ग्राउंड रिपोर्ट: डबल इंजन की सरकार में विकास से छिटके बनारस के मुसहर, बदहाली और उपेक्षा में गुजार रहे जीवन

वाराणसी। बेकल उत्साही का एक शेर है…

‘बीच सड़क इक लाश पड़ी थी और ये लिक्खा था

भूक में ज़हरीली रोटी भी मीठी लगती है ।’  

शायद …..भूख ऐसी चीज ही होती होगी, जिसमें जहरीली रोटी भी मीठी लगती है। बहरहाल, आज भी इंसान की तीन महत्वपूर्ण मूलभूत जरूरतों में रोटी, कपड़ा और मकान है। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि जहां 21वीं सदी में देश-विदेश में विकास और अविष्कार की आंधी चल रही है। ऐसे में भला कौन जिला-जवार के बाशिंदे होंगे, जो आज भी परिवार की दो वक्त की रोटी के लिए 12 घंटे धूप, बारिश और कड़ाके की ठंड में पसीना बहा रहे होंगे ? 

तिस पर हादसों और विकलांगता का जोखिम अलग से। जीतोड़ परिश्रम के बाद उन्हें दो वक्त की रोटी तो मिल जाती है, लेकिन नहीं मिलती है तो आम इंसान की तरह गुजर-बसर करने वाला सुकून भरा जीवन। जी हां, हम बात कर रहे हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की। ये वही स्मार्ट सिटी वाराणसी है, जिसकी मुनादी अखबार में छपे महंगे इश्तिहार और चौक-चौराहों पर लगे होर्डिंग-बैनर करते हैं। 

स्मार्ट सिटी बनारस के काशी विद्यापीठ ब्लॉक स्थित पिलखुरी (करौता) गांव के मुसहर समाज की। इनके समाज के प्रत्येक व्यक्ति की सुबह रोटी की जुगत में शुरू होती है और रोटी पर जाकर जीवन की सांझ ढ़लती है। अधिकारियों के एसी कमरों से योजनाओं की फाइलें बाहर आईं, आंदोलन, कई जनप्रतिनिधि, कितनी सरकारें आईं और रेत की तरह भरभरा गईं, कई पीएम-सीएम व एमपी-एमएलए ने समय-समय पर तकदीर बदलने का दावा भी ठोंका था, जो हवा-हवाई ही रह गया। मसलन, उनका जीवन आज भी बगैर छत वाले मकान की तरह हैं। पेश है रिपोर्ट … 

वाराणसी जिला मुख्यालय से महज 14 से 15 किमी की दूरी पर स्थित काशी विद्यापीठ ब्लॉक स्थित पिलखुरी (करौता) गांव के पास एक आम का बड़ा बगीचा है बगीचे से लगे उत्तर दिशा में 10 घर और दक्षिण तरफ में 20 घर मुसहर समाज के लोग रहते हैं, जिनकी आबादी तकरीबन दो सौ है। उत्तर वाली बसाहट तारकोल के सड़क से लगी और ऊंचाई पर स्थित है। वहीं, रोड के दक्षिण दिशा में मुसहर समाज के लोगों के घर खेतनुमा जोत में बने हुए हैं। इनके घरों के पास से नहर गुजरती है। बारिश को छोड़ अन्य मौसम में आवागमन तो ठीक ढंग से हो जाता है, लेकिन बारिश के मौसम में इन खेतों में पानी भर जाता है और रास्ता कीचड़ से सन जाता है। इस पर चलना भी दूभर हो जाता है। आषाढ़ में उफना कर आयी नहर से तस्वीर और भयावह हो जाती है। कई बार प्रधान और अधिकारियों से शिकायत करने के बाद भी पिलखरी-उतराजपुर गांव के मुसहर उपेक्षा का दंश झेल रहे हैं।

बनारस के पिलखरी-उतराजपुर गांव के मुसहर बस्ती का कुपोषित बच्चा।

जनचौक की टीम जब पिलखुरी (करौता) गांव के मुसहर बस्ती में पहुंचती है तो एक  निर्वस्त्र बच्चा एक कटोरी में बासी भात (पका चावल) घूम-घूम कर खा रहा था। आस-पास चार से पांच फुट ऊंची ईंट की दीवारें गिलावा (मिट्टी-कीचड़) से तैयार की गई थीं। इन पर घास-फूस और सीमेंट का पुराने करकट (टिन शेड) डला हुआ था। अधिकतर लोगों के आवास प्राय: ऐसे ही बने हुए थे। थोड़ी ही दूरी पर मीरा हवा में चावल ओसा (चावल से भूसी अलग करने की प्रक्रिया) रही थीं। जो बंटाई पर खेती करने से फसल के आधे हिस्से के तौर पर इनके पति को मिला हुआ है। मीरा बताती हैं कि ‘तकरीबन दो सौ लोगों की बस्ती में सिर्फ एक को कई साल पहले सरकार द्वारा रसोई गैस सिलेंडर मिला था। आज की तारीख में किसी के पास रसोई गैस की सुविधा नहीं है। मेरे पति दिनभर में 200 रुपए कमा लेते हैं। इसी में जैसे-तैसे परिवार का गुजारा होता है। जब भी कोई चुनाव आता है। नेता-नागरी वोट मांगने आते हैं। फिर उनका पता ही नहीं लगता है।’ 

पिलखरी-उतराजपुर गांव में एक कमरे में सिमटी मुसहर दम्पति की गृहस्थी।

कहां से आएगा 1100 रुपया ?

मुसहर बस्ती की अनपढ़ ज्योति के पति जैसे-तैसे एक दिन में 150 रुपए कमा लेते हैं। वह कहती हैं ‘यहां सिर्फ हमें ही सिलेंडर मिला है, लेकिन 11 सौ रुपए कहां से ले आएंगे, गैस भरवाने के लिए ? मेरे बच्चों को कुपोषण की भी दिक्कत है। आंगनबाड़ी की महिलाएं आती हैं, जाने क्या लिख-पढ़ ले जाती हैं। ये हमारा छप्परनुमा घर है। गर्मी और जाड़ा बीत गया, लेकिन बारिश कैसे गुजरेगी मुझे नहीं सूझ रहा है। दो बच्चे हैं, छत से पानी टपकता है। खेत में घर बने होने की वजह से जहरीले जंतु भी यदा-कदा घर में घुस आते हैं। बारिश के सीजन में तिरपाल से घर को बचाने की कोशिश करेंगे, हम लोगों की परवाह किसे है भला ?’

सूखी लकड़ी और पत्तों को तोड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाना लचकदार बांस की लग्घी।

आसमान के नीचे बहुएं बदलती हैं कपड़े 

विमला कहती हैं कि ‘मेरे पति की तबियत खराब है और वो कई महीनों से परेशान हैं। हाथ-पैर में दर्द चौबीस घंटे बना रहता है। इलाज पर पैसे खर्च करने के बाद भी उनकी तबियत में सुधार नहीं हो रहा है। हम लोगों को करीब 20-25 साल पहले आवास मिला था, लेकिन अब वह भी बदहाल हो गए हैं। अगस्त में आस पास खेतों में पानी भर जाता है व बारिश में छत टपकती है। सर्प-बिच्छू का भी खतरा बना रहता है। घर के मर्दों की कमाई परिवार के गुजारे में ही खर्च हो जाती है। दाल, अनाज, किराना, दवाई समेत कई जरूरतें तब भी पूरी नहीं हो पाती हैं। घर में बहुओं को नहाने के बाद खुले में कपड़े बदलने पड़ते हैं। क्या किया जाए और किसे अपना दुःख सुनाया जाए ? आप भी आएं हैं, लिख-पढ़कर चले जाएंगे, हम लोग वैसे ही जीएंगे, जिस गुरबत में जी रहे हैं।’   

मुसहर बस्ती में लगा एकमात्र हैंडपंप। जिसमें से अक्सर पानी के साथ केचुएं और कीड़ें निकलते हैं।

खुले में शौच को विवश  

कई साल पहले बने शौचालय के निर्माण में भ्रष्टाचार की शिकायत किरण को है। इन्हें भी कई मूलभूत सुविधाओं की दरकार है। किरण ने कहा कि ‘करीब पांच-छह साल पहले शौचालय बना था। जैसे-तैसे मानक विहीन शौचालय बनाकर दिया गया था। निर्माण के एक या दो महीने गए होंगे कि शौचालय की बदबू और गन्दगी से इसमें जाना छोड़ दिया। मोहल्ले के उपद्रवी लड़कों ने गेट भी तोड़ दिया। अब ये हमारे किसी काम का नहीं रह गया है’। 

अपने घर को दिखता हुआ मुसहर समाज का बाबू। इसका घर बारिश के दिनों में टपकता है।

इसमें तो हम लोग बकरी भी नहीं बांध सकते हैं। राशन कार्ड हमारे पास है, लेकिन दो साल से राशन नहीं मिल रहा है। कोटे दार बताता है कि लिस्ट से नाम कट गया है। कहता है, जब नाम जुड़वाओगे तो फिर से राशन मिलेगा। मैं निपढ़ हूं, राशन कार्ड लेकर कहां जाऊंगी ?’ किरण का 13-14 साल का लड़का बाबू पास के सरकारी स्कूल में पढ़ने जाता है। वह कक्षा चार का छात्र है। पूछने पर वह फोर यानी चार की स्पेलिंग नहीं बता पाता है। इतना ही नहीं उसे अपने जिले का नाम भी नहीं पता है। सांसद, विधायक और पीएम की जानकारी और नाम तो दूर की बात है।  

अपने कुपोषित बच्चों के साथ ज्योति।

हैंडपंप के पानी में निकलते हैं केचुएं और कीड़े  

मुसहर बस्ती की सबसे बुजुर्ग जियूती को अपने प्रधान का नाम नहीं पता है। उनकी कई परेशानियां है। वह ‘जनचौक’ को बताती हैं कि ‘मुसहर बस्ती की परेशानियां जानकर क्या करेंगे आप ? रोड बदहाल है। बारिश के दिनों में घुटने भर पानी में से होकर आना-जाना पड़ता है। बस्ती में पानी का एकमात्र साधन एक सरकारी हैंडपंप है। इसके पानी से केंचुआ और कीड़े निकलते हैं। 

बस्ती की किरण का करीब पांच-छह साल पहले बना मानकविहीन शौचालय। बनने के एक या दो महीने के बाद ही शौचालय की बदबू और गन्दगी से इसमें जाना छोड़ दिया।

दूसरा कोई विकल्प नहीं होने की वजह से यही पानी छानकर और स्थिर कर पीना पड़ता है। बारिश के दिनों में हैंडपंप से अधिक गन्दा पानी निकलने लगता है। तब बस्ती के लोग, ज्यादातर महिलाएं आधे किलोमीटर दूर मंदिर के पास से जल कल का पानी लेने जाते हैं। कई बार शिकायत करने के बाद भी कोई सुनवाई नहीं हो सकी है। ऐसा प्रतीत होता है कि हम लोग बदहाली में ही जीवन गुजारने को ही पैदा हुए हैं। मुझे पेंशन भी नहीं मिलती है। बस्ती में किसी को कोई पेंशन आदि नहीं मिलता है। जब कोई बीमार पड़ता है तो खुद की ही जड़ी-बूटी से इलाज करता है। इससे रोग का निदान हो गया तो ठीक नहीं तो मरने को विवश हैं। बस्ती की सभी महिलाओं को शौच के लिए खेतों में जाना पड़ता है।’ 

पिलखरी-उतराजपुर में गर्मी और उमस से परेशान मुसहर बस्ती की महिलाएं पास रोड से लगे बगीचे में दोपहर बिताती हुईं।

आवास चढ़े भ्रष्टाचार की भेंट  

जियूती के पति मजदूरी करते हैं। वह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़े आवास को दिखाने का आग्रह भी करती हैं। वह आगे कहती हैं कि ‘मेरे एक बेटे को आवास मिला है। वह भी सही ढंग से नहीं बना है। न दरवाजा लगाया गया और न ही प्लास्टर। सिर्फ सीमेंट और ईंट से मकान तान दिया गया है।’ सोनी ने बताया कि ‘मेरी जब से शादी हुई है, तब से यहां रह रही हूं। एक आवास भी मिला तो वह भी किसी काम का नहीं है। बारिश में छत टपकती है। राशन, सामान, कपड़े और बच्चों को बारिश से बचाने के लिए रात भर जगना पड़ता है। 

प्रधान भी हम लोगों की नहीं सुनता है।’ मिट्टी की लदाई कर लौटे शंकर को सरकार से कड़ी नाराजगी है। बतौर शंकर ‘सुविधा के नाम पर कभी-कभार राशन मिलता है। बस्ती में एक ही पानी का साधन है, जब यह बिगड़ जाता है तो पेयजल के लिए भटकना पड़ता है। एक और हैंडपंप की जरूरत है। बस्ती की महिला गेनी के भी आवास निर्माण में धांधली की गई है, वह ऐसा आरोप लगाते हुए कहती हैं कि ‘प्रधान ने हमें एक रुपया भी नहीं दिया। उसने ही बनवाया है। आधा-अधूरा बनवाकर चला गया। आवास में दरवाजा भी नहीं लगाया गया। साहूकार से कर्ज लेकर दरवाजा लगवाया गया है। राशन भी नहीं मिलता है।’ 

टिन शेड मकान दोपहर में तपने की वजह से घर के समीप ही बरगद के पेड़ के नीचे परिवार के साथ विश्राम करते राजकुमार।

दावों से उलट हकीकत 

जन अधिकार पार्टी वाराणसी के युवा मंडल अध्यक्ष बब्लू मौर्य, सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि ‘समाज के अंतिम व्यक्ति के विकास की बात सरकार करती है तो वहां तक विकास पहुंचना भी चाहिए। मुसहर बस्ती के लोगों के जीवन में बदलाव नहीं आ रहा और गुणवत्तापरक सुविधाएं नहीं मिल रहीं, इसका मतलब कि सरकार का दावा हवा-हवाई है।

मुसहर बस्ती की जियूती के बेटे को आवास मिला है। वह भी सही ढंग से नहीं बना है। न दरवाजा लगाया गया और न ही प्लास्टर।

आवास में लापरवाही की जांच होनी चाहिए। मुसहरों के जीवन स्तर में आमूलचूल परिवर्तन आए या यों कहिये कि ये भी आधुनिक भारत की मुख्य धारा में शामिल हो, इसके लिए सरकार और तंत्र को ईमानदारी से काम करना होगा। केंद्र, राज्य और तमाम योजनाओं को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने के दावे, सच्चाई से एकदम उलट हैं।’   

पिलखरी-उतराजपुर गांव के मुसहर बस्ती की ज्योति रसोईं गैस महंगा होने से सिलेंडर नहीं भरवा पाती हैं। सिलेंडर कई सालों से बैगर इस्तेमाल का ही पड़ा हुआ है।

भ्रष्टाचार का घुन और जातिवाद का रोग

मानवाधिकार संगठन जन निगरानी समिति के एक्टिविस्ट डॉ. लेनिन रघुवंशी, पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में मुसहर बस्ती के लोगों की बदहाली का बड़ा कारण शासन और सिस्टम की लापरवाही मानते हैं। वह कहते हैं कि ‘बस्ती की यह परिस्थितियां बहुत ही पीड़ादायक हैं। सरकार, सरकार के लोग और सामाजिक संगठन भी जब सही ढंग से और ईमानदारी से काम नहीं करते हैं, तब ऐसी स्थितियां सामने आती हैं। इस मामले से राष्ट्रीय मानवाधिकार को पत्र लिखकर अवगत कराया जाएगा। 

समाज के आखिरी पायदान पर रह रहे लोगों के जीवन स्तर से ही योजनाओं की सफलता का मूल्यांकन होता है। बनारस में समाज का अंतिम व्यक्ति मुसहर है। ऐसे में जब मुसहरों के जीवन स्तर में कोई बदलाव नहीं आया है, इससे साबित होता है कि सरकारी या अन्य योजनाएं सही से काम नहीं कर रही हैं। चाहे वह खाद्यान्न की हो, आंगनबाड़ी, कुपोषण मिटाओ, आवास निर्माण, स्वास्थ्य सुविधा या फिर बच्चों को स्कूल से जोड़ने की हो। उपेक्षित मुसहर बस्ती से ऐसा लगता है कि सभी योजनाएं को भ्रष्टाचार का घुन और जातिवाद का रोग लग चुका है। सरकार और जिम्मेदार मुसहरों की परेशानियों को गंभीरता लेना चाहिए।’ 

तीसरी नजर 

खेत के गड्ढों में भरे बारिश के पानी में दोपहर के वक्त नहाते मुसहर समाज के बच्चे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में तंत्र की लापरवाही से गुरबत जीवन गुजार रहे मुसहर समाज के मुख्यधारा से क्यों गुम है? सत्ताधारी नेता-मंत्री जिस बनारस मॉडल की चर्चा देश भर में करते हुए नहीं अघाते। जो नौकरशाह आंकड़ों की बाजीगरी से शासन-सत्ता से इनाम और शाबाशी के कतार में हैं। क्या उन्हें सिर्फ एक बार बनारस के मुसहर बस्तियों का दौरा नहीं कर लेना चाहिए? ख़ैर, सवाल तो बहुत हैं ?    

(वाराणसी से पत्रकार पीके मौर्य की रिपोर्ट।)

पीके मौर्या
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