Friday, April 19, 2024

सुलझने के बजाय, उलझता जा रहा है भारत-चीन सीमा विवाद

एशिया के दो सबसे बड़े पड़ोसी देश, आज फिर एक बार 1962 के बाद एक दूसरे के आमने-सामने हैं। मामला चीनी विश्वासघात और घुसपैठ का है और इन सबके बीच अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की भूमिका तो है ही। युद्ध सदैव से ही, किसी मसले के हल के लिये अंतिम विकल्प माना जाता रहा है। सच तो यह है कि युद्ध जितनी समस्याओं के समाधान के लिए अंतिम विकल्प के रूप में आजमाया जाता है, वह उससे कई गुना नयी और तरह-तरह की समस्याएं उत्पन्न भी कर जाता है। इस तथ्य से भारत और चीन दोनों ही अनजान नहीं है।

इसीलिए जब मास्को में शंघाई कोऑपरेशन संगठन (एससीओ) में भारत और चीन के रक्षामंत्री मिले तो उन्होंने इस कूटनीतिक जमावड़े का लाभ हिमालय में जमी बर्फ को पिघलाने में उठाया। दोनों ही सरकार वार्ता की मेज पर आयीं। कूटनीतिक गुत्थियां, एक ही मुलाकात में नहीं सुलझती हैं। इसमें, हज़ार पेंच होते हैं, तमाम गिले शिकवे होते हैं, कई बंदिशें होती हैं और कस कर डाली गयी गांठ इतनी आसानी से सुलझती भी नहीं है। 

भारत और चीन के रक्षा मंत्री की यह बैठक दो घंटे 20 मिनट तक चली थी। यह मीटिंग, ऐसे समय में हई, जब भारत-चीन सीमा पर पिछले कुछ महीनों से तनाव बना हुआ है और हिंसक झड़प में हमारे 20 सैनिक शहीद हो चुके हैं, यह बैठक एक महत्वपूर्ण दिशा की ओर उचित कदम है। मीडिया की खबरों के अनुसार, बैठक को संबोधित करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि “भारत एक ऐसी वैश्विक सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है जो मुक्त, पारदर्शी, समावेशी और अंतरराष्ट्रीय क़ानून से जुड़ी हुई हो। दुनिया में एक-दूसरे पर भरोसा और सहयोग, अंतरराष्ट्रीय क़ायदे-कानून के प्रति सम्‍मान, एक-दूसरे के हितों के प्रति संवेदनशीलता तथा मतभेदों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने की व्‍यवस्‍था की जानी चाहिए। भारत आतंकवाद के सभी प्रारूपों और प्रकारों की निंदा करता है और उनकी भी आलोचना करता है जो इसका समर्थन करते हैं।” 

यह सम्मेलन एससीओ के सदस्य देशों के बीच आपसी समझदारी और सहयोग के लिये आयोजित था, पर भारत चीन सीमा पर लद्दाख क्षेत्र में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी, द्वारा की गई घुसपैठ से उत्पन्न तनाव को दृष्टिगत रखते हुए दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों ने, आपसी बातचीत से इस जटिल समस्या और तनाव शैथिल्य का एक मार्ग ढूंढा। 

गलवान झड़प के 80 दिन बाद होने वाली यह पहली बैठक है, जिसमें मंत्री स्तर पर बातचीत हुयी है। रक्षा मंत्री ने भारत का दृष्टिकोण रखा और स्पष्ट रूप से कहा कि, ” गलवान घाटी समेत वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर बीते कुछ महीनों में तनाव रहा है। सीमा पर चीन का अपने सैनिकों को बढ़ाना आक्रामक बर्ताव (एग्रेसिव बिहेवियर) को दिखाता है। यह द्विपक्षीय समझौते का उल्लंघन है।” 

रक्षामंत्री ने यह भी कहा कि ” भारतीय सेनाओं ने सीमा पर हमेशा संयमित व्यवहार दर्शाया है। लेकिन, यह भी सच है कि इसी दौरान हमने भारत की संप्रभुता (सॉवेरीनटी) और सीमाओं की रक्षा से कोई समझौता नहीं किया। दोनों पक्षों को अपने नेताओं की समझ-बूझ के निर्देशन में काम करना चाहिए, ताकि सीमा पर शांति कायम रह सके। साथ ही दोनों पक्षों को उन चीजों में नहीं उलझना चाहिए, जिससे विवाद बढ़े।” 

उधर, बीजिंग में चीनी विदेश मंत्रालय की ओर से यह बयान जारी किया गया था कि, कि सीमा विवाद की वजह से दोनों देशों और दोनों सेनाओं के रिश्ते प्रभावित हुए हैं। ऐसे में दोनों रक्षा मंत्रियों के लिए यह जरूरी था कि वह आमने-सामने बैठकर मामले पर बात करें। चीन के रक्षामंत्री फेंगे ने कहा कि,  

” सीमा पर जारी विवाद की वजह भारत है। उन्होंने यह भी कहा कि चीन अपनी एक इंच जमीन भी नहीं छोड़ सकता। चीनी सेना राष्ट्रीय अखंडता और क्षेत्रीय संप्रभुता की रक्षा करने में सक्षम है।” 

अखबारों में छपी खबरों के अनुसार, हमारे रक्षा मंत्री ने कहा कि ” चीन को जल्द ही भारत के साथ मिलकर काम करना चाहिए, ताकि लद्दाख में समझौते और प्रोटोकॉल के आधार पर सभी विवादित जगहों मसलन पैंगॉन्ग झील के इलाके से दोनों तरफ के सैनिकों का डिएस्केलेशन शुरू किया जा सके। जो मौजूदा हालात हैं, उसे देखते हुए दोनों पक्षों को जिम्मेदारी दिखाना चाहिए। कोई भी ऐसा एक्शन न लें, जिससे स्थिति और तनावपूर्ण हो।” 

इन सब गतिविधियों पर भारतीय विदेश सचिव, इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स ( आईसीडब्ल्यूए ) के वेबनार में कहा वह महत्वपूर्ण और उचित है, ” भारत किसी भी हालत में अपनी सॉवेरेनटी से समझौता नहीं करेगा। जब तक सीमा पर शांति कायम नहीं हो जाती, तब तक चीन से सामान्य व्यवहार संभव नहीं है। हम बातचीत से मसला हल करने को तैयार हैं।” 

मई से चीन सीमा पर हालात तनावपूर्ण हैं। चीनी सेना के घुसपैठ की यह एक विशिष्ट शैली है जिसे भारत के पूर्व सेनाध्यक्ष, जनरल वीपी मलिक के शब्दों में कहें तो क्रीपिंग कहते हैं। क्रीपिंग यानी सरीसृपों द्वारा रेंगते हुए आगे बढ़ना। चीन इसी शैली से घुसपैठ करता है और फिर जब शोर मचता है तो वह थोड़ा पीछे की ओर सरक जाता है। 15 मई को लद्दाख के गलवान घाटी में चीन के सैनिकों ने भारतीय जवानों पर कंटीले तारों से हमला कर हमारे 20 सैनिकों को शहीद कर दिया था। जवाबी कार्रवाई में चीन के भी सैनिक मारे गए थे, हालांकि, चीन ने इसकी, अभी तक पुष्टि नहीं की है । इस विवाद को हल करने के लिए 6 मई और फिर उसके बाद से लगातार, सैन्य कमांडर स्तर की बातचीत, चीन और भारत की हो चुकी है, पर चीन अपनी कुटिल हरकतों से बाज नहीं आ रहा।

चीन की घुसपैठ को लेकर 31 अगस्त को, रक्षा मंत्रालय ने एक नोट जारी किया है। उक्त अधिकृत नोट के अनुसार, ” 29 अगस्त 2020 की रात चीनी सेना ने पूर्वी लद्दाख के भारतीय इलाके में घुसपैठ की कोशिश की। भारतीय जवानों ने चीनी सैनिकों की इस कोशिश को नाकाम कर दिया। ” न्यूज एजेंसी एएनआई के अनुसार इससे पहले चीन ने लद्दाख के पास अपने जे-20 फाइटर प्लेन भी तैनात कर दिए थे।

रक्षा मंत्रालय ने यह भी बताया कि, ” भारतीय सेना ने चीन के सैनिकों को पैंगॉन्ग सो झील के दक्षिणी किनारे पर ही रोक दिया। हमारी सेना बातचीत के द्वारा शांति कायम करने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन हम अपनी सीमाओं की सुरक्षा करना जानते हैं। इस मुद्दे को सुलझाने के लिए चूशुल में ब्रिगेड कमांडर लेवल की बातचीत भी हो रही है। 15 जून को लद्दाख के गलवान में चीन और भारत के सैनिकों में हिंसक झड़प हुई थी, जिसमें हमारे 20 जवान शहीद हो गए हैं। ” 

इन सब बातचीत के बाद भी, अखबारों के अनुसार, चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एयर फोर्स (पीएलएएफ) ने होतान एयरबेस पर जे-20 फाइटर प्लेन तैनात किए हैं। यह फाइटर 29-30 अगस्त की रात हुई घटना के पहले ही डिप्लॉय किए गए थे। होतान एयरबेस लद्दाख से नजदीक है। चीन ने यह तैनाती किसी रणनीति के अनुसार ही की होगी। लड़ाकू विमान अब भी उड़ान भर रहे हैं। 10 सितंबर को भारत के पांचों राफेल वायुसेना में शामिल किए जाएंगे।

गलवान झड़प के बाद लद्दाख में विवादित इलाकों से सैनिक हटाने के लिए भारत-चीन के आर्मी अफसरों के बीच कई बार मीटिंग हो चुकी हैं। ये बैठकें 30 जून और 8 अगस्त को चीन के इलाके में पड़ने वाले मॉल्डो में हुई थीं, लेकिन इसका कोई खास नतीजा नहीं निकला है। सेना और कूटनीतिक स्तर कई चरणों की बातचीत के बावजूद चीन पूर्वी लद्दाख के फिंगर एरिया, देप्सांग और गोगरा इलाकों से पीछे नहीं हट रहा है। चीन के सैनिक 3 महीने से फिंगर एरिया में जमे हुए हैं।

अब उन्होंने बंकर बनाने और दूसरे अस्थायी निर्माण करने भी शुरू कर दिए हैं। भारत-चीन सीमा विवाद को लेकर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत ने कहा था, ‘‘चीन के साथ बातचीत से विवाद नहीं सुलझा तो सैन्य विकल्प भी खुला है। हालांकि, शांति से समाधान तलाशने की कोशिशें की जा रही हैं। ” सेना लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) के आस-पास अतिक्रमण रोकने और इस तरह की कोशिशों पर नजर रखे है। 

मीडिया की खबरों के अनुसार इंडो-तिब्बत सीमा पुलिस आईटीबीपी, के 30 जवानों ने पेंगोंग झील के दक्षिण में कई अहम मोर्चे पर कब्जा जमा लिया है। ये इलाके ब्लैक टॉप के पास हैं। इससे पहले 29/30 अगस्त को भारतीय सेना ने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को पीछे धकेल कर रणनीतिक रूप से एक अहम पोस्ट (ब्लैक टॉप) पर सेना ने कब्जा कर लिया था।

कहा जा रहा है कि इस दौरान भारतीय सेना ने 4 किमी अंदर घुसकर 500 चीनी सैनिकों को खदेड़ दिया था। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, आईटीबीपी के जवान फुरचुक ला पास से होते हुए आगे तक पहुंच गए हैं। यह जगह 4994 मीटर की ऊंचाई पर है। अब तक इस पोस्ट पर किसी का कब्जा नहीं था। इससे पहले आईटीबीपी के जवान पैंगोंग झील के उत्तर में धान सिंह पोस्ट पर थे। यह इलाका फिंगर 2 और 3 के पास है। 

आईटीबीपी के आईजी (ऑपरेशंस) ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा, ” आईटीबीपी के डीजीपी एसएस देसवाल पिछले हफ्ते जवानों के साथ एलएसी पर एक हफ्ते रुके थे। यह पहला मौका है जब हम लोग अच्छी संख्या में इन चोटियों पर पहुंचे हैं। ” 

आईटीबीपी के अनुसार, अब हेलमेट टॉप, ब्लैक टॉप और येलो बंप पर आर्मी, आईटीबीपी और स्पेशल फ्रंटियर फोर्स ने कब्जा कर लिया है। चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के दक्षिणी छोर पर स्थित पोस्ट 4280 और पश्चिम छोर पर डिगिंग एरिया और चुती चामला साफ-साफ भारतीय सैनिकों को दिख रहा है। करीब चार महीने से वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव लगातार बरकरार है। चीन की हरकतों को देखते हुए नो फर्स्ट मूव की नीति को बदल दिया गया है। चीन पूर्वी लद्दाख में उल्टे भारत पर समझौतों के उल्लंघन करने का आरोप मढ़ने लगा है।” 

इस घुसपैठ की शुरुआत अप्रैल के तीसरे हफ़्ते में हुई थी, जब लद्दाख बॉर्डर यानी लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल पर “चीन की तरफ़ सैनिक टुकड़ियों और भारी ट्रकों की संख्या में इज़ाफ़ा दिखा था।” इसके बाद से मई महीने में सीमा पर चीनी सैनिकों की गतिविधियाँ बढ़ीं और चीनी सैनिकों को लद्दाख में सीमा का निर्धारण करने वाली झील में भी गश्त करते देखे जाने की बातें सामने आई थीं। मौजूदा तनाव इस बात से भी बढ़ा था, जब किसी देश का नाम लिए बिना चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ‘सेना को तैयार रहने के निर्देश दिए थे।’ इस मामले ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी तूल पकड़ा जब डोनाल्ड ट्रंप ने इस सीमा विवाद में मध्यस्थता की पेशकश की, पर भारत ने मज़बूती से इस पेशकश को खारिज कर दिया। 

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद के बीच, ताज़ा तनाव के तीन प्रमुख कारण दिखते हैं। 

● पहला कारण, सामरिक है। भारत और चीन दो ऐसे पड़ोसी देश हैं जिनकी फ़ौजों की तादाद दुनिया में पहले और दूसरे नंबर पर बताई जाती है और जिनके बीच परस्पर विरोध का एक लंबा इतिहास रहा है। इस बार भी वही इलाक़े दोबारा चर्चा में हैं जहाँ 1962 में दोनों के बीच एक जंग भी हो चुकी है। 

● दूसरा कारण है, पिछले कुछ सालों में भारतीय बॉर्डर इलाक़ों में तेज़ होता निर्माण कार्य। भारत ने सीमा के निकट, सड़कों और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर का एक जाल बिछाना शुरू किया है। सीमा सड़क संगठन की इन गतिविधियों से सीमा तक जवानों को पहुंचाना और सप्लाई लाइन को बनाये रखना, सुगम होता जा रहा है। रक्षा मामलों के जानकार अजय शुक्ला बताते हैं कि ‘लगातार बढ़ता हुआ सड़कों का जाल भी इस तनाव की एक बड़ी वजह है।’

अजय शुक्ला बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखे एक ब्लॉग में कहते हैं, 

“आम तौर से शांतिपूर्ण रही गलवान घाटी अब एक हॉटस्पॉट बन चुकी है क्योंकि यहीं पर वास्तविक नियंत्रण रेखा है जिसके पास भारत ने शियोक नदी से दौलत बेग ओलडी (डीबीओ) तक एक सड़क का निर्माण कर लिया है। पूरे लद्दाख के एलएसी इलाक़े में ये सबसे दुर्गम इलाक़ा है। “

लगभग सभी रक्षा विशेषज्ञ, इस बात से भी सहमत दिखते हैं कि चीन ने अपनी सीमावर्ती इलाक़ों में निर्माण और रखरखाव को हमसे सदैव बेहतर रखा है और सीमावर्ती इलाक़ों की मूलभूत सुविधाओं में भी चीन भारत से कहीं आगे है। 

भारतीय थल सेना के पूर्व प्रमुख जनरल वीपी मालिक को लगता है, “चीन की बढ़ी हुई बेचैनी की एक और वजह है। चीनी फ़ौज का एक तरीक़ा रहा है क्रीपिंग (रेंगते हुए आगे बढ़ना)। गतिविधियों के ज़रिए विवादित इलाक़ों को धीरे-धीरे अपने अधिकार क्षेत्र में शामिल कर लेना। लेकिन इसके विकल्प कम होते जा रहे हैं क्योंकि अब भारतीय सीमा पर विकास हो रहा है और पहुँच बढ़ रही है।”

हिंदुस्तान टाइम्स में रक्षा सम्बंधी मामले कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार राहुल सिंह के अनुसार, “पिछले दस सालों से भारतीय सीमाओं को बेहतर बनाने पर ज़्यादा ध्यान दिया गया है।”

उनके एक लेख के अनुसार, “पहले भी सीमा पर दोनों सेनाओं के सैनिकों में छोटी-मोटी झड़पें होती रहती रही हैं। डोकलाम के पहले भी 2013 और 2014 में चुमार में ऐसी घटनाएँ सामने आई थीं। लेकिन इस बार की गतिविधियों का दायरा ख़ासा बड़ा है।” 

पूर्व मेजर जनरल अशोक मेहता ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बढ़ती कथित चीनी गतिविधियों का बड़ा कारण “पुल और हवाई पट्टियों का निर्माण बताया जिसकी वजह से भारतीय गश्तें बढ़ चुकी हैं।”

उन्होंने ये भी कहा कि, यह सामान्य नहीं हैं।

हालांकि भारतीय सेना प्रमुख ने शुरुआत में कहा था कि ” इस तरह के मामले होते रहते हैं और सिक्किम की घटना का ताल्लुक़ गलवान घाटी में हुए वाक़ये से नहीं है। लेकिन मेरे हिसाब से सभी मामले एक दूसरे से जुड़े हैं। ये नहीं भूलना चाहिए कि जब भारत ने जम्मू कश्मीर के ख़ास दर्जे को ख़त्म कर दो नए केंद्र शासित प्रदेशों के नक़्शे ज़ारी किए तो चीन इस बात से ख़ुश नहीं था कि लद्दाख के भारतीय क्षेत्र में अक्साई चिन भी था।”

अनुच्छेद 370 का रहना या हटना, भारत का आंतरिक मामला है और इससे दुनिया के किसी भी देश का कुछ भी लेना देना नहीं है। 

आखिर ऐसी क्या बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच लम्बे समय से चली आ रही मित्रता के बावजूद सीमा पर अचानक ऐसी विषम स्थिति उत्पन्न हो गयी है ? कूटनीतिक मित्रता से अलग हट कर दोनों नेताओं में निजी और प्रगाढ़ सम्बन्धों के भी प्रमाण हैं। लेकिन इस विषय पर अब तक दोनों के बीच कोई बातचीत हुयी भी है या नहीं यह पता नहीं चल रहा है। चीन का लद्दाख घुसपैठ न तो पहला है और न ही अंतिम। 1962 के बाद नाथूला से लेकर डोकलाम होते हुए चीन के घुसपैठ के अनेक उदाहरण हैं। अभी हाल ही में अरुणाचल प्रदेश की सीमा में घुस कर पाँच ग्रामीणों को उठा ले जाने की खबर आयी है। वे अभी तक छोड़े नहीं गए हैं और सरकार उन्हें वापस लाने के लिये प्रयासरत है। 

भारत को सामरिक तैयारी के साथ-साथ, कूटनीतिक मोर्चे पर भी, कुशलता से अपनी बात रखनी होगी। चीन और अमेरिका के बीच इस समय तनाव शिखर पर है और दक्षिण चीन सागर में सैन्य गतिविधियां बढ़ रही हैं। अमेरिका का चीन के साथ कोई सीमा विवाद नहीं है, बल्कि वह आर्थिक वर्चस्व और दुनिया मे दादागिरी की जंग है, जबकि हमारा चीन से सीमा विवाद है और चीन हमारी ज़मीन पर जबरन कब्ज़ा किये हुए है।

हमें अपनी समस्या पर पहले फोकस करना होगा और अंतरराष्ट्रीय जगत में विश्वसनीय मित्र बनाये रखने होंगे। चीन, हमें अपने पड़ोसियों से अलग-थलग करने की योजना पर लम्बे समय से काम कर रहा है। कुल मिला कर वर्तमान स्थिति जटिल और उलझी हुई है और देशहित में यही उचित होगा कि यह सुलझ जाए। नरेन्द्र मोदी और शी जिनपिंग के बीच जो निजी दोस्ती है उससे यह उम्मीद की जानी चाहिए कि, यह मामला सुलझ जाएगा। 

(विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस अफसर हैं और आजकल कानपुर में रहते हैं।)

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