हरवंश मुखिया का लेख: व्यक्ति नहीं, मुद्दा लोकतंत्र बनाम तानाशाही का है

Estimated read time 1 min read

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी(बीजेपी) की यह खूबी है कि वह अपने चुनावी एजेंडे तैयार करते समय हर एक पहलू पर विस्तार से ध्यान देती है। चाहे वह नगरपालिका चुनाव हो या संसदीय चुनाव हो। यह सब वह चुनाव की अधिसूचना जारी होने से बहुल पहले कर लेती है।

चूंकि विपक्ष इस तरह की लंबी अवधि की कोई तैयारी नहीं करता, जिसके चलते उसको मोदी द्वारा निर्धारित एजेंडे पर प्रतिक्रिया देने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इस बात को दहलीज पर खड़े सबसे निर्णायक 2024 के लोकसभा चुनावों के संदर्भ में समझा जा सकता है। फिलहाल जैसी स्थिति है, उसके आधार पर परिणाम का अनुमान लगाया जा सकता है।

सबसे बड़ी लड़ाई

सबसे चौंकाने वाला राजनीतिक डेवलपमेंट एक कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से सांसद के रूप में राहुल गांधी को अयोग्य ठहराने और उन्हें शहीद बनाने की प्रक्रिया है। यह सबकुछ 2024 की भाजपा की भव्य योजना का भी एक हिस्सा लगता है। इस माध्यम से 2024 के चुनाव को ‘नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी’ बनाने की  की बड़ी योजना पर भाजपा काम कर रही है। श्री गांधी ने श्री मोदी की शर्तों पर चुनौती स्वीकार की है। उनकी एकमात्र चिंता किसी भी कीमत पर अपना बचाव करना है।

25 मार्च, 2023 की दोपहर को आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में श्री गांधी के लिए एकमात्र मुद्दा यह रहा कि उन्हें लोकसभा में उनके खिलाफ कुछ केंद्रीय मंत्रियों द्वारा लगाए गए ‘झूठे’ आरोपों का जवाब नहीं देने दिया गया, जो उनका वैध अधिकार था।

इसके साथ ही उन्होंने मोदी पर कारोबारी अडानी के साथ संबंध होने का आरोप लगाया। जिसमें उन्होंने अडानी के फर्म में 20,000 करोड़ के निवेश के स्रोत का सवाल उठाया। यह प्लैंक ( खेल का मैदान) श्री मोदी और भाजपा के लिए सबसे अधिक फायदे वाला वाला है। किसी को यह उम्मीद करने के लिए माफ़ किया जा सकता है कि श्री गांधी अब तक गेम प्लान को समझ चुके होंगे और इसलिए इससे ऊपर उठेंगे।

देश में आज जो कुछ दांव पर लगा है, वह श्री मोदी और श्री गांधी के बीच की लड़ाई या कथित मोदी-अडानी संबंध और 20,000 करोड़ रुपये की मामूली राशि तक सीमित नहीं है। जो दांव पर लगा है, वह इन सब से अधिक बड़ी चीज है।

विश्वसनीय कदम उठाना चाहिए

किसी भी पर्यवेक्षक के लिए यह साफ है कि यह लड़ाई प्रेस बयान जारी करने, शेखी बघारने और ‘झूठ’ या ‘सच्चाई’ के खिलाफ खुद का बचाव करने से परे लड़ी जानी चाहिए। इसके लिए भाजपा से पहल छीनने और पूरे विपक्ष को लोकतंत्र बचाने के लिए एकजुट करने जैसे बड़े कदम की आवश्कता है। 

चूंकि श्री मोदी, एजेंडे को अपने बनाम श्री गांधी के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं, इसे कॉउंटर करने का एक तरीका यह होगा कि राहुल गांधी यह घोषणा करें कि वह 2024 में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं होंगे।

वास्तव में, इससे भी अधिक निर्णायक कदम यह घोषणा करना होगा कि गांधी परिवार का कोई भी सदस्य प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं होगा। इसके साथ ही वे बढ़ती तानाशाही के संकेतों के खिलाफ लोकतंत्र की रक्षा के लिए आह्वान करें। 

तानाशाही के संकेत सभी संवैधानिक संस्थानों पर राज्य के बढ़ते नियंत्रण से स्पष्ट है। जिसमें मीडिया पर नियंत्रण भी शामिल है। आज जो अभियान प्रासंगिक है, वह कांग्रेस की जीत नहीं, बल्कि भाजपा की हार है। दूसरा कदम यह होगा कि राहुल गांधी खुद को विपक्ष के साथ सहज स्वाभाविक और तयशुदा नेता के रूप में नहीं बल्कि बराबरी वालों में से एक के रूप में प्रस्तुत करें और बातचीत शुरू की जाए। 

कांग्रेस को विपक्षी दलों को उससे कहीं अधिक देना पड़ सकता है, जितना वास्तव में वे उसके हकदार हैं। यही वह अवसर और बिंदु है, जहां राष्ट्र के लिए कांग्रेस अपने संकीर्ण चुनावी हितों के त्यागने का दावा करे और देश की सबसे मूल्यवान संपत्ति लोकतंत्र को बचाने के लिए दूसरे दलों और राष्ट्र के साथ स्वर में स्वर मिलाए।

यहां सीटों और उम्मीदवारों की संख्या के संबंध में तुच्छता का परिचय देना विपक्ष की एकजुटता और भाजपा हराने की सारी कवायद की हार को पक्का कर देगा। यहां यह याद कर लेना अच्छा होगा कि भारतीय समाज में अपने हित के लिए दावेदारी से अच्छा अपने हित का त्याग माना जाता है। भारतीय समाज में अपने हित की कुर्बानी को बड़ा मूल्य माना जाता है।

ठोस उपाय और स्पष्ट योजना की जरूरत 

इस समय यह उम्मीद की जाती है कि एक बड़प्पन का परिचय दिया जाए, लेकिन यह बड़प्पन सौम्य और विवेकपूर्ण तरीके से सामने आना चाहिए। ऐसा करके कांग्रेस खुद को देश के दूरदर्शी नेता के रूप में स्थापित कर सकती है।

विपक्ष को भी एक ताकतवर चुनावी दुश्मन ( भाजपा) को चुनौती देने के लिए तयशुदा तरीकों से अलग तरीके अपनाने की जरूरत है। जैसे प्रर्दशन आयोजित करना, वाटर कैनन का बहादुरी से सामना करना और संकल्प पारित करना। कुछ बड़ी चीजें करने की जरूरत है, जो नरेंद्र मोदी भाव-भंगिमा और जनसभाओं में उनके चलाकी भरे नारों और आह्वानों से लोगों का ध्यान हटा दे।

यदि विपक्ष की एकजुटता बन जाती है, तो उसे भाजपा की ‘मोदी बनाम कौन’ की रणनीति का शिकार नहीं बनना चाहिए। विपक्ष को यह चुनाव ‘लोकतंत्र बनाम तानाशाही’ को केंद्रीय मुद्दा बनाकर लड़ना चाहिए। आज संवैधानिक संस्थाओं, मूल्यों, स्वतंत्रताओं और जनहित की रक्षा के लिए सामान्य कथनों से काम नहीं चलने वाला है। इसके लिए ठोस और स्पष्ट योजना की जरूरत है।

क्या यह सब कांग्रेस, गांधी और विपक्षी दलों से बहुत अधिक उम्मीद कर रहा है? इसका उत्तर हां ही है। लेकिन हम भारत के आम नागिरकों के पास नाउम्मीदी के खिलाफ उम्मीद ही एकमात्र सहारा बचा है।

(हरबंस मुखिया जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में इतिहास के प्रोफेसर रहे हैं। द हिंदू से साभार। अनुवाद- सिद्धार्थ)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author