हाथरस पर अंट-शंट बयान देने वाले आला अफसरों की इलाहाबाद हाईकोर्ट में बंध गयी घिग्घी

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यदि न्यायपालिका किसी मुद्दे का स्वत:संज्ञान लेती है तो उसके सामने बड़े-बड़े महाबलियों की घिग्घी बंध जाती है और तार्किक प्रश्नों का कोई जवाब नहीं सूझता। इसी के लिए न्यायपालिका जानी जाती रही है। न्यायपालिका संविधान की संरक्षक होती है सरकार की मनमानियों को सही साबित करने का औजार नहीं। यदि आज के दौर में भी न्यायपालिका संविधान और कानून का अनुपालन कराने के अपने दायित्व का सम्यक निर्वहन करने लगे तो न केवल सरकार की मनमानियों पर प्रभावी अंकुश लगेगा बल्कि आम जन का उत्पीड़न भी रुकेगा। यदि सरकार के इशारे पर प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी मनमानी करते हैं ,दमनात्मक कार्रवाई करते हैं तो एक न्यायपालिका ही है जहाँ उनकी हेकड़ी गुम हो जाती है और हैसियत का पता चल जाता है ।   

हाथरस मामले का इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा स्वत: संज्ञान लेने के बाद जो सुनवाई हुई, उसमें जस्टिस पंकज मीथल और जस्टिस राजन राय की खंडपीठ के तीखे सवालों और पीड़ित परिवार की न्यायालय कक्ष में मौजूदगी से प्रदेश के आला प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों को जवाब देते नहीं बना और खंडपीठ से समय मांग कर अपनी फ़जीहत टाली गयी।

खंडपीठ ने जब सोमवार को यूपी के एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार से कहा कि अगर आपकी बेटी होती तो क्या आप बिना देखे अंतिम संस्कार होने देते? तो एडीजी लॉ एंड ऑर्डर की कोर्ट के इस सवाल पर बोलती बंद हो गयी क्योंकि उनके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था। कोर्ट ने जब यह पूछा कि हाथरस में बिगड़ी स्थिति को देखते हुए क्या-क्या कदम उठाए गए थे और अंतिम संस्कार के फैसले पर लखनऊ में बैठे जिम्मेदार अफसरों ने क्या भूमिका निभाई? इसके साथ तमाम अन्य बिंदु पर कोर्ट ने सवाल पूछे तो सरकार जवाब नहीं दे पाई और अपना पक्ष रखने के लिए वक्त मांग लिया और कोर्ट की तरफ से 2 नवंबर की अगली तारीख मुकर्रर कर दी गई।

हाईकोर्ट में सुनवाई के बाद बाहर आई पीड़िता के परिजनों की वकील सीमा कुशवाहा ने यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार बोल रहे हैं कि एफएसएल की रिपोर्ट में सीमन नहीं आया है। पीड़िता के परिजनों की वकील ने एडीजी को रेप की परिभाषा पढ़ने की सलाह दी और कहा कि मेरे पास सारी रिपोर्ट आ चुकी हैं। उन्होंने कहा कि जज ने जब सवाल जवाब हुए, तब प्रशासनिक अधिकारियों के पास कोई जवाब नहीं था।

डीएम को लेकर पीड़िता की भाभी ने कोर्ट को बताया कि इन्होंने कहा था कि अगर आपकी बेटी कोरोना से मर जाती तो आपको इतना मुआवजा नहीं मिलता। वकील के मुताबिक जज ने इस पर डीएम से सवाल किया कि अगर किसी पैसे वाले की बेटी होती तो क्या आप ऐसे ही हिम्मत करते उसे इस तरीके से जलाने की? जिस तरह से बड़े व्यावसायिक घरानों के लोगों को एक वोट का अधिकार है, वैसे ही दलित और अन्य सभी लोगों को भी वोट का अधिकार संविधान ने दिया है।

पीड़ित परिवार ने खंडपीठ से शिकायत की कि ना तो उन्हें अपनी बेटी का मुंह देखने दिया गया और न ही अंतिम संस्कार करने दिया। कोर्ट के सामने पीड़ित परिवार ने साफ कहा कि उनको तो पता ही नहीं कि अंतिम संस्कार उनकी बेटी के शव का हुआ है या किसी और के शव को पुलिस ने जला दिया। आखिरी वक्त पर चेहरा तक नहीं देखने को मिला। हमसे रजामंदी भी नहीं ली गई थी। अफसरों की दलील थी कि लॉ एंड ऑर्डर खराब न हो इसलिए ऐसा किया गया। कोर्ट ने पूछा कि क्या वह किसी अमीर आदमी की बेटी होती तो भी उसे इस तरह जला देते? कोर्ट को तय करना है कि क्या सरकारी तंत्र ने पीड़ित लड़की और उसके परिवार के मौलिक अधिकारों का हनन किया? हाथरस के पीड़ित परिवार के पांच लोग इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में पहुंचे। हाईकोर्ट ने पीड़ित लड़की के देर रात अंतिम संस्कार करने के मामले का खुद संज्ञान लेकर सुनवाई शुरू की है।

हाथरस के डीएम ने कहा कि रात में लड़की का अंतिम संस्कार करने का फ़ैसला उनका था। दिल्ली में लड़की का शव पोस्टमॉर्टम के बाद 10 घंटे रखा रहा। गांव में भीड़ बढ़ती जा रही थी। ऊपर से किसी भी अधिकारी ने कोई आदेश नहीं दिया था।स्थानीय प्रशासन के द्वारा बताया गया कि रात में अंतिम संस्कार कराने के लिए पीड़ित परिवार भी राजी है, जिसके बाद सैकड़ों की संख्या में गांव वालों की मौजूदगी और परिवार के अन्य लोगों के सामने अंतिम संस्कार करवाया गया। लॉ एंड ऑर्डर बिगड़ने का खतरा था इसलिए ऐसा किया गया।

खंडपीठ ने पूछा कि क्या और फोर्स बढ़ाकर अंतिम संस्कार के लिए सुबह होने का इंतज़ार नहीं किया जा सकता था? खंडपीठ ने उच्चतम न्यायालय के एक फ़ैसले का हवाला देते हुए कहा था कि संविधान का अनुच्छेद 21 जीने का भी अधिकार देता है। इसमें मरने के बाद शव की गरिमा और उसे सम्मानजनक बर्ताव पाने का भी हक़ हासिल है।

सीमा कुशवाहा ने कहा कि देश में हर समुदाय के लोगों का मानवाधिकार है। इसका उल्लंघन कैसे किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अंतिम संस्कार में गंगाजल होता है। गंगा मां का पवित्र जल छिड़का जाता है। आप केरोसिन डालकर उस बेटी को जला रहे हैं। ये मानवाधिकार का उल्लंघन है। जब लोगों ने अंतिम संस्कार कर लिया तब संदेशा भिजवाया और वहां पर कुछ लोग गए। फिर वीडियो बनाया।

सीमा कुशवाहा ने 2 नवंबर को अगली सुनवाई से पहले कोर्ट में हलफनामा दायर करने की बात कही और कहा कि इसमें सारी बातें बताएंगी । उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि हमने कोर्ट से तीन आग्रह किए, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। हमारा पहला आग्रह था कि केस को ट्रांसफर किया जाए। जांच जारी रहने तक केस ट्रांसफर नहीं किया जा सकता, ऐसे में जांच के बाद केस ट्रांसफर होगा। जांच से जुड़े तथ्य मीडिया में न आएं। इसे भी कोर्ट ने माना। ट्रायल चलने तक पीड़ित पक्ष को सुरक्षा देने का भी कोर्ट में आग्रह किया गया।

हाथरस कांड में हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने पीड़िता के शव को आधी रात में जलाए जाने के मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए ये सुनवाई की थी। सरकार की तरफ से डीजीपी हितेश चंद्र अवस्थी, एडीजी लॉ एंड आर्डर प्रशांत कुमार, अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी के साथ-साथ डीएम और एसपी हाथरस भी कोर्ट में पेश हुए।वहीं दूसरी तरफ पीड़िता के माता-पिता, दोनों भाई और भाभी भी कोर्ट में लाई गईं। करीब 2:15 बजे हाईकोर्ट ने सुनवाई शुरू की। बंद कमरे में सुनवाई पीड़ित परिवार से शुरू हुई।

खंडपीठ ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि हाथरस कांड में जिला प्रशासन ने संवेदनशीलता और जिम्मेदारी के साथ काम क्यों नहीं किया? हालांकि सरकार की तरफ से पक्ष रख रहे अपर महाधिवक्ता वीके शाही ने पीड़िता की मौत के बाद कुछ राजनीतिक दलों के द्वारा हंगामा कर खड़ा करने और कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने के इंटेलिजेंस इनपुट का भी जिक्र किया, लेकिन कोर्ट संतुष्ट नहीं हुआ और पूछ लिया हाथरस में बिगड़ी स्थिति को देखते हुए क्या-क्या कदम उठाए गए थे और अंतिम संस्कार के फैसले पर लखनऊ में बैठे जिम्मेदार अफसरों ने क्या भूमिका निभाई?

 इस पर कोर्ट ने जवाब तलब किया। तमाम अन्य बिंदु पर खंडपीठ ने तीखे सवाल पूछे तो सरकार ने अपना पक्ष रखने के लिए वक्त मांग लिया और कोर्ट की तरफ से 2 नवंबर की अगली तारीख निश्चित कर दी गई। सरकारी वकील वीके शाही ने कहा कि फिलहाल दो नवंबर की डेट है। दो नवंबर को एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) और स्पेशल सेक्रेटरी होम डिपार्टमेंट ये दो लोग आएंगे। पीठ ने कहा है बाकी किसी की ज़रूरत नहीं है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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