उच्चतम न्यायालय में आज पहली बार नये चीफ जस्टिस एनवी रमना के नेतृत्व में मामलों की विभिन्न पीठों ने सुनवाई की और पीठों के तेवर से लगा कि पिछले चार चीफ जस्टिसों, जस्टिस जगदीश सिंह खेहर, जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस एसए बोबडे के कार्यकाल की छाया से उच्चतम न्यायालय बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है। आज उच्चतम न्यायालय ने जहाँ स्पष्ट किया कि कोविड मुद्दों पर उच्चतम न्यायालय द्वारा की गई स्वत: संज्ञान कार्यवाही का उद्देश्य उच्च न्यायालयों को हटाना या उच्च न्यायालयों से सुनवाई को अपने पास लेना नहीं है और उच्च न्यायालयों में सुनवाई चलती रहेगी। वहीं पूर्ववर्तियों की कार्यप्रणाली के विपरीत कोरोना संकट पर केंद्र सरकार से कई अप्रिय सवाल भी पूछे। यही नहीं सॉलिसिटर जनरल के बार-बार टालने के अनुरोध को दरकिनार करके चीफ जस्टिस की पीठ ने केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन को अस्पताल में जंजीर से बाँधकर रखने के मामले में सुनवाई की और पूरी मेडिकल रिपोर्ट को तलब करके 28 अप्रैल को सुनवाई करने को कहा है।
पूर्ववर्ती चीफ जस्टिसों से इतर सीजेआई रमना ने पद संभालते ही कोरोना के हालात को लेकर वरिष्ठ जजों के साथ समीक्षा बैठक की, जिसमें सीजेआई के अलावा जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एल नागेश्वर राव थे। शपथ के बाद सीजेआई रमण उच्चतम न्यायालय परिसर में अपने कार्यालय में परिवार के साथ पहुंचे और जजों के साथ मशविरा किया।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस नागेश्वर राव और जस्टिस रविन्द्र भट्ट की नई पीठ ने मंगलवार को कोविड मुद्दों पर स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई की। पीठ ने स्पष्ट किया कि इस कार्यवाही का उद्देश्य उच्च न्यायालयों को हटाना या उच्च न्यायालयों से उन मामलों को लेना नहीं है, जो वो कर रहे हैं। उच्च न्यायालय एक बेहतर स्थिति में हैं कि वे यह देख सकें कि उनकी क्षेत्रीय सीमाओं के भीतर क्या चल रहा है। पीठ ने कहा कि राष्ट्रीय संकट के दौरान उच्चतम न्यायालय एक मूक दर्शक नहीं हो सकता। उच्चतम न्यायालय की भूमिका पूरक प्रकृति की है। जो मुद्दे राज्य की सीमाओं को पार करते हैं, वही ये अदालत देखेगी और इस तरह अनुच्छेद 32 क्षेत्राधिकार माना गया है।
पीठ ने कहा कि हम उच्च न्यायालयों में हस्तक्षेप का कोई कारण या औचित्य नहीं देखते हैं। पीठ ने स्वत: संज्ञान मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता और मीनाक्षी अरोड़ा को एमिकस क्यूरी बनाया। पीठ ने ऑक्सीजन की आपूर्ति, आवश्यक दवाओं, वैक्सीन मूल्य निर्धारण के मुद्दों पर केंद्र सरकार से रिपोर्ट मांगी है। इस मामले पर अगली सुनवाई 30 अप्रैल को होगी।
इसके साथ ही पीठ ने केंद्र सरकार से चार मुख्य मुद्दों पर जवाब मांगा है, जिसमें ऑक्सीजन की आपूर्ति, राज्यों की अनुमानित आवश्यकता, केंद्रीय पूल से ऑक्सीजन के आवंटन का आधार, एक गतिशील आधार पर राज्यों की आवश्यकता के लिए संचार की अपनाई गई कार्यप्रणाली, कोविड बेड समेत महत्वपूर्ण चिकित्सा आवश्यकताओं में इजाफा, रेमेडिसविर, फेविपिराविर सहित आवश्यक दवाओं की उचित उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए कदम, महामारी में वृद्धि के परिणामस्वरूप वैक्सीन की अनुमानित आवश्यकता का स्पष्टीकरण तथा वैक्सीन के मूल्य निर्धारण के संबंध में अपनाए गए आधार और औचित्य को भी स्पष्ट करने के मुद्दे शामिल हैं।
पीठ ने केंद्र से पूछा कि ऑक्सीजन की सप्लाई को लेकर केंद्र को मौजूदा स्थिति क्या है? कितनी ऑक्सीजन है? राज्यों की जरूरत कितनी है? केंद्र से राज्यों को ऑक्सीजन के अलॉटमेंट का आधार क्या है? राज्यों को कितनी जरूरत है, ये तेजी से जानने के लिए क्या प्रक्रिया अपनाई गई है? क्या ऑक्सीजन की सप्लाई और अस्पतालों में आपूर्ति के लिए सेना, अर्धसैनिक बलों को लगाया जा सकता है? दूसरी लहर ज्यादा खतरनाक है, इससे निपटने के लिए टीकाकरण जरूरी है, लेकिन इसकी कीमत को लेकर भी मतभेद हैं। केंद्र का इस पर नेशनल प्लान क्या है? पीठ ने कहा कि हमें केंद्र सरकार के जवाब को देखना है। पीठ दो दिन के बाद फिर सुनवाई करेगी और राज्यों के पक्ष को भी सुनेगी।
कोरोना के बढ़ते संकट से निपटने के लिए उच्चतम न्यायालय ने इसके पहले केंद्र सरकार से जो नेशनल प्लान मांगा था, उस पर मंगलवार को सुनवाई हुई। सरकार ने अपना प्लान दाखिल किया। सुनवाई के दौरान पीठ ने सवाल किया कि वैक्सीन के अलग-अलग दामों पर केंद्र क्या कर रहा है, अगर अभी की स्थिति नेशनल इमरजेंसी नहीं है तो क्या है? दरअसल, अदालत में सुनवाई के दौरान राजस्थान, बंगाल की ओर से वैक्सीन के अलग-अलग दामों पर आपत्ति जताई गई थी।
पीठ ने केंद्र से कहा कि गंभीर होती स्वास्थ्य जरूरतों को बढ़ाया जाए। कोविड बेड्स भी बढ़ाए जाएं। वो कदम बताइए जो रेमेडिसविर और फेवीप्रिविर जैसी जरूरी दवाओं की कमी को पूरा करने के लिए उठाए गए। अभी कोवीशील्ड और कोवैक्सिन जैसी दो वैक्सीन उपलब्ध हैं। सभी को वैक्सीन लगाने के लिए कितनी वैक्सीन की जरूरत होगी? इन वैक्सीन के अलग-अलग दाम तय करने के पीछे क्या तर्क और आधार हैं? 28 अप्रैल तक जवाब दें कि 18+ आबादी के वैक्सीनेशन के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़े क्या मामले हैं।
दिल्ली सरकार को फिर लताड़
इस बीच कोरोना संक्रमितों के इलाज के मुद्दे पर दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार को फिर लताड़ लगाई है। दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि आप से स्थिति नहीं संभल रही तो हमें बताइए, हम केंद्र को संभालने के लिए कहेंगे। हाई कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि आम आदमी पार्टी सरकार की पूरी व्यवस्था नाकाम रही है और ऑक्सीजन सिलेंडरों व कोविड 19 मरीजों के इलाज के लिए प्रमुख दवाओं की कालाबाजारी हो रही है। जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस रेखा पल्ली की खंडपीठ ने कहा कि यह समय गिद्ध बनने का नहीं है। पीठ ने ऑक्सीजन रिफिल करने वालों से कहा कि क्या आप कालाबाजारी से अवगत हैं। क्या यह कोई अच्छा मानवीय कदम है?’ खंडपीठ ने यह भी कहा कि राज्य सरकार इस गड़बड़ी को दूर करने में नाकाम रही है।
खंडपीठ ने दिल्ली सरकार के घर पर इलाज करा रहे कोविड मरीजों को रेमेडिसविर इंजेक्शन नहीं मिलेगा, इस आदेश पर नाराजगी जाहिर की है। खंडपीठ ने कहा कि आप ऐसा आदेश कैसे पास कर सकते हैं। इसका मतलब, जिनको अस्पताल में बेड नही मिला, उन्हें इंजेक्शन भी नहीं मिलेगा। यह तो लोगों की जिंदगी से खेलना हुआ। दिल्ली हाई कोर्ट ने पांच ऑक्सजीन रिफिलर्स कंपनियों के खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी किया है। यह कंपनियां कल हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद सुनवाई के दौरान मौजूद नहीं थीं।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)
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