Thursday, April 25, 2024

आपदा में अवसर: अडानी समूह में हालिया तेजी की असलियत

अडानी के शेयरों में पिछले कुछ दिनों से तेजी दिखाई दे रही थी, जबकि शुक्रवार को इसके चार कंपनियों में मंदी का रुख देखने को मिला था। वहीं आज से दो सप्ताह पूर्व तक ऐसा कोई दिन नहीं जा रहा था जब अडानी के शेयर में लोअर सर्किट न लग रहा था। लेकिन शुक्रवार के दिन को यदि छोड़ दें जिसमें कुछ कंपनियों के शेयरों में गिरावट देखने को मिली, तो शेष में लगातार बढ़त बनी हुई थी। यह सब अचानक से कैसे हो रहा है?

क्या अडानी समूह ने हिंडनबर्ग की शोर्ट सेलिंग और विदेशी निवेशकों, बैंकों के द्वारा अडानी समूह की खस्ता आर्थिक स्थिति और वित्तीय अनियमितता की स्थिति से खुद को उबार लिया है? या यह सब स्टेज मैनेज्ड है, और आने वाले दिनों में इसमें बड़ी तबाही के संकेत छुपे हुए हैं?

क्या इस दौरान विदेशी निवेशकों, बैंकों के पास गिरवी रखे शेयरों को अडानी समूह चुकता कर उठा पायेगा, लेकिन इसका सारा बोझ भारतीय बैंकों को उठाना होगा, जो अंततः भारतीय आम लोगों के सिर पर आने की तैयारी है?

इस तेजी के पीछे की एक सबसे बड़ी वजह बनी है एक विदेशी कंपनी, जिसने अडानी समूह में पिछले सप्ताह रूचि दिखाई और उसके विभिन्न ग्रुपों के शेयर खरीदे। जीक्यूजी पार्टनर्स इंक नामक इस ग्रुप के संस्थापक राजीव जैन ने अडानी समूह के 1.87 बिलियन डॉलर (15,500 करोड़ रुपये) मूल्य के शेयर खरीदकर अडानी ग्रुप को नया जीवनदान दिया है। बताया जा रहा है कि राजीव जैन अडानी ग्रुप को बेहद सकारात्मक निवेश के तौर पर देखते हैं, और उनके अनुसार वे पिछले 5 वर्षों से इस अवसर की तलाश में थे।

हालांकि रायटर्स न्यूज़ के मुताबिक, इस खरीद से जीक्यूएस के निवेशकों में खलबली मची हुई है, और चूंकि इसमें बड़ी संख्या में निवेश ऑस्ट्रेलिया पेंशन फण्ड का लगा हुआ है और सभी बड़े निवेशकों, जिसमें नार्वे का वेल्थ फण्ड भी शामिल है ने अडानी समूह से अपनी हिस्सेदारी बेचकर निकलने में भलाई समझी थी, उसमें पैसा लगाने के औचित्य को सही ठहराने के लिए राजीव जैन ऑस्ट्रेलिया जा रहे हैं।

रायटर्स के मुताबिक जीक्यूजी पार्टनर्स ने करीब 66 करोड़ डॉलर में अडानी एंटरप्राइज में 3.4% की हिस्सेदारी खरीदी है। इसी प्रकार 64 करोड़ डॉलर में अडानी पोर्ट्स में 4.1%, 23 करोड़ डॉलर में अडानी ट्रांसमिशन में 2.5% और अडानी ग्रीन एनर्जी में 3.5% हिस्सेदारी को 23 करोड़ डॉलर में हासिल किया है। इसे अडानी फॅमिली ट्रस्ट से खरीदा गया है।

इसी प्रकार देखें तो एसबीआई कैपिटल ट्रस्टी ने 8 फरवरी को 1102 करोड़ रुपये का नया कर्ज अडानी ग्रुप को दिया था। यह ऋण अडानी ग्रुप के शेयरों के बदले में दिया गया था। और यह सब तब किया गया था जब एसबीआई कैप पहले से ही दो दिन पहले इसमें अपने निवेश पर 10% गंवा चुका था।

हाल के दिनों में अडानी समूह ने 7,374 करोड़ रुपये अपने गिरवी रखे शेयरों के एवज में चुकाए हैं। ये ऋण तुरंत नहीं चुकाए जाने थे, बल्कि 2025 में इन्हें चुकता करना था, लेकिन इनका प्री पेमेंट कर बाजार के सेंटिमेंट को सकारात्मक बना दिया गया है। इसके चलते पिछले हफ्ते अडानी ग्रुप की कंपनियों के शेयरों में जो लगातार गिरावट का रुख दिखाई दे रहा था, उसमें न सिर्फ ब्रेक लगा है, बल्कि पिछले कुछ दिनों से लगातार उठान पर हैं।

यहां पर बताते चलें कि शेयर बाजार चूंकि संवेदी सूचकांक पर चलता है और एक के बाद एक अडानी समूह ने अपने कर्ज चुकाकर अपनी आर्थिक स्थिरता के सुबूत बाजार को दे दिए, जिसके चलते बाजार में अडानी के शेयरों को लेकर स्थिरता और एक नया विश्वास बना है, और अडानी समूह की ऋण अदायगी पर लग रहे प्रश्नों पर लगाम लगी है। इसके साथ ही अडानी समूह की ओर से पिछले दिनों सिंगापुर में अपने पक्ष में माहौल बनाया जा रहा था, और अब ये रोड शो दुबई और यूरोप के शहरों में भी चलाए जा रहे हैं।

लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या वाकई में यह अडानी समूह की ऋण चुकता करने की क्षमता को सही मायने में दर्शाता है या इसमें बहुत बड़ा झोल है? या अडानी समूह की धड़ाम हो चुकी साख को कहीं न कहीं भारतीय सरकारी और संस्थागत समर्थन के बल पर इसे किसी तरह मैनेज किया जा रहा है, जो अंततः आने वाले दिनों में फिर से बीच चौराहे पर फूट सकता है?

सूत्रों के मुताबिक अभी फिलवक्त गौतम अडानी द्वारा सिर्फ 90 करोड़ डॉलर (7374 करोड़ रुपये) के कर्ज को ही चुकाया गया है, जबकि कुल कर्ज तो करीब 24।1 अरब डॉलर है। सूत्रों के मुताबिक मार्च 2023 के अंत तक ही अभी अडानी समूह को 2 अरब डॉलर के कर्ज चुकता करने बाकी हैं। कुल 2.40 लाख करोड़ के कर्जों में चूंकि अधिकांश हिस्सा विदेशी संस्थागत निवेशकों और बैंकों का था, और वहीं से लगातार अडानी समूह पर पैसे चुकता करने और शेयर वापस ले लेने के लिए दबाव बन रहा है, इसलिए अडानी समूह लगातार अपने शेयरों को कहीं और गिरवी रख रहा है और वहां से अर्जित धन से अपने पुराने गिरवी रखे शेयरों को वापस ले रहा है। लेकिन भारतीय बाजार में इसे एक सकारात्मक पहलू के रूप में गिनाकर और अडानी समूह की आर्थिक तरलता में मजबूती गिनाकर उसे हवा भरी जा रही है।

जहां तक भारतीय कर्ज का प्रश्न है, तो उसमें 80000 करोड़ रुपये का कर्ज भारतीय बैंकों ने दिया है। एलआईसी की ओर से 30, 000 करोड़ रुपये के शेयर ख़रीदे गये हैं। वहीं आरबीआई ने बैंकों से अपने द्वारा अडानी समूह को दिए गए ऋणों के बारे में जानकारी मांगी थी, जिससे पता चला कि एसबीआई, पीएनबी, बैंक ऑफ़ बड़ौदा सहित कई निजी क्षेत्र के बैंकों ने इस समूह को कर्ज दिया है। लेकिन फिलहाल अभी न ही सार्वजनिक बैंक और न ही जीवन बीमा निगम के द्वारा अडानी समूह को अपने पैसे वापस करने का कोई दबाव है।

लेकिन ऑस्ट्रेलिया के जीक्यूजी पार्टनर द्वारा अडानी समूह में 15,500 करोड़ रुपये लगाने की घोषणा के बाद से अडानी समूह के शेयरों में उछाल की शुरुआत हो गई है। एक अनुमान के मुताबिक अडानी समूह में 23 जनवरी के बाद से कुल 10 लाख करोड़ की गिरावट आई है। 24 जनवरी को अडानी समूह का मार्केट कैप 19.2 लाख करोड़ रुपये था। यदि हाल की तेजी को समायोजित करें तो इसने 1.6 लाख करोड़ रुपये की वापसी की है। जहां तक प्री पेमेंट लोन को चुकाने को लेकर शाबासी दी जा रही है, उसके बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि इसे किसी भी तरह से प्री पेमेंट नहीं कहा जा सकता है।

इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि यदि आपने शेयर किसी निश्चित मूल्य पर ले रखा है, लेकिन उसमें गिरावट आ जाती है तो ऐसे में ऋणदाता को या तो तत्काल रकम चुकता करनी होगी, अन्यथा उसके लिए बदले में उस मूल्य के और शेयर चुकता करने होंगे। यहां पर विदेशी निवेशक लगातार अडानी समूह पर अपने पैसे वापस करने के लिए दबाव डाल रहे हैं, और इसी के लिए अडानी समूह के द्वारा इधर-उधर से अपने शेयर बेचकर उनके पैसे चुकाए जा रहे हैं।

उधर सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा नियुक्त जांच कमेटी गठित हो चुकी है, और उसे इस जांच को दो महीने के भीतर संपन्न करना है, जिसका काम रेगुलेशन में कोई अनियमितता हुई या नहीं को देखना है। वहीं राजीव जैन जो जीक्यूजी ग्रुप के संस्थापक हैं, के अनुसार वे 15000 करोड़ ही नहीं बल्कि और अधिक पैसा लगाने को तैयार हैं। क्या जीक्यूजी ग्रुप के भरोसे अडानी समूह के निवेशकों के लिए आशा और उम्मीद बनती है? यह अपने आप में बड़ा सवाल है।

सेबी पर भी लोगों का विश्वास काफी हद तक घट चुका है। सेबी के पास शेयर मार्केट में किसी भी अनियमितता की जांच और कार्यवाई करने के लिए असीमित अधिकार हैं, और उसे आम निवेशकों के हितों की सुरक्षा को बनाये रखने की जिम्मेदारी है। लेकिन अभी भी सेबी की ओर से इस बारे में कोई आधिकारिक कार्यवाही नहीं की गई है, जो किसी भी निवेशक के लिए किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है। जहां तक मनी लांड्रिंग, राउंड ट्रिपिंग या शेल कंपनी और फंडिंग के स्रोत के बारे में पता लगाने का काम है, वह सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है, इसके लिए तो ईडी को स्वतः आगे आना चाहिए था। लेकिन ईडी तो देश के भीतर विपक्षी पार्टियों को ही खामोश करने में उलझी हुई है।

बाजार में इस जांच कमेटी के गठित हो जाने के चलते एक शांति का माहौल बन गया है, लेकिन यह राहत कहीं अडानी समूह के लिए अपनी लुटी-पिटी हालत को सुधारने के काम तो नहीं आ रही है? यह काम कौन देखेगा?

अडानी समूह ने दुबई, यूरोप में रोड शो शुरू कर दिए हैं। जिसमें पहला निवेशक जीक्यूजी समूह ही आया है, जिसके बारे में बाजार में शायद ही कोई जानकारी है। ऐसे कयास लगाये जा रहे हैं कि आबू धाबी से भी निवेश आ सकता है।

कुल मिलाकर यही पता चलता है कि अडानी समूह काफी खराब हालत में है। उसके भारी-भरकम कर्ज उसकी सामर्थ्य से बाहर हैं। ऐसे में अडानी समूह के पास जो 75% शेयर हैं, उन्हें कम दामों पर बेचकर अपने ऋण को चुकाना या अंबुजा सीमेंट जैसी परिसंपत्तियों में से अपनी भागीदारी को बेचकर किसी तरह कर्ज के मकडजाल से खुद को मुक्त करने का बचता है।

वैसे भी खबर है कि अगले हफ्ते अडानी समूह अंबुजा सीमेंट से अपनी हिस्सेदारी को 4-5% बेचने जा रही है, जिससे उसे 45 करोड़ डॉलर की जरुरी रकम हासिल हो सकेगी। इस समय अडानी समूह का सारा जोर अपने आगामी ऋणों को चुकता करने पर लगा हुआ है। सनद रहे कि पिछले वर्ष ही अडानी समूह ने अंबुजा सीमेंट को 81,360 करोड़ रूपये में खरीदा था, जिससे उसके पास इसके 63.2% शेयर का स्वामित्व प्राप्त हुआ था।

दुनिया में तीसरे सबसे बड़े कॉर्पोरेट समूह से फिसलकर एक बार फिर से अडानी समूह खुद को बचाने की जद्दोजहद में लगा हुआ है। लेकिन उसका यह तेजी से बढ़ना और भारत के इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में सरकारी नियंत्रण की लगभग सभी क्षेत्रों में अपनी गिरफ्त बनाने की हुड़क उसे उन शोर्ट सेलर्स और हेज फण्ड के सामने ले गई, जो ऐसे कई कॉर्पोरेट को मेमने की तरह पहले खेलने देते हैं।

जहां तक भारत और उसके नागरिकों का प्रश्न है, उनके सामने तो सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न यही बना हुआ है कि उसके हाड़ तोड़ मेहनत की पाई-पाई तो स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया जैसे सार्वजनिक बैंकों और जीवन बीमा निगम में ही पड़ी हुई है, जिसके बल पर भारत में नए-नए सूरमा सरमायेदार के साथ दोस्ती गांठ दुनिया को अपनी मुट्ठी में करने अक्सर निकल पड़ते हैं। इसमें से अधिकांश दुनिया के विभिन्न कोनों में पैसा लेकर भागे हुए हैं, और जो उनसे भी ज्यादा खास हैं, वे भारत में ही रहकर अभी भी उल्टा खुद को आम गरीब का मसीहा बता रहे हैं, और अपने लिए दुआ करने की नसीहत दे रहे हैं।

(रविंद्र पटवाल स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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Tribhuvan
Tribhuvan
Guest
1 year ago

Bahut satik khabar aapane likha

Madhurendra Kumar Verma
Madhurendra Kumar Verma
Guest
1 year ago

एक तरफा अदानी विरोधी खयालात इस लेख में प्रस्तुत किया गया है।

Amit
Amit
Guest
1 year ago

Bas andhbakto ko ye baat samaj aa jaaye

Ashok kumar
Ashok kumar
Guest
1 year ago

अडाणी ग्रुप अपने आपको निश्चित ही इस वैश्विक स्तर के षड्यंत्रकारी समूहों तथा व्यक्तिगत षड्यंत्रकर्ता जार्ज सेरोस के षड्यंत्र से उबार लेगा।
साध ही साथ भारतवर्ष के अन्दर पंचमक्कारो मोहम्मदी मिशनरी मैकाले मार्क्स और मौविस्टो समूहों और बेचैन विपक्षी दलों द्वारा संचालित प्रपंच मिशन के तहत अडाणी के उपर बेबुनियाद और भ्रामक आरोपी का भी पटाक्षेप जल्द ही होगा।

श्रवण सिंह राठौड़
श्रवण सिंह राठौड़
Guest
1 year ago

अपनी अपनी सोच है श्रीमान,आप का विश्लेषण सिर्फ पढ़ने लायक है,मनन करने लायक नहीं,क्या फर्क पड़ता है यदि अडानी पहले नंबर से 38 नंबर पर खिसक गए तो,भागे तो नही। वो जो यूपीए 2 के समय भागे,उनकी रिकवरी पर भी एक लेख की उम्मीद करते हैं हम लोग।

Sunil Bhatia
Sunil Bhatia
Guest
1 year ago

Patwal Ji, you have written one sided biased story. Not a balanced report. It’s not good to demean our own businessmen, who are contributing in to the GDP continuously for years.

Amit srivastava
Amit srivastava
Guest
1 year ago

Mujhe gautam adani me pooraka poora bharosa hai aur hope u understand dear….

Mac
Mac
Guest
1 year ago

Deshdroiyo Jorge sores ya open source se kitne mile kutte ye bhi likh is khabar ka sirsak chhapne k haramzade apni. Maa bhn bech de

Rushabh Shah
Rushabh Shah
Guest
1 year ago

Fully Biased Article

Arvind
Arvind
Guest
1 year ago

Yahi fark hai Modi bhakti aur desh bhakti me. Adani hai kon? Aur Modi kon? Bharat ke logo garib Amir sabka paisa hai banko bazar me koi karz liya koi girvi rakha baat hai dokha dhadhi ki jo dikhta hai, kai bank se videshi karj chuka raha hai adani group sarkari tantra se? Cash to tha nahi inke pass, kaise loan chukaya source of fund kaya hai batao aapke investors ko

Sudhir Pandey
Sudhir Pandey
Guest
1 year ago

Mahoday aapke lekh k anusar to adani group lag rha hai koi kirana store hai….
Adani is condition bahut jald nikal jayega, adani group ke pas loan hai to business bhi hai…

Vaise ek bat hai aapke is lekh se chamche bade khus honge

Kashi Nath
Kashi Nath
Guest
1 year ago

Aapkee soch bilkul nakaratmak hai. Aap jaise logon ke aise lekh se na niveshak ka bhala hoga Naa lakhon log jo naukari kar rahe Adani samooh me na unka bhala hoga. Vishwa kee sabse badee arth vyawastha Wale desh USA me do banks dharashayee ho gayen par wahan ka koi lekhak kisee bhee industrialist ko dosh nahee de raha hai. Bada vyawasay koi bhee kewal apnee poojee se nahee kar sakta hai

Ranjan Kumar mohanta
Ranjan Kumar mohanta
Guest
1 year ago

One sided jealous type story written by author

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