर है। गांव की जनसंख्या 4500 के आस-पास व वोट 2500 के लगभग है। गांव में बहुमत ब्राह्मणों का है जो 80 प्रतिशत हैं। इसलिए गांव के स्वागत गेट पर लिखा है “ब्रह्मनगरी ककराणा में आपका स्वागत है।”

कलानौर तहसील में दलित जातियों के पास मौजूदा कृषि जमीन के आंकड़े चिंतनीय हैं। कृषि गणना 2015-16 के अनुसार कलानौर तहसील में दलितों के पास 263 कृषि जोतें थीं। जो कुल 14789 कृषि जोतों का 1.77 प्रतिशत बनता है। कलानौर तहसील के दलितों के पास मात्र 375 एकड़ जमीन है जो तहसील की कुल 61355 एकड़ जमीन का 0.61 प्रतिशत है।

ककराणा गांव में 1455 एकड़ कृषि जमीन है लेकिन गांव की दलित जाति जिसमें चमार व वाल्मीकि शामिल हैं, 10 प्रतिशत के आस-पास हैं। इसके साथ ही ओबीसी जातियों में कुम्हार, नाई, लोहार, सैयामी हैं। उनके पास कृषि जमीन शून्य है। वहीं दूसरी तरफ गांव में ब्राह्मणों के पास खेती की 1455 एकड़ जमीन है। पिछड़ी व दलित जातियों में सरकारी जॉब भी नगण्य है। दलितों के पास कृषि जमीन न होने के कारण उनको आजीविका के लिए तथाकथित उच्च जातियों की जमीनों पर मजदूरी के लिए आश्रित रहना पड़ता है। इसी कारण पीढ़ी दर पीढ़ी दलित शोषण का शिकार होता चला आ रहा है। इसके अलावा निर्माण मजदूरी, प्राइवेट कंपनियों में काम या कुम्हार जाति से जुड़े कुछ परिवार खच्चर रेहड़ी से तूड़ी बेचने-खरीदने का काम करते हैं।

गांव में 12वीं तक स्कूल है। गांव में 2 मंदिर बने हुए हैं। इन्हीं मंदिर विवाद के कारण आजकल ककराणा गांव सुर्खियों में आया हुआ है। गांव में एक प्राचीन शिव मंदिर है। इस मंदिर में गांव की दलित जातियों को आने की इजाजत नहीं है। दलित जातियों को मंदिर प्रवेश को लेकर गांव में लंबे समय से तनाव बना हुआ है।

गांव के नौजवान हेमंत उर्फ राहुल जो प्रगतिशील आंदोलन से जुड़े हुए हैं। हेमंत को भी मन्दिर में दलित होने के कारण जाने की इजाजत नहीं है। इसलिए हेमंत ने इस असमानता व अमानवीय परम्परा के खिलाफ बोलना व लोगों से बात करना शुरू किया। लेकिन जैसे-जैसे ये चर्चा लोगों मे बढ़ रही थी। वैसे-वैसे बहुमत ब्राह्मण जाति में हेमंत के खिलाफ नाराजगी व गुस्सा बढ़ रहा था। हेमंत को जब सभी जगह बात करने के बाद निराशा हाथ लगी तो उसने 2 नवंबर, 2021 को मंदिर में प्रवेश करने का ऐलान किया। जब ऐलान किया उस दिन से 2 नवंबर में 45 दिन बाकी थे। मन्दिर में प्रवेश करने का ऐलान करते ही गांव में खलबली मच गई।

ब्राह्मण जाति के लोग एकजुट होने लगे। हेमंत के खिलाफ झूठे प्रचार किये जाने लगे। हेमंत के ऊपर 1 करोड़ की चोरी का आरोप है जो मामला अभी कोर्ट में विचाराधीन है, अभी हेमंत जमानत पर बाहर है। इस चोरी के आरोप को आधार बनाकर तरह-तरह की अफवाहें हेमंत के खिलाफ फैलाई जाने लगीं। इसके साथ ही गांव में पंचायतों का दौर शुरू हो गया। इन सभी पंचायतों में गांव की परंपरा को न केवल तोड़ने का ही फैसला लिया गया बल्कि सभी में हेमंत के खिलाफ दुष्प्रचार किया गया।

31 अक्टूबर को जब हमने फोन पर हेमंत से बात की तो उसने हमको बताया कि गांव में तनाव बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ है। दलित बस्ती पर कभी भी हमला हो सकता है। गांव के ब्राह्मण पंचायत करके डर का माहौल बना कर दबाव बना रहे हैं। इसके साथ ही हेमंत ने मंदिर जाने के सवाल पर कहा कि मंदिर में मेरी आस्था है या नहीं सवाल ये नहीं है। सवाल समानता, संवैधानिक अधिकार का है। गांव में सार्वजनिक मन्दिर जिसमें कुत्ता, बिल्ली जा सकता है। लेकिन गांव के दलित लोगों को नहीं जाने दिया जाता है। इसलिए मन्दिर प्रवेश उसका व उसके दलित समाज के आत्मसम्मान की लड़ाई है।

हेमंत ने हमको बताया कि मंदिर में ही प्रवेश वर्जित नहीं है इसके साथ में सार्वजनिक नलकूप से पानी भरना भी वर्जित है। गांव की श्मशान भूमि में भी दलितों के लिए अलग व ब्राह्मणों के लिए अलग जगह है। 20 साल पहले गांव के ही संजय जो चमार जाति से थे, ने मंदिर जाने की बात की थी उस समय भी गांव में हंगामा हुआ था। उसके बाद गांव में नए मंदिर की 2001 में नींव रखी गयी। ये मन्दिर बजट की कमी के कारण 2017 में बनकर तैयार हुआ। नए बने मंदिर में सबको जाने की अनुमति है। संजय का परिवार उसके बाद से गांव छोड़ कर रोहतक रहता है। संजय की बीमारी से मौत हो चुकी है।

इस बारे में जब हमने 31 अक्टूबर को गांव के सरपंच हरि भगवान से फोन पर बात की तो उन्होंने सभी आरोपों को नकारते हुए कहा कि गांव में माहौल शांत है। गांव के मंदिर में सभी जातियों को प्रवेश करने दिया जाता है। सिर्फ हेमंत जो एक अपराधी है उसको मंदिर में आने से रोका गया है, क्योंकि मंदिर में बेशकीमती सोने के आभूषण हैं। इसलिए गांव के मंदिर में उसके आने पर पाबंदी है। सरपंच ने मंदिर के गांव का सार्वजनिक मंदिर होने से ही इंकार कर दिया। उन्होंने मंदिर को कुछ ब्राह्मण परिवारों का निजी मंदिर बताया।

जब हमने काहनोर चौकी इंचार्ज सब इंस्पेक्टर सुरेश कुमार से बात की तो उन्होंने भी सरपंच जैसा ही जवाब दिया। उन्होंने भी हेमंत व दलितों के संवैधानिक अधिकार की रक्षा करने की बजाए संविधान विरोधी कार्य करने वाले लोगों का साथ दिया। सुरेश ने भी मंदिर को कुछ ब्राह्मण परिवारों का निजी मंदिर बताया।

एक नवंबर को कलानौर थाने में पुलिस की मौजूदगी में पंचायत हुई जिसमें ब्राह्मणों की तरफ से साफ बोल दिया गया, किसी भी दलित को मंदिर प्रवेश किसी भी हालात में नहीं करने दिया जायेगा, चाहे इसके लिए लाशें बिछानी पड़ जाएं। ये सब पुलिस की मौजूदगी में हो रहा था। लेकिन पुलिस दलितों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करने की बजाए संविधान का उल्लंघन करने वालों का चुप रह कर साथ ही दे रही थी। पुलिस ब्राह्मणों को मनाने की बजाए या कार्रवाई करने के बजाए हेमंत पर ही दबाव बना रही थी कि वो मंदिर जाने के फैसले से पीछे हट जाए। लेकिन दोनों पक्ष अपने फैसलों पर अडिग रहे।

2 नवंबर को जब जनचौक की टीम गांव में कवरेज करने पहुंची तो उसे गांव से दो किलोमीटर पहले ही लगा पुलिस का चेक पोस्ट दिखा। पुलिस बाहर से गांव आने-जाने वालों से पूछताछ कर रही थी। जब इस बारे में चेक पोस्ट पर तैनात ड्यूटी ऑफिसर से बात की गयी तो उन्होंने बताया कि मंदिर में प्रवेश करने के लिए हेमंत के समर्थन में बाहर से लोग न आयें उनको रोकने के लिए ये चेक पोस्ट बनाई गई है। पुलिस ने गांव के सभी कच्चे-पक्के रास्तों पर ऐसे ही चेक पोस्ट बनाये हुए थे। इन पंक्तियों के लेखक से भी पुलिस ने पूछताछ की। मेरा जनचौक न्यूज का पहचान पत्र देखा। जब उनको ये विश्वास हो गया कि मैं पत्रकार हूँ तभी उन्होंने मुझे गांव में जाने दिया।

गांव के 100 मीटर अंदर जाते ही बाएं तरफ एक तंग गली जा रही थी उस गली के आखिरी में हेमंत का मकान था। घर में हेमंत की मां, उसके पापा, छोटा भाई व बहन के अलावा उसकी चाची व चाची का लड़का मौजूद थे। वो सभी बुरी तरह डरे हुए थे।

हेमंत की मां निर्मला जी ने बताया कि पुलिस 1 तारीख की रात 11 बजे हेमंत व उसकी बुआ के लड़के सुमित को घर से ये बोल कर लेकर गयी थी कि पुलिस अधीक्षक उनसे मीटिंग करना चाहते हैं। जब सुबह DSP से फोन करके हेमंत व सुमित के बारे में मालूम किया तो DSP ने साफ-साफ जवाब देने की बजाए कहा कि मालूम करके बताऊंगा की कौन सा थाना इंचार्ज लेकर गया है।
हेमंत की बहन प्रिया ने बताया कि मेरे भाई पर लगाए गए सभी आरोप बेबुनियाद हैं। हम सब समानता व संवैधानिक अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। जब पंचायती लोग गांव में एकता और भाईचारे की बात करते हैं तो फिर मंदिर में क्यों नहीं घुसने दिया जाता। दलित समाज के लिए, पानी पर भी पाबंदी क्यों है, श्मशान में भी अलग-अलग जगह है? ऐसा क्यों? हेमंत के पापा सुरेश ने भी प्रिया की बातों पर सहमति दी।

हेमंत के चाचा के लड़के नीरज ने बताया कि हमने 2 नवंबर को जातिवादी मानसिकता के खिलाफ, गांव के प्राचीन मंदिर में जाने व सभी सामाजिक प्रतिबन्ध जो दशकों से चले आ रहे हैं, उनको तोड़ने के लिए गांव में विरोध मार्च निकालने का फैसला लिया ता और इसके साथ ही मंदिर प्रवेश का ऐलान किया था लेकिन दूसरे पक्ष ने 2 तारीख को मंदिर में परशुराम जयंती मनाने का फैसला कर दिया। जबकी 2 नवंबर के आस-पास कोई परशुराम जयंती नहीं होती है। परशुराम जयंती के नाम पर गांव के मंदिर के सामने महिलाओं व नौजवानों को लाठी-डंडे लेकर बैठाया हुआ है। ब्राह्मणों द्वारा पुलिस बल की मौजूदगी में दलितों की बस्तियों से गुजरते हुए लाठी, जेली, रॉड लेकर शक्ति प्रदर्शन किया जा रहा है। गांव में माहौल बहुत ज्यादा खराब है। हेमंत के छोटे भाई रवि जो लॉ की पढ़ाई कर रहा है, ने अपने भाई की अवैध हिरासत पर चिंता जाहिर करते हुए बताया कि गांव में पुलिस की मोजूदगी में ही ये शक्ति-प्रदर्शन हो रहा है। प्रशासन कार्रवाई करने के बजाए तमाशा देख रहा है।

गांव की पंचायत सदस्य दर्शना ने सरपंच के बयान के विपरीत बताया कि गांव के किसी भी दलित को मंदिर में जाने की इजाज़त न कभी पहले थी और न आज है। इसके साथ ही श्मशान भूमि में भी जगह अलग-अलग है, पानी भरने पर भी एतराज किया जाता है। गांव के माहौल पर चिंता व डर जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि गांव का मंजर देख कर लग रहा है कि हमारे घरों पर किसी समय भी हमला हो सकता है।

चमार जाति के बहुत से लोगों ने ये कहते हुए बात करने से मना कर दिया कि अगर हमने पत्रकार से बात की तो हमको भविष्य में ब्राह्मणों की तरफ से समस्या आ सकती है। उन्होंने कहा कि सागर में रह कर हम मगरमच्छ से बैर नहीं कर सकते हैं। इसलिए “हमारी चुप्पी ही हमारी सुरक्षा है।”
गांव के ही चमार जाति के रामनिवास ने बताया कि मंदिर सार्वजनिक है, गांव की पंचायत भूमि पर बना हुआ है। कुछ लोगों ने इस मंदिर को निजी बनाया हुआ है।

जब मैंने सवाल किया कि मंदिर में किसका प्रवेश है और किस का प्रवेश वर्जित है तो रामनिवास ने बताया कि दलित जातियों को छोड़ कर सभी जातियों को जाने की अनुमति है। गांव के दलित मंदिर में जाना तो चाहते हैं लेकिन उनको जाने नहीं दिया जाता है। इस डर के चलते कि कहीं कोई दंगा-फसाद न हो जाये, दलित मंदिर जाने का नाम लेने से ही डरते हैं। गांव के माहौल पर चिंता जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि माहौल डरावना बना हुआ है। पुलिस 2-3 दिन रह जायेगी उसके बाद तो हमको इसी माहौल में रहना है इसलिए हम चुप हैं।

बस्ती के बुजुर्ग करतार सिंह जिनकी उम्र 75 साल थी, जो पेशे से राजमिस्त्री रहे हैं। उन्होंने बताया कि गांव का बहुमत हमारे खिलाफ एकजुट है। जिसके चलते हम सभी डरे हुए हैं। पुलिस की मौजूदगी में दलितों को डराया जा रहा है। हमारा घर से बाहर निकलना भी मुश्किल हो गया है वो सब खुलेआम लठ लेकर घूम रहे हैं। 1 नवंबर को बस्ती में धमका कर दलितों से समझौते पर हस्ताक्षर करवाये गए हैं। ब्राह्मण महिलाएं भी दलितों को सुना कर बोलती हैं कि लठ मारेंगे, मन्दिर की तरफ देखा भी तो। केस करोगे तो, केस लड़ने के लिये पैसा हमने इकठ्ठा किया हुआ है। मंदिर के सवाल पर उन्होंने बताया कि न मेरे दादा कभी मंदिर में गए न कभी मेरे पापा गए और न कभी मैं गया। ये ब्राह्मण किसी को भी मंदिर में जाने नहीं देते हैं।

मंदिर किसने बनाया है व किसकी भूमि पर बना इसका जवाब देते हुए उन्होंने बताया कि मंदिर पुराने समय में मस्जिद होती थी मुस्लिमों के जाने के बाद इसको मंदिर बनाया गया। गांव के अलग-अलग ब्राह्मणों ने अलग-अलग समय पर इसके अलग-अलग हिस्से को बनवाया है।
बस्ती की ही दलित बुजुर्ग महिला 70 वर्षीय संतरा ने बताया कि गांव की ब्राह्मण महिलाएं कह रही हैं, इन दलितों को मार दो, इनकी सानी बना दो। मैंने कहा कि बना दो सानी, सानी भी कोई तो उठाएगा ही।

मंदिर जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि न किसी ने हमको मंदिर दिखाया न देखने दिया। मंदिर के पास से भी जब गुजरते हैं तो ब्राह्मण महिलाएं बोलती हैं, हमारा मंदिर है। शादी या तीज त्योहार मंदिर की पूजा करते हो या नहीं इस सवाल पर संतरा जी ने बताया कि हम दादा भईया, माता की धोक मारते व मन्दिर के बाहर गली में ही धोक-पूजा कर वापस आ जाते हैं। मंदिर के अंदर नहीं जाने दिया जाता है।

बस्ती के ही नौजवान मजदूर प्रदीप ने बताया कि उसने मंदिर में 15 दिन मजदूरी का काम किया है। जब हनुमान की मूर्ति बनी उस समय वो मंदिर में मजदूरी का काम करते थे। उस समय किसी ने एतराज नहीं किया। लेकिन मंदिर में पूजा करने का अधिकार कभी नहीं दिया गया। उसने बताया कि मंदिर में बड़ा सा शिवाला है, राधा-कृष्ण, श्याम बाबा की मूर्तियां लगी हुई हैं। जिसने ये मंदिर बनवाया उनके अलग-अलग नेम प्लेट भी लगे हुए हैं।

प्रदीप ने ये भी बताया कि जब मजदूर मतलब दलित से काम करवाते हैं, उसके बाद काम पूरा होते ही मंदिर को गंगा जल का छिड़काव करके शुद्ध किया जाता है।

गांव के वाल्मीकि जाति या OBC जातियों से संबंधित परिवारों से हमारी बात नहीं हो सकी क्योंकि गांव में पत्रकारों को कहीं भी जाने नहीं दिया जा रहा था। गांव की गलियों में लठ, जेली, रॉड लिये 15 साल से 70 साल तक के जातिवादी गुंडे सरेआम घूम रहे थे। पुलिस ये सब मूक दर्शक बनकर तमाशा देख रही थी। पुलिस ड्यूटी ऑफिसर ऐसे गुंडों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाए उनके घरों में बैठ कर चाय-बिस्किट का आनन्द ले रहे थे। जातिवादी गुंडों द्वारा हमें साफ बोल दिया गया, अगर इस दलित बस्ती की गली से बाहर आये तो अंजाम बुरा होगा। मूक नायक नाम से you tube न्यूज चलाने वाले पत्रकारों को भी धमकाया गया। उनको भी साफ-साफ बोल दिया गया कि एक भी वीडियो मत बनाना नहीं तो अंजाम ठीक नहीं होगा।

मुझे CID कर्मियों ने भी कहा कि यहां कुछ भी हो सकता है इसलिए अपनी सुरक्षा में ही बचाव है। लेकिन इस सबके बावजूद हम कुछ वीडियो उस खुली दहशतगर्दी की बनाने में कामयाब रहे।
हम ककराणा गांव से रोहतक आये, वहां आकर जब हमने रोहतक पुलिस अधीक्षक उदय सिंह मीणा से फोन पर बात की व गांव के बारे में चिंता जाहिर की तो उन्होंने मुझे बताया कि उसने अभी गांव के वीडियो देखें हैं। गांव में माहौल शांत है।

हेमंत उर्फ राहुल।

लेकिन जब मैंने पुलिस अधीक्षक को अपने पास मौजूद वीडियो देखने का आग्रह किया तो उन्होंने हमारे भेजे वीडियो देखे। वीडियो देखने के बाद पुलिस अधीक्षक ने एक घण्टे में सब ठीक करने का आश्वासन दिया। पुलिस अधीक्षक की कार्यवाही के बाद गांव में माहौल शांत हुआ व गांव के ब्राह्मणों की तरफ से ही मंदिर के रेडियो से अनाउंस किया गया कि गांव के सभी नागरिक चाहे वो किसी जाति से हैं वो मंदिर में आ सकते हैं। पुलिस अधीक्षक को दिखाने के लिए कुछ दलितों को मंदिर में प्रवेश कराने का भी ड्रामा किया गया। रिपोर्ट लिखे जाने तक एकबारगी गांव में माहौल शांत हो चुका था। हेमंत व सुमित को पुलिस ने छोड़ दिया था।

इस पूरे मामले के बाद हरियाणा में एक बार फिर दलितों के हालात, उनके संवैधानिक अधिकार, जातीय उत्पीड़न, सत्ता व प्रशासन का दलित जातियों के मुद्दों पर व्यवहार व सामाजिक न्याय पर चर्चा चल निकली है।

हरियाणा के लगभग सभी छद्म दलित एक्टिविस्ट को भी ककराणा गांव के मसले ने उनके चेहरे से नकाब उतार दिया है। जिस समय हेमंत व उसके परिवार व गांव के दलितों को दलित एक्टिविस्ट के साथ की जरूरत थी ठीक उस समय साथ खड़े होने की बजाए हेमंत को ही मन्दिर प्रवेश के मसले पर भला-बुरा कह रहे थे। एक बसपा नेता तो हेमंत के घर 3 तारीख को गया सबसे पहले तो उसने परिवार के लोगों को ऐसे फैसलों के लिए भला-बुरा कहा। फिर भविष्य के लिए बहन मायावती के हाथ मजबूत करने की बात की, क्या ऐसे नेता दलितों का साथ देंगे?

कालाराम मन्दिर सत्याग्रह 2 मार्च 1930 को भीमराव आम्बेडकर द्वारा अछूतों के मन्दिर प्रवेश के लिए चलाया गया आंदोलन था। नासिक के कालाराम मन्दिर में यह सत्याग्रह हुआ था। क्योंकि भारत देश में हिन्दुओं में ऊंची जातियों को जहां जन्म से ही मन्दिर प्रवेश का अधिकार था लेकिन हिन्दू दलितों को यह अधिकार प्राप्त नहीं था। इस सत्याग्रह में करीब 15 हजार दलित लोग शामिल हुए थे, जिनमें ज्यादातर महार समुदाय के थे और अन्य मांग व चमार समुदायों से थे। महिलाओं की इसमें भारी संख्या थी। 5 वर्ष 11 महीने एवं 7 दिन तक यह सत्याग्रह चला था।

भीमराव आम्बेडकर ने कहा था, “हिन्दू इस बात पर भी विचार करें कि क्या मन्दिर प्रवेश हिन्दू समाज में दलितों के सामाजिक स्तर को ऊंचा उठाने का अन्तिम उद्देश्य है ? या उनके उत्थान की दिशा में यह पहला कदम है ? यदि यह पहला कदम है, तो अन्तिम लक्ष्य क्या है ? यदि मन्दिर प्रवेश अन्तिम लक्ष्य है, तो दलित वर्गों के लोग उसका समर्थन कभी नहीं करेंगे। दलितों का अन्तिम लक्ष्य है सत्ता में भागीदारी।’’

ककराणा गांव की घटना न कोई पहली घटना है और न आखिरी। ये सदियों से चली आ रही जातीय नफरत के खिलाफ संघर्ष है। जब आप अपने आस-पास नजर घुमा कर देखेंगे तो आपको ऐसी जातीय नफरत महसूस हो जाएगी। हरियाणा तो ऐसी जातीय नफरतों के लिए गिनीज बुक में नाम दर्ज करवाने की लाइन में खड़ा है। दुलीना, हरसौला, गोहाना, मिर्चपुर, भगाना, डाबड़ा, भाटला, ककराणा ऐसी तमाम जगह जहां जातीय नफरत ने अपना जहर उगला है व दलितों को अपनी जातीय नफरत का शिकार बनाया है।

(जनचौक संवाददाता उदय चे की रिपोर्ट।)

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