अडानी ग्रुप की तीन कंपनियों ने गिरवी रखे अपने 1.1 बिलियन डॉलर से अधिक के शेयर

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अमेरिका की शॉर्ट सेलिंग फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने 24 जनवरी, 2023 को अडानी ग्रुप के खिलाफ एक निगेटिव रिपोर्ट जारी की थी, तबसे ग्रुप के शेयर लगातार गिरते जा रहे हैं। ग्रुप की कई कंपनियों के शेयर 52 हफ्ते के न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुके हैं। अडानी ग्रुप का मार्केट कैप 100 अरब डॉलर से अधिक गिर चुका है। अडानी ग्रुप की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही है। अब ग्रुप की कंपनियों के बारे में एक और खबर आ रही है। अडानी ग्रुप की तीन कंपनियों ने बैंकों के पास अपने 1.1 बिलियन डॉलर से अधिक के शेयर गिरवी रखे हैं।

इस बीच आर्थिक मामलों की दुनियाभर में प्रतिष्ठित मैगजीन द इकोनॉमिस्ट ने अडानी मामले पर कवर स्टोरी छापी है। इन बैंकों ने अडानी ग्रुप की फ्लैगशिप कंपनी अडानी एंटरप्राइजेज को कर्ज दे रखा है। इन कंपनियों ने अपने शेयर एसबीआईकैप ट्रस्टी कंपनी के पास गिरवी रखे हैं। एसबीआईकैप ट्रस्टी कंपनी देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की एक यूनिट है। उसने बीएसई को एक जानकारी में बताया है कि अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक, अडानी ट्रांसमिशन लिमिटेड और अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड ने उसके पास अपने शेयर गिरवी रखे हैं।

हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में दावा किया गया था कि अडानी ग्रुप ने शेयरों के साथ छेड़छाड़ की है। हालांकि अडानी ग्रुप ने इन आरोपों का खंडन किया है। लेकिन इस रिपोर्ट के आने के बाद से अडानी ग्रुप के शेयरों में लगातार गिरावट आ रही है। इस बीच एमएससीआई ने भी अडानी ग्रुप की चार कंपनियों का फ्री फ्लोट स्टेटस कम कर दिया है।

रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक मार्केट रेगुलेटर सेबी अडानी ग्रुप और कुछ इनवेस्टर्स के साथ उसके लिंक्स की जांच कर रहा है। इन निवेशकों ने हाल में ग्रुप की फ्लैगशिप कंपनी अडानी एंटरप्राइजेज के एफपीओ में पैसा लगाया था। हालांकि अडानी ग्रुप ने इस एफपीओ को वापस ले लिया था और निवेशकों के पैसे लौटा दिए थे।

एसबीआई के प्रवक्ता ने एक बयान में कहा कि एसबीआई ने अडानी ग्रुप के ऑस्ट्रेलिया में स्थित कार्मीकेल प्रोजेक्ट को 30 करोड़ डॉलर की स्टैंडबाई एलसी फैसिलिटी दी थी। इसके तहत ग्रुप की तीन कंपनियों के कुछ अतिरिक्त शेयर गिरवी रखे गए हैं। 140 प्रतिशत के जरुरी कोलेट्रल कवरेज की हर महीने के अंत में समीक्षा की जाती है और किसी भी कमी को टॉप अप के रूप में पूरा किया जाता है। पिछले साल जून और जुलाई में टॉप अप किया गया था और ऐसा तीसरा टॉप अप आठ फरवरी को किया गया।

प्रवक्ता ने कहा कि सिक्योरिटी ट्रस्टी होने के नाते एसबीआई कैप ट्रस्टी कंपनी को इसकी जानकारी सेबी को देनी पड़ती है। जब भी गिरवी रखे गए शेयरों की संख्या में बदलाव होता है तो इसकी जानकारी मार्केट रेगुलेटर को देनी पड़ती है। इसके साथ ही इस प्रोजेक्ट में अडानी ग्रीन के गिरवी शेयरों की संख्या 1.06 परसेंट, अडानी पोर्ट्स की 1.00 परसेंट और अडानी ट्रांसमिशन की 0.55 फीसदी पहुंच गई है।

यह केवल अतिरिक्त कोलेट्रल सिक्योरिटी है और इसके लिए एसबीआई ने कोई फाइनेंस नहीं दिया है। यह शेयर आस्ट्रेलिया की कारमाइल खदान को लेकर लिए कर्ज के बदले गिरवी रखे गए हैं। एसबीआई ने कहा कि शेयर गिरवी का टॉप-अप भी पिछले साल दो बार किया गया था और नवीनतम 8 फरवरी 2023 को किया गया था।

अडानी समूह की कंपनियों पर कुल कर्ज 3.39 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गया है। यह भारत की अर्थव्यवस्था के 1 फ़ीसदी के बराबर है। निक्केई एशिया के एक विश्लेषण से यह जानकारी मिली है। निक्केई की गणना के मुताबिक शेयर बाजार में लिस्टेड गौतम अडानी की 10 कंपनियों की देनदारी 3.39 लाख करोड़ रुपए है। इसमें एसीसी, अंबुजा सीमेंट और एनडीटीवी के अलावा गौतम अडानी ग्रुप की सात कंपनियां शामिल हैं।

आर्थिक मामलों की दुनियाभर में प्रतिष्ठित मैगजीन द इकोनॉमिस्ट ने अडानी मामले पर कवर स्टोरी छापी है। द इकोनॉमिस्ट जैसी पत्रिका में कवर स्टोरी तभी छपती है जब मामला बेहद संगीन होता है। इसके पहले वॉशिंगटन पोस्ट, न्यूयॉर्क टाइम्स, वॉल स्ट्रीट जनरल ने भी अडानी मामले पर विस्तार से कई रिपोर्ट प्रकाशित हुई हैं।

सत्य हिंदी डॉटकाम के अनुसार द पैराबल ऑफ अडानी शीर्षक से प्रकाशित इस स्टोरी को भारतीय पूंजीवाद के लिए एक टेस्ट बताया गया है। यानी अडानी समूह डूबा तो भारतीय पूंजीवाद की बड़ी विफलता की तस्वीर सामने आ सकती है। द इकोनॉमिस्ट ने हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट के तथ्यों का उल्लेख करते हुए कहा है कि अडानी का बिजनेस विस्तार मॉडल बैंक कर्जों से भरपूर है जो बहुत साहसिक दिखता है लेकिन बहुत कम तर्कसंगत लगता है।

द इकोनॉमिस्ट ने लिखा है कि प्रधानमन्त्री मोदी के कार्यकाल ने भारत की अदालतों और पुलिस की आजादी को कमजोर कर दिया है। मीडिया कायर है। भारत की समृद्धि के लिए इसके बुनियादी ढांचे की तरह इसके संस्थानों की मजबूती भी जरूरी है। भारतीयों को बिजली और सड़कों से फायदा होगा लेकिन उन्हें स्वच्छ प्रशासन और एक समान अवसर की भी जरूरत है।

द इकोनॉमिस्ट ने लिखा है कि जितना बड़ा कारोबारी होगा, उतना ज्यादा स्टेक दांव पर होगा। भारत की सबसे बड़ी 500 गैर वित्तीय फर्मों के मुकाबले अकेले अडानी ने ही 7 फीसदी का पूंजी निवेश कर रखा है। लेकिन क्या अब उस निवेश को संघर्ष नहीं करना पड़ेगा, क्या वो अधूरे नहीं रह जाएंगे।

प्रधानमंत्री मोदी अभी तक अडानी के खतरों पर चुप हैं। उनके मंत्री भरोसा दे रहे हैं कि भारत का मूलभूत आर्थिक ढांचा बहुत मजबूत है। लेकिन अगर भारत इसी तरह तरक्की करता रहा तो उसे विदेश से बहुत ज्यादा पैसे की जरूरत होगी जो निवेश के रूप में ही आ सकता है। लेकिन जिन देशों में गवर्नेंस बेहतर या अच्छा नहीं है, वहां विदेशी कंपनियां जाने में हिचकती हैं या चिंतित रहती है।

द इकोनॉमिस्ट ने लिखा है कि जब न्यूयॉर्क की एक छोटी सी फर्म (हिंडनबर्ग रिसर्च) अडानी समूह से तीखे सवाल कर सकती है तो भारतीय रेगुलेटर (सेबी, आरबीआई) क्यों नहीं सवाल कर सकते। भारतीय रेगुलेटर अडानी की जो भी जांच कर रहे हैं, उन्हें उसके बारे में बताना चाहिए। उस जांच का स्टेटस क्या है, यह बताना चाहिए। उसे मॉरीशस रूट की उन वित्तीय संस्थाओं से पूछना चाहिए, जिन्होंने अडानी ग्रुप की कंपनियों में पैसा लगा रखा है। भारतीय स्टॉक मार्केट के स्कैंडल वैसे भी मॉरीशस रूट की कंपनियों की वजह से सामने आते रहते हैं।

द इकोनॉमिस्ट ने लिखा है कि मोदी के कार्यकाल में बहुत सारी तरह से चेक एंड बैलेंस सिस्टम में गिरावट आई है। यानी कहीं गड़बड़ी होने पर सरकार की संस्थाएं उसे फौरन ठीक करती हैं या कार्रवाई करती हैं। मोदी सरकार ने भारतीय अदालतों और पुलिस की आजादी को ताक पर रख दिया। भारतीय मीडिया जो पहले बहुत सक्रियता से तमाम मामलों की जांच करता था या नजर रखता था, अब नपुंसक बन गया है। कुछ अखबारों ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट छापी लेकिन अडानी समूह से कड़े सवाल नहीं कर पाए। अडानी ने खुद उस चैनल एनडीटीवी को खरीद लिया जो कभी सरकार का आलोचक था।

हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी समूह पर स्टॉक बाज़ार में हेरफेर करने का एक सनसनीखेज आरोप लगाया था। इसने कहा कि अडानी समूह एक स्टॉक में खुलेआम हेरफेर करने और अकाउंट की धोखाधड़ी में शामिल था। हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी समूह से 88 सवाल भी पूछे थे जिनका अदानी समूह ने 413 पन्नों में जवाब दिया था, जिसे हिंडनबर्ग रिसर्च ने ख़ारिज करते हुए कहा था कि उसके 62 सवालों का कोई जवाब ही नहीं दिया गया है और वह अपनी रिपोर्ट पर कायम है।

रिसर्च फर्म ने कहा कि उसकी दो साल की जांच में पता चला है कि “अडानी समूह दशकों से 17.8 ट्रिलियन (218 बिलियन अमेरिकी डॉलर) के स्टॉक के हेरफेर और अकाउंटिंग की धोखाधड़ी में शामिल था। रिसर्च फर्म की रिपोर्ट के मुताबिक अडानी समूह के चेयरमैन गौतम अडानी ने पिछले तीन सालों के दौरान लगभग 120 अरब अमेरिकी डॉलर का लाभ अर्जित किया है जिसमें से अडानी समूह की सात प्रमुख सूचीबद्ध कंपनियों के स्टॉक मूल्य की बढ़ोत्तरी से 100 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक कमाये। जिसमें पिछले तीन साल की अवधि में 819 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हुई।

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट कैरेबियाई देशों, मॉरीशस और संयुक्त अरब अमीरात तक फैले टैक्स हैवन देशों में अडानी परिवार के नियंत्रण वाली मुखौटा कंपनियों के नेक्सस का विवरण है। जिसके बारे में दावा किया गया है कि इनका इस्तेमाल भ्रष्टाचार, मनी लॉन्ड्रिंग और करदाताओं की चोरी को सुविधाजनक बनाने के लिए किया जाता है। जबकि धन की हेराफेरी समूह की सूचीबद्ध कंपनियों से की गई थी।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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