Friday, March 29, 2024

ताकि गुजरात का तंबू न उखड़े!

आजकल पीएम मोदी के मंदिरों के दौरों का सिलसिला तेज हो गया है। पहले उज्जैन महाकाल, फिर केदारनाथ और अब अयोध्या की तैयारी। पहले जनाब जब उज्जैन गए तो लगा कि कोरिडोर बनाया गया है लिहाजा उसका उद्घाटन करने से अपने आपको नहीं रोक पाए होंगे। इसलिए वहां गए हैं। जो शख्स हर छोटी-बड़ी चीज का उद्घाटन का लोभ संवरण नहीं कर पाता भला इस मौके को कैसे जाने देता। उनकी तो पूरी सरकार ही उसी के बल पर चल रही है। फिर वह अचानक केदारनाथ में प्रगट हो गए। और वहां फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता शुरू कर दी। तब दिमाग में खटका आखिर माजरा क्या है। कल ही मेरे जेहन में आ गया था कि यह सिलसिला रुकने वाला नहीं है यह शख्स अब अगले किसी दूसरे मंदिर का दौरा करेगा। और सोचा सोशल मीडिया पर लोगों को इसको बता भी दूं कि तब तक अयोध्या दौरे की खबर आ गयी। 

दरअसल ये सारी धार्मिक उछल-कूद गुजरात चुनाव के लिए हो रही है। पीएम-मोदी और शाह के दिमाग में अपनी सत्ता, उसकी सुरक्षा और उसके लिए जरूरी चुनावों में जीत 24×7 चलता रहता है। यह उसी के लिए जीते हैं और उसी के लिए मरते हैं। मंदिर और भगवान भारत में भक्तों और आम जनता के लिए भले ही दूसरे जन्म के सुधार और स्वर्ग पाने की सीढ़ियां हों लेकिन मोदी के लिए वे इसी जन्म में सत्ता दिलाने का साधन और औजार हैं। इससे ज्यादा कुछ नहीं। वह किसी धार्मिक नहीं बल्कि शुद्ध राजनीतिक मकसद से इन दौरों को संपादित करते हैं।

गुजरात में बीजेपी का चुनाव फंस गया है। पिछले 27 सालों की सत्ता में पहली बार हो रहा है जब वहां की जनता निगली गयी अफ़ीम से जाग गयी है और वहां चुनाव में उसके शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य के मुद्दे प्रमुखता हासिल कर लिए हैं। दरअसल गुजरात में जीवन स्थितियां बेहद बुरी हैं। शिक्षा बिल्कुल खत्म हो गयी है। स्वास्थ्य का ढांचा ढह गया है। कोविड के दौरान उसकी कलई खुल गयी थी और गुजरात हाईकोर्ट तक को सूबे की सरकार को फटकार लगानी पड़ी थी। वह पहला राज्य है जहां के चीफ जस्टिस को कहना पड़ा कि सरकार कोर्ट में झूठे आश्वासन देने की जगह स्थितियों को ठीक करे वरना उसे निरीक्षण के लिए जमीन पर उतरना पड़ेगा। सरकारी नौकरियों के हालात ये हैं कि सभी ठेके पर हैं। 10-15 हजार रुपये प्रति महीने पर जहां पुलिस रखी जा रही हो। और नियमित करने के नाम पर सालों साल लग जाते हों। स्वास्थ्य कर्मियों और शिक्षकों की जिंदगी संविदाकर्मियों के रूप में ही कट जाती हो। 

लोगों पर निगाह रखने और उन्हें पकड़ने के लिए इंटेलिजेंस कर्मी के नाम पर रखे गए लोगों को महज पांच हजार नसीब हो रहे हों। वहां की स्थितियों का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। सूबे की औसत औरतें एनमिक हैं यानि शरीर में खून की कमी की शिकार हैं। शहरों तक का यह आलम है। गांवों की स्थितियां तो और भी ज्यादा बुरी हैं। लेकिन हिंदुत्व की अफ़ीम ने इन सारे मुद्दों को पीछे कर रखा था। और संघ प्रायोजित मुस्लिम घृणा के नाम पर वहां की जनता बीजेपी की झोली में थोक के भाव वोट डालती रही। लेकिन इस बार हालात बिल्कुल बदल गए हैं। ये सारे सवाल अब मुद्दा बनकर चुनाव में सामने आ गए हैं। जिससे न केवल बीजेपी और संघ परेशान हैं बल्कि उसका शीर्ष नेतृत्व उससे भी ज्यादा परेशान है क्योंकि उसी को बेचकर उसने देश की सत्ता हासिल की है और अगर वही ढह जाएगा तो बाकी स्टेट में जो सपने दिखाए जा रहे हैं उनका क्या होगा?

तो जनाब को उस चुनाव की फ़िक्र सता रही है। अपने गृह राज्य में जाकर इनके पास जनता को देने के लिए कुछ नहीं है। वह वहां जाकर वही पुराने धार्मिक मुद्दे एक बार फिर उसी तरह से उठा नहीं सकते। ऐसे में उन्होंने दूर से सूबे की जनता को साधने का रास्ता अख्तियार किया है। खासकर उस जनता को जो अभी तक धर्म के नाम पर इनको वोट देती रही है। यह कुछ और नहीं बल्कि होश में आयी जनता को एक बार फिर से धर्म की अफ़ीम चटाने का प्रयास है। और उसके लिए ही इन सारी यात्राओं को प्रायोजित किया जा रहा है। केदारनाथ में फैंसी ड्रेस आयोजन की भी अपनी वजह है।

दरअसल वह चाहते हैं कि इसके बहाने ही सही उनकी यात्रा या फिर उनके बारे में बहस हो। लोग उसी पर चर्चा करें। यह सब कुछ बिल्कुल शातिराना नजरिये से अंजाम दिया जा रहा है। यहां तक कि केदरानाथ समेत तमाम पूजा स्थलों की परंपराओं को तोड़ना उनकी फितरत में शामिल हो गया है। दरअसल मोदी खुद को तमाम पुजारियों, पंडों और भगवाधारी वस्त्रधारियों से बड़ा समझने लगे हैं। और स्थितियां यही बनी रहीं तो आने वाले दिनों में अगर वह खुद को अवतारी पुरुष घोषित कर दें तो किसी को ताजुब नहीं होना चाहिए। 

ऐसा नहीं है कि उन्होंने गुजरात में धार्मिक मुद्दों को उठाने की कोशिश नहीं की। बलकीस बानो के बलात्कारियों की शर्मनाक रिहाई उसी कड़ी का हिस्सा थी। जिसके जरिये एक बार फिर से हिंदुत्व की बासी कड़ाही में उबाल पैदा करने की कोशिश की गयी। लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर उसकी सार्वत्रिक निंदा ने इनके हौसले पस्त कर दिए। हालांकि इसके जरिये वो भक्तों के एक हिस्से में अपना संदेश देने में ज़रूर कामयाब हो गए। लेकिन व्यापक जनता को इससे प्रभावित नहीं किया जा सका है।

अनायास नहीं गुजरात में जाकर जनाब को नकली क्लास लगवानी पड़ रही है और उसमें बच्चों के साथ बैठकर शिक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करने की कोशिश की जा रही है। हालांकि शिक्षा के प्रति इनकी प्रतिबद्धता उसी क्लास की तरह नकली है। दरअसल गुजरात के गांवों में अब कोई ऐसा स्कूल बचा ही नहीं है जिसमें वह छात्र-छात्राओं के साथ बैठ सकते थे। इसीलिए उनको इस तरह के नकली आयोजन में जाना पड़ा। अब इससे समझा जा सकता है कि 27 सालों में गुजरात को कहां ले जाकर खड़ा कर दिया गया है।

बहरहाल मोदी ने तो अभी उज्जैन और केदारनाथ की यात्रा की है। तीसरी अयोध्या होने जा रही है। बाकी उसके बाद का इंतजार कीजिए। लेकिन नजर बनाए रखिए कि किस तरह से पीएम महोदय गुजरात में चुनावी सभाएं करने की जगह बाहर से इन धार्मिक गतिविधियों के जरिये अपना चुनाव अभियान संचालित कर रहे हैं। 

(महेंद्र मिश्र जनचौक के संपादक हैं।)

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