आपराधिक लापरवाही के लिए, अदालतें सेफ्टी वाल्व बनीं! यूपी चुनाव को लेकर नैरेटिव सेट करने में लगे अहम लोग

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बात थोड़ा लंबी है… इस बात के कई आयाम हैं। फिर भी बताता हूं। ये कथित सिस्टम फेल होने और पाँच राज्यों के चुनाव नतीजे आने के बाद की बात है। देश के कुछ जाने-माने पत्रकारों और प्रभावशाली लोगों (Influencers) ने एक नया नैरेटिव चलाना शुरू कर दिया है। इसका ख़ास मक़सद है और वो मक़सद अगले यूपी चुनाव से जुड़ा है।

एनडीटीवी ग्रुप का एक लोकप्रिय पत्रकार केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को अदालत के कटघरे में बुलाकर सवाल करने की मांग कर रहा है। वह पत्रकार प्रधानमंत्री की जवाबदेही तय करने या उनका इस्तीफा नहीं मांग रहा है।

जाने-माने पत्रकार शेखर गुप्ता कह रहे हैं कि टीम लीडर यानी प्रधानमंत्री मोदी को टीम बदल लेनी चाहिए। हालांकि राजनीतिक नियम ये है कि कोई भी टीम नेता से होती है। नेता बदलो, टीम तो बदल ही जाएगी।

ऐडमैन और Influencer सुहेल सेठ कह रहे हैं कि नितिन गडकरी को स्वास्थ्य मंत्रालय का भी चार्ज दिया जाना चाहिए। सुहेल सेठ के पास प्रधानमंत्री की जवाबदेही तय करने के लिए सवाल नहीं हैं।

इनके अलावा भी ढेरों ढिंढोरची हैं। हाल ही में चमके कुछ बड़े यूट्यूबर भी इस नैरेटिव को गढ़ने की मुहिम में शामिल हैं। इनमें से कोई भी पंचायत चुनाव में भाजपा की हार और सपा की जीत पर बात नहीं कर रहा है।

…और इसी बीच अचानक अदालत भी सक्रिय हो जाती है। सुप्रीम कोर्ट से लेकर कई राज्यों के हाई कोर्ट सरकार से सवाल करने लगते हैं। अदालत की टिप्पणियां सुनें तो लगेगा कि बस अभी वो किसी मंत्री को फांसी की सजा सुना देगी। …अदालतें, दरअसल सरकार का सेफ्टी वॉल्व हैं। अदालतें जनता का गुस्सा शांत करने के लिए ही सक्रिय होती हैं। आप उम्मीद पाल लेते हैं कि अब तो अदालत ने सरकार को उधेड़ दिया है। अब सब ठीक हो जाएगा, लेकिन यह छलावा है। इस देश में अदालतों का कथित गुस्सा, कड़ी टिप्पणी भी अब कड़ी निन्दा जैसी हो गई है। दिल्ली का बत्रा अस्पताल, गंगाराम अस्पताल, गुड़गांव का कीर्ति अस्पताल, लखनऊ, बेंगलुरु और चेन्नै के अस्पतालों में हुई मरीजों की मौत के लिए कोई जवाबदेही तय हुई। किसी अदालत ने इनके लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट की बात कही। अदालत की टिप्पणियां बस आपका गुस्सा शांत कर रही हैं। और कुछ नहीं।  

वापस अपनी मूल बात पर लौटते हैं।

…तो नैरेटिव गढ़ने वाले पत्रकार और प्रभावशाली लोग लेखिका और एक्टिविस्ट अरूंधति रॉय की तरह यह कहने की हिम्मत नहीं कर रहे हैं कि मोदी जी, बस हुआ, अब कुर्सी छोड़िए। वे पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम की तरह जनता से विद्रोह करने का आह्वान तक नहीं कर पा रहे हैं।

ये नेरेटिव ऐसे वक्त में सामने आया है, जब देश के सामने मोदी का तिलिस्म टूट चुका है। सारे पत्ते खुल चुके हैं। मोदी की छवि तार-तार हो चुकी है। अरुंधति रॉय और पी चिदंबरम जैसी बात कहने की हिम्मत आज किसी बड़े भारतीय पत्रकार में नहीं है।

तो इस नैरेटिव सेट करने के पीछे मक़सद क्या है? मक़सद ये है कि इस हंगामे से किसी तरह मोदी को निकाल कर कुछ नए मंत्रियों के साथ मोदी को नए रंगरूप में पेश करना। दरअसल, अगले साल यूपी विधानसभा का चुनाव है। असली रण वहीं होना है। इस नैरेटिव का सीधा संबंध यूपी चुनाव से है।

अगर यूपी हाथ से निकला तो फिर भाजपा के लिए केंद्र में शासन करना तक मुश्किल हो जाएगा। उसके नेता सार्वजनिक रूप से कहीं आ-जा नहीं सकेंगे। इसलिए मोदी के वॉर रूम में न सिर्फ़ इस नेरेटिव को गढ़ने के लिए हरकारे लगा दिए गए हैं बल्कि यूपी को किसी भी क़ीमत पर फ़तह करने की तैयारी शुरू हो चुकी है। आने वाले दिनों में यूपी की फ़िज़ा में ज़हर ही ज़हर घुलता हुआ दिखे तो ताज्जुब मत कीजिएगा। अब मोदी के तरकश का हर तीर यूपी के लिए है।

यही वजह है कि बंगाल में चुनाव ख़त्म होते ही हिंसा का जो दौर शुरू हुआ, उसे पूरी तरह भुनाया गया। बंगाल की हिंसा में सिर्फ़ भाजपा ही नहीं बल्कि तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और सीपीएम के कार्यकर्ता भी मारे गए हैं। उनके दफ़्तर जलाए गए हैं, लेकिन हमें मीडिया बता रहा है कि टीएमसी हिंसा कर रही है, और उसमें भी साम्प्रदायिक एंगल देते हुए टीएमसी के मुस्लिम कार्यकर्ताओं को ज़िम्मेदार बताया गया है। टीएमसी और सीपीएम के कार्यकर्ताओं को किसने मारा, मीडिया में इस सवाल का जवाब गायब है। टीएमसी और सीपीएम के दफ्तर जलाए गए, किसने जलाए, जवाब नहीं आएगा।

बंगाल की हिंसा के विरोध में 5 मई को जिस तरह भाजपा ने अपने कैडर से धरना दिलवाया, उसमें भड़काने वाले बयान दिए गए। वह बताता है कि बंगाल हिंसा की आड़ में एक तरफ़ वो मोदी की तमाम नाकामी से ध्यान हटाना चाहती है। दूसरी तरफ़ वो यूपी के मद्देनज़र अपना हिन्दू-मुसलमान कार्ड खेलना जारी रखना चाहती है।

स्पष्ट है कि पाँच राज्यों के नतीजे आने के बाद मोदी का वॉर रूम फिर से यूपी को लेकर चुनावी मोड में आ चुका है। कोरोना की रफ़्तार कम होते ही मोदी के वाराणसी दौरे से इसकी शुरुआत होगी। वहाँ काशी विश्वनाथ मंदिर- ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर उनका इशारों में बयान आयेगा और जिस पिच पर भाजपा खेलती है, उसके टर्फ़ को और मज़बूत किया जाएगा। यहीं से तय होगा कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (सपा) उनकी पिच पर खेलेंगे या नहीं?

मोदी और भाजपा के तमाम हरकारे तैयार बैठे हैं। वे कांग्रेस और सपा को भाजपा की पिच पर ही खेलने को मजबूर करेंगे। भाजपा ने अभी हाल ही में पूरे यूपी के चुनिंदा शहरों में मीडिया को लेकर काफ़ी पैसा निवेश किया है। छोटे-छोटे अख़बारों तक में भाजपा के विज्ञापन छपेंगे। सैकड़ों यूट्यबर तैयार किए गए हैं।

मोदी के वॉर रूम में कांग्रेस और सपा के ऐसे नेताओं की सूची बन चुकी है, जो ज़हरीले बयानों के लिए जाने जाते हैं। ऐसे बयानों पर ताली बजाने वाले तमाम मुसलमान खुद हिन्दू ध्रुवीकरण की रसद मुहैया कराएँगे। मुसलमानों का राष्ट्रीय नेता बनने की ओवैसी साहब की हसरत बिना यूपी चुनाव लड़े बिना पूरी नहीं होगी, तो वो भी बड़ा दांव लगाने के लिए बेक़रार हैं।

इस तरह आपने देख और समझ लिया कि नैरेटिव को भाजपा की फैक्ट्री में तैयार किया जाता है। फिर उसे तमाम पत्रकार, प्रभावशाली लोग, चैनल वाले, अन्य राजनीतिक दलों के नेता जाने-अनजाने फैलाते हैं। आप इस बात को अच्छी तरह समझिए कि कुछ पत्रकार और लेखकों की छवि ऐसी गढ़ी गई है कि वे नजर तो आएंगे मोदी विरोध में लेकिन दरअसल वे सभी अपने तरीके से मोदी, भाजपा, आरएसएस के एजेंडे को ही बढ़ा रहे होते हैं। 

(यूसुफ किरमानी वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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