जनसंघर्षों का नतीजा है हेमंत सरकार का नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को फिर से अधिसूचित नहीं करने का फैसला

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झारखंड सरकार ने पायलट प्रोजेक्ट नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को लेकर बड़ा निर्णय लिया है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के अवधि विस्तार के प्रस्ताव को विचाराधीन प्रतीत नहीं होने के बिंदु पर अनुमोदन दे दिया है।

बता दें कि वर्ष 1964 में शुरू हुए, नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज का तत्कालीन बिहार सरकार ने 1999 में अवधि विस्तार किया था। अब मुख्यमंत्री हेमंत सरकार ने जनहित को ध्यान में रखते हुए नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को पुनः अधिसूचित नहीं करने के प्रस्ताव पर सहमति प्रदान की है।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि झारखंड अलग राज्य गठन वर्ष 2000 में हुआ है, उसके बाद रघुवर दास को छोड़कर सभी मुख्यमंत्री आदिवासी समुदाय के रहे, बावजूद इसके तत्कालीन बिहार सरकार के 1999 में अवधि विस्तार को क्यों नहीं रोका गया? आज 22 वर्ष का बाद झारखंडी सरकार को अचानक जनहित कैसे दिख गया!

इस पर असिस्टेंट प्रोफेसर रजनी मुर्मू कहती हैं कि ‘नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज का विस्तार नहीं होगा –  झारखंड कौबिनेट का फैसला’

इस तरह से ये न्यूज़ खूब वायरल हो रही है। लेकिन बात यह है कि यह सैन्य विभाग का मामला है और सैन्य विभाग राष्ट्रपति के तहत आता है। सेना कहां प्रैक्टिस करेगी? यह सैन्य विभाग तय करेगा जो केंद्र सरकार के दिशा निर्देश पर चलता है।

लेकिन दो दिन बीत चुके हैं और कैबिनेट की अधिसूचना अभी तक जारी नहीं हुई है। इस हवा हवाई सूचना में वो लोग मुख्यमंत्री को बधाई देते हुए उनके साथ फोटो खिंचवाने में आपाधापी कर रहे हैं, जिनका नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के आंदोलन में रत्ती भर भी योगदान नहीं है। ये नेतरहाट के महुआडांड़  इलाके के  245 आदिवासी गांव के आदिवासियों के साथ धोखा है।

इस आंदोलन में केंद्रीय जनसंघर्ष समिति के जेरोम जेराल्ड कुजूर, अनिल मनोहर, साबरी मत्थू और इलिन लकड़ा सहित गांव के वो सैकड़ों लोगों का योगदान है। 

अभी केंद्र सरकार ने फॉरेस्ट कंजरवेशन एक्ट पास है जिसमें सेंट्रल गवर्मेंट को आदिवासियों की जमीन लेने के लिए न स्टेट से सहमति की आवश्यकता होगी न ही ग्राम सभा की।

मोदी सरकार लातेहार में ही टाइगर प्रोजेक्ट और मंडल डैम का उद्घाटन कर चुकी है, जिसका सीधा मतलब है कि उस प्रोजेक्ट के तहत जितने भी आदिवासी गांव आयेंगे उन सब को उजाड़ा जायेगा।

ऐसी स्थिति में झारखंड स्टेट के कैबिनेट के फैसले की क्या अहमियत होगी, सोचने वाली बात है। मुझे ये बधाई सेरेमनी जनता को धोखा में रखने का एक टूल ही नजर आ रहा है।

सामाजिक कार्यकर्ता व पत्रकार सुनील मिंज कहते हैं कि नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को झारखंड सरकार द्वारा पुनः अधिसूचित नहीं करने का निर्णय लिये जाने का श्रेय निःसंदेह 1471 वर्ग किलोमीटर के प्रभावित इलाके में पसरी 242 ग्राम सभाओं को जाता है। इन सशक्त ग्राम सभाओं ने 90 के दशक से ही केंद्रीय जन संघर्ष समिति का गठन कर गांधी के सत्याग्रह के रास्ते पर चलते हुए कागजी प्रक्रिया का अच्छा इस्तेमाल कर आर्टिलरी प्रैक्टिस के दौरान तोप से निकलने वाली गर्जन को रोक दिया था। लंबे संघर्ष के दौरान कई नेतृत्वकारी अगुवाओं के ऊपर सरकार विरोधी काम करने के आरोप में संगीन मामले लादे गए। इन चुनौतियों के बावजूद अपनी जन्मस्थली को बचाने के लिए वे नेतरहाट के पठार पर वैसे ही डटे रहे जैसे वहां साल के पेड़ खड़े हैं।

वे आगे कहते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 242 (1और 2) का संज्ञान लेते हुए जिसमें आदिवासी इलाकों में प्रशासन और नियंत्रण की बात लिखी हुई है, झारखंड के युवा मुख्य मंत्री हेमंत सोरेन ने नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को पुनः अधिसूचित नहीं करने का निर्णय लिया। जो पूरी तरह जनता की जीत है।

नरेगा वाच के राज्य संयोजक जेम्स हेरेंज कहते हैं कि देश में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ तीव्र उलगुलान का काल रहा हो या आजाद भारत में अपने नैसर्गिक संसाधनों यथा जल, जंगल, जमीन की रक्षा व अपने अस्तित्व बचाने की जंग हो, आदिवासी समुदाय हमेशा से मुखर होकर सामूहिकता में संघर्ष किया है। आज नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज जो झारखण्ड के सघन आदिवासी इलाके के 1471 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में अवस्थित है, जिसमें 157 मौजों के 245 आदवासी बहुल गांव बसे हैं, जो अपने 30 वर्षों के अहिंसात्मक आन्दोलन के रास्ते अपनी ऐतिहासिक जीत दर्ज कर ली है। विशालतम साल के वर्षों पुराने पेड़ व घने जंगल, दर्जनों निर्झर नदी नाले, पर्यटन स्थल, कोरवा, विरिजिया, असुर, उराँव जैसे आदिवासियों की समृद्ध संस्कृति को समेटे यह क्षेत्र का अब विस्थापन के साये उन्मुक्त हो चुकने की गुंजाइश बढ़ गई है। इन तीस सालों में प्रभावित इलाके के लोगों से अनेकानेक नेतृत्वकर्ता अगुआ उन से बिछुड़ गए हैं। काश आज के दिन वो होते तो गाँव के अखड़ो में ढोल, नगाड़े और मांदरों की थाप कई – कई दिनों तक गूंजते। खैर उन पुरखों ने हमें संघर्ष का मार्ग चुनना सिखाया, जिसकी बदौलत हम आज ऐतिहासिक शिखर पर विराजमान हैं, यह आदिवासी संघर्षशील समुदाय के लिए बेहद गौरवपूर्ण पल है।

ज्ञान विज्ञान समिति, झारखंड के महासचिव विश्वनाथ सिंह कहते हैं कि इस जीत का सबसे पहले श्रेय जन संघर्ष समिति और उसके अगुआ साथियों के जुनून, समझदारी, धैर्य, समन्वय, आत्मविश्वास एवं उन ग्रामीणों को जिन्होंने हार नहीं मानी और आन्दोलन के दौरान निरंतर हर तरह की मुसीबतों का सामना करते हुए, मीलों पैदल चले, संघर्षशील रहे, को जाता है। वहीं इस जीत के सबसे बड़े बधाई के पात्र हैं माले विधायक विनोद सिंह, जो विधानसभा में इस बात को बराबर उठाते रहे। हेमंत सरकार को बधाई दिया जा सकता है कि निर्णायक पहल तो की।

केन्द्रीय जन संघर्ष समिति लातेहार- गुमला के सचिव जेरोम जेराल्ड कुजूर कहते हैं कि बड़ी खुशी की बात है, कि नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के खिलाफ प्रभावित क्षेत्र की जनता जो 28 साल तक संघर्षरत रही, उसके संघर्षशील आन्दोलन की बदौलत ही आज हेमंत सरकार फायरिंग रेंज के लिए जमीन नहीं देने का फैसला किया। वे कहते हैं कि हमारे इस सत्याग्रह की बदौलत यह सफलता मिली है, इसके लिए सभी संघर्ष से जुड़े साथियों (जो आज हमारे बीच नहीं हैं) को बहुत-बहुत बधाई।

झारखंड की राजधानी रांची से 170 किमी एवं लातेहार से 100 किलोमीटर दूर पहाड़ों की रानी कहा जाने वाला विश्व प्रसिद्ध नेतरहाट के टुटवापानी नामक स्थान पर जल, जंगल, जमीन के लिए लातेहार और गुमला जिले के प्रभावित 245 गांव के लाखों ग्रामीण 28 साल तक आन्दोलन किए। 1994 से लेकर 2022 तक नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की अधिसूचना रद्द कराने को लेकर प्रत्येक वर्ष 22 एवं 23 मार्च को ‘आवाज दो हम एक हैं’ के नारों से पूरी वादी गुंजायमान हो जाती थी। देश भर की कई हस्तियों ने आंदोलन में अपनी सहभागिता निभाई। इस आंदोलन में पत्रकार, लेखक, कलाकार, सामाजिक कार्यकर्ता, फिल्म निर्देशक, युवा शामिल होते रहे। 

आन्दोलन की इसी कड़ी में 22 मार्च, 2022 को किसान नेता राकेश टिकैत व माले विधायक विनोद सिंह ने भी नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के विरोध-प्रदर्शन में पहुंचकर ग्रामीणों के साथ “जान देंगे, जमीन नहीं देंगे” का नारा बुलंद किया। विख्यात अर्थशास्त्री प्रोफ़ेसर ज्यां द्रेज ने आंदोलन को एशिया महादेश का दूसरा सबसे बड़ा आंदोलन कहा। उन्होंने यह भी कहा था, कि अहिंसात्मक और सत्य के साथ आन्दोलन पूरी सफलता से आगे बढ़ रहा है।

यहां बताना जरूरी होगा कि 1954 में केंद्र सरकार ने ब्रिटिश काल से चले आ रहे कानून ‘मैनुवर्स फील्ड फायरिंग एंड आर्टिलरी प्रैटिक्स एक्ट, 1938’ की धारा 9 के तहत नेतरहाट पठार के सात गांवों को तोपाभ्यास (तोप से गोले दागने का अभ्यास) के लिए नोटिफाई किया था। इसके बाद वर्ष 1992 में फायरिंग रेंज का दायरा बढ़ा दिया गया और इसके अंतर्गत 7 गांवों से बढ़ाकर 245 गांवों की कुल 1471 वर्ग किलोमीटर इलाके को शामिल कर दिया गया।

1994 से जारी आंदोलन के बीच वर्ष 1999 में नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को लेकर सरकार ने एक नया नोटिफिकेशन जारी करके इसकी अवधि 11 मई 2022 तक के लिए बढ़ा दी थी। जबकि 1994 में हुए ग्रामीणों द्वारा जोरदार विरोध के बाद से ही सेना ने यहां फायरिंग प्रैक्टिस नहीं की थी, बावजूद क्षेत्र के लोग इस बात को लेकर हमेशा आशंकित रहे कि फायरिंग रेंज की अधिसूचना फिर बढ़ाया जा सकता है। नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के नोटिफिकेशन की अवधि 11 मई 2022 को समाप्त हो गई थी, लेकिन इस संबंध में सरकार की ओर से स्थिति स्पष्ट नहीं की गई थी। 17 अगस्त की शाम झारखंड सरकार ने आधिकारिक तौर पर कहा है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को पुन: अधिसूचित (नोटिफाई) करने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।

अगर अवधि समाप्ति को आगे बढ़ाया जाता तो इस पायलट प्रोजेक्ट नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज से लाखों लोगों को विस्थापित होना पड़ता और वे अपने घर, खेत खलिहान,जल जंगल, सरना, अखाड़ा एवं धर्म संस्कृति से दूर हो जाते, जो आदिवासी जीवन का एक अभिन्न अंग है। प्रोजेक्ट की अधिसूचना के अनुसार 1471 वर्ग किमी अधिसूचित क्षेत्र था, जिसका 188 वर्ग किमी का संघात क्षेत्र था। नेतरहाट के 9 वर्ग किमी अंदर एवं 9 वर्ग किमी बाहर के क्षेत्र में सैनिक शिविर बनते, इस प्रोजेक्ट से लातेहार व गुमला के गांव प्रभावित हो रहे थे। निर्माण के लिए गांवों की भूमि अधिग्रहित किये जाने का प्रावधान था, जिससे कई गांवों का अस्तित्व पूरी तरह से समाप्त हो जाता।

प्रोजेक्ट अधिसूचित क्षेत्र में जो गांव पूरी तरह प्रभावित हो रहे थे उनमें से लातेहार जिलान्तर्गत महुआडांड़ प्रखंड के कुल 52 गांव, गुमला जिलान्तर्गत विशुनपुर प्रखंड के कुल 70 गांव, चैनपुर प्रखंड के कुल 46 गांव, डुमरी प्रखंड के कुल 30 गांव, घाघरा प्रखंड के कुल 42 गांव और गुमला प्रखंड के कुल 5 गांव शामिल थे।

21 अप्रैल 2022 को केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति के बैनर तले सत्याग्रह स्थल टुटवापानी से राजभवन के तक पद यात्रा की गई थी, जिसमें अनिल मनोहर वगैरह शामिल केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति के सचिव जेरोम जेराल्ड कुजूर समेत फिल्म निर्देशक श्रीराम डाल्टन, आंदोलनकारी थे। पदयात्रा 25 अप्रैल को रांची पहुंची, जहां फील्ड फायरिंग रेंज के विरोध में लातेहार जिला के करीब 39 राजस्व ग्रामों के द्वारा आम सभा के माध्यम से राज्यपाल को एक ज्ञापन सौंपा गया।

इस अवसर पर जनता को बताया गया कि नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज से प्रभावित लातेहार और गुमला जिला पांचवी अनुसूची के अंतर्गत आता है। यहां पेसा एक्ट 1996 लागू है, जिसके तहत ग्राम सभा को संवैधानिक अधिकार प्राप्त है। प्रभावित इलाके के ग्राम प्रधानों ने जनता की मांग पर ग्राम सभा आयोजन कर नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के लिए गांव की सीमा के अंदर की जमीन सेना के फायरिंग अभ्यास के लिए उपलब्ध नहीं कराने का निर्णय लिया था। साथ नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की अधिसूचना आगे और विस्तार नहीं कर विधिवत अधिसूचना प्रकाशित कर परियोजना को रद्द करने का अनुरोध किया था।

उल्लेखनीय है कि 1966 से 90 तक सेना के आने का कोई निश्चित समय नहीं होता था। बरसात, गर्मी या सर्दी कभी भी नोटिस तामील कर देने के बाद वे आ जाते थे। फायरिंग अभ्यास करने के बाद सेना गोलों के खोल छोड़कर चले जाते थे, जिसमें कई जिंदा होते थे, जो गोलाबारी के दौरान नहीं फटते थे। एक बार पकरीपाठ गांव में कुछ बच्चों को बकरी चराते समय जंगल से खोका मिला तो उठा लाए। बच्चों ने उसे पत्तों पर रखकर आग लगा दी। जिसके बाद तेज विस्फोट हुआ जिसमें सात-आठ बच्चे छर्रे से घायल हुए छाताशरी गांव के रामू का छर्रा से जबड़ा उखड़ गया।

गुमला के विशुनपुर के हेनरी तिर्की सेना के फायरिंग रेंज के खिलाफ आवाज उठाने वालों में प्रमुख है, वे बताते हैं कि सेना का नोटिस मिलने के बाद गांव खाली करना पड़ता था। गांव वाले खाना पकाकर, बैल-बकरी के साथ क्षेत्र से दूर हो जाते थे। घर खाली कराने बाद डेढ़ रुपए प्रति व्यस्क एवं 50 पैसा बच्चों को दिया जाता था।फायरिंग की वजह से बहुत से मवेशियों की जाने चली जाती थी।

बता दें कि 1994 में 22 से 27 मार्च के बीच सेना का रूटीन तोपाभ्यास तय था। 1991-92, 1993 की अधिसूचना में बढ़ाई गई गांवों की संख्या को लेकर लोगों का दबा आक्रोश बाहर आया। 20 मार्च से ही जन संघर्ष समिति के बैनर तले फायरिंग रेंज के विरोध में लोगों की भारी भीड़ इकट्ठा होने लगी। एक सप्ताह तक चले इस जन-आंदोलन में सवा लाख ग्रामीण दिन-रात डटे रहे। मजबूर होकर सेना को गाड़ियों व तोपवाहन को लेकर वापस लौटना पड़ा। यानी 1994 के भारी विरोध आंदोलन के कारण सेना का मैदानी गोलाबारी का अभ्यास बंद हुआ। लेकिन 1994 से लेकर हर वर्ष 22-23 मार्च को 2022 तक विरोध की गूंज बंद नहीं हुई।

तारीखों की नजर में नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज

1956 – मैनुवर्स फील्ड फायरिंग एंड आर्टिलरी प्रैक्टिस एक्ट के तहत 1956 से 1992 तक गोलाबारी अभ्यास के लिए नेतरहाट के 7 गांव की अधिसूचना।

1964 – सेना द्वारा पठार इलाके में गोलाबारी अभ्यास की शुरुआत।

1991 –  बिहार गजट असाधारण अंक, दिनांक 25 नवंबर 1991, एस, ओ, 761 की अधिसूचना जारी जिसके अन्तर्गत 12 मई 1992 से 11 मई 2002 तक प्रभावी।

1992 –  दिनांक 28 मार्च 1992, एस. ओ. 84 अधिसूचना जारी जिसके अन्तर्गत 12 मई 1992 से 11 मई 2002 तक प्रभावी।

14 सितंबर 1992 –  महुआडांड़ अंचल के 29 गांवों के अधिग्रहण से संबंधित अधिसूचना प्रकाशित जिसकी क्रमांक संख्या 1466 है।

25 सितंबर 1993 – नेतरहाट में पलामू व गुमला के उपायुक्तों एवं उनके अधीनस्थ अधिकारियों एवं सेनाधिकारियों की बैठक।

9 अक्टूबर 1993 – 23वीं आर्टिलरी ब्रिगेड के ब्रिगेडियर आई. जे. कुमार का प्रेस कॉन्फ्रेंस।

21 जून 1993 – पलामू छात्र संघ का महुआडांड़ अंचलाधिकारी कार्यालय का घेराव व रामपुर में आम सभा।

25 सितम्बर 1993 – तदर्थ संघर्ष समिति का गठन रेयाजुद्दीन अहमद अध्यक्ष निर्वाचित।

27 सितंबर 1993 – महुआडांड़ प्रखंड कार्यालय के सामने प्रदर्शन एवं राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन और सैनिक छावनी संघर्ष समिति का विधिवत गठन।

1 अक्टूबर 1993 – पलामू उपायुक्त के समक्ष प्रदर्शन।

13 अक्टूबर 1993 – पलामू छात्र संघ का रांची में प्रदर्शन।

17 अक्टूबर 1993 – प्रखंड कार्यालय में योजना के खिलाफ विशाल प्रदर्शन।

20 अक्टूबर 1993 – कटकाही में आम सभा।

23 अक्टूबर 1993 – चैनपुर में मौन जुलूस।

28 अक्टूबर 1993 – कांग्रेस सांसद शिव प्रसाद साहू की आम सभा बिशुनपुर में, जिसमें कहा छावनी का कोई प्रस्ताव नहीं।

अक्टूबर 1993 – केन्द्रीय जन संघर्ष समिति पलामू-गुमला का गठन गुमला में।

25 अक्टूबर 1993 –  पलामू छात्र संघ, हीरा-बरवे छात्र संघ एवं बनारी- बिशुनपुर छात्र संघ का संयुक्त अधिवेशन संत जोसेफ क्लब राँची में।

6 मार्च 1994 – संताल परगना एवं छोटानागपुर के बिशपों का प्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री से संबंधित योजना को लेकर मुलाकात।

20 से 27 मार्च 1994 – प्रथम सत्याग्रह टुटवापानी जोकीपोखर में।

9 अप्रैल 1994 –  दिल्ली में योजना के खिलाफ आदिवासी युवा संघ का प्रदर्शन।

22 से 27 अप्रैल 1994 – द्वितीय सत्याग्रह टुटवापानी जोकीपोखर में।

9 जुलाई 1994 – त्रिपक्षीय वार्त्ता नेतरहाट पलामू डाक बंगला में।

9 जून 1997 – द्वितीय त्रिपक्षीय वार्ता नेतरहाट पलामू डाक बंगला में।

9 जुलाई 1997 – तृतीय त्रिपक्षीय वार्ता।

2 नवंबर 1999 – 12 मई 2002 से 11 मई 2022 तक के लिए गोलाबारी अभ्यास की अधिसूचना जारी।

             (झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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